ईवीएम की गड़बड़ी की शिकायत में रिस्क और नियम 49MA

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: April 24, 2019
टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर बिलकिस बानो के अलावा एक और खबर प्रमुखता से छापी है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी इसे खासा महत्व दिया है। खबर है, मतदान के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत। ईवीएम में गड़बड़ी की यह शिकायत अपने असली रूप में द टेलीग्राफ में है। इससे पहले ऐसी ही शिकायत सोशल मीडिया पर एक अनाम चुनाव अधिकारी के हवाले से एक पोस्ट के रूप में आई थी। पत्रकार साथी नितिन ठाकुर ने इसे पोस्ट किया था। शिकायत इस प्रकार है, “इस बार भी चुनाव में ड्यूटी लगी है। ट्रेनिंग में वोटर वेरिफाइड बैलेट पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीबीपीएटी) से परिचय कराया गया जिसके बारे में आप जानते ही होंगे। सवाल-जवाब के क्रम में कहा गया कि ये फुल प्रूफ मशीन है जिसमें कोई खराबी आ ही नहीं सकती।

अगर प्रिंट वगैरह की गलती हो तो वो हमारी गलती होगी कि हमने मशीन ठीक से नहीं रखी, वरना मशीन में सिर्फ एक ही खराबी आ सकती है कि उसका चार्ज खत्म हो जाए। अगर कोई वोटर ये कंप्लेन्ट करता है कि उसने जो बटन प्रैस किया पर्ची पर उस नाम की जगह कुछ और दिखा तो हमें उस वोटर को हड़काने के लिए कहा गया है। कहा गया कि उसे बताइए झूठा आऱोप लगाने के जुर्म में उसे जेल हो सकती है और जुर्माना भी होगा, पर (सवाल है कि) अगर वोटर अपनी बात पर टिका रहे तो क्या करे तो जवाब (मिला कि) ‘अपने स्तर पर हैंडल करो’ ऐसा कहा गया। मुझे ये बात जम नहीं रही ये कैसा वैरिफिकेशन है जो जबरन वैरिफाई करने को कह रहे हैं। चुनाव यहां 11 को हैं उसके बाद ही पता चलेगा कि स्थिति क्या रही पर वोटर के एक्यूज़ेशन (आरोप) को वैरिफाई करने का कोई तरीका ही नहीं है, ये बात गलत लग रही है। यहां तक कि चैलेंज्ड वोट के केस भी प्रिसाइडिंग अफसर की डायरी में नोट होते हैं, ऐसे केस के लिए कोई पेपरवर्क भी नहीं है।

हिन्दी अखबारों ने इसे तो खबर नहीं ही बनाया। कल की शिकायत भी आज पहले पन्ने पर नहीं दिखी। किसी एक में छोटी-मोटी रही हो तो नहीं कह सकता जबकि टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है, वोट के बारे में शिकायत करना जोखिम भरा है। बैंगलोर डेटलाइन से पहले पन्ने की इस प्रमुख खबर में बताया गया है कि मतदान से संबंघित एक नियम 49एमए वैसे तो 2013 से अस्तित्व में है पर इसके बारे में बहुत कम लोगों ने सुना होगा। वैसे ही जैसे मतदाता एबिन बाबू के बारे में उनके करीबियों के अलावा बहुत कम लोगों को जानकारी होगी। इस नियम के अनुसार अगर कोई मतदाता शिकायत करे कि उसने वोट किसी को दिया और पर्ची किसी और की बनी तो उसे टेस्ट वोट करने का विकल्प इसका खामियाजा बताने के बाद दिया जा सकता है। और शिकायत करने का असर यह होगा कि साबित न होने पर (टेस्ट वोट से ही) उसे गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया जा सकता है और दोषी पाए जाने पर छह महीने की जेल और 1000 रुपए का जुर्माना हो सकता है।

केरल की राजधानी में जहां शशि थरूर अपनी सीट बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहां के मतदाता 21 साल एबिन बाबू को इस कानून की जानकारी बड़ी महंगी पड़ी। केरल के तिरुवनंतपुरम में ही एक अन्य बूथ पर प्रीजा शिजु ने इस मामले में जोखिम न लेने का निर्णय किया और बच गईं। हालांकि उनकी शिकायत भी यही थी। एबिन के मामले में टेस्ट वोट उनके खिलाफ गया औऱ उन्हें गिरफ्तार कर जमानत पर छोड़ा गया। प्रीजा की हिचक के आलोक में राजनीतिक दलों ने पूछा है कि क्या यह नियम अंततः मतदाताओं को डराने वाला नहीं बन जाएगा।

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