सिंगल कॉलम में सिमट कर रग गई दिव्य भास्कर मितेश पटेल के कोविड-19 से निधन की ख़बर
कोई भी जब पत्रकारिता में पहले-पहल कदम रखता है तो उसकी आंखों में उसके अख़बार के पन्ने और टीवी के पर्दे चमकते हैं। वह अपने जीवन के शुरूआती वर्षों को ठीक उसी तरह से झोंक देता है जैसे तंदूर में रोटी बनाने वाला आटे की लोई को।
मितेश पटेल की यह तस्वीर बहुत बाद की होगी। लेकिन चेहरे पर चमक बता रही है कि यह शख्स अपने काम को भी प्यार करता होगा। भले इस काम से कम मिला होगा लेकिन पत्रकार बनने के अपने फ़ैसले पर हर वक्त रोता नहीं होगा। यह मेरा अनुमान है। ग़लत भी हो सकता है।
दिव्य भास्कर गुजराती भाषा का प्रमुख समाचार पत्र है। इस अख़बार का पेज मितेश पटेल ही बनाते थे। पेज बनाना कारीगरी का काम है। जैसे रोज़ किसी बढ़ई को सूखी लकड़ी से तरह-तरह की चीज़ें बनानी हों। वह अख़ाबार के पन्ने को हर दिन नया कर देता है। ख़ुद हर दिन पुराना होता चला जाता है। मितेश पटेल दिव्य भास्कर से लंबे समय से जुड़े रहे। शायद 20 साल।
आप अगर दिव्य भास्कर के पूरे पेज को क्लिक करेंगे तो नीचे की तरफ जहां तरह तरह के विज्ञापन हैं वहां पर एक ख़बर लगी है। मितेश पटेल के निधन की। मितेश पटेल के निधन की ख़बर उनके बाद के पेज मेकर ने लगाई होगी, वह कितना ख़ाली हो गया होगा। जिन पन्नों पर मितेश पटेल की चलती होगी, उन्हीं पन्नों पर किसी कोने में उनके निधन की ख़बर लगी है।
एक पत्रकार का मर जाना महज़ एक फुटनोट है। आगरा के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की कोविड-19 से मौत हुई तो उनके निधन की ख़बर सामान्य ख़बर की तरह छपी। जबकि पंकज जागरण में बीस साल से अधिक समय से काम कर रहे थे। अख़बार चाहता तो अपने पत्रकार के पहले के काम के बारे में प्रमुखता से बता सकता था। चाहा तो दिव्य भास्कर ने भी नहीं। पन्नों पर कई कॉलम बनाने वाले मितेश पटेल नीचे की तरफ़ सिंगल कॉलम में दफ़न कर दिए गए।
अहमदाबाद के असवारा के सिविल अस्पताल में भर्ती थे। 21 मई को उनका निधन हो गया। 48 साल के थे। उन्हें कोविज-19 था। मितेश पटेल की पत्नी और उनके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा दर्शन मितेश पटेल फिज़ियोथेरेपी की पढ़ाई कर रहे हैं।
दिव्य भास्कर ने ही पहली बार अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में नकली वेंटिलेटर की पड़ताल की थी। उसके बाद अहमदाबाद मिरर और द वायर ने उस ख़बर से जुड़े नए-नए आयाम सामने लाए। गुजरात में कोविड-19 से जितनी मौतें हुई हैं उनमें से आधी अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुई हैं। कांग्रेस ने मांग की है कि जांच होनी चाहिए कि इस सिविल अस्पताल में जितनी भी मौतें हुई हैं, उनमें से कितनी मरीज़ इस नकली वेंटिलेटर पर रखे गए थे?
17 मई की सुबह के दिव्य भास्कर में नकली वेंटिलेटर की ख़बर छपी थी। तब मितेश पटेल अस्पताल में भर्ती हो चुके थे। 22 मई की सुबह जब लोगों के हाथ में दिव्य भास्कर पहुंचा तो उसमें मितेश पटेल के निधन की ख़बर थी।
दिव्य भास्कर 22 मई को अपने पहले पेज पर यह ख़बर दे सकता था। दैनिक जागरण भी पंकज कुलश्रेष्ठ की ख़बर अपने सभी संस्करणों के पहले पन्ने पर दे सकता था। मुझे इसकी जानकारी नहीं कि मितेश पटेल की ख़बर भास्कर समूह के अनगिनत संस्करणों में छपी थी या नहीं। अगर नहीं तो बाद में भी छप सकती है।
17 मई को दिव्य भास्कर की ख़बर इस तरह से थी-
“स्वेदेशी वेंटिलेटर धमण-1 फेल, धमण 1 के हास्पिटल में होने के बावजूद भी सिविल हास्पिटल के सुपरीटेंडेंट ने और 100 हाई एंड वेंटिलेटर की मांग की।“
एक अस्पताल का प्रमुख डॉक्टर अच्छी क्वालिटी के 100 वेंटिलेटर की मांग करता है, यह सामान्य तो नहीं है। मगर इस ख़बर को भी दबा दिया गया। क्योंकि फिर मीडिया को उस प्रश्न को उठाने का साहस करना पड़ता जो इतने बड़े अस्पताल में ख़राब क्वालिटी के वेंटिलेटर लगाने के पीछे के खेल से जुड़ा है ।
उम्मीद है दिव्य भास्कर अख़बार इस ख़बर की पड़ताल को स्थगित नहीं करेगा। मितेश पटेल के परिवार का ध्यान रखेगा। भास्कर एक साधन संपन्न अख़बार है। परिवार के सदस्य को नौकरी देने के अलावा आर्थिक मदद आराम से कर सकता है। मैं मितेश पटेल से मिला नहीं। मैं पंकज कुलश्रेष्ठ से भी नही मिला। दोनों के बारे में नहीं जानता था।
और क्या ही कहें। कैसे कहें?
एक निर्मम हो चुके समाज में करुणा की उम्मीद विलासिता है।
करुणा मानवीय गुण नहीं है। यह राजनीतिक गुण है। कांग्रेसी करुणा। भाजपाई करुणा। बिहारी करुणा। गुजराती करुणा।
अलविदा मितेश पटेल।
कोई भी जब पत्रकारिता में पहले-पहल कदम रखता है तो उसकी आंखों में उसके अख़बार के पन्ने और टीवी के पर्दे चमकते हैं। वह अपने जीवन के शुरूआती वर्षों को ठीक उसी तरह से झोंक देता है जैसे तंदूर में रोटी बनाने वाला आटे की लोई को।
मितेश पटेल की यह तस्वीर बहुत बाद की होगी। लेकिन चेहरे पर चमक बता रही है कि यह शख्स अपने काम को भी प्यार करता होगा। भले इस काम से कम मिला होगा लेकिन पत्रकार बनने के अपने फ़ैसले पर हर वक्त रोता नहीं होगा। यह मेरा अनुमान है। ग़लत भी हो सकता है।
दिव्य भास्कर गुजराती भाषा का प्रमुख समाचार पत्र है। इस अख़बार का पेज मितेश पटेल ही बनाते थे। पेज बनाना कारीगरी का काम है। जैसे रोज़ किसी बढ़ई को सूखी लकड़ी से तरह-तरह की चीज़ें बनानी हों। वह अख़ाबार के पन्ने को हर दिन नया कर देता है। ख़ुद हर दिन पुराना होता चला जाता है। मितेश पटेल दिव्य भास्कर से लंबे समय से जुड़े रहे। शायद 20 साल।
आप अगर दिव्य भास्कर के पूरे पेज को क्लिक करेंगे तो नीचे की तरफ जहां तरह तरह के विज्ञापन हैं वहां पर एक ख़बर लगी है। मितेश पटेल के निधन की। मितेश पटेल के निधन की ख़बर उनके बाद के पेज मेकर ने लगाई होगी, वह कितना ख़ाली हो गया होगा। जिन पन्नों पर मितेश पटेल की चलती होगी, उन्हीं पन्नों पर किसी कोने में उनके निधन की ख़बर लगी है।
एक पत्रकार का मर जाना महज़ एक फुटनोट है। आगरा के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की कोविड-19 से मौत हुई तो उनके निधन की ख़बर सामान्य ख़बर की तरह छपी। जबकि पंकज जागरण में बीस साल से अधिक समय से काम कर रहे थे। अख़बार चाहता तो अपने पत्रकार के पहले के काम के बारे में प्रमुखता से बता सकता था। चाहा तो दिव्य भास्कर ने भी नहीं। पन्नों पर कई कॉलम बनाने वाले मितेश पटेल नीचे की तरफ़ सिंगल कॉलम में दफ़न कर दिए गए।
अहमदाबाद के असवारा के सिविल अस्पताल में भर्ती थे। 21 मई को उनका निधन हो गया। 48 साल के थे। उन्हें कोविज-19 था। मितेश पटेल की पत्नी और उनके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा दर्शन मितेश पटेल फिज़ियोथेरेपी की पढ़ाई कर रहे हैं।
दिव्य भास्कर ने ही पहली बार अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में नकली वेंटिलेटर की पड़ताल की थी। उसके बाद अहमदाबाद मिरर और द वायर ने उस ख़बर से जुड़े नए-नए आयाम सामने लाए। गुजरात में कोविड-19 से जितनी मौतें हुई हैं उनमें से आधी अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुई हैं। कांग्रेस ने मांग की है कि जांच होनी चाहिए कि इस सिविल अस्पताल में जितनी भी मौतें हुई हैं, उनमें से कितनी मरीज़ इस नकली वेंटिलेटर पर रखे गए थे?
17 मई की सुबह के दिव्य भास्कर में नकली वेंटिलेटर की ख़बर छपी थी। तब मितेश पटेल अस्पताल में भर्ती हो चुके थे। 22 मई की सुबह जब लोगों के हाथ में दिव्य भास्कर पहुंचा तो उसमें मितेश पटेल के निधन की ख़बर थी।
दिव्य भास्कर 22 मई को अपने पहले पेज पर यह ख़बर दे सकता था। दैनिक जागरण भी पंकज कुलश्रेष्ठ की ख़बर अपने सभी संस्करणों के पहले पन्ने पर दे सकता था। मुझे इसकी जानकारी नहीं कि मितेश पटेल की ख़बर भास्कर समूह के अनगिनत संस्करणों में छपी थी या नहीं। अगर नहीं तो बाद में भी छप सकती है।
17 मई को दिव्य भास्कर की ख़बर इस तरह से थी-
“स्वेदेशी वेंटिलेटर धमण-1 फेल, धमण 1 के हास्पिटल में होने के बावजूद भी सिविल हास्पिटल के सुपरीटेंडेंट ने और 100 हाई एंड वेंटिलेटर की मांग की।“
एक अस्पताल का प्रमुख डॉक्टर अच्छी क्वालिटी के 100 वेंटिलेटर की मांग करता है, यह सामान्य तो नहीं है। मगर इस ख़बर को भी दबा दिया गया। क्योंकि फिर मीडिया को उस प्रश्न को उठाने का साहस करना पड़ता जो इतने बड़े अस्पताल में ख़राब क्वालिटी के वेंटिलेटर लगाने के पीछे के खेल से जुड़ा है ।
उम्मीद है दिव्य भास्कर अख़बार इस ख़बर की पड़ताल को स्थगित नहीं करेगा। मितेश पटेल के परिवार का ध्यान रखेगा। भास्कर एक साधन संपन्न अख़बार है। परिवार के सदस्य को नौकरी देने के अलावा आर्थिक मदद आराम से कर सकता है। मैं मितेश पटेल से मिला नहीं। मैं पंकज कुलश्रेष्ठ से भी नही मिला। दोनों के बारे में नहीं जानता था।
और क्या ही कहें। कैसे कहें?
एक निर्मम हो चुके समाज में करुणा की उम्मीद विलासिता है।
करुणा मानवीय गुण नहीं है। यह राजनीतिक गुण है। कांग्रेसी करुणा। भाजपाई करुणा। बिहारी करुणा। गुजराती करुणा।
अलविदा मितेश पटेल।