बिहार सरकार ने HC को बताया- कोरोना से लड़ने के लिए न ऑक्सीजन है, न जांच मशीनें

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 22, 2021
पटना। डबल इंजन की सरकार वाले बिहार में भी सबकुछ रामभरोसे है। इस विकट समय में भी सरकारी अस्पताल को फुल बताकर मरीजों को लौटाया जा रहा है, ताकि प्राइवेट अस्पताल लाभ उठा ले जाएं, जबकि सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त बेड खाली हैं। हद तो ये कि जिन प्राइवेट अस्पतालों को छूट दी गई, सरकार ने यह तक नहीं देखा कि उनके पास ऑक्सीजन की व्यवस्था है या नहीं। जिन्हें डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर बनाया, वहां न्यूनतम जरूरी एक्स-रे सुविधा तक नहीं हैं। शुक्र है कि पटना हाईकोर्ट के कुछ सवालों के जवाब से राज्य सरकार ने अपनी पोल खुद ही खोल दी।



एक तो बिहार सरकार देर से जागी ही। पटना के सरकारी अस्पतालों के बाहर बेड के इंतजार में कई लोगों की मौत हो गई। इस पर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। जैसे ही हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया, नीतीश सरकार अपनी चमड़ी बचाने के लिए आनन-फानन में कोरोना के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों की संख्या तेजी से बढ़ाने में जुट गई। पटना में कोराना मरीजों के इलाज के लिए एक साल से 31 निजी अस्पताल थे, लेकिन एक दिन में 3 और फिर 14 अन्य अस्पतालों को इस सूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही जिलों को अपने स्तर से प्राइवेट अस्पतालों के चयन का अधिकार दे दिया गया।

सरकार ने हाईकोर्ट में पहले बताया कि कोरोना मरीजों के लिए बेड की अनुपलब्धता को देखकर यह किया गया। लेकिन हाईकोर्ट की पहल पर राज्य मानवाधिकार आयोग की टीम ने बिहार के पहले कोरोना डेडिकेटेड अस्पताल- एनएमसीएच का निरीक्षण कर जो रिपोर्ट दी, उससे सब चौंक गए। रिपोर्ट यह थी कि 19 अप्रैल को भी पहले की तरह जब सारे सरकारी अस्पतालों में बेड फुल होने के नाम पर मरीज प्राइवेट की ओर भेजे जा रहे थे या सरकारी अस्पताल के बाहर दम तोड़ रहे थे, उस समय एनएमसीएच के 400 में से 175 बेड पर ही मरीज भर्ती थे और 225 बेड खाली थे।

इस रिपोर्ट से हैरान पटना हाईकोर्ट ने सरकार को अब रोज बेड और ऑक्सीजन की उपलब्धता सार्वजनिक करने का निर्देश दिया। सीट की अनुपलब्धता के कारण ही बिहार में रैपिड जांच पर नहीं, बल्कि आरटीपीसीआर जांच पॉजिटिव आने पर ही भर्ती का प्रावधान रखा गया है। इसी वजह से जेडीयू के विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. मेवालाल चौधरी को पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान ने भर्ती नहीं किया था और प्राइवेट में भी उचित इलाज नहीं मिलने की वजह से पिछले 19 अप्रैल को उनका निधन हो गया था।

पटना हाईकोर्ट में खुद सरकार को एक-एक कर कई बातें बतानी पड़ीं। नीतीश सरकार में बीजेपी कोटे से मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री हैं। उन्होंने पहले दावा किया कि सभी 38 जिलों को मिलाकर डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर में 6,748 बेड हैं। लेकिन सरकार ने माना कि यहां की न्यूनतम जरूरत एक्स-रे मशीन ही नहीं है। हाईकोर्ट ने कोविड प्रोटोकॉल के तहत कोरोना मरीजों की जांच के लिए सीटी स्कैन और एक्स-रे मशीन और इलाज के लिए ऑक्सीजन को जरूरी बताया तो सरकार की ओर से स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने मजबूरी जताई कि डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर के 6,748 में से 4,421 बेड पर ही ऑक्सीजन की सुविधा है।

इन बेड पर भी सुविधा मिल पा रही है या नहीं, यह सरकार की ओर से नहीं बताया गया। वैसे, पूरे बिहार में ऑक्सीजन के अभाव में मरीजों के मरने की खबरें आ रही हैं। रही बात जांच की तो, सरकार को पोर्टेबल एक्स-रे मशीन के इंतजाम के लिए भी एक महीने का समय चाहिए। प्रधान सचिव ने हाईकोर्ट में बताया है कि सरकार ने पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों के लिए ऑर्डर जारी किया है और कम-से-कम 20 मशीनें एक महीने में इंस्टॉल हो जाएंगी।

कोरोना मरीजों की पटना में बाढ़ देखकर राज्य सरकार ने पिछले दिनों एक निर्देश जारी किया था, जिसमें मरीजों की स्थिति के अनुसार उनके इलाज के लिए गाइडलाइन थी। इस गाइडलाइन को जारी करने के पीछे एक ही उद्देश्य था कि मरीज अपने ही जिले में इलाज कराएं, बहुत विशेष परिस्थिति में पटना रेफर किए जाएं। लेकिन इस आदेश के बावजूद मरीज पटना आने को विवश हैं, तो इसकी वजह भी सरकार को कोर्ट में ही बतानी पड़ी।

दरअसल, बिहार के सभी 38 जिला सदर अस्पतालों में सीटी स्कैनिंग की व्यवस्था ही नहीं है। सरकार ने हाईकोर्ट में बताया कि 14 जिला अस्पतालों के लिए सरकार तीन महीने में सीटी स्कैन मशीन खरीद सकेगी। यह भी बताया गया कि 16 में सीटी स्कैन मशीनें है, लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट से यह छिपा लिया कि इसे चलाने के लिए उसके पास टेक्नीशियन और बिजली की पूरी व्यवस्था तैयार नहीं है। शेष 8 अस्पतालों के लिए तो खरीदने की भी जानकारी सरकार नहीं दे सकी।

 

बाकी ख़बरें