नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों को लेकर मंगलवार को हुई सुनवाई में इन कानूनों को लागू किए जाने पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया है। हालांकि, इस कमेटी के सदस्यों पर सवाल उठ रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से प्रारंभिक हलफनामा दाखिल कर कहा गया था कि उसने किसान संगठनों के साथ बातचीत में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र ने मंगलवार को कोर्ट में कहा कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी संगठनों की घुसपैठ है।
सुनवाई के दौरान आरोप उठा कि विरोध-प्रदर्शनों में मदद करने वाला एक प्रतिबंधित संगठन है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की है। जिसपर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने उनसे इसकी पुष्टि करने को कहा। एजी ने कहा कि 'मेरी जानकारी के मुताबिक एक प्रतिबंधित संगठन है जो मदद कर रहा है। करनाल में जो घटना हुई यह एक उदाहरण है।'
सीजेआई ने एजी से इसपर एक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। उन्होंने कहा कि 'अगर आंदोलन में प्रतिबंधित संगठन हैं और ऐसा कहा जा रहा है, तो इसकी पुष्टि करनी होगी। आप इसपर कल एक हलफनामा दाखिल करें।' इस एजी ने कहा कि वो कल इंटेलीजेंस ब्यूरो के इनपुट के साथ एक हलफनामा दाखिल करेंगे।
बता दें कि खालिस्तानी अभियान को 80 के दशक में सिख अलगाववादियों की ओर से शुरू किया गया था। 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की अनुमति दी थी और सेना ने सिखों के इस सबसे पवित्र पूजा स्थल में घुसकर अलगाववादी नेताओं पर हमला किया था, तबसे ही इसकी शुरुआत हुई थी और इसके कुछ महीनों बाद ही की उनके सिख बॉडीगार्ड्स ने हत्या कर दी थी। पंजाब पुलिस ने इस अभियान पर कड़ी कार्रवाई की थी, लेकिन अभी भी भारत के बाहर इस विचारधारा के कई संगठन एक्टिव माने जाते हैं।
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद बीजेपी के कई मंत्रियों और नेताओं की ओर से ये आरोप लगाए जा चुके हैं कि इस आंदोलन में खालिस्तानी ताकतों का दखल है और प्रदर्शन में खालिस्तान समर्थक नारे लगाए गए हैं।
केंद्र सरकार की ओर से प्रारंभिक हलफनामा दाखिल कर कहा गया था कि उसने किसान संगठनों के साथ बातचीत में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र ने मंगलवार को कोर्ट में कहा कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी संगठनों की घुसपैठ है।
सुनवाई के दौरान आरोप उठा कि विरोध-प्रदर्शनों में मदद करने वाला एक प्रतिबंधित संगठन है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की है। जिसपर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने उनसे इसकी पुष्टि करने को कहा। एजी ने कहा कि 'मेरी जानकारी के मुताबिक एक प्रतिबंधित संगठन है जो मदद कर रहा है। करनाल में जो घटना हुई यह एक उदाहरण है।'
सीजेआई ने एजी से इसपर एक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। उन्होंने कहा कि 'अगर आंदोलन में प्रतिबंधित संगठन हैं और ऐसा कहा जा रहा है, तो इसकी पुष्टि करनी होगी। आप इसपर कल एक हलफनामा दाखिल करें।' इस एजी ने कहा कि वो कल इंटेलीजेंस ब्यूरो के इनपुट के साथ एक हलफनामा दाखिल करेंगे।
बता दें कि खालिस्तानी अभियान को 80 के दशक में सिख अलगाववादियों की ओर से शुरू किया गया था। 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की अनुमति दी थी और सेना ने सिखों के इस सबसे पवित्र पूजा स्थल में घुसकर अलगाववादी नेताओं पर हमला किया था, तबसे ही इसकी शुरुआत हुई थी और इसके कुछ महीनों बाद ही की उनके सिख बॉडीगार्ड्स ने हत्या कर दी थी। पंजाब पुलिस ने इस अभियान पर कड़ी कार्रवाई की थी, लेकिन अभी भी भारत के बाहर इस विचारधारा के कई संगठन एक्टिव माने जाते हैं।
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद बीजेपी के कई मंत्रियों और नेताओं की ओर से ये आरोप लगाए जा चुके हैं कि इस आंदोलन में खालिस्तानी ताकतों का दखल है और प्रदर्शन में खालिस्तान समर्थक नारे लगाए गए हैं।