दुनिया के शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होने के बाद आज बिहार चुनाव 2020 के परिणाम घोषित होने का दिन है. बिहार विधान सभा चुनाव कोरोना काल में होने वाला भारत का पहला चुनाव था. तमाम एग्जिट पोल से सामने आए नतीजे बता रहे हैं कि 15 साल के सुशासन से त्रस्त बिहार की जनता सरकार के बदलाव की दिशा में अग्रसर है. कोरोना काल के इस चुनाव में तमाम भटकाव के बावजूद महागठबंधन द्वारा जनता के मुद्दों को पुरजोर तरीके से शामिल किया गया. नतीजतन इस चुनाव में न झूठे आत्मनिर्भर भारत का जुमला चला, न विकास पुरुष का झूठ, न राम मंदिर, लव जिहाद की दुहाई देकर नफरत की दीवार बना पाए और न ही पकिस्तान का डर दिखा कर बिहार की जनता को लुभा पाए.
बिहार का यह चुनाव ऐतिहासिक है इसलिए भी कि केंद्र सरकार की जनविरोधी नीति NRC-CAA-NPR के खिलाफ और शाहीन बाग़ के समर्थन में गली चौक चौराहे पर बैठे बिहार की जनता यह बताने के लिए तैयार है कि ‘सरकार जनता से होती है जनता सरकार से नहीं होती है’. गौरतलब बात यह है कि जिस सरकारी नीति का विरोध बिहार और देश की जनता कर रहे थे वह अब दुनिया भर में गूंज रहा है. टाइम मैगजीन जिसने कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े थे आज उसने निशाना साधा है और लिखा है कि मोदी सरकार भारत के मुस्लिम और अल्पसंख्यकों को टारगेट कर रही है. मोदी सरकार ने देश में विरोध की आवाज को दबाने के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल का दफ्तर भी बंद करवाया.
कोरोना महामारी से हतोत्साहित व् भविष्य की उम्मीदों से लबरेज बिहार चुनाव रोजगार व् जनता की आधारभूत सवाल पर अडिग रहा और अब उसके परिणाम की झलक सामने आती दिख रही है हालांकि हर बार की तरह मुद्दों को भटका कर और जनता को बरगलाकर चुनाव का रुख मोड़ने का प्रयास प्रधानमंत्री मोदी, उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत कई दिग्गज सत्ताधारी केंद्रीय नेताओं द्वारा किया गया लेकिन इस बार बिहार की जनता महामारी में पलायन का दर्द, महंगाई की मार, झूठे वादों की भरमार के अपने अनुभवों से सीख लेकर मुक्तिबोध के इस लाइन को साकार करती नज़र आ रही है.
“राम तुम्हें न रोटी देगा, वेद तुम्हारा काम न देगा.
जो रोटी का युद्ध लड़ेगा वो रोटी को आप वरेगा.”
भारत युवाओं का देश है और रोजगार के मुद्दे को प्रमुखता देकर इस महामारी में बेतरतीब व् अनियोजित तरीके से लगाए गए देशबंदी से उपजे बेरोजगारी के आलम में 10 लाख़ रोजगार देने की घोषणा कर महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार की जनता को उम्मीद भरी राहत देने का काम किया है जिसका असर एग्जिट पोल के नतीजों से सामने आ रहे हैं. 10 लाख नौकरी के मुकाबले में ‘मेरा आखरी चुनाव’ का भावनात्मक अपील जनता पर कुछ खास असर डालता नजर नहीं आ रहा वैसे भी नितीश कुमार द्वारा 2015 के चुनाव में जनादेश के साथ की गयी धोखेबाजी और बीजेपी से सांठ-गाँठ नितीश सरकार के कुर्सी पर बने रहने तथा जनहित को दरकिनार करने की उनकी मंशा को बहुत पहले ही उजागर कर चुकी है.
दरअसल, नितीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री अपनी पहली पारी में जो काम किए और लालू यादव के शासनकाल को जंगल राज बता कर कानून व्यवस्था में सुधार की जो बात किए वह बाद के दिनों में चमकी बुखार से बच्चों की मौत व् बालिका गृह कांड की आरोपी मंजू वर्मा को भी विधानसभा चुनाव में टिकट देने से परहेज न करना बिहार की जनता के प्रति उनकी अनदेखी को बयां करती है. गुजरात के तर्ज पर बिहार में लगाए गए शराबबंदी की असफलता और इससे उपजे भ्रष्टाचार व् अपराधीकरण जगजाहिर है. बिहार में शराब का अवैध कारोबार राजनेता-पुलिस-माफ़िया के बीच करोड़ों के बन्दर बाँट में बदल चूका है. यह कड़वा सच है की नितीश कुमार का बीजेपी से राजनीतिक गठजोड़ न नितीश सरकार के लिए और न ही बिहार की जनता के लिए कभी लाभदायक रहा. नौबत यह आ गयी कि बीजेपी के साथ ने बिहार में कानून व्यवस्था सहित सुशाशन सरकार की छवि को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया.
एनडीए गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नितीश कुमार का हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लगातार संसद से पारित करवाए जाने वाले जन विरोधी मुद्दे जैसे लेबर बिल, कृषि बिल पर चुप्पी भी इस चुनाव में निर्णायक कारणों में से एक बन सकता है. चुनाव प्रचार के तमाम डिजिटल साधनों पर कब्ज़ा जमाए, सरकारी व् आर्थिक साधनों से लैस एनडीए गठबंधन के रणनीतिकार इस चुनाव में अपनी जीत तय मान कर चल रहे थे जिसका जबाव बिहार की जनता के नेतृत्व परिवर्तन के तेवर से धराशायी हो कर रह गया.
इस चुनाव में चिराग पासवान अपनी विरासत संभालते नजर आए तो अन्य दलों ने चुनावी गठबंधन कर जनता के समक्ष विकल्प देने की कोशिश की देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता अपनी सरकार के रूप में किसे चुनती है. लोकतंत्र विडम्बनाओं से भरी होती है जहाँ जो दल लोकतंत्र की खूबी की वजह से सत्ता में आते हैं वही बाद में लोकतंत्र को ख़त्म करने पर आमदा हो जाते हैं और उनके अन्दर येन-केन-प्रकारेण वंशानुगत रूप से सत्ता में बने रहने की विकृत मानसिकता पैदा हो जाती है जो लोकतंत्र को कमजोर भी करता है.
हालाँकि वर्तमान परिदृश्य में यह कह पाना मुश्किल है कि जिस तरह दुनिया ट्रंपशाही से निजात पा चुका है वैसे ही भारत और बिहार मोदीशाही से मुक्ति पा जाएगा लेकिन एक उम्मीद जरुर सामने आई है जो बिहार की हताश जनता को उम्मीद और देश की जनता को बदलाव की किरण दिखा रहा है.
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“राम तुम्हें न रोटी देगा, वेद तुम्हारा काम न देगा.
जो रोटी का युद्ध लड़ेगा वो रोटी को आप वरेगा.”
भारत युवाओं का देश है और रोजगार के मुद्दे को प्रमुखता देकर इस महामारी में बेतरतीब व् अनियोजित तरीके से लगाए गए देशबंदी से उपजे बेरोजगारी के आलम में 10 लाख़ रोजगार देने की घोषणा कर महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार की जनता को उम्मीद भरी राहत देने का काम किया है जिसका असर एग्जिट पोल के नतीजों से सामने आ रहे हैं. 10 लाख नौकरी के मुकाबले में ‘मेरा आखरी चुनाव’ का भावनात्मक अपील जनता पर कुछ खास असर डालता नजर नहीं आ रहा वैसे भी नितीश कुमार द्वारा 2015 के चुनाव में जनादेश के साथ की गयी धोखेबाजी और बीजेपी से सांठ-गाँठ नितीश सरकार के कुर्सी पर बने रहने तथा जनहित को दरकिनार करने की उनकी मंशा को बहुत पहले ही उजागर कर चुकी है.
दरअसल, नितीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री अपनी पहली पारी में जो काम किए और लालू यादव के शासनकाल को जंगल राज बता कर कानून व्यवस्था में सुधार की जो बात किए वह बाद के दिनों में चमकी बुखार से बच्चों की मौत व् बालिका गृह कांड की आरोपी मंजू वर्मा को भी विधानसभा चुनाव में टिकट देने से परहेज न करना बिहार की जनता के प्रति उनकी अनदेखी को बयां करती है. गुजरात के तर्ज पर बिहार में लगाए गए शराबबंदी की असफलता और इससे उपजे भ्रष्टाचार व् अपराधीकरण जगजाहिर है. बिहार में शराब का अवैध कारोबार राजनेता-पुलिस-माफ़िया के बीच करोड़ों के बन्दर बाँट में बदल चूका है. यह कड़वा सच है की नितीश कुमार का बीजेपी से राजनीतिक गठजोड़ न नितीश सरकार के लिए और न ही बिहार की जनता के लिए कभी लाभदायक रहा. नौबत यह आ गयी कि बीजेपी के साथ ने बिहार में कानून व्यवस्था सहित सुशाशन सरकार की छवि को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया.
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इस चुनाव में चिराग पासवान अपनी विरासत संभालते नजर आए तो अन्य दलों ने चुनावी गठबंधन कर जनता के समक्ष विकल्प देने की कोशिश की देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता अपनी सरकार के रूप में किसे चुनती है. लोकतंत्र विडम्बनाओं से भरी होती है जहाँ जो दल लोकतंत्र की खूबी की वजह से सत्ता में आते हैं वही बाद में लोकतंत्र को ख़त्म करने पर आमदा हो जाते हैं और उनके अन्दर येन-केन-प्रकारेण वंशानुगत रूप से सत्ता में बने रहने की विकृत मानसिकता पैदा हो जाती है जो लोकतंत्र को कमजोर भी करता है.
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