वाराणसी: डीजल रेल इंजन कारखानों के निगमीकरण के विरोध में कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: October 20, 2019
वाराणसी। वाराणसी के डीरेका समेत रेलवे की सात उत्पादन इकाइयों को निगम बनाने की तैयारी है। यानी सरकार इन उत्पादन इकाइयों का निजीकरण करने जा रही है। इसे लेकर रेल फैक्ट्री कर्मियों में भारी आक्रोश है। आक्रोशित कर्मियों ने वाराणसी में मोदी सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। 



बता दें कि रेलवे बोर्ड ने अपनी सभी उत्पादन इकाइयों को एक कंपनी के अधीन करने का प्रस्ताव दिया है। प्रस्ताव के मुताबिक सभी उत्पादन इकाइयां व्यक्तिगत लाभ केंद्र के रूप में काम करेंगी और भारतीय रेलवे की नई इकाई के सीएमडी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी।

मंत्रालय की ओर से 18 जून को लाये गये प्रस्ताव के मुताबिक अगले 100 दिनों में रेलवे की इन उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण के लिए अध्ययन किया जायेगा। इन सात उत्पादन इकाइयों को भारतीय रेलवे की नई इकाई इंडियन रेलवे रोलिंग स्टॉक (रेल के डिब्बे एवं इंजन) कंपनी के अधीन लाया जायेगा। इस कंपनी का एक सीएमडी होगा। इस सीएमडी या कंपनी के बोर्ड को उत्पादन इकाइयां अपनी रिपोर्ट देंगी। उत्पादन इकाइयां अपने सीईओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अधीन होंगी। 

सभी उत्पादन इकाइयां व्यक्तिगत लाभ के केंद्र के रूप में काम करेंगी। मंत्रालय का मानना है कि इससे इकाइयों और भारतीय रेलवे दोनों को फायदा होगा। साथ ही निर्यात और बेहतर परिचालन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। निगमीकरण के लिए रेलवे कर्मचारी संगठनों से भी बात की जाएगी। इसके बाद सबसे पहले रायबरेली के माडर्न कोच फैक्ट्री का निगमीकरण किया जायेगा। 



ये उत्पादन इकाइयां बनेंगी निगम
चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स आसनसोल
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई
डीजल रेल इंजन कारखाना वाराणसी
डीजल माडर्नाइजेशन वर्क्स पटियाला
ह्वील एंड एक्सल प्लांट बेंगलुरु
रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला
मॉडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली

डीरेका में अभी यह है व्यवस्था
यहां के सभी कर्मचारी भारतीय रेलवे के कर्मचारी हैं, रेल सेवा अधिनियम लागू होता है।
सभी कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारी माना जाता है, केंद्र सरकार की सुविधाएं मिलती हैं।
उत्पादन इकाइयों का सर्वेसर्वा जीएम होता है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को जीएम रिपोर्ट करता है। 

निगमीकरण के बाद यह होगी व्यवस्था
जीएम की जगह सीईओ की तैनाती होगी, वह सीएमडी को रिपोर्ट करेगा।
ग्रुप सी और डी का कोई भी कर्मचारी भारतीय रेलवे का हिस्सा नहीं होगा।
ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारी निगम के कर्मचारी हो जाएंगे।
इन पर रेल सेवा अधिनियम लागू नहीं होगा, कारपोरेशन जो नियम बनाएगा वह लागू होगा।
कर्मचारियों के लिए अलग से पे-कमीशन आएगा, कांट्रैक्ट पर काम होगा।
केंद्रीय सरकार की सुविधाएं नहीं मिलेंगी, सेवा शर्ते भी बदल जाएंगी।
नए कर्मचारियों के लिए पे-स्केल और पे-स्ट्रक्चर भी बदल जाएगा।

सरकार की नजर में निगमीकरण से लाभ
निगमों पर सरकार की ज्यादा जिम्मेदारी नहीं होती, अपने लिए खुद खर्च जुटाना होगा।
जरूरत पड़ने पर सरकार समय समय पर केवल इनके लिए फंड का इंतजाम करेगी। 
आयात या निर्यात के लिए रेलवे बोर्ड पर निर्भर नहीं रहेंगे, कंपनी से सीधे निर्देशित होंगे।
उत्पादन इकाई को अपने स्तर से उत्पादों को बेचने और सामान खरीदने की छूट हो जाएगी।

निगमीकरण पर कर्मचारियों की यह है आपत्ति
जिन इकाइयों के पास ज्यादा जमीन और करोड़ों की मशीनें है उनका निगमीकरण किया जा रहा है।
ग्रुप सी और डी के कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटकी रहेगी, ठेके पर नियुक्तियां होंगी।
कर्मचारियों को किसी भी तरह की सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी, केंद्रीय कर्मचारी नहीं कहलाएंगे।
निगम को घाटे में बताकर कभी भी निजी कंपनियों को बेचने की आशंका बनी रहेगी।

(हिंदुस्तान से इनपुट्स साभार)

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