उत्तराखंड: कथित देवभूमि में चरम पर जातिवाद, सवर्णों के बच्चों की वजह से गई भोजनमाता की नौकरी

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 24, 2021
जातिवाद बच्चे के जन्म के बाद ही उसके मस्तिष्क में ठूंस दिया जाता है। इसकी पुष्टि कथित देवभूमि उत्तराखंड की घटना से कर सकते हैं जहां एक दलित रसोईया देवी को उसकी जाति के चलते अपनी नौकरी गंवानी पड़ी क्योंकि सवर्णों के बच्चों ने उसके हाथ का पका खाना खाने से इंकार कर दिया था। यह घटना चंपावत ज़िले के सुखीढांग के एक सरकारी स्कूल की है, जहां 66 छात्रों में से 40 ने इस महीने की शुरुआत में नियुक्त एक दलित महिला द्वारा तैयार खाना खाने से मना कर दिया था। काम से हटाए जाने के बाद महिला ने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराते हुए आपत्ति जताने वाले छात्रों के माता-पिता के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है।



उत्तराखंड के चंपावत जिले के एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय में मध्याह्न भोजन पकाने वाली दलित समुदाय की महिला को उनकी नौकरी से हटा दिया गया क्योंकि कथित ऊंची जाति के छात्रों ने उनके द्वारा पकाया हुआ खाना खाने से इनकार कर दिया था।

यह घटना चंपावत जिले के सुखीढांग के एक स्कूल की है। इस महीने की शुरुआत में ‘भोजनमाता’ के रूप में नियुक्ति के एक दिन बाद छात्रों ने महिला की जाति के कारण उनके द्वारा बनाया गया खाना खाना बंद कर दिया और घर से अपना खाना लाना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि स्कूल के 66 छात्रों में से 40 ने दलित समुदाय की महिला द्वारा तैयार खाना खाने से मना कर दिया था।

छात्रों के अभिभावकों ने भी ‘भोजनमाता’ के रूप में दलित समुदाय की महिला की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी क्योंकि ‘उच्च’ जाति की एक महिला ने भी नौकरी के लिए साक्षात्कार दिया था। चंपावत के मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित ने कहा कि महिला की नियुक्ति रद्द कर दी गई क्योंकि यह पाया गया कि नियुक्ति में मानदंडों का पालन नहीं किया गया था।

पुरोहित ने कहा, ‘उच्च अधिकारियों ने महिला की नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी थी। फिर भी उन्हें काम दिया गया।’ उन्होंने कहा कि महिला के स्थान पर किसी दूसरे रसोइये की अस्थायी व्यवस्था की गई है।

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, रसोइये के काम से हटाई गईं 32 वर्षीय महिला सुनीता देवी ने गुरुवार को जिला अधिकारियों और पुलिस में उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई है। सुनीता देवी ने कहा कि उन्होंने उन छात्रों के माता-पिता के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है जिन्होंने उनके द्वारा पका हुआ खाना खाने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने कहा, ‘मैंने उच्च जाति के छात्रों के माता-पिता द्वारा मेरे उत्पीड़न के बारे में अपनी शिकायत स्थानीय प्रशासन और पुलिस को सौंप दी है। मेरे द्वारा पकाए गए मध्याह्न भोजन को खाने से इनकार करने से मैं आहत और अपमानित महसूस कर रही हूं।’

प्राचार्य प्रेम सिंह ने कहा कि सुनीता देवी को 13 दिसंबर को सुखीढांग गवर्नमेंट इंटर कॉलेज (जीआईसी) की रसोइया या भोजनमाता के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन एक दिन बाद कक्षा 6 से 8 के लगभग 66 विद्यार्थियों में से 40 उच्च जाति के छात्रों ने खाना बंद कर दिया और घर से टिफिन लाने लगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, कथित उच्च जाति के बच्चों के माता-पिता ने बहिष्कार का समर्थन किया और आरोप लगाया कि सुनीता देवी को एक अधिक योग्य उम्मीदवार पुष्पा भट्ट, जो एक ब्राह्मण हैं, की अनदेखी करके रसोइए के रूप में चुना गया था। बुधवार को उन्होंने देवी को हटाए जाने का स्वागत किया और कहा कि इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है।

नौकरी से निकाले जाने के बाद देवी टनकपुर में तहसील कार्यालय और चलठी में पुलिस चौकी पहुंचीं और कथित उच्च जाति के छात्रों के माता-पिता द्वारा उत्पीड़न की शिकायत सौंपी। उसने उन माता-पिता के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने कथित तौर पर अपने बच्चों को दलित महिला द्वारा बनाए गए भोजन का बहिष्कार करने के लिए उकसाया था।

टनकपुर में पूर्णागिरी तहसील की कार्यवाहक तहसीलदार पिंकी आर्य ने कहा कि चूंकि वह वीआईपी ड्यूटी पर थीं, इसलिए उनके कार्यालय को शिकायत मिली होगी। उन्होंने कहा, ‘मैं कल शिकायत पर गौर करूंगी और मामले में उचित कार्रवाई करूंगी।’ देवी द्वारा बनाया गया खाना खाने से मना करने वाले बच्चों के माता-पिता ने उनके आरोप का खंडन किया।

अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र जोशी ने कहा, ‘माता-पिता ने उत्पीड़न का कोई काम नहीं किया है जैसा कि भोजनमाता दावा कर रही हैं। हम भोजनमाता की नियुक्ति की दोषपूर्ण प्रक्रिया का विरोध करते हैं जो शिक्षा अधिकारियों की पूछताछ में साबित हुई थी।’

लेकिन स्थानीय दलित कार्यकर्ताओं ने इस आरोप को खारिज कर दिया। कुमाऊं में भीम आर्मी के अध्यक्ष गोविंद बौध ने कहा, ‘हमने अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट से मुलाकात की और मजिस्ट्रेट जांच की मांग की।’
 

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