नई दिल्ली। यह कोई रहस्य की बात नहीं कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और डॉ.कफील खान के बीच उस समय कांटे की टक्कर हुई थी जब उन्होंने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में शिशुओं और बच्चों की जान बचाने में मदद की। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 70 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। लेकिन डॉ. कफील खान अभी भी जेल में हैं।
हालांकि डॉ. कफील खान ने कोरोना वायरस की महामारी में फ्रंटलाइन पर काम कर रहे डॉक्टरों के साथ दलित और वंचित समुदाय के लिए चिकित्सा सेवाओं की पेशकश की थी। लेकिन सरकार उन्हें अभी भी मुक्त नहीं करना चाहती है। डॉ. खान को राष्ट्रीय सुरक्षा के आरोपों के तहत सलाखों के पीछे मथुरा जेल में रखा गया है।
वहीं अब डॉ. कफील खान की पत्नी शबिस्ता ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों के एक फोरम को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने उन्हें अपने पति के साथ खड़े होने और उनकी दुख को साझा करने की अपील की है।
पत्र में उन्होंने इस रोग के प्रकोप को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए शबिस्ता ने लिखा, 'डॉ. कफील खान देश के दूरस्थ स्थानों पर सौ से अधिक निशुल्क हेल्थ शिविर आयोजित करके एक फेमस हेल्थ केयर एक्टिविस्ट बने हैं। बिहार में चमकी बुखार (2019) और केरल बाढ़ (2018), बिहार बाढ़ (2019), केरल में निपाह वायरस संक्रमण (2018) के दौरान उनका योगदान उल्लेखनीय है।
डॉक्टर खान ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। वह कहती हैं, मेरे पति ने सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था जिसके बाद यूपी सरकार ने उनपर रासुका लगाई लेकिन अलीगढ़ की सीजेएम कोर्ट ने जमानत दे दी थी।
शबिस्ता कहती हैं, कोविड 19 संकट के ऐसे समय में उनके काम के अनुभव का इस्तेमाल करने के लिए सरकार से लगातार विनती की जा रही थी लेकिन अभी तीन महीने से उन पर लगाई गई रासुका को रद्द नहीं किया गया है।
पत्र में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को संबोधित करते हुए उन्होंने क्या लिखा, नीचे पढ़ें-
'मैं डॉ. कफील खान की पत्नी हूं। मैं आपके संज्ञान में मेरे पति के साथ हुए दो साल पुराने घोर अन्याय के मामले को सामने लाना चाहती हूं। वर्तमान में वह मथुरा जेल में बंद हैं क्योंकि उनके खिलाफ रासुका लगाई गई थी।
'डॉ. कफील खान देश के सौ से अधिक दूरस्थ स्थानों पर निशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित करके एक प्रमुख हेल्थकेयर एक्टिविस्ट बन गए। बिहार (2019) में चमकी बुखार का प्रकोप, बिहार में बाढ़ (2019), केरल में निपाह वायरस के प्रकोप और बाढ़ के समय़ के उनके कुछ अभियान ध्यान देने योग्य हैं।'
'बीआरडी ऑक्सीजन त्रासदी उनके पीड़ित होने का शुरु बिंदु था क्योंकि उन्होंने उस भयावह रात को उन्होंने ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर एक व्हिसल ब्लोअर के रुप में काम किया था। वहां 70 मासूमों ने अपनी जान गंवा दी थी।'
'बाद में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य अधिकारियों को बचाने के लिए उन्हें जेल जाना पड़ा। फिर माननीय उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी और कहा कि उनकी ओर से चिकित्सा लापरवाही नहीं की गई थी, इस बात का कोई सबूत नहीं है। उन्हें विभागीय जांच में भी क्लीनचिट दे दी गई थी लेकिन फिर भी लक्षित उत्पीड़न जारी रहा।'
'मेरे पति ने सीएए-एनआरसी के कुछ विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया लेकिन यूपी सरकार ने उनपर फिर से रासुका लगा दी जबकि अलीगढ़ की सीजेएम अदालत ने उन्हें दे दी थी। वह लगातार सरकार से विनती कर रहे थे कि कोविड 19 के संकट के ऐसे महत्वपूर्ण समय उन्हें काम करने दिया जाए और उनके अनुभव का इस्तेमाल किया जाए लेकिन फिर भी तीन महीने बाद भी उनपर लगायी गई रासुका को निरस्त नहीं किया गया है। 'मैं पेशेवर जानकारी साझा करने के लिए इस मंच को जानती हूं इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे डॉक्टर्स की टीम उनके साथ खड़ी होगी।'
हालांकि डॉ. कफील खान ने कोरोना वायरस की महामारी में फ्रंटलाइन पर काम कर रहे डॉक्टरों के साथ दलित और वंचित समुदाय के लिए चिकित्सा सेवाओं की पेशकश की थी। लेकिन सरकार उन्हें अभी भी मुक्त नहीं करना चाहती है। डॉ. खान को राष्ट्रीय सुरक्षा के आरोपों के तहत सलाखों के पीछे मथुरा जेल में रखा गया है।
वहीं अब डॉ. कफील खान की पत्नी शबिस्ता ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों के एक फोरम को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने उन्हें अपने पति के साथ खड़े होने और उनकी दुख को साझा करने की अपील की है।
पत्र में उन्होंने इस रोग के प्रकोप को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए शबिस्ता ने लिखा, 'डॉ. कफील खान देश के दूरस्थ स्थानों पर सौ से अधिक निशुल्क हेल्थ शिविर आयोजित करके एक फेमस हेल्थ केयर एक्टिविस्ट बने हैं। बिहार में चमकी बुखार (2019) और केरल बाढ़ (2018), बिहार बाढ़ (2019), केरल में निपाह वायरस संक्रमण (2018) के दौरान उनका योगदान उल्लेखनीय है।
डॉक्टर खान ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। वह कहती हैं, मेरे पति ने सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था जिसके बाद यूपी सरकार ने उनपर रासुका लगाई लेकिन अलीगढ़ की सीजेएम कोर्ट ने जमानत दे दी थी।
शबिस्ता कहती हैं, कोविड 19 संकट के ऐसे समय में उनके काम के अनुभव का इस्तेमाल करने के लिए सरकार से लगातार विनती की जा रही थी लेकिन अभी तीन महीने से उन पर लगाई गई रासुका को रद्द नहीं किया गया है।
पत्र में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को संबोधित करते हुए उन्होंने क्या लिखा, नीचे पढ़ें-
'मैं डॉ. कफील खान की पत्नी हूं। मैं आपके संज्ञान में मेरे पति के साथ हुए दो साल पुराने घोर अन्याय के मामले को सामने लाना चाहती हूं। वर्तमान में वह मथुरा जेल में बंद हैं क्योंकि उनके खिलाफ रासुका लगाई गई थी।
'डॉ. कफील खान देश के सौ से अधिक दूरस्थ स्थानों पर निशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित करके एक प्रमुख हेल्थकेयर एक्टिविस्ट बन गए। बिहार (2019) में चमकी बुखार का प्रकोप, बिहार में बाढ़ (2019), केरल में निपाह वायरस के प्रकोप और बाढ़ के समय़ के उनके कुछ अभियान ध्यान देने योग्य हैं।'
'बीआरडी ऑक्सीजन त्रासदी उनके पीड़ित होने का शुरु बिंदु था क्योंकि उन्होंने उस भयावह रात को उन्होंने ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर एक व्हिसल ब्लोअर के रुप में काम किया था। वहां 70 मासूमों ने अपनी जान गंवा दी थी।'
'बाद में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य अधिकारियों को बचाने के लिए उन्हें जेल जाना पड़ा। फिर माननीय उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी और कहा कि उनकी ओर से चिकित्सा लापरवाही नहीं की गई थी, इस बात का कोई सबूत नहीं है। उन्हें विभागीय जांच में भी क्लीनचिट दे दी गई थी लेकिन फिर भी लक्षित उत्पीड़न जारी रहा।'
'मेरे पति ने सीएए-एनआरसी के कुछ विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया लेकिन यूपी सरकार ने उनपर फिर से रासुका लगा दी जबकि अलीगढ़ की सीजेएम अदालत ने उन्हें दे दी थी। वह लगातार सरकार से विनती कर रहे थे कि कोविड 19 के संकट के ऐसे महत्वपूर्ण समय उन्हें काम करने दिया जाए और उनके अनुभव का इस्तेमाल किया जाए लेकिन फिर भी तीन महीने बाद भी उनपर लगायी गई रासुका को निरस्त नहीं किया गया है। 'मैं पेशेवर जानकारी साझा करने के लिए इस मंच को जानती हूं इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे डॉक्टर्स की टीम उनके साथ खड़ी होगी।'