छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी गाँव को मिला सामुदायिक वन संसाधन अधिकार

Written by Anuj Shrivastava | Published on: August 23, 2019
पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की 75 जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ में धमतरी के वनांचल दुगली में आयोजित ग्राम सुराज और वनाधिकार मड़ई में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जबर्रा ग्रामसभा को वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत सामुदायिक वन अधिकार पत्र (CFR) प्रदान किया है. इस ग्रामसभा की परिधि लगभग 5352 हेक्टेयर क्षेत्र के वनांचल को कवर करती है. सामुदायिक वन अधिकार पत्र प्राप्त होने के बाद अब इस क्षेत्र के जंगलों पर, जंगल के जानवरों पर एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के आदिवासियों का ही मालिकाना हक़ होगा. इस क्षेत्र की जैव विविधता की सुरक्षा, संरक्षण, प्रबंधन और उनको पुर्नजीवित करने के निर्णय भी इन्ही आदिवासियों के द्वारा ही लिए जा सकेंगे. 



वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत जब किसी ग्रामसभा को उसकी पारंपरिक सीमा के अंदर स्थित जंगल के सभी संसाधनों पर मालिकाना हक़ की मान्यता दे दी जाती है तो इसे सामूहिक वन अधिकार प्रदान करना कहा जाता है. FRA के तहत ग्रामसभाओं के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है. 
सामुदायिक वन संसाधन अधिकार देने में अब छत्तीसगढ़ का नाम भी जुड़ गया है
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वन अधिकार अधिनियम के जानकार तामेश्वर सिन्हा ने इस बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि जबर्रा ग्राम अपने औषधीय पौधों के लिए पहले ही विख्यात है. यह क्षेत्र वन विभाग के 17 कक्ष (कम्पार्टमेंट) तथा 3 परिसर (बीट) में फैला हुआ है. सामुदायिक वन संसाधन अधिकार देने में अब छत्तीसगढ़ का नाम भी जुड़ गया है. देश भर में कुल तीन फीसदी वनक्षेत्र पर ही ये अधिकार मंजूर किए गये हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार केवल सात राज्यों में ही ये अधिकार लागू हो पाया है. आदिवासियों के लिए उपलब्ध किए जा सकने वाले वनक्षेत्र का 15 फीसदी महाराष्ट्र, 14 फीसदी केरल, 9 फीसदी गुजरात, 5 फीसदी ओडीशा, 2 फीसदी झारखंड, 1 फीसदी कर्नाटक में दिया जा सका है. 

अब ग्रामसभा के पास होगा वनभूमि का मालिकाना हक़
ग्रामसभा, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिलने पर जंगल, जंगली जानवर तथा जैव विविधता की सुरक्षा एवं संरक्षा तथा उसको पुनर्जीवित करने एवं प्रबंधन करने के लिए अधिकृत हो जाती है. ग्राम सभा इस हेतु वन अधिकार नियम 2007 के नियम 4 (1) (ड) के अंतर्गत ग्राम वन प्रबंधन समिति भी बना सकती है.



ग्रामसभा वन के प्रबंधन के लिए अपनी कार्ययोजना, प्रबंध योजना, तथा सूक्ष्म योजना स्वयं से, स्थानीय लोगों द्वारा समझ सकने वाली भाषा में तैयार कर सकती है. साथ ही ग्रामसभा वन विभाग द्वारा तैयार किए जाने वाले कार्य योजना, प्रबंधन योजना तथा सूक्ष्म योजना में संशोधन प्रस्तावित कर सकती है जिसे वन विभाग द्वारा नियमानुसार प्रक्रिया में लिया जाएगा तथा संशोधन किया जाएगा.

ग्रामसभा, सामुदायिक वन अधिकार अधिनियम की धारा 5 के अनुसार वन संसाधनों तक पहुंच को भी विनयमित कर सकती है तथा ऐसे क्रियाकलापो को रोक सकती है जो वन्य जीव, वन और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हों. साथ ही ग्राम सभा वन निवासियों के निवास को किसी भी विनाशकारी व्यवहार से संरक्षित करने हेतु कदम उठा सकती है जो उनकी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को प्रभावित करते हैं.


निश्चय ही छत्तीसगढ़ सरकार का ये कदम सराहनीय है. कम से कम इससे एक उम्मीद तो बंधती ही है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में चल रही जल, जंगल, ज़मीन की लूट की रोकथाम के लिए सरकारें शायद और बेहतर प्रयास भी करेंगी.

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