यूपी पुलिस के दमनकारी रवैये के विरोध में बॉलीवुड हस्तियों का सीएम योगी को पत्र

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 28, 2019
नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) को लेकर बॉलीवुड भी बंट गया है। इस कानून के विरोध में बहुत सारी फिल्मी हस्तियां मुखर रुप से खुलकर सामने आ रही हैं वहीं, अनुपम खेर और परेश रावल जैसे कुछ अभिनेता इसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा छात्रों पर किए गए बर्बर लाठीचार्ज और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर की जा रही दमनकारी कार्यवाही को लेकर बॉलीवुड की फिल्मी हस्तियों, अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाने, कोंकणा सेन, अपर्णा सेन, अलंकृता श्रीवास्तव, कुबड़ा सेठ, मल्लिका दुआ, जीशान अय्यूब और स्वरा भास्कर ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर एक नागरिक के मौलिक अधिकारों के बारे में चेताया है। इन्होंने पत्र में लिखा है...



हम सभी लोग यहां अभिनेता के तौर पर, सरकार से अपील करना चाहते हैं कि नागरिकता कानून के विरोध में जो कुछ भी उत्तर प्रदेश में हो रहा है उसने हम सबको अंदर से हिला कर रख दिया है।

हम सबके लिए उत्तर प्रदेश खास है। कई लोगों की परिवार की जड़ें उत्तर प्रदेश से जुड़ी हैं, हममें से कइयों ने हमारी फिल्मों के लिए वहां पर काम किया है। और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारी फिल्मों में जब हम भारत की कल्पना करते हैं, तो उस समय हमेशा उत्तर प्रदेश की विरासत, उसका इतिहास उसकी विभिन्नता इत्यादि केंद्र में होता है। उत्तर प्रदेश, देश के सबसे बड़े प्रदेश से ही हम भारत की परिभाषा गढ़ते हैं।

CAA ने खुद कई सारे विरोधाभाष को जन्म दिया है। लेकिन किसी के नागरिकता कानून पर उसकी राय के परे, एक बात जो सबसे मूलभूत है जिस पर हम और आप सभी सहमत होंगे कि इस देश का संविधान, हर नागरिक को शांति से विरोध करने की इजाजत देता है, और कानून के दायरे में रह कर सरकार का काम है ठीक ढंग से उस विरोध में सहयोग दे, उचित कार्यवाही करे और सिर्फ और सिर्फ भारत में देश के न्यायालय का काम है कि वो सही और गलत का फैसला करें और जो भी दोषी है उसको दंडित करें।

हमें लगता है कि इन सभी सिद्धांतों को ताक पर रखकर, सरकार ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए हमारे मूल अधिकरों जैसे जीने के अधिकार, अपने विचार रखने का अधिकार, हमारे विरोध करने का अधिकार इत्यादि हमसे छीन लिया और पूरे राज्य को एक बेहद खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है।

हम आप सबका ध्यान उत्तर प्रदेश के हालात की कुछ चुनिंदा बातों पर आकर्षित करना चाहेंगे जैसे पुलिस गोलीबारी में इंसानों की मरने की संख्या, पुलिस बल का प्रयोग, एक ख़ास तबके को निशाना बनाया जा रहा है, अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना, नागरिक स्वतंत्रा का हनन, सरकार के आला नेताओ के विवादास्पद बयान।
इस बात के भी सबूत हैं कि सुरक्षा कर्मियों की कार्रवाई में हत्याओं का पता लगाया जा सकता है। कई और नागरिक गंभीर रूप से घायल हैं। हम हत्याओं की निंदा करते हैं, और सभी पीड़ितों के लिए तुरंत न्याय की मांग करते हैं।

अगर हम इन्हींकी गोदी मीडिया को मानें तो अब तक 18 जाने जा चुकी है, और उनमें से ज्यादातर जानें पुलिस की गोली से गई हैं। कानून में आंदोलनकारियों से निपटने के लिए कुछ खास प्रक्रिया बनाई गई है, और इसमें कोई संदेह नहीं कि नियमों और प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।

अन्य मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों को बंदी बनाया जा रहा है। पुलिस द्वारा अत्यधिक बल का प्रयोग करते हुए कई विडियो हैं जो मन को विचलित करते हैं। सच में विडियो हमें अंदर से हिला देने वाले हैं। निहत्थे नागरिकों पर बर्बरतापूर्ण तरीके से उनके पीटना उनको बंदी बनाना और वो भी सिर्फ इसलिए कि वो अपने अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं, कहीं से जायज़ नहीं ठहराया नहीं जा सकता है।

मुख्यमंत्री जी कहते हैं जो भी कानून तोड़ेगा उनसे बदला लिया जाएगा। इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि सरकार का काम है कानून व्यवस्था बनाए रखना। लेकिन इस प्रकार का भड़काऊ आदेश जो कि कानून संगत नहीं है, राज्य के कई हिस्सों में इंटरनेट शटडाउन मौलिक अधिकार की त्रासदी का एक और उदाहरण है और इससे प्रभावित नागरिकों को गंभीर असुविधा हुई है।

हम एक समूह के रूप में हिंसा या बर्बरता के किसी भी रूप का समर्थन नहीं करते हैं- सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की हम निंदा करते हैं और मानते हैं कि अगर किसी ने हिंसा की है, तो उन्हें संबंधित कानूनों के तहत दर्ज किया जाना चाहिए और उचित कानूनी प्रक्रिया के अधीन होना चाहिए। लेकिन हम शांतिपूर्ण विरोध में शामिल होने के नागरिक के अधिकार का समर्थन करते हैं- यह पवित्र अधिकार, लोकतंत्र का अभिन्न अंग है, यूपी में इस पर अंकुश लगाया गया है।

हम भारतीय अदालतों से आग्रह करते हैं कि यूपी में जो कुछ हुआ है, उसका स्वत: संज्ञान लें और अनुरोध करें कि जीवन और अंग की क्षति और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की न्यायिक जांच की जाए।

संबंधित नागरिकों के रूप में, हम भारत के संविधान के पत्र और भावना के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस तरह के उत्पीड़न का विरोध करने के लिए अहिंसा के गांधीवादी तरीके को अपनाते हैं।

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