"देश में आम लोगों के मुकाबले खेती पर निर्भर परिवारों की कमाई लगातार घट रही है जिससे उनकी खर्च क्षमता भी कम हुई है। NSSO के ताजा Household Consumption Expenditure Survey (HCES) के आंकड़े बताते हैं कि खेती पर निर्भर परिवारों के महीने में खर्च करने की क्षमता, अन्य आम ग्रामीण परिवारों के मुकाबले लगातार कम होती जा रही है।"
Image: DTE
आम ग्रामीणों की तुलना में खेती- किसानी से जुड़े परिवारों की महीने में खर्च करने की क्षमता कम हो गई है। यानी खेती से वह बहुत ज़्यादा फायदा हासिल नहीं कर पा रहे हैं। यह बात नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन NSSO के Household Consumption Expenditure Survey (HCES) से जुड़े सर्वे में सामने आई है। यह सर्वे परिवारों के खर्च करने की क्षमता का आकलन करता है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि खेती पर निर्भर परिवारों का औसत खर्च 2022-23 (अगस्त-जुलाई) में 3,702 रुपये था जबकि अन्य ग्रामीण परिवारों का कुल औसत खर्च 3,773 रुपये था। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत एनएसएसओ ने अगस्त-2022 से जुलाई-2023 के दौरान परिवारों का उपभोग खर्च सर्वे (HCES) आयोजित किया था।
हालात हमेशा ऐसे नहीं थे।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, 1999-2000 में कृषि परिवारों का MPCE (Monthly Per Capita Consumption Expenditure) 520 रुपये था, जबकि ग्रामीण परिवारों का कुल औसत 486 रुपये था। लेकिन 2004-05 में अंतर और कम हो गया। कृषि परिवारों का MPCE घटने लगा और 583 रुपये पर आ गया। वहीं ग्रामीण परिवारों के खर्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी देखी गई और उनका कुल औसत 559 रुपये पहुंच गया। 2011-12 में इसमे थोड़ा बदलाव आया लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं था। जहां कृषि परिवारों का MPCE 1,436 रुपये था और औसत ग्रामीण खर्च 1,430 था। यही नहीं, खेती पर निर्भर परिवारों की तरह कभी-कभार खेती करने वाले यानी खेत मजदूरों के औसत खर्च में भी अन्य आम ग्रामीणों के औसत खर्च के मुकाबले कमी आई है।
क्या है वजह?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अर्थशास्त्री इसके संभावित कारणों में से एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विविधीकरण को मानते हैं। मतलब यह कि गांवों में अब किसानी के अलावा बड़ी तादाद में ऐसे काम आ गए हैं जो लोगों की कमाई का जरिया बन रहे हैं या लोग खेती को छोड़कर दूसरे कामों में लग गए हैं। इससे अलग एक और कारण पर बात करते हुए एक अन्य अर्थशास्त्री यह कहते हैं कि कोविड-19 के बाद शहरों से गांव लौटे मजदूर बड़ी तादाद में खेती पर निर्भर हुए हैं। ऐसे में यह माना जा सकता है खेती पर निर्भर परिवारों का औसत MPCE ग्रामीणों की तुलना में कम हुआ है।
किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं एनएसएसओ के ताजा आंकड़े!
एनएसएसओ के ताजा आंकड़े, फसलों पर उचित (सी2+ 50%) एवं गारंटीड MSP आदि मांगों के लिए आंदोलनरत किसानों का समर्थन करते हैं। आंदोलन कर रहे किसानों का भी यही कहना है कि जहां बढ़ती महंगाई में खेती की लागत आसमान छूती जा रही है वहीं, उचित भाव न मिल पाने के चलते खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। नतीजा लोग खेती छोड़ रहे हैं या फिर कर्ज के बोझ में डूबते चले जा रहे हैं। कुछ किसान आत्महत्या तक भी कर ले रहे हैं। पिछले कुछ समय से जिस तरह से जलवायु परिवर्तन की घटनाए सामने आई हैं उससे नुकसान के साथ खेती में अनिश्चितताओ को भी बढ़ावा मिला है। यही कारण है कि किसान लंबे समय से कृषि उपजों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की मांग कर रहे हैं और आंदोलनरत हैं।
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आम ग्रामीणों की तुलना में खेती- किसानी से जुड़े परिवारों की महीने में खर्च करने की क्षमता कम हो गई है। यानी खेती से वह बहुत ज़्यादा फायदा हासिल नहीं कर पा रहे हैं। यह बात नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन NSSO के Household Consumption Expenditure Survey (HCES) से जुड़े सर्वे में सामने आई है। यह सर्वे परिवारों के खर्च करने की क्षमता का आकलन करता है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि खेती पर निर्भर परिवारों का औसत खर्च 2022-23 (अगस्त-जुलाई) में 3,702 रुपये था जबकि अन्य ग्रामीण परिवारों का कुल औसत खर्च 3,773 रुपये था। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत एनएसएसओ ने अगस्त-2022 से जुलाई-2023 के दौरान परिवारों का उपभोग खर्च सर्वे (HCES) आयोजित किया था।
हालात हमेशा ऐसे नहीं थे।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, 1999-2000 में कृषि परिवारों का MPCE (Monthly Per Capita Consumption Expenditure) 520 रुपये था, जबकि ग्रामीण परिवारों का कुल औसत 486 रुपये था। लेकिन 2004-05 में अंतर और कम हो गया। कृषि परिवारों का MPCE घटने लगा और 583 रुपये पर आ गया। वहीं ग्रामीण परिवारों के खर्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी देखी गई और उनका कुल औसत 559 रुपये पहुंच गया। 2011-12 में इसमे थोड़ा बदलाव आया लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं था। जहां कृषि परिवारों का MPCE 1,436 रुपये था और औसत ग्रामीण खर्च 1,430 था। यही नहीं, खेती पर निर्भर परिवारों की तरह कभी-कभार खेती करने वाले यानी खेत मजदूरों के औसत खर्च में भी अन्य आम ग्रामीणों के औसत खर्च के मुकाबले कमी आई है।
क्या है वजह?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अर्थशास्त्री इसके संभावित कारणों में से एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विविधीकरण को मानते हैं। मतलब यह कि गांवों में अब किसानी के अलावा बड़ी तादाद में ऐसे काम आ गए हैं जो लोगों की कमाई का जरिया बन रहे हैं या लोग खेती को छोड़कर दूसरे कामों में लग गए हैं। इससे अलग एक और कारण पर बात करते हुए एक अन्य अर्थशास्त्री यह कहते हैं कि कोविड-19 के बाद शहरों से गांव लौटे मजदूर बड़ी तादाद में खेती पर निर्भर हुए हैं। ऐसे में यह माना जा सकता है खेती पर निर्भर परिवारों का औसत MPCE ग्रामीणों की तुलना में कम हुआ है।
किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं एनएसएसओ के ताजा आंकड़े!
एनएसएसओ के ताजा आंकड़े, फसलों पर उचित (सी2+ 50%) एवं गारंटीड MSP आदि मांगों के लिए आंदोलनरत किसानों का समर्थन करते हैं। आंदोलन कर रहे किसानों का भी यही कहना है कि जहां बढ़ती महंगाई में खेती की लागत आसमान छूती जा रही है वहीं, उचित भाव न मिल पाने के चलते खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। नतीजा लोग खेती छोड़ रहे हैं या फिर कर्ज के बोझ में डूबते चले जा रहे हैं। कुछ किसान आत्महत्या तक भी कर ले रहे हैं। पिछले कुछ समय से जिस तरह से जलवायु परिवर्तन की घटनाए सामने आई हैं उससे नुकसान के साथ खेती में अनिश्चितताओ को भी बढ़ावा मिला है। यही कारण है कि किसान लंबे समय से कृषि उपजों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की मांग कर रहे हैं और आंदोलनरत हैं।
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