नई दिल्ली। सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी मस्जिस विध्वंस मामले के सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया। विशेष न्यायधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि ये विध्वंस सुनियोजित नहीं था। बता दें कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी समेत 32 लोग अभियुक्त थे।

इस फैसले का भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस ने जहां स्वागत किया है वहीं इस फैसले पर कई नेताओं ने नाखुशी जाहिर की है। एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर लिखा- वही कातिल, वही मुंसिफ अदालत उसकी। वो शाहिद बहुत से फैसलों में अब तरफदारी भी होती है।
ओवैसी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए इसे इतिहास का काला दिन बताया और कहा कि अपराधियों क्लीनचिट दी जा रही है। उन्होंने कहा कि ये फैसला आखिरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरी होता है। कोर्ट के फैसले से असहमत होना, अदालत की अवमानना नहीं है। आप ही की चार्जशीट में लिका है, उमा भारती ने कहा 'एक धक्का और दो', कल्याण सिंह ने कहा 'निर्माण पर रोक है, तोड़ने पर नहीं'। यह इतिहास का काला दिन है, अपराधियों को क्लीन चिट दी जा रही है।
एआईएमआईएम प्रमुख ने आगे कहा कि सीबीआई अपील करेगी या नहीं, यही देखना है, उसे अपनी स्वतंत्रता बरकरार रखना है तो अपील करनी चाहिए, अगर वे नहीं करेंगे तो हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कहेंगे कि इसके खिलाफ़ अपील करेंगे। उस दिन जादू हुआ था क्या?आखिर किसने ये किया?बताइए मेरी मस्जिद को किसने शहीद किया?
उन्होंने आगे कहा कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दोषियों को दोषमुक्त करके संदेश दिया गया है कि काशी मथुरा में भी यही करते चलो, रुल ऑफ लॉ की चिंता नहीं है, वे करते जाएँगे, क्लीन चिट मिलता जाएगा।
वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा कि उसने साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ कर दिया और सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया। उन्होंने कहा, 'वहां आईपीएस पुलिस अधिकारी, दूसरे सरकारी अधिकारी और वरिष्ठ पत्रकार मौजूद थे, उनकी गवाहियों का क्या हुआ? अदालत को बताना चाहिए था कि क्या वो झूठ कह रहे थे।'
जिलानी ने आगे कहा कि चश्मदीदों के बयान कार्यवाही का हिस्सा होते हैं, और अगर उन्होंने शपथ लेकर झूठ कहा है तो उनके ख़िलाफड आधिकारिक कार्रवाई होनी चाहिए।"
सीबीआई की विशेष अदालत के इस फैसले पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि 'इस फैसले से यही माना जाएगा कि न्यापालिका में न्याय नहीं होता है बस एक भ्रम रहता है कि न्याय किया जाएगा। यही होना संभावित था क्योंकि विध्वंस के केस में फ़ैसला आने से पहले ही ज़मीन के मालिकाना हक़ पर फ़ैसला सुना दिया गया, वो भी उस पक्ष के हक़ में जो मस्जिद ढहाए जाने का आरोपी था।'

इस फैसले का भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस ने जहां स्वागत किया है वहीं इस फैसले पर कई नेताओं ने नाखुशी जाहिर की है। एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर लिखा- वही कातिल, वही मुंसिफ अदालत उसकी। वो शाहिद बहुत से फैसलों में अब तरफदारी भी होती है।
ओवैसी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए इसे इतिहास का काला दिन बताया और कहा कि अपराधियों क्लीनचिट दी जा रही है। उन्होंने कहा कि ये फैसला आखिरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरी होता है। कोर्ट के फैसले से असहमत होना, अदालत की अवमानना नहीं है। आप ही की चार्जशीट में लिका है, उमा भारती ने कहा 'एक धक्का और दो', कल्याण सिंह ने कहा 'निर्माण पर रोक है, तोड़ने पर नहीं'। यह इतिहास का काला दिन है, अपराधियों को क्लीन चिट दी जा रही है।
एआईएमआईएम प्रमुख ने आगे कहा कि सीबीआई अपील करेगी या नहीं, यही देखना है, उसे अपनी स्वतंत्रता बरकरार रखना है तो अपील करनी चाहिए, अगर वे नहीं करेंगे तो हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कहेंगे कि इसके खिलाफ़ अपील करेंगे। उस दिन जादू हुआ था क्या?आखिर किसने ये किया?बताइए मेरी मस्जिद को किसने शहीद किया?
उन्होंने आगे कहा कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दोषियों को दोषमुक्त करके संदेश दिया गया है कि काशी मथुरा में भी यही करते चलो, रुल ऑफ लॉ की चिंता नहीं है, वे करते जाएँगे, क्लीन चिट मिलता जाएगा।
वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा कि उसने साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ कर दिया और सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया। उन्होंने कहा, 'वहां आईपीएस पुलिस अधिकारी, दूसरे सरकारी अधिकारी और वरिष्ठ पत्रकार मौजूद थे, उनकी गवाहियों का क्या हुआ? अदालत को बताना चाहिए था कि क्या वो झूठ कह रहे थे।'
जिलानी ने आगे कहा कि चश्मदीदों के बयान कार्यवाही का हिस्सा होते हैं, और अगर उन्होंने शपथ लेकर झूठ कहा है तो उनके ख़िलाफड आधिकारिक कार्रवाई होनी चाहिए।"
सीबीआई की विशेष अदालत के इस फैसले पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि 'इस फैसले से यही माना जाएगा कि न्यापालिका में न्याय नहीं होता है बस एक भ्रम रहता है कि न्याय किया जाएगा। यही होना संभावित था क्योंकि विध्वंस के केस में फ़ैसला आने से पहले ही ज़मीन के मालिकाना हक़ पर फ़ैसला सुना दिया गया, वो भी उस पक्ष के हक़ में जो मस्जिद ढहाए जाने का आरोपी था।'