छत्तीसगढ़ के स्कूलों में जिस तरह से शिक्षा का मखौल उड़ाया जा रहा है, वह देखते ही बनता है। छात्रों को महापुरुष और नैतिक आचरण करने वाले लोगों के बारे में बताने के बजाय हत्या, बलात्कार और अन्य कई अपराधों में लिप्त ढोंगी साधुओं के जीवन पर आधारित फिल्में भी खुलेआम दिखाई जाती हैं।

ताजा मामला कोरबा के एक सरकारी स्कूल का है जहां विवादित संत रामपाल की जीवनी पर बनी फिल्म बाकायदा प्रोजेक्टर लगाकर बच्चों को दिखाई गई। रामपाल हत्या, और राजद्रोह जैसे गंभीर मामलों में कई सालों से जेल में है, लेकिन उसके अनुयायी उसका प्रचार लगातार करते रहते हैं।
नईदुनिया के अनुसार, कोरबा के करतला विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला बरपाली में हरियाणा के इस कथित संत रामपाल की कहानी प्रोजेक्टर पर दिखाई गई। इस गांव में सरपंच समेत कई लोग रामपाल के भक्त हैं, जबकि रामपाल जेल में है।
जब स्कूल में रामपाल पर फिल्म दिखाए जाने की खबर अभिभावकों को मिली और उन्होंने हंगामा किया तब हेडमास्टर ने स्कूल में जाकर फिल्म का प्रदर्शन बंद कराया। स्कूल में फिल्म दिखाने का मामला सोशल मीडाय के जरिए भी प्रचारित हुआ और सोशल मीडिया पर लोगों ने इसकी निंदा की।
शिक्षा विभाग पूरे मामले से पल्ला झाड़ रहा है। उसका कहना है कि स्कूल में ऐसे किसी आयोजन के लिए उच्च अधिकारियों को सूचित करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
स्कूल के हेडमास्टर लालसिंह कंवर का कहना है कि वीडियो शाम के वक्त दिखाया जा रहा था और डीईओ से खबर मिलने के बाद उन्होंने इसे बंद कराया। हालांकि लोगों का कहना है कि पंचायत ने हेडमास्टर से अनुमति ली गई थी लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इसकी सूचना नहीं दी गई थी।
जानकारों की राय है कि समाज और कानून की निगाह में जो अपराधी जेल में है, उसे शासकीय स्कूल में महिमामंडित करना और उसकी जीवनी महापुरुषों की तरह पेश करना बच्चों की मानसिकता को दूषित कर सकता है, और उनके मन में कानून के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो सकता है।

ताजा मामला कोरबा के एक सरकारी स्कूल का है जहां विवादित संत रामपाल की जीवनी पर बनी फिल्म बाकायदा प्रोजेक्टर लगाकर बच्चों को दिखाई गई। रामपाल हत्या, और राजद्रोह जैसे गंभीर मामलों में कई सालों से जेल में है, लेकिन उसके अनुयायी उसका प्रचार लगातार करते रहते हैं।
नईदुनिया के अनुसार, कोरबा के करतला विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला बरपाली में हरियाणा के इस कथित संत रामपाल की कहानी प्रोजेक्टर पर दिखाई गई। इस गांव में सरपंच समेत कई लोग रामपाल के भक्त हैं, जबकि रामपाल जेल में है।
जब स्कूल में रामपाल पर फिल्म दिखाए जाने की खबर अभिभावकों को मिली और उन्होंने हंगामा किया तब हेडमास्टर ने स्कूल में जाकर फिल्म का प्रदर्शन बंद कराया। स्कूल में फिल्म दिखाने का मामला सोशल मीडाय के जरिए भी प्रचारित हुआ और सोशल मीडिया पर लोगों ने इसकी निंदा की।
शिक्षा विभाग पूरे मामले से पल्ला झाड़ रहा है। उसका कहना है कि स्कूल में ऐसे किसी आयोजन के लिए उच्च अधिकारियों को सूचित करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
स्कूल के हेडमास्टर लालसिंह कंवर का कहना है कि वीडियो शाम के वक्त दिखाया जा रहा था और डीईओ से खबर मिलने के बाद उन्होंने इसे बंद कराया। हालांकि लोगों का कहना है कि पंचायत ने हेडमास्टर से अनुमति ली गई थी लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इसकी सूचना नहीं दी गई थी।
जानकारों की राय है कि समाज और कानून की निगाह में जो अपराधी जेल में है, उसे शासकीय स्कूल में महिमामंडित करना और उसकी जीवनी महापुरुषों की तरह पेश करना बच्चों की मानसिकता को दूषित कर सकता है, और उनके मन में कानून के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो सकता है।