शबनम को फांसी देने से समाज का कोई भला नहीं होने वाला: अयोध्या के महंत परमहंस दास ने की माफी की अपील

Written by Navnish Kumar | Published on: February 22, 2021
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव में अपने परिवार के सात लोगों के कत्ल की दोषी शबनम को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। 2008 में शबनम ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 10 माह के भतीजे सहित परिवार के 7 लोगों को कुल्हाड़ी से काटकर मौत के घाट उतार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी शबनम की सजा को बरकरार रखा है और राष्ट्रपति भी उसकी दया याचिका ठुकरा चुके हैं। दोषी शबनम को फांसी लगने के लिए डेथ वारंट कभी भी जारी हो सकता है लेकिन इसे टालने की कोशिशें भी अब तेज होने लगी हैं। विकल्प तलाशे जा रहे हैं। 



शबनम का 12 साल का बेटा ताज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से गुहार लगा चुका है। रविवार को शबनम का बेटा, उसकी परवरिश कर रहे उस्मान के साथ अपनी मां से मिलने रामपुर की जेल पहुंचा था। अपने बेटे को देखकर शबनम ने उसे गले लगा लिया और फूट-फूटकर रोई। उसने अपने बेटे को मन लगाकर पढ़ाई करने की नसीहत दी। 

वहीं, शबनम के बेटे की परवरिश कर रहे उस्मान ने कहा कि उन्होंने पहली बार शबनम से पूछा कि तुम्हें जिस गुनाह की सजा मिलने वाली है क्या वह गुनाह तुमने किया था। उन्होंने बताया कि शबनम ने कहा कि मैंने ऐसा गुनाह नहीं किया है, यहां मुझे फंसाया गया है। उसने सीबीआई जांच की मांग की है। 

उस्मान ने कहा कि कोर्ट में भी वह पहले सीबीआई जांच की मांग करती रही है, लेकिन उसकी बात शायद सुनी ही नहीं गई। उस्मान ने कहा कि क्या सच है क्या नहीं, यह मैं तो नहीं बता सकता। लेकिन शबनम को मीडिया से बात करने की इजाजत देने के साथ मामले की जांच कराई जानी चाहिए।

हालांकि शबनम के पास फांसी टालने को एक विकल्प उसका प्रेमी सलीम माना जा रहा है। दरअसल, सलीम की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। उसे आधार बनाकर शबनम हाईकोर्ट की शरण ले सकती है। शबनम के वकील शमशेर सैफी के मुताबिक, शबनम और सलीम की फाइलें सेशन कोर्ट से ही साथ चल रही हैं। अदालत ने दोनों को साथ फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी दोनों की फाइलें साथ चलीं। राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका साथ खारिज की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अभी सिर्फ शबनम की पुनर्विचार याचिका खारिज की है, सलीम की याचिका विचाराधीन है।

इस सबके बीच संत समाज से भी शबनम के पक्ष में आवाज उठी है। अयोध्या के संत परमहंस दास ने शबनम की फांसी टालने की अपील की है। उन्होंने कहा कि उसका अपराध बड़ा जरूर है लेकिन फांसी नहीं दी जानी चाहिए। अयोध्‍या में तपस्‍वी छावनी के महंत परमहंस दास ने राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपील की है कि वह शबनम की फांसी की सजा माफ कर दें। अगर शबनम को फांसी दी जाती है तो आजादी के बाद किसी महिला को फांसी देने का पहला मामला होगा।

महंत परमहंस दास ने मीडिया को बताया, हिंदू शास्‍त्रों में महिला का स्‍थान पुरुष से बहुत ऊपर है। एक महिला को मृत्‍युदंड देने से समाज का भला नहीं होगा, बल्कि इससे दुर्भाग्‍य और आपदाओं को न्‍यौता मिलेगा। यह सही है कि उसका अपराध माफ किए जाने योग्‍य नहीं है लेकिन उसे महिला होने के नाते माफ किया जाना चाहिए। उसने जितने दिनों की सजा काटी है, वह उसके लिए काफी है। शबनम को जीवनदान दिया जाए।

शबनम फिलहाल रामपुर जेल में बंद है। रामपुर जेल के जेलर आरके वर्मा ने बताया है कि डेथ वारंट जारी होने के बाद शबनम को मथुरा जेल ले जाया जाएगा। उत्तर प्रदेश में महिला को फांसी देने की व्यवस्था मथुरा जेल में है। उन्होंने कहा कि जेल में शबनम सामान्य व्यवहार कर रही है और उसको महिला बैरक में रखा गया है।

खास है कि अमरोहा जिले के हसनपुर क्षेत्र के गांव बावनखेड़ी के शिक्षक शौकत अली की इकलौती बेटी शबनम के सलीम के साथ प्रेम संबंध थे। सूफी परिवार की शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया था। उसके परिवार के पास काफी जमीन थी। जबकि सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था. दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे। ऐसे में शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 की रात अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता और 10 माह के भतीजे समेत परिवार के सात लोगों को पहले बेहोश करने की दवा खिलायी। बाद में सभी को कुल्हाड़ी से काटकर मार डाला था।

मामले में अमरोहा कोर्ट में दो साल तीन महीने तक सुनवाई चली थी और 15 जुलाई 2010 को जिला जज एसएए हुसैनी ने शबनम और सलीम को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए तब तक उनका दम न निकल जाए, का फैसला सुनाया था।

तीन और महिलाएं फांसी के इंतजार में------
देश में इस समय तीन और महिलाएं फांसी के इंतजार में हैं। इसमें एक विधायक की बेटी भी है। इन तीनों  महिलाओं के अपराध इतने संगीन और भयावह थे कि इनकी दया याचिकाओं को राष्ट्रपति खारिज कर चुके हैं। इन तीन महिलाओं में हरियाणा की सोनिया और महाराष्ट्र की रेणुका और सीमा हैं। 

हरियाणा की सोनिया ने पिता हिसार के विधायक रेलूराम के साथ 8 लोगों की निर्मम हत्‍या की थी। प्रॉपर्टी के लालच में 23 अगस्त 2001 को सोनिया ने अपने पति संजीव के साथ मिलकर रेलूराम व उसके परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी थी। 2004 को सेशन कोर्ट ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई। जिसे 2005 को हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था लेकिन बाद में 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने वापस सेशन कोर्ट की सजा बरकरार रखने का फैसला किया। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सोनिया व संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई। जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया। जेल से कई बार भागने की कोशिश भी कर चुकी है। 

इसके अतिरिक्त पुणे की रेणुका और सीमा दो बहनें हैं। जो 24 सालों से पुणे के यरवदा जेल में बंद हैं। ये वही जेल है, जहां कसाब को फांसी दी गई थी। दोनों ने 42 बच्चों की हत्या की। इन हत्याओं में इन दोनों की मां अंजना गावित भी दोषी थी जिसकी मौत जेल में ही एक बीमारी से हो चुकी है। ये पहले बच्चे चोरी करती थी और उनसे चोरी करातीं फिर उसे मार देतीं। बच्‍चों को मारने के उन्होंने ऐसे तरीके अपनाए कि सुनकर ही दिल दहल जाए। 1990 से 1996 तक छह साल में उन्होंने 42 बच्चों की हत्या कर दी। 13 किडनैपिंग व 6 हत्याओं के मामलों में इन तीनों का इंवॉल्वमेंट साबित हो गया। 2001 में एक सेशन कोर्ट ने दोनों बहनों को मौत की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने अपील में 2004 को हाईकोर्ट ने भी ‘मौत की सजा' को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि ऐसी औरतों के लिए ‘मौत की सजा' से कम कुछ भी नहीं है।

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