शुरुआती अनुमानों के आधार पर, जिलाधिकारियों ने चुनाव आयोग को सूचित किया है कि राज्य से बाहर कार्यरत प्रवासी मजदूरों की कुल संख्या लगभग 22 लाख हो सकती है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का मानना है कि यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान राज्य सरकार ने लगभग 40 लाख प्रवासी मजदूरों को अन्य राज्यों से वापस बंगाल लाया था।

साभार : डेक्कन हेराल्ड
पश्चिम बंगाल की मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) जब अगले महीने यानी अक्टूबर में शुरू होगा, तो राज्य से बाहर काम करने वाले लोगों—विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों—को फॉर्म भरते समय यह घोषणा करनी होगी कि वे किसी अन्य स्थान पर मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हैं।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, निर्वाचन आयोग के एक सूत्र ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति, जो अन्य राज्यों में कार्यरत है, पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराना चाहता है, तो उसे यह घोषणा करनी होगी—एक लिखित घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर—कि वह जिस राज्य में कार्य कर रहा है, वहां उसका नाम मतदाता के रूप में दर्ज नहीं है। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में पंजीकृत न हो।
सूत्रों के अनुसार, राज्य से बाहर कार्यरत श्रमिकों को गणना फॉर्म ऑनलाइन भरने की अनुमति दी जाएगी, क्योंकि उनके लिए पश्चिम बंगाल आकर यह प्रक्रिया पूरी करना व्यावहारिक नहीं है। वहीं, राज्य में मौजूद मतदाताओं को गणना फॉर्म उनके घरों पर वितरित किए जाएंगे।
एक अन्य सूत्र ने बताया कि बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी क्यूआर स्कैनर जैसी व्यवस्था लागू की जा सकती है। इसके तहत, अन्य राज्यों में कार्यरत लोग गणना फॉर्म को स्कैन कर भर सकेंगे और उसे ऑनलाइन जमा कर सकेंगे। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें यह स्पष्ट घोषणा करनी होगी कि वे जिस राज्य में कार्यरत हैं, वहां उनकी मतदाता के रूप में कोई पंजीकरण नहीं है।
सूत्रों ने अखबार को बताया कि प्रवासी मजदूरों को अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इस मामले में एक सूत्र ने जानकारी दी कि यदि किसी व्यक्ति या उसके माता-पिता का नाम 2002 की मतदाता सूची में दर्ज है, तो वह संबंधित ईपीआईसी (EPIC) नंबर और उस भाग संख्या का उल्लेख करके गणना फॉर्म जमा कर सकता है, जिसमें वह 2002 की सूची के अनुसार पंजीकृत था। लेकिन यदि स्वयं व्यक्ति का नाम 2002 की सूची में नहीं है, परंतु उसके माता-पिता का नाम दर्ज है, तो उसे अपने माता-पिता का विवरण देना होगा और चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त 12 पहचान पत्रों में से कोई एक दस्तावेज—जैसे आधार कार्ड—गणना फॉर्म के साथ संलग्न करना होगा।
जिला प्रशासनों से बाहरी कामगारों की सूची तैयार करने को कहा गया है।
सूत्र ने आगे बताया कि यदि एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) शुरू होने से पहले न तो किसी व्यक्ति का नाम और न ही उसके माता-पिता का नाम 2002 की मतदाता सूची में है, तो ऐसे मामलों में गणना फॉर्म के साथ क्या दस्तावेज जमा करने होंगे, इस संबंध में चुनाव आयोग अलग से घोषणा करेगा।
इस मामले में चुनाव आयोग ने ज़िलाधिकारियों से बाहरी कामगारों की सूची तैयार करने को कहा है।
एक सूत्र के अनुसार, चुनाव आयोग एसआईआर शुरू होने से पहले राज्य के बाहर कार्यरत सभी बंगाल निवासियों से संपर्क करेगा। लक्षित प्रवासी कामगारों को गणना फॉर्म भरने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने के लिए आयोग एक व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाएगा। इसके अलावा, राज्य में रह रहे इन कामगारों के परिजनों को भी इस प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए जिलाधिकारी उनसे सीधे संपर्क करेंगे।
शुरुआती अनुमानों के आधार पर, जिलाधिकारियों ने चुनाव आयोग को सूचित किया है कि राज्य से बाहर कार्यरत प्रवासी मजदूरों की कुल संख्या लगभग 22 लाख हो सकती है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का मानना है कि यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान राज्य सरकार ने लगभग 40 लाख प्रवासी मजदूरों को अन्य राज्यों से वापस बंगाल लाया था।
द वायर हिंदी ने लिखा, चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की संख्या में कमी आने की संभावना बहुत कम है। उनके अनुसार, महामारी के बाद राज्य रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने में असफल रहा है, जिस कारण पिछले कुछ वर्षों में प्रवासियों की संख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि एसआईआर की प्रक्रिया पूरी तरह शुरू होने से पहले प्रवासी मजदूरों की विस्तृत जानकारी के साथ एक सूची तैयार की जाए।
सूत्रों ने बताया कि विवाद से बचने के लिए चुनाव आयोग एसआईआर के दौरान बंगाल में प्रवासी कामगारों के नाम दर्ज करने को लेकर सतर्क है।
चुनाव आयोग के सूत्रों का मानना है कि यदि पश्चिम बंगाल के बाहर काम करने वाले लोगों को एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया में ठीक से शामिल नहीं किया गया, तो बड़ी संख्या में नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। इससे अनावश्यक विवाद पैदा होने की आशंका है।
सूत्रों के अनुसार, चूंकि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में मृत या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम अभी भी शामिल होने की संभावना है, इसलिए यह माना जा रहा है कि एसआईआर प्रक्रिया के दौरान ऐसे कई नाम सूची से हटाए जाएंगे।
इस मामले में चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर प्रवासी मतदाताओं को एसआईआर प्रक्रिया में उचित रूप से शामिल नहीं किया गया, तो मतदाता सूची से हटाए गए नामों की संख्या काफी बढ़ सकती है, जिससे चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना हो सकती है।’
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साभार : डेक्कन हेराल्ड
पश्चिम बंगाल की मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) जब अगले महीने यानी अक्टूबर में शुरू होगा, तो राज्य से बाहर काम करने वाले लोगों—विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों—को फॉर्म भरते समय यह घोषणा करनी होगी कि वे किसी अन्य स्थान पर मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हैं।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, निर्वाचन आयोग के एक सूत्र ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति, जो अन्य राज्यों में कार्यरत है, पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराना चाहता है, तो उसे यह घोषणा करनी होगी—एक लिखित घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर—कि वह जिस राज्य में कार्य कर रहा है, वहां उसका नाम मतदाता के रूप में दर्ज नहीं है। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में पंजीकृत न हो।
सूत्रों के अनुसार, राज्य से बाहर कार्यरत श्रमिकों को गणना फॉर्म ऑनलाइन भरने की अनुमति दी जाएगी, क्योंकि उनके लिए पश्चिम बंगाल आकर यह प्रक्रिया पूरी करना व्यावहारिक नहीं है। वहीं, राज्य में मौजूद मतदाताओं को गणना फॉर्म उनके घरों पर वितरित किए जाएंगे।
एक अन्य सूत्र ने बताया कि बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी क्यूआर स्कैनर जैसी व्यवस्था लागू की जा सकती है। इसके तहत, अन्य राज्यों में कार्यरत लोग गणना फॉर्म को स्कैन कर भर सकेंगे और उसे ऑनलाइन जमा कर सकेंगे। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें यह स्पष्ट घोषणा करनी होगी कि वे जिस राज्य में कार्यरत हैं, वहां उनकी मतदाता के रूप में कोई पंजीकरण नहीं है।
सूत्रों ने अखबार को बताया कि प्रवासी मजदूरों को अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इस मामले में एक सूत्र ने जानकारी दी कि यदि किसी व्यक्ति या उसके माता-पिता का नाम 2002 की मतदाता सूची में दर्ज है, तो वह संबंधित ईपीआईसी (EPIC) नंबर और उस भाग संख्या का उल्लेख करके गणना फॉर्म जमा कर सकता है, जिसमें वह 2002 की सूची के अनुसार पंजीकृत था। लेकिन यदि स्वयं व्यक्ति का नाम 2002 की सूची में नहीं है, परंतु उसके माता-पिता का नाम दर्ज है, तो उसे अपने माता-पिता का विवरण देना होगा और चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त 12 पहचान पत्रों में से कोई एक दस्तावेज—जैसे आधार कार्ड—गणना फॉर्म के साथ संलग्न करना होगा।
जिला प्रशासनों से बाहरी कामगारों की सूची तैयार करने को कहा गया है।
सूत्र ने आगे बताया कि यदि एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) शुरू होने से पहले न तो किसी व्यक्ति का नाम और न ही उसके माता-पिता का नाम 2002 की मतदाता सूची में है, तो ऐसे मामलों में गणना फॉर्म के साथ क्या दस्तावेज जमा करने होंगे, इस संबंध में चुनाव आयोग अलग से घोषणा करेगा।
इस मामले में चुनाव आयोग ने ज़िलाधिकारियों से बाहरी कामगारों की सूची तैयार करने को कहा है।
एक सूत्र के अनुसार, चुनाव आयोग एसआईआर शुरू होने से पहले राज्य के बाहर कार्यरत सभी बंगाल निवासियों से संपर्क करेगा। लक्षित प्रवासी कामगारों को गणना फॉर्म भरने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने के लिए आयोग एक व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाएगा। इसके अलावा, राज्य में रह रहे इन कामगारों के परिजनों को भी इस प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए जिलाधिकारी उनसे सीधे संपर्क करेंगे।
शुरुआती अनुमानों के आधार पर, जिलाधिकारियों ने चुनाव आयोग को सूचित किया है कि राज्य से बाहर कार्यरत प्रवासी मजदूरों की कुल संख्या लगभग 22 लाख हो सकती है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का मानना है कि यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान राज्य सरकार ने लगभग 40 लाख प्रवासी मजदूरों को अन्य राज्यों से वापस बंगाल लाया था।
द वायर हिंदी ने लिखा, चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की संख्या में कमी आने की संभावना बहुत कम है। उनके अनुसार, महामारी के बाद राज्य रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने में असफल रहा है, जिस कारण पिछले कुछ वर्षों में प्रवासियों की संख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि एसआईआर की प्रक्रिया पूरी तरह शुरू होने से पहले प्रवासी मजदूरों की विस्तृत जानकारी के साथ एक सूची तैयार की जाए।
सूत्रों ने बताया कि विवाद से बचने के लिए चुनाव आयोग एसआईआर के दौरान बंगाल में प्रवासी कामगारों के नाम दर्ज करने को लेकर सतर्क है।
चुनाव आयोग के सूत्रों का मानना है कि यदि पश्चिम बंगाल के बाहर काम करने वाले लोगों को एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया में ठीक से शामिल नहीं किया गया, तो बड़ी संख्या में नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। इससे अनावश्यक विवाद पैदा होने की आशंका है।
सूत्रों के अनुसार, चूंकि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में मृत या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम अभी भी शामिल होने की संभावना है, इसलिए यह माना जा रहा है कि एसआईआर प्रक्रिया के दौरान ऐसे कई नाम सूची से हटाए जाएंगे।
इस मामले में चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर प्रवासी मतदाताओं को एसआईआर प्रक्रिया में उचित रूप से शामिल नहीं किया गया, तो मतदाता सूची से हटाए गए नामों की संख्या काफी बढ़ सकती है, जिससे चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना हो सकती है।’
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