‘चुनाव आयोग ऐसे कदम से बचे…’: केरल विधानसभा ने SIR के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया

Written by sabrang india | Published on: September 30, 2025
यह प्रस्ताव मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने विधानसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 118 के तहत पेश किया था।



केरल सरकार ने सोमवार को राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव में केंद्रीय चुनाव आयोग से देश भर में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लागू करने के अपने फैसले को वापस लेने का आग्रह किया गया।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने विधानसभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम 118 के तहत यह प्रस्ताव पेश किया। इस प्रकार, केरल विधानसभा एसआईआर के खिलाफ प्रस्ताव लाने वाली देश की पहली विधानसभा बन गई।

प्रस्ताव में कहा गया है कि चुनाव आयोग के इस कदम ने गंभीर चिंता पैदा कर दी है कि एसआईआर का उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करना है।

प्रस्ताव में कहा गया है,"जो लोग नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को फिर से लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, वो लोग NRC का कैसे इस्तेमाल करेंगे, ये हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। चुनाव आयोग को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो। मतदाता सूची की जांच और सुधार का काम पूरी तरह पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।"

केरल में सत्तारूढ़ CPI(M) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और विपक्षी कांग्रेस-नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) दोनों ने 2002 की वोटर लिस्ट को आधार बनाकर SIR कराने के फैसले का विरोध किया है। दोनों का मानना है कि इससे बड़ी संख्या में योग्य वोटरों के नाम लिस्ट से हटा दिए जाएंगे। इसलिए विधानसभा में इस कदम के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया है। विधानसभा में बीजेपी का कोई विधायक नहीं है, जबकि बीजेपी पूरे देश में, केरल समेत, SIR कराने के फैसले का समर्थन कर रही है।

प्रस्ताव में कहा गया है कि जब बिहार में SIR से जुड़ी याचिकाएं अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, तो ऐसे में केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां एक साल के अंदर चुनाव होने हैं, SIR प्रक्रिया को जबरदस्ती लागू करने की कोशिश पर सवाल उठते हैं। केरल में जल्द ही स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, और उसके बाद विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे समय में SIR जैसी प्रक्रिया, जिसमें गहराई से सोच-विचार और लंबी तैयारी की जरूरत होती है, को इतनी जल्दबाजी में लागू करना इस डर को जन्म देता है कि इसका मकसद जनमत को कमजोर करना है। यही बात प्रस्ताव में कही गई है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले केरल में 2002 में मतदाता सूची का व्यापक संशोधन किया गया था। उन्होंने कहा कि वर्तमान संशोधन 2002 के आधार पर किया जाना ‘अवैज्ञानिक’ है।

सीएम ने कहा कि एसआईआर की यह अनिवार्यता कि 1987 के बाद जन्मे लोग केवल तभी मतदान कर सकते हैं जब वे अपने पिता या माता का नागरिकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें, देश के वयस्क मताधिकार को कमजोर करने वाला निर्णय है।

उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2003 के बाद जन्मे व्यक्ति तभी मतदान कर सकेंगे, जब वे अपने माता-पिता के नागरिकता से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे।

प्रस्ताव में यह भी उल्लेख किया गया है कि विशेषज्ञ अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे प्रावधानों के कारण, विशेष रूप से एसआईआर (SIR) जैसी प्रणालियों में, समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को मतदाता सूची से बाहर होते हैं।

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि जिन लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जाएगा, उनमें अधिकांश अल्पसंख्यक समुदायों, अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्य, महिलाएं और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से होंगे।

प्रस्ताव में मुख्यमंत्री विजयन ने यह भी आग्रह किया कि मतदाता सूची में आप्रवासी मतदाताओं के मताधिकार को सुरक्षित रखा जाए।

मुख्यमंत्री ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) -जो धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है -को पुनर्जीवित करने के प्रयासों और एसआईआर (SIR) के संभावित उपयोग को लेकर गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि ऐसे कदम लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती हैं।

उन्होंने आगे कहा कि विधानसभा सर्वसम्मति से यह मांग करती है कि चुनाव आयोग ऐसे किसी भी काम से दूरी बनाए रखे जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आग्रह किया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण पूर्ण पारदर्शिता के साथ किया जाए।

कुछ सदस्यों द्वारा सुझाए गए संशोधनों को शामिल करने के बाद, अध्यक्ष ए.एन. शमशीर ने घोषणा की कि प्रस्ताव को सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया है।

ज्ञात हो कि बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान मसौदा मतदाता सूची से करीब 65 लाख लोगों का नाम हटा दिया गया है। 

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