दिल्ली सरकार ने पेट्रोल डीज़ल ओर शराब के दाम बढ़ा दिए है। दिल्ली में डीजल के दामों में अनाप शनाप वृद्धि की गई है इसके दाम 7 रु 10 पैसे प्रति लीटर बढ़ गए है। पेट्रोल पर 1 रू 67 पैसे बढ़े हैं, शराब पर 70% कोरोना टैक्स लगा दिया गया है, यह तो शुरुआत है जैसे ही लॉक डाउन खुलेगा वैसे ही अन्य राज्य भी यही करने वाले हैं।
लॉक डाउन खुलते ही एक भयानक आर्थिक संकट हमारा इंतजार कर रहा है, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ये फैसला बहुत सोच समझ कर लिया है जो दिल्ली की हालत है वही हर राज्य सरकार की हालत है बस फर्क यह है कि केजरीवाल बोल रहे हैं बाकी सब बोल भी नही पा रहे हैं केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के कर्मचारियों को अगले महीने की तनख्वाह देने की असमर्थता जताते हुए कहा है।।।।। 'दिल्ली बंद होने के कारण सब कुछ बंद है और ऐसे में इस अप्रैल के महीने में राजस्व महज 300 करोड़ रुपए आया है। हर साल इस राजस्व की रकम 3500 करोड़ रुपए के आसपास हुआ करती थी। यानी इस साल अप्रैल में 3200 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री ने ये जानकारी देते हुए कहा कि उनकी सरकार दिल्ली फिर से खोलने के लिए तैयार है, क्योंकि उनके आगे लोगों की तनख्वाएं देने और सरकार चलाने का संकट पनप सकता है'
रेड जोन में आने के बाद भी यानी स्थिति की गंभीरता से परिचित होने के बाद भी यदि कोई ऐसा बोल रहा है तो हमे वाकई सोचने की जरूरत है
देशभर में लॉकडाउन की वजह से मार्च महीने के लिए 29 अप्रैल तक जीएसटी कलेक्शन (April 2020 GST Collection) रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़ककर 28,309 करोड़ रुपये रहा। मार्च 2019 में यह 1।13 लाख करोड़ रुपये रहा था। यह इसलिए ज्यादा चिंताजनक हैं क्योंकि 24 मार्च तक सभी बिजनेस एक्टिविटी सुचारु रूप से चल रहे थे। 24 मार्च से ही देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया गया था।
मार्च में दिल्ली की ही तरह असम, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह में 80 से 90 फीसदी की भारी गिरावट आई थी पर असली संकट अप्रैल में खड़ा हुआ है 1 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स नेटवर्क (GSTN) से सिर्फ 67।47 लाख ई-वे बिल जनरेट किये गए है जबकि मार्च 2020 में भी नही नही करते हुए भी 4।06 करोड़ ई-वे बिल जेनरेट किये गए थे।
पीएम मोदी ने विगत 27 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की, तो उसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के। पलानीस्वामी ने दिसंबर और जनवरी का जीएसटी बकाये का मुद्दा उठा दिया। उसी दिन पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर जीएसटी का 4,386 करोड़ रुपये का बकाया देने की मांग कर डाली। दरअसल आर्थिक गतिविधियां सीमित होने से राज्यों के संसाधन सूखने लगे हैं। पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट, प्रॉपर्टी की स्टांप ड्यूटी, वाहन रजिस्ट्रेशन और शराब पर आबकारी शुल्क संसाधन जुटाने के लिए राज्यों के अपने स्रोत हैं, लेकिन पेट्रोल-डीजल की बिक्री 30 से 40 फीसदी रह गई है, शराब की बिक्री बंद है और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री भी नाममात्र की हो रही है। खजाने में पैसे नहीं होने के कारण राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही हैं। कुछ राज्यों ने तो कर्मचारियों को मिलने वाले कई भत्तों पर भी रोक लगा दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दिनों कहा, “कोनो अर्निंग नेइ, शुधु बर्निंग (कोई कमाई नहीं है, सिर्फ खर्च हो रहा है)।”
जो लोग अपने सरकारी कर्मचारी होने का दंभ मन मे पाले हुए हैं वो लोग भी अब चेत जाए। पंजाब और हरियाणा के 50 फीसदी से अधिक कर्मचारियों को मार्च का वेतन 20 अप्रैल के बाद जारी किया गया, पंजाब में 25 अप्रैल तक एक लाख से अधिक मुलाजिमों का वेतन बाकी था। पंजाब के 7।5 लाख मुलाजिमों और पेंशनभोगियों में शिक्षा विभाग और बोर्ड-कॉरपोरेशन के करीब एक लाख मुलाजिमों को मार्च का वेतन नहीं मिल पाया है। अब अप्रैल का 3,500 करोड़ रुपये का वेतन और पेंशन सिर पर है। उत्तरप्रदेश सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों का डीए एक साल के लिए स्थगित करने के साथ छह तरह के भत्ते भी समाप्त कर दिए गए हैं। नगर भत्ता, सचिवालय भत्ता, रिसर्च भत्ता और विशेष भत्ता पर एक साल के लिए रोक लगा दी गई।
कोरोना वायरस का असली प्रभाव हमे आर्थिक मोर्चे पर ही देखने को मिलेगा जहां हर क्षेत्र की चाहे वह सरकारी हो या निजी उसे तनख्वाह में कटौती का सामना करना पड़ेगा वही बढ़ती महंगाई उसके सारे बजट बिगाड़ देगी। हमने जिस तरह इस महामारी के आगमन को लेकर उसे कमतर आंका, ठीक वैसे ही हम वैसे ही इससे उबरने में लगने वाले वक्त को कम आंक रहे हैं।
लॉक डाउन खुलते ही एक भयानक आर्थिक संकट हमारा इंतजार कर रहा है, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ये फैसला बहुत सोच समझ कर लिया है जो दिल्ली की हालत है वही हर राज्य सरकार की हालत है बस फर्क यह है कि केजरीवाल बोल रहे हैं बाकी सब बोल भी नही पा रहे हैं केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के कर्मचारियों को अगले महीने की तनख्वाह देने की असमर्थता जताते हुए कहा है।।।।। 'दिल्ली बंद होने के कारण सब कुछ बंद है और ऐसे में इस अप्रैल के महीने में राजस्व महज 300 करोड़ रुपए आया है। हर साल इस राजस्व की रकम 3500 करोड़ रुपए के आसपास हुआ करती थी। यानी इस साल अप्रैल में 3200 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री ने ये जानकारी देते हुए कहा कि उनकी सरकार दिल्ली फिर से खोलने के लिए तैयार है, क्योंकि उनके आगे लोगों की तनख्वाएं देने और सरकार चलाने का संकट पनप सकता है'
रेड जोन में आने के बाद भी यानी स्थिति की गंभीरता से परिचित होने के बाद भी यदि कोई ऐसा बोल रहा है तो हमे वाकई सोचने की जरूरत है
देशभर में लॉकडाउन की वजह से मार्च महीने के लिए 29 अप्रैल तक जीएसटी कलेक्शन (April 2020 GST Collection) रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़ककर 28,309 करोड़ रुपये रहा। मार्च 2019 में यह 1।13 लाख करोड़ रुपये रहा था। यह इसलिए ज्यादा चिंताजनक हैं क्योंकि 24 मार्च तक सभी बिजनेस एक्टिविटी सुचारु रूप से चल रहे थे। 24 मार्च से ही देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया गया था।
मार्च में दिल्ली की ही तरह असम, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह में 80 से 90 फीसदी की भारी गिरावट आई थी पर असली संकट अप्रैल में खड़ा हुआ है 1 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स नेटवर्क (GSTN) से सिर्फ 67।47 लाख ई-वे बिल जनरेट किये गए है जबकि मार्च 2020 में भी नही नही करते हुए भी 4।06 करोड़ ई-वे बिल जेनरेट किये गए थे।
पीएम मोदी ने विगत 27 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की, तो उसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के। पलानीस्वामी ने दिसंबर और जनवरी का जीएसटी बकाये का मुद्दा उठा दिया। उसी दिन पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर जीएसटी का 4,386 करोड़ रुपये का बकाया देने की मांग कर डाली। दरअसल आर्थिक गतिविधियां सीमित होने से राज्यों के संसाधन सूखने लगे हैं। पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट, प्रॉपर्टी की स्टांप ड्यूटी, वाहन रजिस्ट्रेशन और शराब पर आबकारी शुल्क संसाधन जुटाने के लिए राज्यों के अपने स्रोत हैं, लेकिन पेट्रोल-डीजल की बिक्री 30 से 40 फीसदी रह गई है, शराब की बिक्री बंद है और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री भी नाममात्र की हो रही है। खजाने में पैसे नहीं होने के कारण राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही हैं। कुछ राज्यों ने तो कर्मचारियों को मिलने वाले कई भत्तों पर भी रोक लगा दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दिनों कहा, “कोनो अर्निंग नेइ, शुधु बर्निंग (कोई कमाई नहीं है, सिर्फ खर्च हो रहा है)।”
जो लोग अपने सरकारी कर्मचारी होने का दंभ मन मे पाले हुए हैं वो लोग भी अब चेत जाए। पंजाब और हरियाणा के 50 फीसदी से अधिक कर्मचारियों को मार्च का वेतन 20 अप्रैल के बाद जारी किया गया, पंजाब में 25 अप्रैल तक एक लाख से अधिक मुलाजिमों का वेतन बाकी था। पंजाब के 7।5 लाख मुलाजिमों और पेंशनभोगियों में शिक्षा विभाग और बोर्ड-कॉरपोरेशन के करीब एक लाख मुलाजिमों को मार्च का वेतन नहीं मिल पाया है। अब अप्रैल का 3,500 करोड़ रुपये का वेतन और पेंशन सिर पर है। उत्तरप्रदेश सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों का डीए एक साल के लिए स्थगित करने के साथ छह तरह के भत्ते भी समाप्त कर दिए गए हैं। नगर भत्ता, सचिवालय भत्ता, रिसर्च भत्ता और विशेष भत्ता पर एक साल के लिए रोक लगा दी गई।
कोरोना वायरस का असली प्रभाव हमे आर्थिक मोर्चे पर ही देखने को मिलेगा जहां हर क्षेत्र की चाहे वह सरकारी हो या निजी उसे तनख्वाह में कटौती का सामना करना पड़ेगा वही बढ़ती महंगाई उसके सारे बजट बिगाड़ देगी। हमने जिस तरह इस महामारी के आगमन को लेकर उसे कमतर आंका, ठीक वैसे ही हम वैसे ही इससे उबरने में लगने वाले वक्त को कम आंक रहे हैं।