माकपा नेता और आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच की उपाध्यक्ष बृंदा करात ने बिहार पुलिस और वन विभाग द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानों को लागू करने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे कैमूर के खरवार आदिवासियों पर की गई लाठीचार्ज और फायरिंग की निंदा की और कहा कि आदिवासियों ने अपनी पैतृक भूमि का मालिक होने का दावा किया था।
वह 23 अक्टूबर को ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपुल्स (एआईयूएफडब्लूपी), सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) और डेल्ही सॉलिडैरिटी ग्रुप की ओर से आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहीं थीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शनकारियों ने विरोध करने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग सभी कानूनी प्रक्रियाओं के तहत किया था।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट भी जारी की गई जिसमें अढ़ौरा ब्लॉक में फायरिंग की घटनाओं का विवरण, मौके की यात्रा, जांच का विवरण शामिल था।
करात ने आदिवासी समुदाय को उनके लगातार खड़े होने और विरोध प्रदर्शन के साहस की प्रशंसा की और इकट्ठा हुए 1000 प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग, 29 लोगों (उनमें से सात को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था और फिर 16 अक्टूबर को जमानत पर रिहा कर दिया गया) के खिलाफ झूठे मुकदमे और एफआईआर की प्रदर्शनकारियों की न्यायिक जांच की मांग का समर्थन किया। करात ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और पीड़ित प्रदर्शनकारियों को मुआवजे की मांग का भी समर्थन किया।
उनके भाषण का वीडियो यहां देखा जा सकता है-
इसके अलावा, करात ने टाइगर रिजर्व योजना पर पुनर्विचार करने की आदिवासियों की मांग का भी समर्थन किया और बताया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2006 के संशोधन के अनुसार, इस तरह की परियोजनाएं क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों की पूर्व सहमति के बिना नहीं की जा सकती हैं। उन्होंने तर्क दिया कि वन अधिकारी न केवल वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि वे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संशोधित उपबंधों का भी उल्लंघन कर रहे हैं, जो पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पारित किया गया है।
उन्होंने कहा, मोदी सरकार ने खनन कंपनियों, सिंचाई परियोजनाओं, पर्यटन, लकड़ी उद्योगों के माध्यम से आदिवासियों की भूमि, आजीविका के अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर दिया है। निजी कंपनियों को हमारे प्राकृतिक खजाने का दोहन करने की अनुमति दी जा रही है।
कैमूर मुक्ति मोर्चा के खिलाफ जिस तरह से एफआईआर दर्ज की गईं और अधिकारियों द्वारा उसे एक माओवादी संगठन कहा गया, उस पर करात ने सवाल उठाए और कहा कि वे केवल शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे थे।
करात ने कहा, 'यदि आप पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर की जांच करते हैं, तो वे पूरी तरह से निराधार हैं। उन्होंने वहां विरोध प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी। उन्हें मौके पर विरोध करने का अधिकार था। फिर भी, वन विभाग ने 108 गांवों में कहर बरपाया और उनके एक कार्यालय को जला दिया।'
करात ने आदिवासी समुदायों को यह कहने के लिए प्रोत्साहित किया कि जब अगली बार कोई जंगलों में रहने के अपने अधिकार पर सवाल उठाएगा तो कहेंगे- हां! यह मेरी पैतृक भूमि है! '(ये मेरे बाप की जमीन है!)
करात ने वन भूमि और आजीविका के अधिकारों के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन के लिए नीतीश सरकार की भारी आलोचना की। करात ने नीतीश सरकार के रिकॉर्डों को अन्य राज्य सरकारों से सबसे खराब मानते हुए कहा कि नीतीश सरकार में बिहार में आदिवासियों और वन निवासियों के सामुदायिक अधिकारों के दावों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत व्यक्तिगत दावों पर करात ने कहा कि बिहार में 8000 दावे दायर किए गए हैं जिनमें से केवल 121 पट्टों को मंजूरी दी गई है।
करात ने कहा, यह सरकार के खिलाफ एक अघोषित लड़ाई है। कैमूर में आदिवासी अधिकारों पर हमला कोई पहला उदाहरण नहीं है। वनवासियों के कानूनी अधिकारों पर सरकार द्वारा लगातार हमला किया गया है। लोगों को राज्य में इस आदिवासी विरोधी सरकार को हटाने की जरूरत है। बिहार में अगले सप्ताह चुनाव होने हैं और इस क्षेत्र में 28 अक्टूबर को मतदान होगा।
शिक्षक और आदिवासी नेता सुभाष खरवार ने कहा, 'सरकार हमारी बात नहीं मानती है। हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। जिले के एक अस्पताल को एक सैन्य (सीआरपीएफ) शिविर में बदल दिया गया है। हमारे विद्यालय केवल बिना किसी शिक्षक के एक ढांचे के रूप में खड़े हैं। हमारे गांवों को मुख्य जिले से जोड़ने के लिए कोई बिजली, कोई सड़क नहीं है। हमारे पास बीएसएनएल टॉवर को छोड़कर संचार का कोई साधन नहीं है। हमें नक्सली कहा जाता है और हमें इस भूमि पर हमारे अधिकार से वंचित करने वाले वन अधिकारियों से निपटना होगा।'
सीजेपी की सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि 108 आदिवासी गाँवों में से 72 गाँवों में शैक्षिक सुविधाएं थीं, 22 गांवों तक परिवहन की सुविधा थी, केवल 13 गाँवों में बैंक थे, 11 गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं थीं और 2011 तक 2 गांव बिजली प्राप्त करने में सफल रहे।
सीतलवाड़ ने कहा कि इन समुदायों की शिकायतें एक गंभीर मुद्दा है जिसे शहरी मुद्दों के साथ-साथ पत्रकारों को भी समझने की जरूरत है। पत्रकार के रूप में हमें जंगलों की ओर भी देखने की जरूरत है, खासकर चुनावों के दौरान। हमें उम्मीद है कि इस फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट से क्षेत्र में मुद्दों की आवाज़ उठाने में मदद मिलेगी। कानूनी स्थितियों को नेविगेट करना हो या झूठे मामलों और शिकायतों से लड़ना हो, सीजेपी आदिवासियों के साथ खड़ा है।
वह 23 अक्टूबर को ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपुल्स (एआईयूएफडब्लूपी), सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) और डेल्ही सॉलिडैरिटी ग्रुप की ओर से आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहीं थीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शनकारियों ने विरोध करने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग सभी कानूनी प्रक्रियाओं के तहत किया था।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट भी जारी की गई जिसमें अढ़ौरा ब्लॉक में फायरिंग की घटनाओं का विवरण, मौके की यात्रा, जांच का विवरण शामिल था।
करात ने आदिवासी समुदाय को उनके लगातार खड़े होने और विरोध प्रदर्शन के साहस की प्रशंसा की और इकट्ठा हुए 1000 प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग, 29 लोगों (उनमें से सात को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था और फिर 16 अक्टूबर को जमानत पर रिहा कर दिया गया) के खिलाफ झूठे मुकदमे और एफआईआर की प्रदर्शनकारियों की न्यायिक जांच की मांग का समर्थन किया। करात ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और पीड़ित प्रदर्शनकारियों को मुआवजे की मांग का भी समर्थन किया।
उनके भाषण का वीडियो यहां देखा जा सकता है-
इसके अलावा, करात ने टाइगर रिजर्व योजना पर पुनर्विचार करने की आदिवासियों की मांग का भी समर्थन किया और बताया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2006 के संशोधन के अनुसार, इस तरह की परियोजनाएं क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों की पूर्व सहमति के बिना नहीं की जा सकती हैं। उन्होंने तर्क दिया कि वन अधिकारी न केवल वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि वे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संशोधित उपबंधों का भी उल्लंघन कर रहे हैं, जो पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पारित किया गया है।
उन्होंने कहा, मोदी सरकार ने खनन कंपनियों, सिंचाई परियोजनाओं, पर्यटन, लकड़ी उद्योगों के माध्यम से आदिवासियों की भूमि, आजीविका के अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर दिया है। निजी कंपनियों को हमारे प्राकृतिक खजाने का दोहन करने की अनुमति दी जा रही है।
कैमूर मुक्ति मोर्चा के खिलाफ जिस तरह से एफआईआर दर्ज की गईं और अधिकारियों द्वारा उसे एक माओवादी संगठन कहा गया, उस पर करात ने सवाल उठाए और कहा कि वे केवल शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे थे।
करात ने कहा, 'यदि आप पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर की जांच करते हैं, तो वे पूरी तरह से निराधार हैं। उन्होंने वहां विरोध प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी। उन्हें मौके पर विरोध करने का अधिकार था। फिर भी, वन विभाग ने 108 गांवों में कहर बरपाया और उनके एक कार्यालय को जला दिया।'
करात ने आदिवासी समुदायों को यह कहने के लिए प्रोत्साहित किया कि जब अगली बार कोई जंगलों में रहने के अपने अधिकार पर सवाल उठाएगा तो कहेंगे- हां! यह मेरी पैतृक भूमि है! '(ये मेरे बाप की जमीन है!)
करात ने वन भूमि और आजीविका के अधिकारों के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन के लिए नीतीश सरकार की भारी आलोचना की। करात ने नीतीश सरकार के रिकॉर्डों को अन्य राज्य सरकारों से सबसे खराब मानते हुए कहा कि नीतीश सरकार में बिहार में आदिवासियों और वन निवासियों के सामुदायिक अधिकारों के दावों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत व्यक्तिगत दावों पर करात ने कहा कि बिहार में 8000 दावे दायर किए गए हैं जिनमें से केवल 121 पट्टों को मंजूरी दी गई है।
करात ने कहा, यह सरकार के खिलाफ एक अघोषित लड़ाई है। कैमूर में आदिवासी अधिकारों पर हमला कोई पहला उदाहरण नहीं है। वनवासियों के कानूनी अधिकारों पर सरकार द्वारा लगातार हमला किया गया है। लोगों को राज्य में इस आदिवासी विरोधी सरकार को हटाने की जरूरत है। बिहार में अगले सप्ताह चुनाव होने हैं और इस क्षेत्र में 28 अक्टूबर को मतदान होगा।
शिक्षक और आदिवासी नेता सुभाष खरवार ने कहा, 'सरकार हमारी बात नहीं मानती है। हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। जिले के एक अस्पताल को एक सैन्य (सीआरपीएफ) शिविर में बदल दिया गया है। हमारे विद्यालय केवल बिना किसी शिक्षक के एक ढांचे के रूप में खड़े हैं। हमारे गांवों को मुख्य जिले से जोड़ने के लिए कोई बिजली, कोई सड़क नहीं है। हमारे पास बीएसएनएल टॉवर को छोड़कर संचार का कोई साधन नहीं है। हमें नक्सली कहा जाता है और हमें इस भूमि पर हमारे अधिकार से वंचित करने वाले वन अधिकारियों से निपटना होगा।'
सीजेपी की सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि 108 आदिवासी गाँवों में से 72 गाँवों में शैक्षिक सुविधाएं थीं, 22 गांवों तक परिवहन की सुविधा थी, केवल 13 गाँवों में बैंक थे, 11 गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं थीं और 2011 तक 2 गांव बिजली प्राप्त करने में सफल रहे।
सीतलवाड़ ने कहा कि इन समुदायों की शिकायतें एक गंभीर मुद्दा है जिसे शहरी मुद्दों के साथ-साथ पत्रकारों को भी समझने की जरूरत है। पत्रकार के रूप में हमें जंगलों की ओर भी देखने की जरूरत है, खासकर चुनावों के दौरान। हमें उम्मीद है कि इस फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट से क्षेत्र में मुद्दों की आवाज़ उठाने में मदद मिलेगी। कानूनी स्थितियों को नेविगेट करना हो या झूठे मामलों और शिकायतों से लड़ना हो, सीजेपी आदिवासियों के साथ खड़ा है।