नूह हिंसा की तस्वीर- एक अमनपरस्त शहर में हिंसा का साया कैसे फैला?

Written by sabrang india | Published on: October 23, 2023
नूह फैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट पार्ट–2 में शहर नूह में हिंसा के प्रसार की तस्वीर समझने की कोशिश की गई है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड सेक्यूलिरज़्म ने ये गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया है.    



क़रीब 52 वर्षीय महिला क़ुदसिया अपने टूटे हुए घर को देखकर दुख जताते हुए कहा-  ‘हम यहां 30 सालों से रह रहे थे. प्रशासन ने हमारे घर कुछ मिनटों में ढहा दिए. उन्होंनें हमें विध्वंस से सिर्फ़ चंद घंटों पहले नोटिस सौंपा था.’

क़ुदसिया का घर नल्हार गांव के उन गिने-चुने 12-14 घरों में से एक था जिसे 31 जुलाई को सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद हरियाणा प्रशासन ने गिरा दिया था. ये घर नल्हार में अरावली पहाड़ श्रृंखला की तली में थे जहां ये ग्रामीण समुदाय अरसे से निवास कर रहे हैं. इनकी आय का मुख्य स्त्रोत दुग्ध उत्पादन है. नूह में प्रशासन ने क़रीब 750 संपत्तियों को ध्वस्त किया है जिसमें दुकान, मकान, स्टॉल और छोटे व्यवसाय शामिल हैं. ये ध्वस्तीकरण मेवात इलाक़े में मुसलमान आबादी को लगातार हाशिए पर धकेल रहा है. द सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड सेक्युलरिज़्म (CSSS) ने फैक्ट-फाइंडिंग मिशन के तहत 31 जुलाई को नूह में विहिप द्वारा आयोजित ब्रज मंडल जल अभिषेक यात्रा को लेकर जांच की है. नूह में शुरू हुई हिंसा जल्द ही हरियाणा के दूसरे हिस्सों जैसे सोहना, पलवल और गुरूग्राम तक पहुंच गई थी.

फ़ैक्ट फ़ाईंडिंग टीम की तरफ़ से विकास नारायण राय, नेशनल पुलिस एकेडमी- हैदराबाद के निर्देशक और हरियाणा की DGP डां. संध्या महात्रे, सामाजिक कार्यकर्ता और CSSS की सद्सय नेहा दाभांडे और  CSSS के कार्यकारिणी निर्देशक ने नूह में प्रभावित इलाकों, सोहना और गुरूग्राम का 24 अगस्त से 28 अगस्त, 2023 के बीच दौरा किया.

क़ुदसिया के गांव की तरह फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग कमेटी ने अरावली पहाड़ियों के आस-पास कुछ अन्य हरे-भरे गांवों का दौरा भी किया. ये गांव आम तौर पर पशुओं और हरियाली से आबाद मिले. टीम ने पाया कि ध्वस्तीकरण के बाद जगह- जगह पर पत्थर और कचरे के ढेर लगे हैं. मकानों की जगह पर पॉलिथिन के तिरपाल थे जबकि दीवारों के टूट जाने से गृहस्थी का सारा सामान मलबे में दब गया था. पुलिस गिरफ़्तारी के डर से पुरूषों ने गांव छोड़ दिया था जबकि महिलाएं खुले आसमान के नीचे गिरे हुए मकानों के मलबे के क़रीब खाना पका रही थीं. आस-पास शौच-स्नान आदि के लिए भी कोई इंतज़ाम नहीं था.

डिमोलिशन साइट्स नल्हार के शिवमंदिर से क़रीब 4 किलोमीटर दूर थीं. जिस ज़मीन पर उनके घर थे वो अब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के क़ब्ज़े में है. ये निवासी इन कंक्रीट घरों में क़रीब 30 साल से भी ज़्यादा समय से रह रहे थे. इतने सालों में उन्हें कभी भी ज़मीन ख़ाली करने का नोटिस नहीं मिला. 4 अगस्त, 2023 को प्रशासन ने उनके घर को बुल्डोज़र से ढहा दिया और कहा गया कि उन्होंनें जंगल की ज़मीन का अतिक्रमण किया है. हालांकि बुल्डोज़र कारवाई से पहले इन परिवारों को कोई नोटिस नहीं सौंपा गया न ही उन्हें प्रतिक्रिया देने या जगह बदलने के लिए माफ़िक वक्त मुहैय्या कराया गया. क़रीब 60 वर्षीय खातून के मुताबिक़ ये उन्मूलसन उनके समुदाय को अधिकतम नुक़सान पहुंचाने के लिए हुए थे. क़ुदसिया ने कहा –

‘सबसे पहले उन्होंने वाशिंग मशीन, बेड, सोफ़ा, टीवी, अनाज के डब्बे और फ़्रिज जैसे सामानों को तबाह किया फिर उन्होंने मेरा घर ढहा दिया.’  

निवासियों ने कहा कि प्रशासन के मुताबिक़ ऐसा अवैध अतिक्रमण पर क़ाबू लगाने के लिए किया जा रहा है लेकिन सभी का विश्वास है कि ऐसा मुसलमान तबक़े को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है.  क़ुदसिया ने कहा-

‘इस तोड़-फोड़ कार्रवाई के कुछ दिन बाद मेरी पोती का विवाह होने वाला था. हमने विवाह के लिए राशन जमा कर रखा था. अधिकारियों ने मुझपर आरोप लगाया कि मैंने दंगाईयों को शरण देने के लिए अनाज जमा किया है. हालांकि मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंनें कुछ नहीं सुना.’

नूह और क़रीबी गांव के क़रीब 80 प्रतिशत मुसलमानों का मानना है कि प्रशासन ने दंगे की आड़ लेकर मुसलमानों की संपत्ति को नष्ट करने की कोशिश की और सामूहिक दण्ड के ज़रिए एक अलग तरह की सांप्रदायिक हिंसा को तूल दी.

इस साल 31 जुलाई को विहिप की ब्रज मंडल जल अभिषेक यात्रा 11 बजे के क़रीब नाल्हार मंदिर पहुंच गई थी. यह यात्रा गुरूग्राम में सिविल लाइन्स से शुरू होकर नूह होते हुए फ़िरोज़पुर झिरका पहुंची. जल अभिषेक के बाद, जलूस के सभी प्रतिभागी नूह शहर लौट गए. उन्होंने तलवार और छड़ी ले रखी थी और वो ‘जय श्री राम’ और ‘मुल्ले काटे जाएंगें – राम-राम चिल्लाएंगें’ जैसे नारे लगा रहे थे. मेवली रोड पर 2 बजे के बाद इन जलूस पर मुसलमान युवा आबादी ने हमला किया क्योंकि उन्हें संदेह था कि जलूस के बीच किसी एक कार में मोनू-मनेसर मौजूद है. युवा मुसलमानों ने कार का पीछा किया और उसे रूकवाया. बाद में उन्हें पता लगा कि इस गाड़ी में बिट्टू बजरंगी बैठा है लोकिन वह मौक़ा रहते फ़रार हो गया.  

इसके बाद क़रीब 2.30 के आस-पास होटल रिज़्क पर बजरंग दल ने पत्थरबाज़ी की. इस जलूस में शामिल लोगों ने गुंडागर्दी के रवैय्ये का परिचय दिया और सड़क पर वाहनों में आग लगा दी. हिंसा के इस दौर में क़रीब 6 लोगों की मृत्यु हो गई जिसमें 2 होमगार्ड और 4 सिविलियन शामिल थे.

नूह हिंसा के बाद जलूस ने सोहना में भी मुसलमानों की संपत्ति पर हमले किए. सोहना में क़रीब 3 मस्जिदें जिसमें शाही जामा मस्जिद भी शामिल है, तोड़ दी गई. हिंसा की ये आग गुरूग्राम भी पहुंची जहां भीड़ ने 31 जुलाई को सेक्टर 57 में अंजुमन जामा मस्जिद पर हमला किया और इमाम को मार डाला. विहिप ने 1 अगस्त को सेक्टर 70 में मुसलमान माइग्रेंट वर्कर्स को धमकी दी, नतीजे में क़रीब 128 परिवार दोबारा पश्चिम बंगाल और बिहार की ओर कूच कर गए. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए फिर हरियाणा प्रशासन ने अकेले नूह में 750 संपत्तियों का उन्मूलन कर दिया. टीम ने प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया और लोगों की मदद की.

उन्मूलन की प्रवृत्ति -

नल्हार में शहीद हसन मेवाती मेडिकल कॉलेज है. इस कॉलेज के ठीक सामने की संपत्तियों को तोड़ दिया गया है.  45 पक्की दुकानें और 7 अस्थाई संपत्ति इसके घेरे में हैं. इसमें कई संदेह नहीं है कि ये जगह नल्हार मंदिर से 4 से 5 किमी. के दायरे में है.

क़रीब 35 साल के मोहम्मद आरिफ़ और उनके भाई यहां 22 दुकानों के मालिक थे जिन्हें प्रशासन द्वारा 5 अगस्त को सुबह 8.30 के बाद तोड़ दिया गया.  इनमें से कुछ दुकानें हिंदुओं को भी किराये पर दी गई थीं जिसमें लैब्स और एक्स-रे क्लीनिक चल रहे थे. यूपी के अर्जुन शुक्ला यहां बुक डिपो चलाते थे तो राजू चोपड़ा राजू टी स्टॉल के ज़रिए जीवन बसर कर रहे थे. रोडियोलोजिस्ट मोहित द्वारा यहां 2 सालों से ग्लोबल एक्स-रे चलाया जा रहा था तो फ़रीदाबाद के डॉक्टर देवकंठ यहां DL अल्ट्रासाउंड के मालिक थे. इसके अलावा देव राघव यहां रेस्टोरेंट चला रहे थे. इसके अलावा अन्य सभी दुकानें फूड, ग्रॉसरी, लैब आदि मुसलमान चला रहे थे.

मोहम्मद आरिफ़ के पिता ने यहां ज़मीन ख़रीदी थी जिसपर 12 साल पहले 2012 में 22 दुकानें बनवाई गई थीं. ये परिवार हर महीने 80 से 85 हज़ार रूपए किराया हासिल कर रहा था. 9 बाई 20 की एक दुकान को बनाने में क़रीब 3 लाख ख़र्च लगा था. इन सभी दुकानों को एक दिन में तोड़ दिया गया और बाद में उन्हें एक बैकडेटेड नोटिस सौंप दिया गया. ग्लोबल एक्स-रे चला रहे मोहित ने कहा कि ध्वस्तीकरण के पहले कोई भी नोटिस नहीं सौंपा गया था.  इस दौरान मोहित की एक्स-रे मशीन और एसी का संयुक्त रूप से क़रीब 10 लाख का नुक़सान हुआ.

इसी तरह मुहम्मद शरीफ़ की ज़मीन भी मोहम्मद आरिफ़ की ज़मीन के बग़ल में थी. उन्होंने 2011 में ज़मीन ख़रीदी और 9 दुकानें बनावाईं. इन दुकानों में रेस्टोरेंट, लैब, बिरयानी की दुकान, हेयर सैलून, पिज़्ज़ा कैफ़े और कोचिंग सेंटर था. ये दुकानें अलग अलग लोगों को किराए पर दी गई थीं जिनमें से कुछ हिंदू भी शामिल थे. शरीफ़ इन दुकानों से क़रीब 56 हज़ार रूपए प्रति माह कमाते थे. 2011 में उन्हें 3 लाख प्रति दुकान की लागत से ये दुकानें बनावाई थीं.  .

इसी तर्ज़ पर नवाब शेख़ ने भी शहीद हसन मेवाती मेडिकल कॉलेज के सामने 15 दुकानें बनवाई थीं. उनके पास दुकानों पर अपनी दावेदारी साबित करने के लिए भी माफ़िक सबूत था. ये उनके पूर्वजों की संपत्ति थी जिसे प्रशासन ने बिना किसी नोटिस के उजाड़ दिया. उन्होंने कहा- ‘हमारी दुकानों को निशाना इसलिए बनाया गया क्योंकि हम मुस्लिम हैं.’ 

उजाड़े गए भवनों में से अधिकतर के मालिकों के पास क़ानूनी दस्तावेज़ भी थे और वो टैक्स भी भर रहे थे. सहारा होटल और कजारिया टाइल्स शोरूम का मामला इस मुद्दे की तस्वीर को और साफ़ करता है जिसके मालिकों ने क़ानूनी तौर पर अपने मालिकाना हक़ की दावेदारी और पैरवी भी थी. इन मामलों के बारे में ये तो कहा जा सकता है कि ये ईमारतें जंगल की ज़मीन पर बनी हों या फिर क़ानूनी तौर पर हासिल सांपत्ति पर इसके लिए उचित क़ानूनी प्रक्रिया का पालन ज़रूरी था. ये डिमोलिशन हाईकोर्ट के आर्डर पर सीधे तौर पर किए गए जो कि स्थापित क़ानूनी प्रक्रिया की अवहेलना है और जातीय संहार का संकेत देते हैं.

हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मुद्दे की संजीदगी को समझते हुए मामले का स्वत: संज्ञान लेकर स्टे- आर्डर पास किया है जिससे की आगे इस तरह के उन्मूलन को रोका जा सके. राज्य प्रशासन की कार्यवाही ने हाईकोर्ट के आर्डर का उल्लंघन किया है जिससे कि न्याय की अवधारणा को सवालों के दायरे में लाया जा सके.

निर्जन होते गांव –

नूह हरियाणा में नल्हार गांव में मुसलमान तबका लगातार भय और अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है. घरों को तोड़ने के क्रम और गिरफ़्तारी की धमकियों के बीच मुसलमान गांवों से तेज़ी से पलायन कर रहे हैं. नाल्हार गांव में पुलिस की दख़लअंदाज़ी के चलते निवासी लगातार एकतरफ़ा कारवाई का सामना कर रहे हैं. इनका मानना है कि सांप्रदायिक दंगों के बाद मुसलमान तबक़े को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि गिरफ़्तार लोग स्थानीय निवासियों की निगाह में निर्दोष हैं. मुसलमान पुरूष लगातार हिरासत के भय से जूझ रहे हैं. पुलिस के साथ माफ़िक संवाद की कमी के चलते आज वो अपना घर छोड़ देने को मजबूर हैं.

अनेक लोगों के लिए गांवों को घेरती पहाड़ियां पनाह की जगह हैं जहां वो सांप और ख़तरनाक जानवरों के भय के बीच में बसर कर रहे हैं. गिरफ़्तारियों का भय जंगल के जीवन के लिए ज़्यादा ख़तरनाक है. इस तरह बच्चों की देखभाल पूरी तरह से नल्हार गांव की औरतों के कंधों पर है. भय के साये में उनका दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. स्पष्ट है कि डिमोलिशन और गिरफ़्तारी की दोहरी मार ने नल्हार गांव में मुसलमान तबक़े की कमर तोड़ दी है.

पहले से वंचित समुदाय को अधिक कमज़ोर करने का प्रयास

सरकार के बुल्डोज़र न्याय द्वारा समुदाय विशेष पर निशाना साधने की कोशिश का नतीजा चिंतनीय है. हिंदू और मुसलमान दोनों ही तबक़ों का जीवन बुरी तरह प्रभावित है. नूह और अन्य प्रभावित इलाक़ों में लोगों का जीवन बुरी तरह बिखर गया है. मेवात इलाका पहले ही चिंतनीय साक्षरता दर के कारण बदनाम और विकास के पैमानों पर पिछड़ा है. अब हरियाणा प्रशासन के उन्मूलन मंसूबे ने ये तस्वीर और भी बिगाड़ दी है. नल्हार की क़ुदसिया के अनुसार –

‘मैं नहीं जानती कि फिर कब हम इस लायक़ बनेंगे कि इन मकानों को दोबारा बना सकें. ये दरअसल गिरफ़्तारी बंद होने पर निर्भर करता है जब हम दोबारा सामान्य जीवन शुरू कर सकेंगें.’

मोहम्मद आरिफ़ ने इसपर कहा कि – ‘हमने पाई पाई जोड़ककर ये दुकानें बनाई हैं. अब ये सब मेरी आंखों के सामने एक झटके में ख़त्म कर दिया गया है. मुझे नहीं पता कि हम कब इन दुकानों को दोबारा बना पाएंगे.’

मुख्य प्राप्य-

1. नफ़रत का समीकरण

टीम ने पाया कि नूह के दंगे सीधे तौर पर नफ़रती राजनीति का नतीजा है. गौ-रक्षा दल के नाम पर गुंडागर्दी, नूह का विकास के नज़रिए से पिछड़ा इलाक़ा होना और नूह का गुमराह नेतृत्व ही दरअसल इस इलाके का ताना-बाना बुनता है और सांप्रदायिक दंगों को उठान देता है. नफ़रती बयान और अतिवादी तत्वों को दी छूट का ही नतीजा है कि आज मुसलमान समुदाय के हालात कमज़ोर हैं.

2. क्या सांप्रदायिक दंगे योजनाबद्ध थे?

जल-अभिषेक यात्रा में प्रतिभागी तलवार और शस्त्रों से सुसज्जित थे. यात्रा में शामिल लोग इसके लिए तैयार थे. नफ़रती बयानों के मद्देनज़र मुसलमान युवकों का एक दल मोनू मनेसर और बिट्टू बजरंगी जैसे दक्षिणपंथी नेताओं को इस यात्रा में शामिल नहीं होने देना चाहता था इसलिए उन्होंने शक के आधार पर एक कार का घेराव कर लिया. उनका मक़सद यात्रा रोकना नहीं बरन मोनू मनेसर को इसमें हिस्सा लेने से रोकना था. यात्रा के प्रतिभागी भड़काऊ स्लोग्नस के साथ नारेबाज़ी कर रहे थे. नल्हार शिव मंदिर के निवासियों ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि 31 जुलाई की दोपहर मंदिर और उनके घरों के आस-पास के इलाके में गोली चली थी. मुसलमान निवासियों ने बताया कि वो मंदिर मैनेजमेंट टीम से लागातार संपर्क में रहते हैं जिसके एवज दोनों धर्मों के अनुयायी आपसी सद्भाव से मंदिर में रहते हैं. इन हिंदू निवासियों का फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम से परिचय भी आरिफ़ ने कराया था जो कि शहीद हसन मेवाती मेडिकल कॉलेज के क़रीब उजाड़ी गई दुकानों के मालिक थे. नल्हार गांव के मुसलमानों ने कहा कि वो दलित हिंदुओं के साथ छूआछूत का व्यवहार नहीं करते हैं उन्हें यात्रा से कोई समस्या नहीं थी. शिव मंदिर कमेटी ने मंदिर के क़रीब मौजूद मज़ार का भी पुनर्निर्माण कराया है.   

इसके अलावा ये भी ध्यान देने की बात है कि ब्रज मंडल जल अभिषेक यात्रा कोई परंपरागत यात्रा नहीं है वरन इसे विहिप की अगुवाई में 2021 में शुरू किया गया है. हालांकि आस्था के चलते हज़ारों हिंदू इसमें हिस्सा लेते हैं लेकिन इसका मुख्य मक़सद हिंदू अनुयायियों को एक जगह जुटा कर हिंदुओं की सर्वश्रेष्ठता स्थापित करना है. नफ़रत से सींची इस यात्रा में इस साल भी प्रतिभागियों ने खुले आम शस्त्र और एंटी-मुस्लिम स्लोग्नस ले रखे थे. इसका साफ़ अर्थ है कि यात्रा के आयोजकों और प्रतिभागियों का मक़सद हिंसा भड़काना था.

3. राज्य की भूमिका-

राज्य द्वारा गौ-रक्षा के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाने पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. मॉब लिंचिंग, अपहरण और हत्या के मामलों में मानेसर और बजरंगी सहित दक्षिणपंथी अराजक तत्वों की भूमिका जनता बखूबी समझती है लेकिन इन्हें क़ाबू में लाने का कोई प्रयास नहीं किया गया. जब उन्होंने यात्रा के सामने खुलेआम नफ़रती बयान दिए तो मुसलमानों की पीस कमेटी की तरफ़ से हिंसा की आशंका जताई गई थी.

29 जुलाई को मोनू मानेसर ने एक भड़काऊ बयान के साथ वीडियो जारी किया था जिसके बाद पीस कमेटी के सदस्यों ने इस मामले को पुलिस के उच्च अधिकारियों के सामने पेश किया और जवाब में पुलिस ने उन्हें आश्वासन दिया कि ये लोग इस यात्रा का हिस्सा नहीं होंगे. 28 अगस्त को पुलिस ने कहा कि वो सांप्रदायिक तौर पर भड़के हुए माहौल में भी दंगे पर क़ाबू पा सकते हैं लेकिन 31 जुलाई को ऐसा नहीं हुआ. नूह के निवासियों ने बताया कि दंगे के समय वहां कोई भी पुलिस विभाग से मौजूद नहीं था. यात्रा में पड़ोसी ज़िलों के लोगों के शामिल होने के बावजूद पुलिस ने कोई सुरक्षा बल तैनात नहीं किया. इस दंगे में 61 FIR दर्ज हुईं और 285 लोगों के गिरफ़्तार किया लेकिन गिरफ़्तार लोगों में अधिकतर मुसलमान हैं जिन्हें 1 अगस्त से 3 अगस्त के बीच में गिरफ़्तार किया गया था. यहां तक कि काम से घर आते वक्त या दूध और किराना लेने जाते वक्त बिना किसी माकूल वजह, सूचना या व्याख्या के पुलिस ने अनेक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. नतीजे में इस समय अनेक परिवारों में सिर्फ़ बूढ़े या औरतें हैं जबकि परिवार के पुरूष पुलिस क़ैद का शिकार हैं. परिवार के पुरूषों की अनुपस्थिति से उनके लिए गुज़ारा करना भी मुश्किल बनता जा रहा है और वो गहरी निराशा के दौर में मंहगी क़ानूनी प्रक्रिया का इंतज़ाम करके इंसाफ़ का रास्ता देख रहे हैं.

राज्य प्रशासन ने भी लगातार प्रचार किया कि यात्रा पर कांग्रेस द्वारा समर्थन प्राप्त मुसलमान युवकों ने हमला किया था जिसके एवज अब प्रशासन उनकी संपत्ति पर हमला कर सकता है. अराजक तत्वों के प्रति राज्य सरकार की चुप्पी ने उन्हें हौसला दिया है, हालांकि काफ़ी बाद में मोनू मानेसर को गिरफ़्तार कर लिया गया. मुख्यमंत्री खट्टर ने इसे पूर्वनियोजित बताकर मुसलमानों पर दंगों का आरोप मढ़ने की कोशिश की तो जननायक जनता पार्टी से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने आयोजकों यानि विहिप को घेरे में रखा है.

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा कि – ‘ये एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. एक यात्रा का आयोजन हो रहा था जिसमें कुछ लोगों ने यात्रियों और पुलिस पर हमले की साज़िश रची. अनेक जगहों पर हिंसक घटनाएं हुई हैं. इसके पीछे कोई बड़ी साज़िश हो सकती है.’

जबकि दुष्यंत चौटाला ने कहा कि – ‘यात्रा के आयोजकों ने ज़िला प्रशासन को यात्रा की पूरी जानकारी नहीं दी थी. इस कारण ही ये घटना हुई है. इस घटना के लिए ज़िम्मेदार तत्वों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी.’

4. हानि  
 
इन दंगों में 6 लोगों की मौत हो गई जिनमें से 2 होम गार्ड थे और दो जलूस के प्रतिभागी थे. बजरंग दल का सदस्य प्रदीप शर्मा सोहना में वाहन टकराने से घायल हो गया था. गार्ड्स की पहचान बतौर नीरज और गुरूसेवक की जा गई है जबकि एक अन्य का नाम शक्ति सिंह सैनी बताया जा रहा है जो कि भादस गांव से ताल्लुक़ रखता है. इन दंगों मे अनेक वाहनों को रेलवे स्टेशन और नाल्हार शिव मंदिर के क़रीब जला डाला गया. नूह में बंसल परिवार के हीरो मोटरसाईकिल शोरूम से 100 मोटरसाइकिलों को लूट लिया गया.

इसके अलावा सोहना की नट कॉलोनी में मुसलमानों की छोटी दुकानों और स्टॉल्स को खाली करवाकर लूटा लिया गया. हाकिम मास्टर के रेस्टोरेंट को भी भीड़ ने बर्बाद कर दिया. वहां LPG सिलेंडर फटने से पहले केवल किसी तरह लोग अपनी जान भर बचा पाए. सोहना के वार्ड नंबर 18 में बड़ी शाही मस्जिद पर भी 1 अगस्त को दोपहर में हमला बोला गया जबकि 31 जुलाई से ही मस्जिद पुलिस निगरानी में थी. इमाम मोहम्मद कलीम के हिंदू और सिख पड़ोसी ने इमाम को मस्जिद पर हमले के बारे में आगाह किया था जिसके बाद उन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी. हमले के बाद असुरक्षा के दौर को देखते हुए इमाम को पड़ोसियों की मदद से रिश्तेदार के घर सुरक्षित पहुंचा दिया गया. इमाम द्वारा FIR दर्ज होने के बाद अब तक 4 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. इमाम को फिलहाल प्रशासन के इंसाफ़ की उम्मीद है.

कुछ समय में ही सोहना से हिंसा फैलकर गुरूग्राम पहुंच गई जहां भीड़ ने 31 जुलाई की रात अंजुमन मस्जिद पर हमला किया और मस्जिद के इमाम को भीड़ द्वारा मारा डाला गया. 1 अगस्त को सुबह 11.30 के करीब भीड़ ने सेक्टर 70 बस्ती में प्रवासियों को धमकी देकर पलायन को कहा. भीड़ ने 16 साल के के एक युवा बच्चे और 70 साल के बुज़ुर्ग को जमकर पीटा. भीड़ ने एंटी-मुस्लिम नारे लगाए और कहा कि वो गुरूग्राम के बाहर के किसी मुसलमान को यहां काम नहीं करने देंगे. नतीजे में बस्ती के कुल 128 परिवारों में से केवल 7-8 परिवारों को छोड़कर सभी अपने बंगाल और बिहर में अपने मूल निवास को  लौट गए. शेष परिवार 28 अगस्त के जलूस के गुज़रने का इंतज़ार कर रहे थे जिससे कि वो अपने घरों को वापस लौट सकें. विहिप ने गुरूग्राम में सार्वजनिक जगहों पर पोस्टर लगाकर मुसलमानों को 28 अगस्त तक इलाका छोड़ने की धमकी दी थी. फैक्ट फाइंडिंग टीम ने सोहना, पलवल और गुरूग्राम में मुसलमानों की संपत्तियों की तबाही का तकाज़ा लिया जबकि हिंदुओं की संपत्ति सुरक्षित थी. इस दौरान ये अफवाह भी फैलाई गई कि ये विध्वंस नूह में हिंदूओं की जायदाद को नुकसान पहुंचाने का नतीजा है.

प्रशासन द्वारा जारी डिमोलिशन ड्राइव का शिकार 1200 संपत्तियों में से अधिकतर मुसलमानों की थी. नूह के डिप्टी कमिश्नर के अनुसार– इस दौरान क़रीब 443 स्ट्रक्चर को नष्ट किया गया जिनमें से 162 स्थाई और 281 अस्थाई थे.  इससे क़रीब 354 लोगों का जीवन प्रभावित हुआ जिनमें से 71 हिंदू और 283 मुसलमान थे. ग़ौरतलब है कि 7 अगस्त को पंजाब एंड हरियाणा कोर्ट ने इन डिमोलिशन ड्राइव्स पर सवाल खड़ा करते हुए पूछा कि क्या ये संपत्ति समुदाय विशेष की थी? क्या क़ानून और व्यवस्था में समस्या के नाम पर जातीय संहार की कोशिश की गई? कोर्ट ने राज्य सरकार से विध्वंस का शिकार बिल्डिंग्स के बारे में जानकारी देने को कहा और पूछा कि क्या इस डिमोलिशन से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था?

5. सांप्रदायिक दंगों का प्रभाव
 
31 जुलाई, 2023 का ये सांप्रदायिक दंगा इस इलाके में पिछले कई दशकों में अपनी तरह का अकेला दंगा था. इसका एजेंडा मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमज़ोर करना और हमलों के लिए आसान शिकार बनाना था. ठोस कार्रवाही के अभाव में अराजक तत्वों को हीरो के तौर पर स्थापित कर दिया गया. मोनू मानेसर को काफ़ी समय बाद गिरफ़्तार किया गया जबकि अन्य किसी को गिरफ़्तार नहीं किया गया. इससे लोगों में अपनी ही बस्ती से लोगों और पड़ोसियों के प्रति अविश्वास का माहौल पैदा हुआ.

विहिप और बजरंग दल की अगुवाई में नल्हार के दलित तबक़े की औरतों ने खुलकर मुसलमानों पर हिंसा का आरोप मढ़ा. हालांकि किसान मोर्चों और खाप पंचायतों ने इस नफ़रत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर कहा कि मुसलमानों को निशाना बनाना कभी भी स्वीकर नहीं किया जाएगा. अल्वर में किसान नेता राकेश टिकैत की अध्यक्षता में सांप्रदायिक एकता के पक्ष में एक सम्मेलन किया गया. इस पहल में इलाके में हिंदू-मुसलमान भाईचारे के पुराने इतिहास पर रौश्नी डाली गई और राज्य में एक सकारात्मक वातावरण बनाने की कोशिश की गई जिससे 28 अगस्त को हिंसा को दोहराया न जा सके.    

सुझाव-

1.  निष्पक्ष अभियोग

हिंसा के बाद गिरफ्तारियों के दौर में मुसलमानों को निशाना बनाया गया था. 31 जुलाई को SIT और जुडिशियल कमीशन के मद्देनज़र निष्पक्ष मुक़दमा हालात से निपटने के लिए अहम क़दम साबित हो सकता है. इससे दंगे की योजना और हथियारों के प्रयोग को भी घेरे में रखा जा सकता है.  

2. क़ानूनी कार्रवाई

गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा को कानूनी कार्रवाई से रोका जाना चाहिए. मेवात में मुसलमान युवाओं की लिचिंग और हत्या पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. कोई भी पीड़ित परिवार अभी तक इंसाफ नहीं हासिल कर सका है और पहलू खान के मामले की ही तरह वो अंधेरों की गर्त में हैं. कुछ मामलों में आपराधिक न्याय का भ्रम पैदा कर अवाम को छलने की कोशिश की गई है.  इन सभी पर ठोस कार्रवाई होनी चाहिए. ख़ास तौर से उन लोगों को नहीं बख्शा जा सकता है जिनपर एक से अधिक हमले या हिंसा का आरोप है.

3. गौ-रक्षक दलों पर रोक

गौ-रक्षक दलों को पुलिस और राज्य का समर्थन हासिल है जिससे वो आज़ाद होकर गौ-रक्षा की आड़ में जुर्म को अंजाम देते रहे हैं और मुसलमानों को निशाने पर लेते रहे हैं. इन्हें पुलिस का सहयोग नहीं मिलना चाहिए, जिससे कि अराजक तत्वों का हौसला पस्त हो और वो मासूम नागरिकों को अपना शिकार न बना सकें.

4. क्षतिपूर्ति

उजाड़ी गई संपत्तियों के मालिकों को नुकसान के बदले क्षतिपूर्ति का प्रस्ताव मिलना चाहिए. फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि पहाड़ की तली में नल्हार के क़रीब जिन घरों को उजाड़ा गया वो क़रीब 30 साल पुराने थे. उनके पास बिजली और पानी के बिल के काग़ज़ात थे. हालांकि वो जंगल की ज़मीन पर बसर कर रहे थे लेकिन वो 30 से भी अधिक सालों से वहां के निवासी थे. उन्हें न तो कोई नोटिस सौंपा गया न ही दूसरा कोई बंदोबस्त करने के लिए वक्त दिया गया. इसके विपरीत नल्हार में मेडिकल कॉलेज के क़रीब की संपत्ति और नूह में अनेक जायदादों के क़ानूनी दस्तावेज भी उपलब्ध थे फिर भी उन्हें नष्ट कर दिया गया. ये उन्मूलन मुसलमान तबक़े पर निशाना साधने के लिए किए गए थे जिससे उनका आर्थिक, भावनात्मक और सामाजिक नुकसान हुआ.  इस नुकसान के एवज उचित और पर्याप्त क्षतिपूर्ति प्राप्त करना सभी प्रभावित लोगों का हक़ है. .

5. औरतों का पुनर्वास

घर उजड़ने के बाद औरतें भयावह माहौल में जीवन बसर करने को मजबूर हैं और उन्हें कोई भी बुनियादी सुविधा या सुरक्षा हासिल नहीं है. राज्य को इन औरतों के लिए उचित इंतज़ाम करना चाहिए और इन्हें जल्द से जल्द फिर से उचित स्थान पर बसाने का इंताज़ाम करना चाहिए.

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