हैदराबाद में एक मंदिर के पुजारी ने दलित युवक को अपने कंधे पर बिठाया और फिर श्री रंगनाथ मंदिर के भीतर लेकर गए। पुजारी ने मंदिर के भीतर पहुंचकर इस युवक आदित्य पारासरी को गले भी लगाया। हैदराबाद के चिल्कुर बालाजी मंदिर के पुजारी सीएस रंगराजन ने बताया कि उनके ऐसा करने से हालिया दिनों में दलितों के साथ हुए भेदभाव और उनके खिलाफ हुईं हिंसात्मक घटनाओं के विरुद्ध देशभर में मजबूत संदेश जाएगा।
सोमवार को मंदिर में जयकारों की गूंज, फूलों से सजावट और वैदिक मंत्रों के उच्चारणों के बीच पुजारी रंगराजन 25 वर्षीय दलित युवक आदित्य को अपने कंधे पर उठाकर मंदिर पहुंचे और युवक को गर्भगृह ले जाकर दर्शन करवाए। इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शेष ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। अरविंद ने क्या लिखा, नीचे पढ़ें-
जिस वक्त एक ब्राह्मण किसी दलित को सिर पर बिठाए दिखे, वह वक्त दलितों के लिए सबसे खतरनाक होता है!
ब्राह्मण(वाद) इस दुनिया की सबसे लचीली 'वस्तु' है! यह अपनी सामाजिक सत्ता को कायम रखने के लिए किसी भी चुनौती से किसी भी शर्त पर समझौता कर सकता है!
यह अपनी सामाजिक सत्ता का इस्तेमाल करके जिस तबके को अछूत और घृणा का पात्र बना देता है, फिर उसकी ओर से चुनौती पेश होने पर उसे अपने सिर पर बिठाए दिख सकता है!
ब्राह्मण के कंधे पर बिठा कर मंदिर में ले जाना ब्राह्मणीय धूर्तता का एक बेहतरीन उदाहरण है! यह दलित एसर्शन का जबर्दस्त दौर है, जिसमें ब्राह्मणवाद की सत्ता 'एक कदम पीछे, चार कदम आगे' की रणनीति पर चल रही है!
दलितों की मुक्ति मंदिर-व्यवस्था का धर्म और ब्राह्मण-तंत्र को खारिज करने में है! ब्राह्मणों के कंधे पर बैठ कर मंदिर में जाना मंदिर-व्यवस्था में समा जाना है... गुलामी के एक नए दौर में प्रवेश करना है!
(ये लेखक के निजी विचार हैं। अरविंद शेष वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
सोमवार को मंदिर में जयकारों की गूंज, फूलों से सजावट और वैदिक मंत्रों के उच्चारणों के बीच पुजारी रंगराजन 25 वर्षीय दलित युवक आदित्य को अपने कंधे पर उठाकर मंदिर पहुंचे और युवक को गर्भगृह ले जाकर दर्शन करवाए। इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शेष ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। अरविंद ने क्या लिखा, नीचे पढ़ें-
जिस वक्त एक ब्राह्मण किसी दलित को सिर पर बिठाए दिखे, वह वक्त दलितों के लिए सबसे खतरनाक होता है!
ब्राह्मण(वाद) इस दुनिया की सबसे लचीली 'वस्तु' है! यह अपनी सामाजिक सत्ता को कायम रखने के लिए किसी भी चुनौती से किसी भी शर्त पर समझौता कर सकता है!
यह अपनी सामाजिक सत्ता का इस्तेमाल करके जिस तबके को अछूत और घृणा का पात्र बना देता है, फिर उसकी ओर से चुनौती पेश होने पर उसे अपने सिर पर बिठाए दिख सकता है!
ब्राह्मण के कंधे पर बिठा कर मंदिर में ले जाना ब्राह्मणीय धूर्तता का एक बेहतरीन उदाहरण है! यह दलित एसर्शन का जबर्दस्त दौर है, जिसमें ब्राह्मणवाद की सत्ता 'एक कदम पीछे, चार कदम आगे' की रणनीति पर चल रही है!
दलितों की मुक्ति मंदिर-व्यवस्था का धर्म और ब्राह्मण-तंत्र को खारिज करने में है! ब्राह्मणों के कंधे पर बैठ कर मंदिर में जाना मंदिर-व्यवस्था में समा जाना है... गुलामी के एक नए दौर में प्रवेश करना है!
(ये लेखक के निजी विचार हैं। अरविंद शेष वरिष्ठ पत्रकार हैं।)