''चारों पीठ के शंकराचार्य सनातन के शिखर पुरुष हैं और बीजेपी व आरएसएस उन्हें रामद्रोही बताने में जुट गई है। वो यह जताने की कोशिश कर रही है कि राम सिर्फ उनके हैं। जो बीजेपी में हैं वही राम भक्त हैं और बाकी रामद्रोही। राम मंदिर पूरा होने में दो-तीन साल लगेंगे, लेकिन बीजेपी सियासी मुनाफा कूटने के लिए भगवान राम का निजीकरण करने में जुट गई है।''
उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव में शंकराचार्यों के बायकाट के चलते देश की सांस्कृतिक राजधानी बनारस में घमासान मच गया है। इस मुद्दे पर श्री काशी विद्वत परिषद दो खेमों में बंट गई है। एक खेमा जहां पीएम नरेंद्र मोदी को देश का राजा बताते हुए 22 जनवरी 2024 के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को महाउत्सव बता रहा है तो दूसरा खेमा विरोध में है। शंकराचार्यों के साथ खड़े काशी विद्वत परिषद के लोगों ने इस कार्यक्रम को बीजेपी और आरएसएस का चुनावी एजेंडा करार देते हुए खुद को प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान से दूर कर लिया है। इनका मानना है कि मंदिर अधूरा है। ऐसे में वहां धार्मिक अनुष्ठान करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख़ 22 जनवरी को जैसे ही सामने आई तो श्री काशी विद्वत परिषद में चल रही अंदरूनी लड़ाई भी सतह पर आ गई। पद्मभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष हैं। यहां महामंत्री पद को लेकर विवाद है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मीमांसा विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी दोनों ही खुद को महामंत्री बताते हैं। प्रो.रामनारायण द्विवेदी बीजेपी और आरएसएस समर्थक हैं और वह पीएम नरेंद्र मोदी को देश का राजा बताते हुए न्यूजक्लिक से कहते हैं, ''मंदिर के गर्भगृह में मोदी नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा? इस उत्सव को चुनावी मेगा इवेंट बताने वालों के बारे में हमें कुछ नहीं कहना।
प्रो.द्विवेदी कहते हैं, ''श्री काशी विद्वत परिषद इस उत्सव को महापर्व के रूप में देख रही है। बहुत से निर्णय देश, काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं। राम मंदिर करोड़ों हिंदुओं के चंदे से बना है। श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ त्रिपाठी अयोध्या स्थित राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पक्ष में हैं। अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते समय भी काशी विद्वत परिषद के तीन विद्वानों का समूह कार्यक्रम में शामिल हुआ था और 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए भी परिषद के आठ विद्वानों का समूह काशी से अयोध्या जाएगा।''
दूसरी ओर, प्रो.रामनारायण द्विवेदी को समुद्रलंघी करार देते हुए प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी सवाल खड़ा करते हैं कि वह किस हैसियत से अपना नाम श्री काशी विद्त परिषद से जोड़ रहे हैं। संस्था की आचार संहिता के मुताबिक, कोई भी समुद्रलंघी व्यक्ति परिषद का सदस्य नहीं हो सकता है। प्रो.कमलाकांत त्रिपाठी कहते हैं, ''श्रृंगेरी मठ (कर्नाटक) के शंकराचार्य भारती तीर्थ महाराज, गोवर्धन मठ (पुरी, ओडिशा) के निश्चलानन्द सरस्वती महाराज, शारदा मठ (द्वारका, गुजरात) के सदानंद महाराज और ज्योतिर्मठ (बदरिका, उत्तराखंड) के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने 22 जनवरी के मुहूर्त और आधे अधूरे मंदिर में उत्सव पर सवाल उठाया है। कोई शंकराचार्य ने इस कार्यक्रम में नहीं जा रहा है। जो लोग अयोध्या जा रहे हैं उनका श्री काशी विद्वत परिषद से कोई लेना-देना नहीं है। प्रो.रामनारायण तो इस संस्था में कुछ भी नहीं हैं।''
''श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष पद की कमान संभालते समय वशिष्ठ त्रिपाठी ने वचन दिया था कि वह संस्था की आचार संहिता और चारो पीठ के शंकराचार्यों के आदर्शों का अनुपालन करेंगे। धर्मिक मुद्दों पर शास्त्र सम्मत निर्णय लेंगे। 22 जनवरी के प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि निकाली गई तो उन्होंने एक शब्द नहीं बोला कि मुहूर्त का समय ठीक नहीं है। प्रो.रामनारायण को फर्जी तरीके से परिषद में रखा गया है। इन्होंने तो उस भद्रेस दास को प्रशस्ति-पत्र सम्मानित किया जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को गालियां दी थी। धर्म और शिष्टाचार के विरुद्ध काम करने वाले श्री काशी विद्वत परिषद के सदस्य कैसे रह सकते हैं। रामचंद्र पांडेय अमेरिका जा चुके है। समुद्रलंघी होने के बावजूद परिषद में किस हैसियत से अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं?''
विद्वत परिषद में कैसे घुसे समुद्रलंघी?
प्रो.कमलाकांत यह भी कहते हैं, ''संस्था के संरक्षक में सभी शक्तियां निहित हैं। अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ त्रिपाठी ने हमें राष्ट्रीय महामंत्री बनाया है। हम देख रहे हैं कि धर्म के विरुद्ध काम हो रहा है। मौजूदा अध्यक्ष को हटाकर उत्तरायण में हम नए अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। बड़ा सवाल यह है कि समुद्रलंघी लोग जब श्री काशी विद्वत परिषद के मेंबर नहीं हो सकते तो ऐसे लोग कैसे घुस गए। भविष्य में विद्वत परिषद में ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जो समुद्रलंघी नहीं होंगे। जो लोग शंकराचार्यों को सम्मान और आस्था की नज़र से नहीं देखते वो विद्वान नहीं, स्वार्थी हो सकते हैं। आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए चार मठों की स्थापना की थी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़, शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। शंकराचार्यों के मान-सम्मान और आदर्शों का मखौल उड़ाने वाले इस पवित्र संस्था के सदस्य कैसे हो सकते हैं?
''अयोध्या में राम मंदिर का गुंबद नहीं बना है। प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जुगाड़ की युक्ति बताने वाले हिंदू धर्म का मजाक बना रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि घर का एक तल बनाकर जब कोई भी रह सकता है तो प्राण प्रतिष्ठा भी की जा सकती है। जिनके पास पैसा नहीं होता, वही ऐसा करते हैं। भगवान के घर में ऐसा नहीं होता। पूरी तरह मंदिर बनने के बाद शास्त्रीय विधान से प्राण प्रतिष्ठा होती है। मंदिर का शिखर, कलश और ध्वज स्थापित नहीं होता तब तक उसमें प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि राम मंदिर अपूर्ण है और ऐसी कौन सी आपात स्थिति है कि वहां जल्दबाजी में प्राण प्रतिष्ठा हो रही है? शंकराचार्यों का दायित्व है कि वो धर्मशास्त्र का पालन करें और कराएं। इसी वजह से शंकराचार्य अयोध्या नहीं जा रहे हैं।''
प्रो.कमलाकांत यह भी कहते हैं, ''शंकराचार्य ही सनातन के शिखर पुरुष है। शंकराचार्यों का बयान आने के बाद उनके खिलाफ अभद्र और अश्लील टिप्पणियां करने वाले स्वघोषित महामंडलेश्वर, सन्यासी, संत और भाजपाई सनातन की धज्जियां उड़ाने पर तुले हुए हैं। राम मंदिर के मुखिया बने चंपतराय पर बेईमानी के तामाम आरोप चस्पा हैं। उनका कहना कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है और वहां शैव व शाक्त संन्यासियों का कोई काम नहीं है। उनका यह बयान घोर आपत्तिजनक है। यदि वह मंदिर रामानंद संप्रदाय है तो चंपतराय और मोदी का वहां क्या काम है? रामानंद संप्रदाय की मूल पीठ बनारस के पंचगंगा घाट पर है, जिसके आचार्य रामनरेश भद्राचार्य हैं। इस मंदिर को उनके हवाले कर देना चाहिए। प्राण प्रतिष्ठ उत्सव का इवेंट करने वालों ने उन्हें निमंत्रण क्यों नहीं दिया?''
पहले भी हो चुका है विवाद
काशी के विद्वानों की सौ वर्ष से ज्यादा पुरानी संस्था श्री काशी विद्वत परिषद उस समय भी दो धड़ों में बंट गई थी जब ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और द्वारका शारदा पीठ के दो नए शंकराचार्यों की नियुक्ति हुई थी। एक धड़े ने ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद का समर्थन किया था। उस समय दूसरे धड़े ने इनकी नियुक्ति को फर्जी करार देते हुए परिषद के लेटर पैड का दुरुपयोग करने पर मुकदमा दर्ज कराने की बात कही थी।
बनारस में मीडिया से बातचीत करते हुए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ऐलान किया है कि देश के चारों शंकराचार्य 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल नहीं होंगे, क्योंकि वह आयोजन शास्त्रों के अनुसार नहीं हो रहा है। वह कहते हैं, ''हम मोदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि धर्मशास्त्र की धज्जियां उड़ाई जाएं। शंकराचार्यों की दायित्व है कि वह शास्त्र विधि का पालन करें और करवाएं। शास्त्रविधि की उपेक्षा हो रही है क्योंकि राम मंदिर अधूरा है। कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि प्राण प्रतिष्ठा अचानक करना पड़े। पहले वहां रात में मूर्ति रख दी गई थी। उस समय की परिस्थिति अलग थी। आज हमारे पास मौक़ा है कि हम अच्छे से बनाकर प्रतिष्ठा करें। जिस शास्त्र से हमने राम को जाना, उसी शास्त्र की धज्जियां उड़ाई जाएगी तो भला कौन शंकराचार्य अधर्म देखने जाएगा।''
ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की बातों का समर्थन करते हुए गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद स्वामी ने भी कहा है कि, ''यह जरूरी है कि राम जी शास्त्रों के हिसाब से प्रतिष्ठित हों। अभी प्रतिष्ठा शास्त्रों के हिसाब से नहीं हो रही है। ऐसे में वहां मेरा जाना उचित नहीं है। दूसरी बात, कौन मूर्ति का स्पर्श करे कौन न करे, इसका ध्यान रखना चाहिए। मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे और मैं वहां ताली बजाकर जय-जय करूंगा क्या? मुझे अपने पद की गरिमा का ध्यान है। अयोध्या से मेरा अटूट संबंध है। वहां जाने से मुझे परहेज़ नहीं है। मैं किसी पार्टी का नहीं हूं। मैं नाराज होता ही नहीं हूं।''
मुहूर्त पर भी बखेड़ा
बनारस में सिर्फ प्राण प्रतिष्ठा के इवेंट पर ही नहीं, इसके मुहूर्त पर भी बखेड़ा शुरू हो गया है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त घोषित करने वाले बनारस के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री दावा करते है कि 22 जनवरी की तारीख सर्वाधिक शुभ है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी। मंदिर के गर्भगृह का काम पूरा हो चुका है। वह कहते हैं, ''22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त होगा। यह शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक रहेगा। अधूरे मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्र सम्मत है। कर्मकांडों के अनुसार, अधूरे बने घरों का गृह प्रवेश करा दिया जाता है। अयोध्या में भी राम का घर ही है। प्राण-प्रतिष्ठा अभी नहीं होती, तो जून 2026 तक रामलला को इंतजार करना पड़ता। किसी शुभ मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा की जा सकती है।''
दूसरी ओर, बनारस के ज्योतिषाचार्य विशाल पोरवाल राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। वह कहते हैं, ''बिना शिखर और गुंबद के मंदिर का कोई वजूद नहीं होता। देव मंदिर और घर में बहुत अंतर है। राम मंदिर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। बिना गुंबद के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा दोषपूर्ण है। 22 तारीख को कोई विशेष मुहूर्त नहीं है। इस दिन गुरु बक्री है। धर्म की रीति-नीति को त्यागकर कोई भी काम किया जाना शुभकर नहीं है। इससे मान प्रतिष्ठा में हानि होती है और मुश्किलें आती हैं। कुछ ही दिनों में भारत में इसका विपरीत असर देखने को मिलेगा। यही वजह है कि चारो पीठ के शंकराचार्यों ने अयोध्या के उत्सव में जाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया है।''
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी अयोध्या के राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव को बीजेपी के मेगा इवेंट के रूप में देखते हैं। साथ ही श्री काशी विद्वत परिषद पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। वह न्यूजक्लिक से बातचीत में कहते हैं, ''परिषद से जुड़े कुछ लोग बिक गए हैं और वो बीजेपी के कारिंदे की तरह काम कर रहे हैं। इन्हें पद और दक्षिणा से मतलब है। बनारस के लोग जिसे विद्वान समझते थे वो सत्ता के यशगान में जुटे हैं। इन्हें हम विद्वान कैसे मानें? इन्हें भांट जरूर कहा जा सकता है। सियासी लाभ के लिए अयोध्या में मेगा इवेंट किया जा रहा है। खबरिया चैनल वालों को मोटा पैसा देकर राम रथ बनवाया गया है, जिसके आगामी चुनाव में बीजेपी का हित साधा जा सके। भाजपा शासित राज्यों में 22 जनवरी को छुट्टी कर दी गई है। रामनवमी के दिन शायद छुट्टी नहीं रहेगी।''
प्राण प्रतिष्ठा नहीं, चुनावी इवेंट है
''जहां तक राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की बात है तो यह कोई मजाक नहीं है। वेद, शास्त्र, धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए चारो पीठ के शंकराचार्यों की मौजूदगी में प्राण प्रतिष्ठा की जानी चाहिए। राम मंदिर को बनाने में न तो बीजेपी का कोई रोल है और न ही मोदी का। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जनता के पैसे से मंदिर का निर्माण कार्य हो रहा है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को छोड़कर किसी शंकराचार्य को न्योता दिया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने सर्वोच्च पीठ का अपमान किया है। आरएसएस के लोग मोदी का यशगान करने वालों को फर्जी तरीके से शंकराचार्य पदवी दे रहे हैं। 22 जनवरी को कार्यक्रम सनातनी परंपरा को कलंकित करने वाला है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सिर्फ वेद के ज्ञाता ही कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। चाहे वो किसी भी जाति और समुदाय के हों। बीजेपी के लोग यह बताएं कि पचास साल से पूजित मूर्ति को हटाकर नई मूर्ति प्रतिष्ठापित करने की क्या जरूरत है?''
पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, ''हमें लगता है कि मोदी जी की नजर में देवी-देवता भी इनके इवेंट के अंग हैं। इनकी नीति और नीयत दोनों अशास्त्रीय है। आंटा पोतकर भंडारी बनने वाले प्राण प्रतिष्ठा क्या करेंगे। उनकी नीयत साफ नहीं है। वैसे भी मोदी वहीं जाते हैं जहां उन्हें वोट का रास्ता दिखता है। उनकी यात्रा कभी धार्मिक नहीं रही। उन्हें आस्था में नहीं, इवेंट में भरोसा है। वह बिना वोट की व्यवस्था किए किसी मंदिर में सिर नहीं नवाते। वह सब कुछ वोटबैंक के नजरिये से तय करते हैं। यह प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव नहीं, आगामी लोकसभा चुनाव का मेगा इवेंट है। देश भर में जलसा किया जा रहा है, ताकि थोक में वोट बटोरा जा सके। कुछ ही साल पहले कोरोना भगाने के लिए उन्होंने खूब ताली-थाली बजवाई थी। उस समय कपड़ों से ज्यादा कफन बिक गए थे। इस बार न जाने क्या होगा?''
धर्मशास्त्र के विद्वान साकेत शुक्ला भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह को इवेंट के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं, ''अयोध्या में जो कुछ हो रहा है वह अधर्म है। सिर्फ राजनीति का खेल चल रहा है। जब कोई राजनीतिक दल किसी धार्मिक कार्य का अगुवाई करता है तो वह विशुद्ध रूप से सियासी इवेंट ही होता है। सोशल मीडिया पर शंकराचार्यों का उपहास उड़ाने वालों को बनारस के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। आईआईटी-बीएचयू की छात्रा से गैंगरेप करने वाले भी सोशल मीडिया पर ट्रोलबाजी के खेल में शामिल थे। शंकराचार्यों को गालियां दी जा रही हैं और हिंदू समुदाय के लोग तमाशा देख रहे हैं। सनातन परंपरा का उपहास करने वाले भला हिंतू कैसे हो सकते हैं? जो लोग सनातन धर्म के सर्वोच्च पीठ पर हमला बोल रहे हैं वो हिंदू समाज के अपशिष्ट हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह का शंकराचार्य इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वह शास्त्र सम्मत नहीं है।''
साकेत यह भी कहते हैं, ''मंदिर के शिखर का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। शिखर दर्शन का लाभ भी उतना ही मिलता है, जितना गर्भगृह में दर्शन से मिलता है। शायद यह देश का पहला मंदिर है जब सियासत चमकाने के लिए बगैर गुंबद बनाए ही प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही है। राम के प्रति किसकी आस्था नहीं है। 22 जनवरी को जब धर्माचार्य गृह प्रवेश का मुहूर्त नहीं बता रहे है तो आधे-अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कैसे संभव है? जिस मंदिर के शिखर पर ध्वज नहीं लगा हो, उसमें प्राण प्रतिष्ठा धर्मसंगत नहीं है।''
राम का निजीकरण कर रही बीजेपी
शंकराचार्यों के खिलाफ दुष्प्रचार करने वालों पर तीखा प्रहार करते हुए काशी विश्वनाथ के अनुयायी वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ''चारो पीठ के शंकराचार्य सनातन के शिखर पुरुष हैं और बीजेपी व आरएसएस उन्हें रामद्रोही बताने में जुट गई है। वो यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि राम सिर्फ उनके हैं। जो बीजेपी में हैं वही राम भक्त है और बाकी रामद्रोही। राम मंदिर पूरा होने में दो-तीन साल लगेंगे, लेकिन बीजेपी सियासी मुनाफा कूटने के लिए भगवान राम का निजीकरण करने में जुट गई है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राण प्रतिष्ठा को पोलिटिकल स्टंट के रूप में प्रायोजित किया गया है। यह बीजेपी और आरएसएस का मेगा इवेंट है, जिसमें अन्य राजनीतिक दल जाने के लिए बाध्य नहीं है।''
''मोदी सरकार की नाकामियों के चलते जनता कुपित है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जनता में बढ़ रहे रोष के चलते वो लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं। सरकार का दायित्व है जनता को बुनियादी जरूरतें मुहैया कराना। महंगाई पर काबू पाना और रोजगार का अवसर देना। दोनों ही मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह विफल हो चुकी है। कड़े विरोध के बावजूद मोदी और चंपत राय राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर अड़े हैं। वो अपनी सभी विफलताओं को भगवान राम के पीछे छिपा देना चाहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी उस मंदिर का क्रेडिट लेना चाहते हैं, जिसमें उनका कोई रोल नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर बन रहा है और सारा पैसा देश की जनता का है। सरकार का एक रुपये भी नहीं लग रहा है तो वो किस बात के लिए वाहवाही लूटना चाहते हैं?''
वैभव कहते हैं, ''एक तरफ भारत का एक हिस्सा मणिपुर नौ महीने जल रहा है और वहां लगातार बहन-बेटियों की अस्मत लूटी जा रही है। निर्दोष लोगों का कत्ल किया जा रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके नुमाइंदे मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के जश्न में डूबे हैं। यह तो वैसी ही बात है जब रोम जल रहा था तो नीरो बासुरी बजा रहा था। सच तो यह है कि सारी वाहवाही मोदी ही लूटना चाहते हैं। चाहे वंदेभारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाना हो या फिर किसी एक्सप्रेस वे का उद्घाटन। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद को जिस तरह संसद का शिलान्यास नहीं करने दिया, उसी तरह मौजूदा राष्ट्रपति को उद्घाटन का मौका भी नहीं दिया। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी भला शंकराचार्यों को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कैसे करने देंगे?
''जब आईटी सेल में बलात्कारी घुसे हों तो शंकराचार्यों को गालियां मिलेंगी ही। जनेऊ नहीं पहनने वाले, टीका नहीं लगाने वाले शंकराचार्यों पर लांछन लगा रहे हैं, जबकि वो जगदगुरु हैं। ऐसा लगता है कि जिसे बीजेपी प्रमाणित करेगी, वही अब सनातनी माने जाएंगे। यह दौर तो मुगलों, यहूदियों, अंग्रेजों के शासन से भी बदतर है। कालनेमी को भी पहले लोग महात्मा मान बैठे थे, बाद में हनुमान ने बताया था कि वो राक्षस था। शंकराचार्य बनना साधारण बात नहीं। उस तरह का जीवन जीना पड़ता है। भगवान राम की पूजा करोड़ों भारतीय करते हैं। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता है, लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने सालों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। साफ है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है।''
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Courtesy: Newsclick
उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव में शंकराचार्यों के बायकाट के चलते देश की सांस्कृतिक राजधानी बनारस में घमासान मच गया है। इस मुद्दे पर श्री काशी विद्वत परिषद दो खेमों में बंट गई है। एक खेमा जहां पीएम नरेंद्र मोदी को देश का राजा बताते हुए 22 जनवरी 2024 के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को महाउत्सव बता रहा है तो दूसरा खेमा विरोध में है। शंकराचार्यों के साथ खड़े काशी विद्वत परिषद के लोगों ने इस कार्यक्रम को बीजेपी और आरएसएस का चुनावी एजेंडा करार देते हुए खुद को प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान से दूर कर लिया है। इनका मानना है कि मंदिर अधूरा है। ऐसे में वहां धार्मिक अनुष्ठान करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख़ 22 जनवरी को जैसे ही सामने आई तो श्री काशी विद्वत परिषद में चल रही अंदरूनी लड़ाई भी सतह पर आ गई। पद्मभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष हैं। यहां महामंत्री पद को लेकर विवाद है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मीमांसा विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी दोनों ही खुद को महामंत्री बताते हैं। प्रो.रामनारायण द्विवेदी बीजेपी और आरएसएस समर्थक हैं और वह पीएम नरेंद्र मोदी को देश का राजा बताते हुए न्यूजक्लिक से कहते हैं, ''मंदिर के गर्भगृह में मोदी नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा? इस उत्सव को चुनावी मेगा इवेंट बताने वालों के बारे में हमें कुछ नहीं कहना।
प्रो.द्विवेदी कहते हैं, ''श्री काशी विद्वत परिषद इस उत्सव को महापर्व के रूप में देख रही है। बहुत से निर्णय देश, काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं। राम मंदिर करोड़ों हिंदुओं के चंदे से बना है। श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ त्रिपाठी अयोध्या स्थित राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पक्ष में हैं। अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते समय भी काशी विद्वत परिषद के तीन विद्वानों का समूह कार्यक्रम में शामिल हुआ था और 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए भी परिषद के आठ विद्वानों का समूह काशी से अयोध्या जाएगा।''
दूसरी ओर, प्रो.रामनारायण द्विवेदी को समुद्रलंघी करार देते हुए प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी सवाल खड़ा करते हैं कि वह किस हैसियत से अपना नाम श्री काशी विद्त परिषद से जोड़ रहे हैं। संस्था की आचार संहिता के मुताबिक, कोई भी समुद्रलंघी व्यक्ति परिषद का सदस्य नहीं हो सकता है। प्रो.कमलाकांत त्रिपाठी कहते हैं, ''श्रृंगेरी मठ (कर्नाटक) के शंकराचार्य भारती तीर्थ महाराज, गोवर्धन मठ (पुरी, ओडिशा) के निश्चलानन्द सरस्वती महाराज, शारदा मठ (द्वारका, गुजरात) के सदानंद महाराज और ज्योतिर्मठ (बदरिका, उत्तराखंड) के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने 22 जनवरी के मुहूर्त और आधे अधूरे मंदिर में उत्सव पर सवाल उठाया है। कोई शंकराचार्य ने इस कार्यक्रम में नहीं जा रहा है। जो लोग अयोध्या जा रहे हैं उनका श्री काशी विद्वत परिषद से कोई लेना-देना नहीं है। प्रो.रामनारायण तो इस संस्था में कुछ भी नहीं हैं।''
''श्री काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष पद की कमान संभालते समय वशिष्ठ त्रिपाठी ने वचन दिया था कि वह संस्था की आचार संहिता और चारो पीठ के शंकराचार्यों के आदर्शों का अनुपालन करेंगे। धर्मिक मुद्दों पर शास्त्र सम्मत निर्णय लेंगे। 22 जनवरी के प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि निकाली गई तो उन्होंने एक शब्द नहीं बोला कि मुहूर्त का समय ठीक नहीं है। प्रो.रामनारायण को फर्जी तरीके से परिषद में रखा गया है। इन्होंने तो उस भद्रेस दास को प्रशस्ति-पत्र सम्मानित किया जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को गालियां दी थी। धर्म और शिष्टाचार के विरुद्ध काम करने वाले श्री काशी विद्वत परिषद के सदस्य कैसे रह सकते हैं। रामचंद्र पांडेय अमेरिका जा चुके है। समुद्रलंघी होने के बावजूद परिषद में किस हैसियत से अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं?''
विद्वत परिषद में कैसे घुसे समुद्रलंघी?
प्रो.कमलाकांत यह भी कहते हैं, ''संस्था के संरक्षक में सभी शक्तियां निहित हैं। अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ त्रिपाठी ने हमें राष्ट्रीय महामंत्री बनाया है। हम देख रहे हैं कि धर्म के विरुद्ध काम हो रहा है। मौजूदा अध्यक्ष को हटाकर उत्तरायण में हम नए अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। बड़ा सवाल यह है कि समुद्रलंघी लोग जब श्री काशी विद्वत परिषद के मेंबर नहीं हो सकते तो ऐसे लोग कैसे घुस गए। भविष्य में विद्वत परिषद में ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जो समुद्रलंघी नहीं होंगे। जो लोग शंकराचार्यों को सम्मान और आस्था की नज़र से नहीं देखते वो विद्वान नहीं, स्वार्थी हो सकते हैं। आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए चार मठों की स्थापना की थी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़, शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। शंकराचार्यों के मान-सम्मान और आदर्शों का मखौल उड़ाने वाले इस पवित्र संस्था के सदस्य कैसे हो सकते हैं?
''अयोध्या में राम मंदिर का गुंबद नहीं बना है। प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जुगाड़ की युक्ति बताने वाले हिंदू धर्म का मजाक बना रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि घर का एक तल बनाकर जब कोई भी रह सकता है तो प्राण प्रतिष्ठा भी की जा सकती है। जिनके पास पैसा नहीं होता, वही ऐसा करते हैं। भगवान के घर में ऐसा नहीं होता। पूरी तरह मंदिर बनने के बाद शास्त्रीय विधान से प्राण प्रतिष्ठा होती है। मंदिर का शिखर, कलश और ध्वज स्थापित नहीं होता तब तक उसमें प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि राम मंदिर अपूर्ण है और ऐसी कौन सी आपात स्थिति है कि वहां जल्दबाजी में प्राण प्रतिष्ठा हो रही है? शंकराचार्यों का दायित्व है कि वो धर्मशास्त्र का पालन करें और कराएं। इसी वजह से शंकराचार्य अयोध्या नहीं जा रहे हैं।''
प्रो.कमलाकांत यह भी कहते हैं, ''शंकराचार्य ही सनातन के शिखर पुरुष है। शंकराचार्यों का बयान आने के बाद उनके खिलाफ अभद्र और अश्लील टिप्पणियां करने वाले स्वघोषित महामंडलेश्वर, सन्यासी, संत और भाजपाई सनातन की धज्जियां उड़ाने पर तुले हुए हैं। राम मंदिर के मुखिया बने चंपतराय पर बेईमानी के तामाम आरोप चस्पा हैं। उनका कहना कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है और वहां शैव व शाक्त संन्यासियों का कोई काम नहीं है। उनका यह बयान घोर आपत्तिजनक है। यदि वह मंदिर रामानंद संप्रदाय है तो चंपतराय और मोदी का वहां क्या काम है? रामानंद संप्रदाय की मूल पीठ बनारस के पंचगंगा घाट पर है, जिसके आचार्य रामनरेश भद्राचार्य हैं। इस मंदिर को उनके हवाले कर देना चाहिए। प्राण प्रतिष्ठ उत्सव का इवेंट करने वालों ने उन्हें निमंत्रण क्यों नहीं दिया?''
पहले भी हो चुका है विवाद
काशी के विद्वानों की सौ वर्ष से ज्यादा पुरानी संस्था श्री काशी विद्वत परिषद उस समय भी दो धड़ों में बंट गई थी जब ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और द्वारका शारदा पीठ के दो नए शंकराचार्यों की नियुक्ति हुई थी। एक धड़े ने ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद का समर्थन किया था। उस समय दूसरे धड़े ने इनकी नियुक्ति को फर्जी करार देते हुए परिषद के लेटर पैड का दुरुपयोग करने पर मुकदमा दर्ज कराने की बात कही थी।
बनारस में मीडिया से बातचीत करते हुए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ऐलान किया है कि देश के चारों शंकराचार्य 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल नहीं होंगे, क्योंकि वह आयोजन शास्त्रों के अनुसार नहीं हो रहा है। वह कहते हैं, ''हम मोदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि धर्मशास्त्र की धज्जियां उड़ाई जाएं। शंकराचार्यों की दायित्व है कि वह शास्त्र विधि का पालन करें और करवाएं। शास्त्रविधि की उपेक्षा हो रही है क्योंकि राम मंदिर अधूरा है। कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि प्राण प्रतिष्ठा अचानक करना पड़े। पहले वहां रात में मूर्ति रख दी गई थी। उस समय की परिस्थिति अलग थी। आज हमारे पास मौक़ा है कि हम अच्छे से बनाकर प्रतिष्ठा करें। जिस शास्त्र से हमने राम को जाना, उसी शास्त्र की धज्जियां उड़ाई जाएगी तो भला कौन शंकराचार्य अधर्म देखने जाएगा।''
ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की बातों का समर्थन करते हुए गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद स्वामी ने भी कहा है कि, ''यह जरूरी है कि राम जी शास्त्रों के हिसाब से प्रतिष्ठित हों। अभी प्रतिष्ठा शास्त्रों के हिसाब से नहीं हो रही है। ऐसे में वहां मेरा जाना उचित नहीं है। दूसरी बात, कौन मूर्ति का स्पर्श करे कौन न करे, इसका ध्यान रखना चाहिए। मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे और मैं वहां ताली बजाकर जय-जय करूंगा क्या? मुझे अपने पद की गरिमा का ध्यान है। अयोध्या से मेरा अटूट संबंध है। वहां जाने से मुझे परहेज़ नहीं है। मैं किसी पार्टी का नहीं हूं। मैं नाराज होता ही नहीं हूं।''
मुहूर्त पर भी बखेड़ा
बनारस में सिर्फ प्राण प्रतिष्ठा के इवेंट पर ही नहीं, इसके मुहूर्त पर भी बखेड़ा शुरू हो गया है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त घोषित करने वाले बनारस के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री दावा करते है कि 22 जनवरी की तारीख सर्वाधिक शुभ है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी। मंदिर के गर्भगृह का काम पूरा हो चुका है। वह कहते हैं, ''22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त होगा। यह शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक रहेगा। अधूरे मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्र सम्मत है। कर्मकांडों के अनुसार, अधूरे बने घरों का गृह प्रवेश करा दिया जाता है। अयोध्या में भी राम का घर ही है। प्राण-प्रतिष्ठा अभी नहीं होती, तो जून 2026 तक रामलला को इंतजार करना पड़ता। किसी शुभ मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा की जा सकती है।''
दूसरी ओर, बनारस के ज्योतिषाचार्य विशाल पोरवाल राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। वह कहते हैं, ''बिना शिखर और गुंबद के मंदिर का कोई वजूद नहीं होता। देव मंदिर और घर में बहुत अंतर है। राम मंदिर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। बिना गुंबद के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा दोषपूर्ण है। 22 तारीख को कोई विशेष मुहूर्त नहीं है। इस दिन गुरु बक्री है। धर्म की रीति-नीति को त्यागकर कोई भी काम किया जाना शुभकर नहीं है। इससे मान प्रतिष्ठा में हानि होती है और मुश्किलें आती हैं। कुछ ही दिनों में भारत में इसका विपरीत असर देखने को मिलेगा। यही वजह है कि चारो पीठ के शंकराचार्यों ने अयोध्या के उत्सव में जाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया है।''
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी अयोध्या के राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव को बीजेपी के मेगा इवेंट के रूप में देखते हैं। साथ ही श्री काशी विद्वत परिषद पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। वह न्यूजक्लिक से बातचीत में कहते हैं, ''परिषद से जुड़े कुछ लोग बिक गए हैं और वो बीजेपी के कारिंदे की तरह काम कर रहे हैं। इन्हें पद और दक्षिणा से मतलब है। बनारस के लोग जिसे विद्वान समझते थे वो सत्ता के यशगान में जुटे हैं। इन्हें हम विद्वान कैसे मानें? इन्हें भांट जरूर कहा जा सकता है। सियासी लाभ के लिए अयोध्या में मेगा इवेंट किया जा रहा है। खबरिया चैनल वालों को मोटा पैसा देकर राम रथ बनवाया गया है, जिसके आगामी चुनाव में बीजेपी का हित साधा जा सके। भाजपा शासित राज्यों में 22 जनवरी को छुट्टी कर दी गई है। रामनवमी के दिन शायद छुट्टी नहीं रहेगी।''
प्राण प्रतिष्ठा नहीं, चुनावी इवेंट है
''जहां तक राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की बात है तो यह कोई मजाक नहीं है। वेद, शास्त्र, धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए चारो पीठ के शंकराचार्यों की मौजूदगी में प्राण प्रतिष्ठा की जानी चाहिए। राम मंदिर को बनाने में न तो बीजेपी का कोई रोल है और न ही मोदी का। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जनता के पैसे से मंदिर का निर्माण कार्य हो रहा है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को छोड़कर किसी शंकराचार्य को न्योता दिया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने सर्वोच्च पीठ का अपमान किया है। आरएसएस के लोग मोदी का यशगान करने वालों को फर्जी तरीके से शंकराचार्य पदवी दे रहे हैं। 22 जनवरी को कार्यक्रम सनातनी परंपरा को कलंकित करने वाला है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सिर्फ वेद के ज्ञाता ही कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। चाहे वो किसी भी जाति और समुदाय के हों। बीजेपी के लोग यह बताएं कि पचास साल से पूजित मूर्ति को हटाकर नई मूर्ति प्रतिष्ठापित करने की क्या जरूरत है?''
पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, ''हमें लगता है कि मोदी जी की नजर में देवी-देवता भी इनके इवेंट के अंग हैं। इनकी नीति और नीयत दोनों अशास्त्रीय है। आंटा पोतकर भंडारी बनने वाले प्राण प्रतिष्ठा क्या करेंगे। उनकी नीयत साफ नहीं है। वैसे भी मोदी वहीं जाते हैं जहां उन्हें वोट का रास्ता दिखता है। उनकी यात्रा कभी धार्मिक नहीं रही। उन्हें आस्था में नहीं, इवेंट में भरोसा है। वह बिना वोट की व्यवस्था किए किसी मंदिर में सिर नहीं नवाते। वह सब कुछ वोटबैंक के नजरिये से तय करते हैं। यह प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव नहीं, आगामी लोकसभा चुनाव का मेगा इवेंट है। देश भर में जलसा किया जा रहा है, ताकि थोक में वोट बटोरा जा सके। कुछ ही साल पहले कोरोना भगाने के लिए उन्होंने खूब ताली-थाली बजवाई थी। उस समय कपड़ों से ज्यादा कफन बिक गए थे। इस बार न जाने क्या होगा?''
धर्मशास्त्र के विद्वान साकेत शुक्ला भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह को इवेंट के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं, ''अयोध्या में जो कुछ हो रहा है वह अधर्म है। सिर्फ राजनीति का खेल चल रहा है। जब कोई राजनीतिक दल किसी धार्मिक कार्य का अगुवाई करता है तो वह विशुद्ध रूप से सियासी इवेंट ही होता है। सोशल मीडिया पर शंकराचार्यों का उपहास उड़ाने वालों को बनारस के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। आईआईटी-बीएचयू की छात्रा से गैंगरेप करने वाले भी सोशल मीडिया पर ट्रोलबाजी के खेल में शामिल थे। शंकराचार्यों को गालियां दी जा रही हैं और हिंदू समुदाय के लोग तमाशा देख रहे हैं। सनातन परंपरा का उपहास करने वाले भला हिंतू कैसे हो सकते हैं? जो लोग सनातन धर्म के सर्वोच्च पीठ पर हमला बोल रहे हैं वो हिंदू समाज के अपशिष्ट हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह का शंकराचार्य इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वह शास्त्र सम्मत नहीं है।''
साकेत यह भी कहते हैं, ''मंदिर के शिखर का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। शिखर दर्शन का लाभ भी उतना ही मिलता है, जितना गर्भगृह में दर्शन से मिलता है। शायद यह देश का पहला मंदिर है जब सियासत चमकाने के लिए बगैर गुंबद बनाए ही प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही है। राम के प्रति किसकी आस्था नहीं है। 22 जनवरी को जब धर्माचार्य गृह प्रवेश का मुहूर्त नहीं बता रहे है तो आधे-अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कैसे संभव है? जिस मंदिर के शिखर पर ध्वज नहीं लगा हो, उसमें प्राण प्रतिष्ठा धर्मसंगत नहीं है।''
राम का निजीकरण कर रही बीजेपी
शंकराचार्यों के खिलाफ दुष्प्रचार करने वालों पर तीखा प्रहार करते हुए काशी विश्वनाथ के अनुयायी वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ''चारो पीठ के शंकराचार्य सनातन के शिखर पुरुष हैं और बीजेपी व आरएसएस उन्हें रामद्रोही बताने में जुट गई है। वो यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि राम सिर्फ उनके हैं। जो बीजेपी में हैं वही राम भक्त है और बाकी रामद्रोही। राम मंदिर पूरा होने में दो-तीन साल लगेंगे, लेकिन बीजेपी सियासी मुनाफा कूटने के लिए भगवान राम का निजीकरण करने में जुट गई है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राण प्रतिष्ठा को पोलिटिकल स्टंट के रूप में प्रायोजित किया गया है। यह बीजेपी और आरएसएस का मेगा इवेंट है, जिसमें अन्य राजनीतिक दल जाने के लिए बाध्य नहीं है।''
''मोदी सरकार की नाकामियों के चलते जनता कुपित है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जनता में बढ़ रहे रोष के चलते वो लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं। सरकार का दायित्व है जनता को बुनियादी जरूरतें मुहैया कराना। महंगाई पर काबू पाना और रोजगार का अवसर देना। दोनों ही मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह विफल हो चुकी है। कड़े विरोध के बावजूद मोदी और चंपत राय राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर अड़े हैं। वो अपनी सभी विफलताओं को भगवान राम के पीछे छिपा देना चाहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी उस मंदिर का क्रेडिट लेना चाहते हैं, जिसमें उनका कोई रोल नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर बन रहा है और सारा पैसा देश की जनता का है। सरकार का एक रुपये भी नहीं लग रहा है तो वो किस बात के लिए वाहवाही लूटना चाहते हैं?''
वैभव कहते हैं, ''एक तरफ भारत का एक हिस्सा मणिपुर नौ महीने जल रहा है और वहां लगातार बहन-बेटियों की अस्मत लूटी जा रही है। निर्दोष लोगों का कत्ल किया जा रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके नुमाइंदे मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के जश्न में डूबे हैं। यह तो वैसी ही बात है जब रोम जल रहा था तो नीरो बासुरी बजा रहा था। सच तो यह है कि सारी वाहवाही मोदी ही लूटना चाहते हैं। चाहे वंदेभारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाना हो या फिर किसी एक्सप्रेस वे का उद्घाटन। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद को जिस तरह संसद का शिलान्यास नहीं करने दिया, उसी तरह मौजूदा राष्ट्रपति को उद्घाटन का मौका भी नहीं दिया। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी भला शंकराचार्यों को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कैसे करने देंगे?
''जब आईटी सेल में बलात्कारी घुसे हों तो शंकराचार्यों को गालियां मिलेंगी ही। जनेऊ नहीं पहनने वाले, टीका नहीं लगाने वाले शंकराचार्यों पर लांछन लगा रहे हैं, जबकि वो जगदगुरु हैं। ऐसा लगता है कि जिसे बीजेपी प्रमाणित करेगी, वही अब सनातनी माने जाएंगे। यह दौर तो मुगलों, यहूदियों, अंग्रेजों के शासन से भी बदतर है। कालनेमी को भी पहले लोग महात्मा मान बैठे थे, बाद में हनुमान ने बताया था कि वो राक्षस था। शंकराचार्य बनना साधारण बात नहीं। उस तरह का जीवन जीना पड़ता है। भगवान राम की पूजा करोड़ों भारतीय करते हैं। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता है, लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने सालों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। साफ है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है।''
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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