सरकार के निशाने पर मानवाधिकार कार्यकर्ता, इंदिरा जयसिंह के ठिकानों पर सीबीआई की रेड

Written by sabrang india | Published on: July 11, 2019
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और उनके पति वकील आनंद ग्रोवर और सामाजिक कार्यकर्ता इंदु आनंद के घर और ठिकानों पर सीबीआई की टीम की टीम ने आज सुबह छापे मारे। इससे पहले इंदिरा जयसिंह के एनजीओ पर एफसीआरए के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की गई थी। इस मामले में वर्तन निदेशालय ने फंड के गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीबीआई की टीम ने इंदिरा जयसिंह के निजामुद्दीन स्थित घर पर छापे मारे। मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के मुताबिक, यह छापे इंदिरा जयसिंह के दिल्ली और मुंबई स्थिति ठिकानों पर भी पड़े हैं। बताया जा रहा है कि गुरुवार सुबह करीब 8.15 बजे सीबीआई की टीम ने इंदिरा जयसिंह और उनके पति वकील आनंद के ठिकानों पर छापे मारने शुरू किए थे। तीस्ता ने अनुसार, उन्होंने दोनों स्थानों पर अपने वकील भेजे और वह छापों से संबंधित कानूनी प्रक्रिया का जायजा ले रहे हैं। तीस्ता सीतलवाड़ ने सीबीआई द्वारा की गई इस छापेमारी की कड़ी निंदा की। उन्होंने इस कार्रवाई को केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई बताया।

सीबीआई के छापे पर सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, “सालों से हमारे द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार कार्यों के चलते हमें टारगेट किया जा रहा है।” सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने इस कार्रवाई को गलत बताते हुए सरकार की भर्त्सना की है। 

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और उनके पति वकील आनंद ग्रोवर के घर और दफ्तर पर सीबीआई द्वारा की गई छापेमारी की कड़ी निंदा की गई। एनजीओ ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ जिसके अध्यक्ष आनंद ग्रोवर हैं, उसने एक बयान जारी कर सीबीआई द्वारा की गई छापेमार कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। साथ ही एनजीओ ने सीबीआई के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है।

‘लॉयर्स कलेक्टिव’ ने अपने बयान में कहा, “सीबीआई द्वारा आज सुबह वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंग और आनंद ग्रोवर के घरों और कार्यालयों पर मारे गए छापे की हम निंदा करते हैं। दिल्ली और मुंबई दोनों जगह छापे मारे गए। यह इंदिरा जयसिंग और आनंद ग्रोवर को डराने के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों में से एक है। यह कार्रवाई सत्ता के दुरूपयोग को दर्शाता है। दोनों वकीलों के खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए की गई, क्योंकि वे सालों से मानावाधिकार कार्यों से जुड़े रहे हैं।”

एनजीओ ने अपने बयान में आगे कहा, “लॉयर्स कलेक्टिव’ ने कथित एफसीआरए उल्लंघन मामले में उनके खिलाफ आपराधिक आरोप दायर किए जाने के बाद से अधिकारियों के साथ पूरी तरह से सहयोग किया है। सहयोग के बावजूद आज जो छापे पड़े हैं, वे चौंकाने वाले हैं।”

एनजीओ ने अपने बयान में कहा, “दुर्भाग्य से भारत सरकार ने उन लोगों और संगठनों के खिलाफ सरकारी मशीनरी और उसके विभिन्न विभागों का इस्तेमाल करने के लिए चुना है, जिनके संवैधानिक मूल्यों और कानून के शासन को बनाए रखने में योगदान अच्छी तरह से स्वीकार्य है।”

‘लॉयर्स कलेक्टिव’ ने कहा, “यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। भारत सरकार ने ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ और उसके प्रतिनिधियों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण मानवाधिकार कार्यों को निशाना बनाने के लिए सरकारी एजेंसियों का गलत इस्तेमाल किया है। छापे की कार्रवाई इसलिए भी की गई, क्योंकि अक्सर यह दोनों वकील सत्तारूण पार्टी की सरकार के मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ संवेदनशील मामलों में कोर्ट में पेश होते रहे हैं।”

बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील काफी फहले से केंद्र सरकार के निशाने पर थीं। वे तभी केंद्र के निशाने पर आ गई थीं, जब उन्होंने जज लोया मामले में फिर से जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के पक्ष में बहस की थी। कहा जाता है कि जज लोया मामले में सत्ता से जुड़े कई लोगों पर शक की सुई है। कहा जाता है कि अगर जज लोया मामले की जांच शुरू होने से सत्ता से जुड़े कुछ लोगों पर खतरा था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया के मौत मामले की जांच की मांग वाली याचिका को रद्द कर दिया था। जज लोया केस के अलावा वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह कई मामलों में गुजरात सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं।

 

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