कोरोना का हाहाकार और मीडिया का सत्ता संग सहवास

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: April 28, 2021
भारत में कोरोना महामारी की वजह से मौत आसमान को छू चुकी है. अस्पताल भर चुके हैं, ऑक्सीजन और इलाज भी कम पड़ रहे हैं. हताश और बेबस लोग डॉक्टर का इतंजार करते हुए दम तोड़ रहे हैं. इस महामारी की वजह से हो रही मौतों की वास्तविक संख्या सरकारी आंकड़ों से बहुत अधिक है. दुनियाभर के लगभग आधे केस भारत में मिल रहे हैं. यह संख्या किसी भी इंसान को विचलित कर सकती है लेकिन फिर भी वायरस के फैलाव की सही स्थिति तक नहीं बताई जा रही है. जहाँ दुनिया की मीडिया भारत के बारे में यहाँ तक कह चुकी है कि भारत में कोरोना से हो रहे मौतों की वास्तविक संख्या 5 गुना अधिक है और असल संख्या को छिपाने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव बनाया जा रहा है वहीं भारत की मीडिया का मजबूत गठजोड़ सत्ता के साथ दिख रहा है. आपातकाल के दौरान मीडिया की भूमिका को लेकर टिप्पणी करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी ने कहा था कि “तब मीडिया से सिर्फ़ झुकने के लिए कहा गया था पर वह घुटनों के बल पर रेंगने लगा था” आज की वर्तमान स्थिति पर इन नेताओं को टिप्पणी करना आसान नहीं होगा. कोरोना मामलों को लेकर ग्लोबल मीडिया ने मोदी सरकार को खलनायक बताया है. उन्होंने यहाँ तक कहा है कि सरकार की गलती से कोरोना वायरस ने भारत में हाहाकार मचाया है. 



महाराष्ट्र के नासिक में हुए घटना का जिक्र करते हुए The New York Times ने लिखा है कि ‘मीडिया ने कोरोना की पहली लहर में मोदी का महिमामंडन किया. अब वैश्विक स्तर पर बन चुकी इस धारणा को बदलने के लिए उनकी पीआर एजेंसी को खासी मेहनत करनी होगी.’ 21 वीं सदी के स्वघोषित नायक नरेन्द्र मोदी अपनी छवि को लेकर बहुत सतर्क रहते हैं लेकिन कोरोना महामारी की दूसरी सुनामी ने उनकी खोखली छवि को तार-तार कर दिया है. दुनिया भर के प्रेस मोदी को खलनायक बताकर भारत की जनता को कोरोना के मामले में गलत भरोसा दिलाने के दोषी बता रहे हैं. 

The Times London ने मोदी सरकार पर ज़ोरदार हमला किया है और लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर में मोदी सरकार फंस चुकी है. रोज़ाना 3 लाख से अधिक केस सामने आ रहे हैं. सरकार ने हालत की गंभीरता को नजरंदाज किया है, सरकार के नासमझी की वजह से इतनी बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है. 

The Times ने लिखा है कि ‘कोरोना की दूसरी रफ़्तार ने भारत की सरकार को नकारा साबित कर दिया है. इस सरकार ने 2020 की गलतियों से कोई सबक नहीं लिया और प्रतिदिन नयी गलतियाँ करता रहा. आज भारत के लोग गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. चुनावी रैली पर निशाना साधते हुए अखबार ने लिखा कि रैलियों में मास्क के बगैर लोग आए हुए थे और प्रधानमंत्री मोदी प्रफुल्लित हो कर कह रहे थे कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में इतनी भीड़ नहीं देखी. जहाँ तक नज़र जा रही है वहां तक लोग हैं.’
 
‘द ऑस्ट्रलियन’ नाम के दैनिक अखबार नें मोदी सरकार की आलोचना की है. इस लेख में कोरोना के कारणों में चुनावी रैलियां, कुम्भ मेले के आयोजन और ऑक्सीजन की कमी के बारे में जिक्र किया गया है और उस समय लिए गए सरकारी गैरजिम्मेदाराना कार्यों को ही कारण माना है. हालाँकि आस्ट्रेलिया स्थित भारतीय उच्चायोग ने इस रिपोर्ट की निंदा कर इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. इस अखबार में ‘मोदी लीड्स इण्डिया इनटू वायरस अपोक्लीप्स’ नाम से छपे आलेख में प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की गयी है. इस आलेख को ट्वीटर पर शेयर करते हुए अखबार ने लिखा है कि “अहंकार, अति-राष्ट्रवाद और नौकरशाही की अक्षमता ने मिलकर भारत में एक बड़ा संकट पैदा कर दिया है. यहाँ के चहेते प्रधानमंत्री मजे में हैं जबकि यहाँ के लोग साँस भी नहीं ले पा रहे हैं.”

इसके अलावा The Financial Times, The Washington, The Guardian सहित कई अखबार जो तीखे तेवर में लेखनी के लिए नहीं जाने जाते हैं उन्होंने भी भारत सरकार की तीखी आलोचना की है. The wall street journal ने कहा कि सरकार की नाकामी की वजह से देश के हालत बिगड़े हैं. वो कहते हैं कि भारत का ख़तरनाक वायरस सीमा पार करके तबाही मचा सकता है. वैश्विक स्तर पर भारत की छवि ख़राब कर ये अपनी ही पीठ थपथपाने वाले प्रधानमंत्री हैं. जनता की जिन्दगी तक को नजर अंदाज कर ख़ुद के महिमामंडन में मशगूल प्रधानमंत्री ने भारत को विश्व गुरु बनाते बनाते नकारा साबित कर दिया है. 

एक तरफ़ भारत की अधिकांश मीडिया सत्ता की चाकरी में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ़ सरकारी लापरवाही पर सवाल उठाने वाले चंद मीडिया पर ताले लगाने और पाबंदियों का सिलसिला रफ़्तार पकड़ चुका है. इस देश में जनता के साथ साथ आज कुछेक मीडिया जो सरकार से सवाल करते हैं उन्हें तलब किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि यूपी में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है अफवाह फ़ैलाने वालों पर एनएसए (National Security Act) के तहत कार्यवाही होगी.’ वर्तमान मीडिया की बची खुची सांसों को भी बंद करने की तैयारी हो रही है. 

कोरोना संकट की आड़ में विश्व भर के प्रजातान्त्रिक हलकों में एक बड़ी चिंता यह व्यक्त की जा रही है कि महामारी की आड़ में तानाशाही प्रवृति की हुकूमतें नागरिक अधिकारों को लगातार सीमित और प्रतिबंधित कर रही है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करने वाली संवैधानिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं को ख़त्म किया जा रहा है. जिन देशों में प्रजातंत्र पहले से ही नहीं है वहां की स्थिति और भी चिंताजनक है. कम्बोडिया जैसे देशों में लॉक डाउन या सरकारी फरमान का उल्लंघन करने पर ही बीस साल के कारावास का प्रावधान लागू किया गया है. 

भारतीय मीडिया देश की त्रासद हो चुकी स्थिति पर सरकार से सवाल नहीं कर रही है बल्कि सरकार के मनुहार में गीत गा रही है. देश के मुख्य धारा की मीडिया लगातार जनता का भरोसा भी खोती जा रही है. दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि तत्कालीन सत्ता के साथ लिव-इन में रहने वाले मीडिया संस्थानों और मीडिया कर्मियों की संख्या में न सिर्फ़ लगातार वृद्धि हो रही बल्कि नागरिक हितों के लिए चलने वाली बहसें और सवालात को निर्लज्जता के साथ मौन कर दिया जा रहा है. आज ऑक्सीजन उपलब्धता की तरह ही अभिवयक्ति की आज़ादी की सांसें भी सीमित मात्र ही रह गयी हैं जबकि आज के वर्तमान वक्त में ही इसकी सबसे अधिक जरुरत है. 

आज मानवता, इंसानियत, अधिकार की कोई बात नहीं होती. अपराध का सामान्यीकरण हो चूका है तभी तो देश भर में हो रहे लाखों मौत का गुनाहगार अपनी ही वाहवाही करवाने में लगा है. जिस तरह समाज में होने वाले अन्य अपराध आज कोई नयी घटना नहीं रह गयी है उसी तरह मीडिया का सत्ता के साथ सहवास आज कलंक मुक्त मान लिया गया है. ऐसी परिस्थिति में मीडिया के बचे खुचे टिमटिमाते हुए दिए को अपनी लड़ाई न सिर्फ़ सत्ता की राजनीति से बल्कि मीडिया क्षेत्र में फैली उन जहरीली सोच से भी लड़नी पड़ेगी जो उनकी आवाज को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहते हैं. 

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