रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एवं 'सफाई कर्मचारी आंदोलन' के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन पिछले दशकों से सिर पर मैला ढोने वाली प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इसके उन्मूलन की दिशा में काम कर रहे हैं। 1966 में कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड में जन्मे विल्सन एक दलित परिवार से हैं। उनका परिवार सिर पर मैला ढोने का काम करता था। विल्सन पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट हैं। विल्सन ने 20 साल की उम्र में 1986 में एक सपना देखा कि भारत में सिर पर मैला ढोने का काम खत्म कराने के लिए आंदोलन शुरू किया जाए। अभी हाल के महीनों में उन्होंने ''स्टॉप किलिंग अस'' यानि हमें मारना बंद करो, नाम से एक आंदोलन शुरू किया है, इस आंदोलन की क्या महत्ता है और किस तरह से इसे इग्नोर कर बंद कराने की कोशिशें जारी हैं संविधान दिवस के मौके पर हमारे संवाददाता ने सबरंग संवाद नामक कार्यक्रम के तहत उनसे विस्तृत बातचीत की है। पूरी बातचीत इस प्रकार है-
सबरंग- बेजवाड़ा जी ''स्टॉप किलिंग अस'' के बारे में थोड़ा बताएं
बेजवाड़ा विल्सन- स्टॉप किलिंग अस एक कैंपेन चल रहा है अभी, यह 2022 में 11 मई से दिल्ली में शुरू करना पड़ा, यह प्लांड नहीं था। हमने देखा कि इस साल मार्च अप्रैल में लगातार सेप्टिक टैंक में मौतें हो रही थीं, हम सरकार को लगातार मेमोरेंडम सौंपते हैं, पत्र लिखते हैं लेकिन कुछ भी नहीं हो रहा है। पिछले कई साल से सरकार कोई भी रेस्पॉन्ड नहीं कर रही है, तो हमने सोचा कि सरकार कैसे किसी की बात नहीं सुन रही, अब क्या कर सकते हैं तो बहुत सोच विचार करके हमने पुलिस कमिश्नर से बात की तो उन्होंने इसे बहुत कम लोगों के साथ जंतर-मंतर पर करने का सुझाव दिया लेकिन हजारों लोग इस कैंपेन से जुड़ना चाहते थे तो अब ये था कि क्या किया जाए। तब हमने दिल्ली की सड़कों पर पांच छह जगह सेलेक्ट कीं और वहां जाकर खड़े हो गए। यह कैंपेन गुस्से से आया क्योंकि आप लोगों को कैसे मार सकते हैं, अगर मैं सफाई कर्मचारी हूं तो आप किसी को भी मार सकते हैं और हम यूं ही चुप बैठे रहेंगे? हम जहां भी खड़े होते थे, पुलिस आकर हमें भगा देती थी। उन्हें सोचना चाहिए कि उनकी तनख्वाह कहां से आती है। इस सबके बावजूद हमें कई राज्यों से लोगों के फोन आने लगे कि हमारे शहरों में करो, हमारे शहरों में भी लोग मर रहे हैं, इस तरह से यह शुरू होकर विस्तारित हुआ। हमारी यही मांग थी कि सेप्टिक टैंक में मौतों को लेकर प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए। आज हमें 189 दिन हो गए हैं, आज देहरादून में हुआ कल केरला में हुआ। इसी तरह से यह जारी है।
सबरंग- सबको मालूम है कि मैनुअल स्क्वैंजिंग बैन है लेकिन आज भी यह चलता रहता है और आप कह रहे हैं कि सरकार भी नहीं सुनती है तो क्या हम कह सकते हैं कि सरकार खुद जातिवादी है?
बेजवाड़ा विल्सन- देखिए सरकार भी जातिप्रथा से बाहर नहीं है। सरकार भी जाति के अंदर घुस गई है। उसने वोट के रूप में इसका आनंद लिया है, तो कोई भी देखेगा कि सरकार भी जातिप्रथा को तोड़ने के लिए प्रयासरत नजर नहीं आती है। वो हर चीज जाति की नजर से ही देख रही है। अभी आप बता सकते हैं कि आज भी देशभर में करीब 2000 लोग सीवर के अंदर मर रहे हैं, ये हमारा आंकड़ा है, लेकिन कितने ही हजार ऐसे लोग हैं जिनका मरने के बाद कोई आंकड़ा नहीं है। हमने सरकार को सारे आंकड़े बताए लेकिन फिर भी आज तक इसे रोकने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। वे इसे रोकने के बारे में सिर्फ बयान देते हैं लेकिन कोई व्यवस्था नहीं करते हैं। बगैर व्यवस्था किए यह रुकने वाला नहीं है। क्या उन्होंने एक्जेक्टली यह बात बोली है? वे इसे सिर्फ सेनेटाइजेशन की नजर से देखते हैं जबकि यह सेनेटाइजेशन का मुद्दा ही नहीं है। यह एक इंसान की जान का मुद्दा है। सरकार सेनेटाइजेशन के नाम पर सिर्फ टॉयलेट बनाने का मुद्दा देख रही है लेकिन वह इंसान की जान की परवाह नहीं कर रही, वह इंसान को मार डाल रही है जो कि गलत है। अभी तक जितने लोगों की जान सेप्टिक टैंक की वजह से गई है उनमें 90 प्रतिशत एससी/एसटी और कुछ अल्पसंख्यक हैं। इनमें पिछड़ा वर्ग का एक दो होगा। इसीलिए किसी के लिए भी यह मुद्दा ही नहीं है। जो लोग गद्दी पर बैठे हैं उनकी जाति का इनमें से कोई नहीं है इसीलिए उन्हें फर्क नहीं पड़ता। अगर उनकी जाति से एक भी होगा तो उनका खून उबाल मारने लगेगा और "माई ब्लड इज् बर्निंग" जैसा बयान आ जाएगा। लेकिन यहां हर दिन नागरिक मर रहे हैं और आप कुछ नहीं बोल रहे हैं, आप भाषण देकर चुप हो जाते हैं, आपके भाषण में इनके लिए क्या है? सिंपल रीजन है कि इसके पीछे जाति प्रथा है।
सबरंग- वे बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का नाम लेते हैं, उनके नाम पर स्टांप निकालेंगे, मुंबई में उनकी बहुत बड़ी मूर्ति बनने वाली है, कॉन्स्टीट्यूशन में हम उनके बारे में पढ़ते हैं लेकिन जमीन पर क्या हो रहा है?
बेजवाड़ा विल्सन- ये समस्या देश की रूलिंग पार्टी ने तैयार करके रख दी है। वे देश को धर्म के नाम पर बांटेंगे लेकिन एक बड़ी मूर्ति बनाएंगे "स्टेच्यू ऑफ यूनिटी", इन्होंने देश को बांट दिया इसका किसी को पता नहीं चलेगा लेकिन एक बड़ी मूर्ति बना दी इसका सबको पता चल जाता है। पार्लियामेंट का कोई इश्यू होगा, सारे इंस्टीट्यूशंस को कोलेप्स कर देंगे, वे सबसे बड़ा पार्लियामेंट बनाने की आड़ में सारे संस्थानों को बर्बाद कर देंगे। हमारे देश में कई लोगों ने धर्म पर काफी काम किया, स्प्रिचुअलिटी पर काफी काम किया, यह किसी के विश्वास को लेकर है लेकिन ये लोग इसपर नहीं जाते हैं वे वोटबैंक के लिए लोगों को बांटते हैं। बाबा साहब अंबेडकर भी इनके लिए यही हैं। बाबा साहब अंबेडकर की एक मूर्ति लगाओ, 14 अप्रैल को आके कहो बाबा साहब हमारे गुरू हैं।लेकिन बाबा साहब गुरू शिष्य की परंपरा को नहीं मानते थे। ये बाबा साहब के समानता के विचार का भी विध्वंस करेंगे, उनका स्टेच्यू बनाएंगे। ये सारे सिंबलिज्म को बढ़ावा देंगे। ये बड़ा बनाने की बात करते हैं तो किसका बड़ा बना रहे हैं, किसके पैसे से बड़ा बना रहे हैं? अपने घर से ला रहे हैं पैसा? अरे, गरीब दलित यहां गटर में मर रहे हैं इसके मिशन के लिए आपके पास कोई योजना नहीं है, स्टेच्यू बनाकर आप किसको बेवकूफ बना रहे हो? ये उनकी राजनीति है। वे लोगों को किस तरीके से, किस सफाई से बेवकूफ बना सकते हैं, ये उनका तरीका है।
सबरंग- स्वच्छ भारत मिशन का मैनुअल स्क्वैंजिंग हटाने में क्या योगदान है?
बेजवाड़ा विल्सन- ये स्वच्छ भारत मिशन है, हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में इसे स्व्छ भारत मिशन डिक्लियर किया। इससे पहले करीब 30 साल तक हमने जातिप्रथा और पितृसत्ता आधारित मैला प्रथा के बारे में बताया। हमने जब इन्हें बताया कि लोग हाथ से टट्टी उठाते हैं तो ये लोग जातिप्रथा में इतने घुसे हुए थे कि इस बात को सुनने को भी तैयार नहीं थे। इसलिए इमीडिएटली ये स्वच्छ भारत ले आए। स्वच्छ भारत में भी लोग हाथ से मैला उठा रहे हैं, लेकिन उनकी बात नहीं हो रही। लोगों का दो लाख करोड़ रुपया खर्च कर दिया, बर्बाद कर दिया, टॉयलेट बनाया। टॉयलेट बनाना गलत काम नहीं है लेकिन ये लोकल बॉडी बनाती हैं। यहां इसे प्रधानमंत्री से जोड़ दिया गया। यहां लोगों की गरिमा की, इज्जत की बात नहीं की जा रही है। लोगों की जान बचाने के लिए कुछ करो, लेकिन ये नहीं करेंगे। वे गांवों में करोड़ों टॉयलेट बना रहे हैं इसके बारे में प्रचार कर रहे हैं लेकिन ये टॉयलेट जब भर जाएंगे तो इसे कौन साफ करेगा? ड्रेनेज सिस्टम नहीं है, जब इसके टैंक भर जाएंगे तो मल कहां जाएगा? इनकी सफाई के लिए इनके पास कोई मिशन नहीं है, कोई सोच नहीं है। सीवेज और सेप्टिक टैंक का जो डेफ्थ है ना देश में, ये बढ़ रहा है, ये अभी और बढ़ेगा। ये करोड़ों रूपये तो फूंक रहे हैं लेकिन लोगों की जान किस तरह बचेगी इसके लिए उनके पास कोई मिशन नहीं है। स्वच्छ भारत के प्रचार पर ये जितना पैसा खर्च करते हैं अगर उसका 10 प्रतिशत भी मैला प्रथा पर लगा दें तो इसका उन्मूलन हो जाएगा।
सबरंग- आप कह रहे हैं कि मैनुअल स्क्वेंजिंग (हाथ से मैला उठाना) अभी भी देश में चलता है?
बेजवाड़ा विल्सन- अभी भी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, और देश के अन्य कई हिस्सों में यह प्रथा जारी है। ये तीन चार साल पहले खुद डिक्लियर करते हैं की ये प्रथा समाप्त हो चुकी है .कुछ दिन बाद बोलेंगे कि देश में कहीं गरीबी नहीं है। उनकी योजना वही है (जातिप्रथा बरकरार रखना)।
सबरंग- आपने 40 साल तक संघर्ष किया लेकिन आज एक ऐसी सरकार गद्दी पर विराजमान है जो आपके उठाए मुद्दों पर कोई विचार नहीं कर रही? क्या डिस्अपॉइंटमेंट होता है?
बेजवाड़ा विल्सन- डिसअपॉइंटमेंट होना कोई जरूरी नहीं है। नेता आते हैं और चले जाते हैं। इस देश का परंपरा बहुत बड़ा है। इस देश का जो नागरिक है ना, वो ब्रिटिश को भी भगाने की शक्ति रखता है, उन्होंने ब्रिटिश को भगा भी दिया, कोई विदेश से तो नहीं आया ना, इस देश का नागरिक ही उनको भगाया। अभी जो रुलिंग कर रहे हैं, उनका भी वही गति है, उनका भी इस देश का नागरिक ही भगाएगा। तब नागरिक का असली पावर पता चलेगा। बगैर पीपल्स पावर ये अभी देश को बर्बाद करेंगे, अमीर लोग बनाने की ये योजना बनाएंगे रूलिंग का देश के संविधान से कोई मतलब नहीं है,संविधान उनके लिए सिर्फ एक किताब है। इस देश के लोग ही इनको आके बताएंगे कि आप क्या कर रहे हैं? आप गलत कर रहे हैं। वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब मैला प्रथा पर बात होगी, मार्जिनलाइज्ड लोगों पर बात होगी।जो आज मैला प्रथा पर बात करने से भी बचते हैं वो भी वापस आ जाएंगे और इसके बारे में बात करेंगे।
सबरंग- जाति प्रथा पर डॉ अंबेडकर के जो विचार थे और आपका जो स्ट्रगल है वह एक तरह से जाति प्रथा ही खत्म करने का स्ट्रगल होगा?
बेजवाड़ा विल्सन- बाबा साहब अंबेडकर का इनहिलेशन ऑफ कास्ट एक मोटिव हैं, लेकिन कोई इंसान आज के दौर में भी हाथ से टट्टी उठाने का काम कर रहा है तो जाति उन्मूलन की बात बहुत बड़ी हो जाएगी, ये शर्म की निशानी है, स्लेवरी की निशानी है। हम मैला प्रथा की बात कर रहे हैं, हम गुलामगिरी की बात कर रहे हैं, यह जाति उन्मूलन से बहुत छोटी बात है। अगर यह खत्म नहीं हुई तो इस देश की संस्कृति और नागरिकता का बड़ा अपमान है। हमने इतने हजार साल एक नागरिक को इस स्टेटस पर रखा, उसे इस स्थिति से बाहर नहीं आने दिया, यह एक मैकेनिज्म है। किसी इंसान को एक मैकेनिज्म के तरीके से बहुत छोटा देखना हमारे लिए अच्छा नहीं है। हम इस देश के नागरिक हैं और इंसान हैं इसलिए हमें छोटा देखना अच्छा नहीं है। हमें इसे अभी इसके बारे में सीखना होगा, सोचना होगा और विचार करना होगा। अगर अभी भी इंसान में भेद को बरकरार रखा तो यह बताना गलत हो जाएगा कि हम भी इंसान हैं, नागरिक हैं और देश आजाद है।
सबरंग- क्या यह बदल रहा है?
बेजवाड़ा विल्सन- हां, बहुत बदला है। बहुत सारी महिलाएं इस प्रथा से बाहर आई हैं। सरकार ही सारे काम नहीं करती है। सरकार की एक जिम्मेदारी है। सरकार नहीं कर रही है तो सोशल वर्क करो, यह समाधान नहीं है। यह राजनीति की समस्या है। इसके बारे में उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत कमजोर है। हम सीवेज और सेप्टिक टैंक में जान जाने को मौत नहीं कहते हैं। हम इसे पॉलिटिकल मर्डर कहते हैं। वे राजनीति के लिए लोगों को मार रहे हैं क्योंकि वे समय पर डिसीजन नहीं लेते हैं, लोगों के हित में काम नहीं करते हैं इसलिए लोग मर रहे हैं। इसलिए देश में होने वाली इस तरह की हर मौत के लिए इस देश के प्रधानमंत्री, हर राज्य के मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं।
सबरंग- आप इतने लंबे समय से इस दिशा में काम कर रहे हैं, तो आपने कुछ बदलाव देखा? आपको किस बात से एनर्जी मिलती है?
बेजवाड़ा विल्सन- बहुत सारी महिलाओं ने और लोगों ने इसे छोड़ दिया, यहीं से हमें प्रेरणा मिलती है। इसके बदले उन्हें न कोई पुनर्वास मिला और न ही कोई सरकारी सहायता। उन्होंने अपने सम्मान, गरिमा के लिए इस कार्य को छोड़ने का फैसला किया क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे स्कूल जाएं तो कोई बोले कि ये भंगी का बेटा या बेटी है। सरकार को उन्हें मदद देनी चाहिए थी लेकिन कुछ नहीं किया इसके बावजूद उन्होंने इस प्रथा को छोड़ दिया। हजारों महिलाओं ने इसे छोड़ दिया, यही सब हमें प्रेरणा देते हैं। दूसरी बात है कि ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम दुनिया में आए हैं तो इसे बेहतर बनाएं। हम इस दुनिया और अपने जीवन को कितना बेहतर बना सकते हैं इसकी कोई लिमिट नहीं है। सभी को सभी के लिए न्याय, खुशी के बारे में सोचना चाहिए। हम ''वसुधैव कुटुंबकम'' (सारी दुनिया हमारा परिवार है) की बात करते हैं लेकिन हम अपने गांव के ही पड़ोसी को अछूत मानकर उससे बात नहीं करते हैं। तो ये एक डायकोटमी (विरोधाभाष) है, इसे हमें सारा ध्वस्त करना पड़ेगा।
सबरंग- क्या डायकोटमी (विरोधाभाष) एग्जिस्ट करता है ?
बेजवाड़ा विल्सन- हां, ये डायकोटमी ही है जिसकी वजह से हम आज यहां हैं। समाज में बदलाव, क्रान्ति ये सब क्यों होती है? क्योंकि हमारे अंदर विरोधाभाष है। हमें इसे बाहर निकालना पड़ेगा। हमारे अंदर ताकत नहीं है, अभी हम कमजोर हैं, जिस दिन हम यह स्वीकार करने लगेंगे कि हां हमने गलत किया, अब हम इसमें सुधार करेंगे, आगे गलत नहीं होने देंगे। ये छोड़ के आप कहेंगे, ‘कुछ नहीं होगा, और बेहतर बनाएंगे’ तो आप गलत करेंगे, आप गलत दिशा में जाएंगे… रुकिये, देखिए, इस देश के लोगों को देखिए, इतने सुंदर है, कुछ भी नहीं जिनके पास, फिर भी स्ट्रगल कर रहे हैंहैं, देश को संपन्न बनाने के लिए… लेकिन आप सब कुछ छीन के, पैक करके, अमीर को दे देंगे, ये प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का काम नहीं है। अभी हमारे नेता इलेक्शन के समय पर गरीब का वोट लेते हैं लेकिन पांच साल कमाकर अमीर को दे देते हैं, यह नहीं होना चाहिए।
सबरंग- आपके लिए भारतीय संविधान का क्या महत्व है ?
बेजवाड़ा विल्सन- संविधान, भारतीय नागरिकों के लिए संविधान एक जीवन की तरह है। अगर संविधान नहीं है तो नागरिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा। जंगली का भी अपना नियम होता है, इसीलिए संविधान है तो जीवन है।
वन्स अपॉन एक टाइम इज गुड कभी नहीं होता है। आने वाला समय गुड होता है, हम हमेशा आने वाले कल को बेहतर बनाना चाहते हैं। इस रास्ते का ध्रुवतारा है हमारा संविधान। ये एक आइना है, एक मार्गदर्शक है। संविधान किसी दिव्य किताब की तरह हमें नहीं दी गई है। आजादी के लिए लड़ने वालों ने, आजादी का मतलब क्या होता है, इसका जो सपना देखा, वो सारे सपने उन्होंने जब लिखा तो संविधान बना। इस नजरिये से देखें तो इक्वेलिटी, लिबर्टी, फर्टेर्निटी सब अच्छा दिखेगा। नहीं तो देश को बांटना, देश से वोट लेना, देश से पैसा कमाना और अपनी फोटो बेचना, इसके लिए बजट का एक हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। अभी यही सब चल रहा है। धन्यवाद
बेजवाड़ा विल्सन का इंटरव्यू यहां देख सकते हैं
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सबरंग- सबको मालूम है कि मैनुअल स्क्वैंजिंग बैन है लेकिन आज भी यह चलता रहता है और आप कह रहे हैं कि सरकार भी नहीं सुनती है तो क्या हम कह सकते हैं कि सरकार खुद जातिवादी है?
बेजवाड़ा विल्सन- देखिए सरकार भी जातिप्रथा से बाहर नहीं है। सरकार भी जाति के अंदर घुस गई है। उसने वोट के रूप में इसका आनंद लिया है, तो कोई भी देखेगा कि सरकार भी जातिप्रथा को तोड़ने के लिए प्रयासरत नजर नहीं आती है। वो हर चीज जाति की नजर से ही देख रही है। अभी आप बता सकते हैं कि आज भी देशभर में करीब 2000 लोग सीवर के अंदर मर रहे हैं, ये हमारा आंकड़ा है, लेकिन कितने ही हजार ऐसे लोग हैं जिनका मरने के बाद कोई आंकड़ा नहीं है। हमने सरकार को सारे आंकड़े बताए लेकिन फिर भी आज तक इसे रोकने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। वे इसे रोकने के बारे में सिर्फ बयान देते हैं लेकिन कोई व्यवस्था नहीं करते हैं। बगैर व्यवस्था किए यह रुकने वाला नहीं है। क्या उन्होंने एक्जेक्टली यह बात बोली है? वे इसे सिर्फ सेनेटाइजेशन की नजर से देखते हैं जबकि यह सेनेटाइजेशन का मुद्दा ही नहीं है। यह एक इंसान की जान का मुद्दा है। सरकार सेनेटाइजेशन के नाम पर सिर्फ टॉयलेट बनाने का मुद्दा देख रही है लेकिन वह इंसान की जान की परवाह नहीं कर रही, वह इंसान को मार डाल रही है जो कि गलत है। अभी तक जितने लोगों की जान सेप्टिक टैंक की वजह से गई है उनमें 90 प्रतिशत एससी/एसटी और कुछ अल्पसंख्यक हैं। इनमें पिछड़ा वर्ग का एक दो होगा। इसीलिए किसी के लिए भी यह मुद्दा ही नहीं है। जो लोग गद्दी पर बैठे हैं उनकी जाति का इनमें से कोई नहीं है इसीलिए उन्हें फर्क नहीं पड़ता। अगर उनकी जाति से एक भी होगा तो उनका खून उबाल मारने लगेगा और "माई ब्लड इज् बर्निंग" जैसा बयान आ जाएगा। लेकिन यहां हर दिन नागरिक मर रहे हैं और आप कुछ नहीं बोल रहे हैं, आप भाषण देकर चुप हो जाते हैं, आपके भाषण में इनके लिए क्या है? सिंपल रीजन है कि इसके पीछे जाति प्रथा है।
सबरंग- वे बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का नाम लेते हैं, उनके नाम पर स्टांप निकालेंगे, मुंबई में उनकी बहुत बड़ी मूर्ति बनने वाली है, कॉन्स्टीट्यूशन में हम उनके बारे में पढ़ते हैं लेकिन जमीन पर क्या हो रहा है?
बेजवाड़ा विल्सन- ये समस्या देश की रूलिंग पार्टी ने तैयार करके रख दी है। वे देश को धर्म के नाम पर बांटेंगे लेकिन एक बड़ी मूर्ति बनाएंगे "स्टेच्यू ऑफ यूनिटी", इन्होंने देश को बांट दिया इसका किसी को पता नहीं चलेगा लेकिन एक बड़ी मूर्ति बना दी इसका सबको पता चल जाता है। पार्लियामेंट का कोई इश्यू होगा, सारे इंस्टीट्यूशंस को कोलेप्स कर देंगे, वे सबसे बड़ा पार्लियामेंट बनाने की आड़ में सारे संस्थानों को बर्बाद कर देंगे। हमारे देश में कई लोगों ने धर्म पर काफी काम किया, स्प्रिचुअलिटी पर काफी काम किया, यह किसी के विश्वास को लेकर है लेकिन ये लोग इसपर नहीं जाते हैं वे वोटबैंक के लिए लोगों को बांटते हैं। बाबा साहब अंबेडकर भी इनके लिए यही हैं। बाबा साहब अंबेडकर की एक मूर्ति लगाओ, 14 अप्रैल को आके कहो बाबा साहब हमारे गुरू हैं।लेकिन बाबा साहब गुरू शिष्य की परंपरा को नहीं मानते थे। ये बाबा साहब के समानता के विचार का भी विध्वंस करेंगे, उनका स्टेच्यू बनाएंगे। ये सारे सिंबलिज्म को बढ़ावा देंगे। ये बड़ा बनाने की बात करते हैं तो किसका बड़ा बना रहे हैं, किसके पैसे से बड़ा बना रहे हैं? अपने घर से ला रहे हैं पैसा? अरे, गरीब दलित यहां गटर में मर रहे हैं इसके मिशन के लिए आपके पास कोई योजना नहीं है, स्टेच्यू बनाकर आप किसको बेवकूफ बना रहे हो? ये उनकी राजनीति है। वे लोगों को किस तरीके से, किस सफाई से बेवकूफ बना सकते हैं, ये उनका तरीका है।
सबरंग- स्वच्छ भारत मिशन का मैनुअल स्क्वैंजिंग हटाने में क्या योगदान है?
बेजवाड़ा विल्सन- ये स्वच्छ भारत मिशन है, हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में इसे स्व्छ भारत मिशन डिक्लियर किया। इससे पहले करीब 30 साल तक हमने जातिप्रथा और पितृसत्ता आधारित मैला प्रथा के बारे में बताया। हमने जब इन्हें बताया कि लोग हाथ से टट्टी उठाते हैं तो ये लोग जातिप्रथा में इतने घुसे हुए थे कि इस बात को सुनने को भी तैयार नहीं थे। इसलिए इमीडिएटली ये स्वच्छ भारत ले आए। स्वच्छ भारत में भी लोग हाथ से मैला उठा रहे हैं, लेकिन उनकी बात नहीं हो रही। लोगों का दो लाख करोड़ रुपया खर्च कर दिया, बर्बाद कर दिया, टॉयलेट बनाया। टॉयलेट बनाना गलत काम नहीं है लेकिन ये लोकल बॉडी बनाती हैं। यहां इसे प्रधानमंत्री से जोड़ दिया गया। यहां लोगों की गरिमा की, इज्जत की बात नहीं की जा रही है। लोगों की जान बचाने के लिए कुछ करो, लेकिन ये नहीं करेंगे। वे गांवों में करोड़ों टॉयलेट बना रहे हैं इसके बारे में प्रचार कर रहे हैं लेकिन ये टॉयलेट जब भर जाएंगे तो इसे कौन साफ करेगा? ड्रेनेज सिस्टम नहीं है, जब इसके टैंक भर जाएंगे तो मल कहां जाएगा? इनकी सफाई के लिए इनके पास कोई मिशन नहीं है, कोई सोच नहीं है। सीवेज और सेप्टिक टैंक का जो डेफ्थ है ना देश में, ये बढ़ रहा है, ये अभी और बढ़ेगा। ये करोड़ों रूपये तो फूंक रहे हैं लेकिन लोगों की जान किस तरह बचेगी इसके लिए उनके पास कोई मिशन नहीं है। स्वच्छ भारत के प्रचार पर ये जितना पैसा खर्च करते हैं अगर उसका 10 प्रतिशत भी मैला प्रथा पर लगा दें तो इसका उन्मूलन हो जाएगा।
सबरंग- आप कह रहे हैं कि मैनुअल स्क्वेंजिंग (हाथ से मैला उठाना) अभी भी देश में चलता है?
बेजवाड़ा विल्सन- अभी भी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, और देश के अन्य कई हिस्सों में यह प्रथा जारी है। ये तीन चार साल पहले खुद डिक्लियर करते हैं की ये प्रथा समाप्त हो चुकी है .कुछ दिन बाद बोलेंगे कि देश में कहीं गरीबी नहीं है। उनकी योजना वही है (जातिप्रथा बरकरार रखना)।
सबरंग- आपने 40 साल तक संघर्ष किया लेकिन आज एक ऐसी सरकार गद्दी पर विराजमान है जो आपके उठाए मुद्दों पर कोई विचार नहीं कर रही? क्या डिस्अपॉइंटमेंट होता है?
बेजवाड़ा विल्सन- डिसअपॉइंटमेंट होना कोई जरूरी नहीं है। नेता आते हैं और चले जाते हैं। इस देश का परंपरा बहुत बड़ा है। इस देश का जो नागरिक है ना, वो ब्रिटिश को भी भगाने की शक्ति रखता है, उन्होंने ब्रिटिश को भगा भी दिया, कोई विदेश से तो नहीं आया ना, इस देश का नागरिक ही उनको भगाया। अभी जो रुलिंग कर रहे हैं, उनका भी वही गति है, उनका भी इस देश का नागरिक ही भगाएगा। तब नागरिक का असली पावर पता चलेगा। बगैर पीपल्स पावर ये अभी देश को बर्बाद करेंगे, अमीर लोग बनाने की ये योजना बनाएंगे रूलिंग का देश के संविधान से कोई मतलब नहीं है,संविधान उनके लिए सिर्फ एक किताब है। इस देश के लोग ही इनको आके बताएंगे कि आप क्या कर रहे हैं? आप गलत कर रहे हैं। वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब मैला प्रथा पर बात होगी, मार्जिनलाइज्ड लोगों पर बात होगी।जो आज मैला प्रथा पर बात करने से भी बचते हैं वो भी वापस आ जाएंगे और इसके बारे में बात करेंगे।
सबरंग- जाति प्रथा पर डॉ अंबेडकर के जो विचार थे और आपका जो स्ट्रगल है वह एक तरह से जाति प्रथा ही खत्म करने का स्ट्रगल होगा?
बेजवाड़ा विल्सन- बाबा साहब अंबेडकर का इनहिलेशन ऑफ कास्ट एक मोटिव हैं, लेकिन कोई इंसान आज के दौर में भी हाथ से टट्टी उठाने का काम कर रहा है तो जाति उन्मूलन की बात बहुत बड़ी हो जाएगी, ये शर्म की निशानी है, स्लेवरी की निशानी है। हम मैला प्रथा की बात कर रहे हैं, हम गुलामगिरी की बात कर रहे हैं, यह जाति उन्मूलन से बहुत छोटी बात है। अगर यह खत्म नहीं हुई तो इस देश की संस्कृति और नागरिकता का बड़ा अपमान है। हमने इतने हजार साल एक नागरिक को इस स्टेटस पर रखा, उसे इस स्थिति से बाहर नहीं आने दिया, यह एक मैकेनिज्म है। किसी इंसान को एक मैकेनिज्म के तरीके से बहुत छोटा देखना हमारे लिए अच्छा नहीं है। हम इस देश के नागरिक हैं और इंसान हैं इसलिए हमें छोटा देखना अच्छा नहीं है। हमें इसे अभी इसके बारे में सीखना होगा, सोचना होगा और विचार करना होगा। अगर अभी भी इंसान में भेद को बरकरार रखा तो यह बताना गलत हो जाएगा कि हम भी इंसान हैं, नागरिक हैं और देश आजाद है।
सबरंग- क्या यह बदल रहा है?
बेजवाड़ा विल्सन- हां, बहुत बदला है। बहुत सारी महिलाएं इस प्रथा से बाहर आई हैं। सरकार ही सारे काम नहीं करती है। सरकार की एक जिम्मेदारी है। सरकार नहीं कर रही है तो सोशल वर्क करो, यह समाधान नहीं है। यह राजनीति की समस्या है। इसके बारे में उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत कमजोर है। हम सीवेज और सेप्टिक टैंक में जान जाने को मौत नहीं कहते हैं। हम इसे पॉलिटिकल मर्डर कहते हैं। वे राजनीति के लिए लोगों को मार रहे हैं क्योंकि वे समय पर डिसीजन नहीं लेते हैं, लोगों के हित में काम नहीं करते हैं इसलिए लोग मर रहे हैं। इसलिए देश में होने वाली इस तरह की हर मौत के लिए इस देश के प्रधानमंत्री, हर राज्य के मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं।
सबरंग- आप इतने लंबे समय से इस दिशा में काम कर रहे हैं, तो आपने कुछ बदलाव देखा? आपको किस बात से एनर्जी मिलती है?
बेजवाड़ा विल्सन- बहुत सारी महिलाओं ने और लोगों ने इसे छोड़ दिया, यहीं से हमें प्रेरणा मिलती है। इसके बदले उन्हें न कोई पुनर्वास मिला और न ही कोई सरकारी सहायता। उन्होंने अपने सम्मान, गरिमा के लिए इस कार्य को छोड़ने का फैसला किया क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे स्कूल जाएं तो कोई बोले कि ये भंगी का बेटा या बेटी है। सरकार को उन्हें मदद देनी चाहिए थी लेकिन कुछ नहीं किया इसके बावजूद उन्होंने इस प्रथा को छोड़ दिया। हजारों महिलाओं ने इसे छोड़ दिया, यही सब हमें प्रेरणा देते हैं। दूसरी बात है कि ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम दुनिया में आए हैं तो इसे बेहतर बनाएं। हम इस दुनिया और अपने जीवन को कितना बेहतर बना सकते हैं इसकी कोई लिमिट नहीं है। सभी को सभी के लिए न्याय, खुशी के बारे में सोचना चाहिए। हम ''वसुधैव कुटुंबकम'' (सारी दुनिया हमारा परिवार है) की बात करते हैं लेकिन हम अपने गांव के ही पड़ोसी को अछूत मानकर उससे बात नहीं करते हैं। तो ये एक डायकोटमी (विरोधाभाष) है, इसे हमें सारा ध्वस्त करना पड़ेगा।
सबरंग- क्या डायकोटमी (विरोधाभाष) एग्जिस्ट करता है ?
बेजवाड़ा विल्सन- हां, ये डायकोटमी ही है जिसकी वजह से हम आज यहां हैं। समाज में बदलाव, क्रान्ति ये सब क्यों होती है? क्योंकि हमारे अंदर विरोधाभाष है। हमें इसे बाहर निकालना पड़ेगा। हमारे अंदर ताकत नहीं है, अभी हम कमजोर हैं, जिस दिन हम यह स्वीकार करने लगेंगे कि हां हमने गलत किया, अब हम इसमें सुधार करेंगे, आगे गलत नहीं होने देंगे। ये छोड़ के आप कहेंगे, ‘कुछ नहीं होगा, और बेहतर बनाएंगे’ तो आप गलत करेंगे, आप गलत दिशा में जाएंगे… रुकिये, देखिए, इस देश के लोगों को देखिए, इतने सुंदर है, कुछ भी नहीं जिनके पास, फिर भी स्ट्रगल कर रहे हैंहैं, देश को संपन्न बनाने के लिए… लेकिन आप सब कुछ छीन के, पैक करके, अमीर को दे देंगे, ये प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का काम नहीं है। अभी हमारे नेता इलेक्शन के समय पर गरीब का वोट लेते हैं लेकिन पांच साल कमाकर अमीर को दे देते हैं, यह नहीं होना चाहिए।
सबरंग- आपके लिए भारतीय संविधान का क्या महत्व है ?
बेजवाड़ा विल्सन- संविधान, भारतीय नागरिकों के लिए संविधान एक जीवन की तरह है। अगर संविधान नहीं है तो नागरिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा। जंगली का भी अपना नियम होता है, इसीलिए संविधान है तो जीवन है।
वन्स अपॉन एक टाइम इज गुड कभी नहीं होता है। आने वाला समय गुड होता है, हम हमेशा आने वाले कल को बेहतर बनाना चाहते हैं। इस रास्ते का ध्रुवतारा है हमारा संविधान। ये एक आइना है, एक मार्गदर्शक है। संविधान किसी दिव्य किताब की तरह हमें नहीं दी गई है। आजादी के लिए लड़ने वालों ने, आजादी का मतलब क्या होता है, इसका जो सपना देखा, वो सारे सपने उन्होंने जब लिखा तो संविधान बना। इस नजरिये से देखें तो इक्वेलिटी, लिबर्टी, फर्टेर्निटी सब अच्छा दिखेगा। नहीं तो देश को बांटना, देश से वोट लेना, देश से पैसा कमाना और अपनी फोटो बेचना, इसके लिए बजट का एक हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। अभी यही सब चल रहा है। धन्यवाद
बेजवाड़ा विल्सन का इंटरव्यू यहां देख सकते हैं
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