पिछले साल 9 मई को गांधी पार्क में जब भीम आर्मी शब्बीरपुर में दलितों पर हुए हमले के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जुटी थी तो किसी को भी इसकी ताक़त का अंदाज़ा नहीं था. अफ़सर कह रहे थे —‘ये लड़के कुछ नहीं कर पाएंगे’. मगर इसी दिन इन्हीं लड़कों ने सहारनपुर को राष्ट्रीय ख़बर बना दिया और मायावती ज़मीन पर उतरने को मजबूर हो गईं.
इसके बाद भीम आर्मी की दमन प्रकिया चली और दलित बहुल किसी भी गांव में दलितों के नौजवान अपने ही घर पर रात नहीं बिता सकें. दलितों के इन्हीं नौजवानों के दिल का सरताज बना चन्द्रशेखर रावण को हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया.
तब से भीम आर्मी का सुप्रीमो चन्द्रशेखर जेल में है. उस पर दर्ज हुए सभी मुक़दमों में ज़मानत हो चुकी है, मगर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत यह मानकर कि उसके बाहर होने से शांति व्यवस्था और आम जीवन अस्थिर हो सकता है, वो अभी जेल में है.
भीम आर्मी के 50 से ज़्यादा कार्यकर्ता जेल से रिहा हो चुके हैं. अब सिर्फ़ ‘शेखर’ (चन्द्रशेखर के क़रीबी उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं) और शब्बीरपुर गांव के प्रधान शिव कुमार के साथ एक अन्य युवक सोनू ही जेल में है.
अब यह बात गहराई से समझने की नहीं है कि भीम आर्मी की ताक़त पहले से कई गुना ज़्यादा बढ़ गई है. तीन महीने यहां अदालत में पेशी पर आए चन्द्रशेखर ने कहा था कि, सरकार उन्हें मार देना चाहती है. वो चन्द्रशेखर को तो मार देगी, मगर उसकी विचारधारा को कभी नहीं मार पाएगी.
चन्द्रशेख़र की हिमायत में देशभर में प्रदर्शन हुए, मगर सहरानपुर में हलचल नहीं हो रही थी. सहारनपुर के ज़िला अध्यक्ष कमल वालिया के जेल से आने के बाद 18 फ़रवरी को अनुमति के किंतु-परन्तु में उलझकर भीम आर्मी को अंतिम समय पर शहर से बाहर एक सभा-स्थल दिया गया, जिसे भीम आर्मी ने ऐतिहासिक बना दिया. इसी दिन भीम आर्मी ने ऐलान किया कि वो 8 मार्च को वो अपने नेता चन्द्रशेखर की रिहाई की लड़ाई का आग़ाज़ करेंगे और गिरफ्तारी देंगे.
बस इस ऐलान का असर देखिए कि प्रशासन ने इसके लिए बड़े स्तर पर तैयारी की. आस-पास के रास्तों से शहर में प्रवेश पर नाकाबंदी की गई. गांव-देहात और क़स्बों से भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं को शहर में पहुंचने के लिए रोक दिया गया. बावजूद इसके भीम आर्मी के गिरफ्तारी देने के प्रस्तावित जगह कलेक्ट्रेट में पूरी तरह से नीले रंग में रंग गया. हज़ारों की संख्या में यहां भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटी, जिनमें आधे से ज़्यादा संख्या महिलाओं की थी.
भीम आर्मी के सुप्रीमो चन्द्रशेखर रावण की बहन ने खुलेआम मंच से सरकार को ललकारा. ‘मोदी-योगी मुर्दाबाद’ के नारे लगाए गए. अपशब्द कहे गए. और प्रशासन बेबस देखता रहा.
कलेक्ट्रेट में 30 साल से वकालत कर रहे सत्यवीर सिंह ने हमें बताया कि उन्होंने कभी इतनी बड़ी तादाद में कलेक्ट्रेट में इतने लोगों को प्रदर्शन करते नहीं देखा. 10 हज़ार से ज़्यादा लोग होंगे. यहां पैर रखने की जगह नहीं बची.
सैकड़ों की संख्या में दलितों ने यहां सांकेतिक गिरफ्तारी दी. भीम आर्मी के ज़िला अध्यक्ष कमल वालिया ने कहा कि, भीम आर्मी संविधान और क़ानून में भरोसा करने वाली संगठन है. मगर ऐसा लगता है कि सरकार हमारी बात समझ नहीं रही है.
राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत कोटियाल ने कहा, इशारे जितनी जल्दी समझ लिए जाए, अच्छा है, वरना सरकार बदलने में वक़्त नहीं लगेगा.
इस दौरान भीम आर्मी के लोगों की एसपी सिटी प्रबल प्रताप से लगातार झड़प होती रही. भीम आर्मी के नेतागण अपने कार्यकर्ताओं को ज़बरदस्ती रोके जाने की बात कह रहे थे.
भीम आर्मी के सन्नी गौतम के मुताबिक़ पल-पल की जानकारी चन्द्रशेखर भाई के पास जा रही थी और उन्हीं के निर्देश पर प्रदर्शन चल रहा था.
लगातार बढ़ती भीड़ और बिगड़ती बात के बीच डीएम पी.के. मिश्रा एसएसपी बब्लू कुमार कलेक्ट्रेट आ गएं, मगर इसके बावजूद मंच से भीम आर्मी के लोग सरकार पर उबलते रहें.
20 दिन पहले किए गए प्रदर्शन से कई गुना ज्यादा भीड़ जुटी और यहीं पर 10 दिन बाद 18 मार्च को फिर जुटने का ऐलान भी कर दिया गया.
दलित मामलों पर पैनी नज़र रखने वाले स्थानीय निवासी मोहसीन राणा ने हमें बताया कि इन पिछले दोनों प्रदर्शनों में भीम आर्मी की ताक़त अनुशासित और अधिक दिखाई दे रही है. भीम आर्मी के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई कर यह समझा जा रहा था कि भीम आर्मी का दमन हो जाएगा और कार्यकर्ता डर जाएंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ है. चन्द्रशेखर की लोकप्रियता और अधिक बढ़ गई है.