बुलंदशह लोकसभा सीट: BSP प्रत्याशी के पक्ष में OBC वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए अखिलेश और अजीत सिंह?

Written by sabrang india | Published on: May 24, 2019
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे आ गए हैं। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने एक बार फिर से पूर्ण बहुमत से ज्यादा सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया है। सत्ता के गलियारे तक पहुंचने का रास्ता माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी ने प्रचंड जीत दर्ज की है। बीजेपी के भोला सिंह ने 662839 वोट पाकर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी योगेश वर्मा को दो लाख नब्बे हजार वोटों से हरा दिया है। योगेश वर्मा गठबंधन के प्रत्याशी हैं जो बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस अप्रत्याशित हार के बाद अब पार्टी हाईकमान व जनता खुद इस बात को पचा नहीं पा रही कि आखिर अखिलेश-मायावती और अजीत सिंह की तिकड़ी बीजेपी का रथ रोकने में कैसे नाकाम रही। 

क्या कांग्रेस बनी वोट कटवा पार्टी?
बुलंदशहर सीट पर कांग्रेस ने बंशी सिंह पहाड़िया को अपना उम्मीदवार बनाया था। बंशी सिंह पहाड़िया को सिर्फ 29465 वोट मिले हैं। जबकि, गठबंधन से बीएसपी के प्रत्याशी योगेश वर्मा 378884 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे हैं। लेकिन भाजपा के भोला सिंह ने 662839 वोट लाकर विजय हासिल की है। ऐसे में कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशी के वोट मिला लिए जाएं तो भी सिर्फ 408349 वोट बैठते हैं जो कि भोला सिंह से 254490 वोट कम हैं। ऐसे में कांग्रेस को वोट कटवा पार्टी मानना गलत होगा। 

गठबंधन के विपरीत गया जातीय समीकरण?
गठबंधन के उम्मीदवार बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा और पार्टी हाईकमान को बुलंदशहर सीट पर जातीय समीकरण अनुकूल नजर आ रहे थे और उन्हें जीत का पूरा भरोसा था। बुलंदशहर की सीट पर सामान्य जाति 31, एससी 22.05, ओबीसी 30 और मुस्लिम 16 फीसदी हैं। ऐसे में अगर उन्हें एससी-ओबीसी और मुस्लिमों का पूरा वोट मिला होता तो योगेश वर्मा की जीत पक्की थी। 

ओबीसी छिटका, मुस्लिम वोट मिला
बुलंदशहर लोकसभा सीट पर भाजपा को 60.6%, बीएसपी को 34.8% और कांग्रेस को 2.6% वोट मिला है। मुस्लिम वोटर्स ने एकतरफा गठबंधन के प्रत्याशी को वोट किया है। दलित वोटर भी बीएसपी के साथ गए हैं, लेकिन गठबंधन ओबीसी वोटर्स को लुभाने में नाकामयाब रहा है। जबकि बीजेपी जनरल और ओबीसी वोटर्स को अपनी तरफ करने में कामयाब नजर आई है। .

क्या गठबंधन और कांग्रेस नेताओं की उदासीनता ने दिलायी बीजेपी को प्रचंड जीत? 
अखिलेश यादव, मायावती और चौधरी अजीत सिंह ने गठबंधन कर सोशल इंजीनियरिंग का बेहतरीन फॉर्मूला अपनाया था। कांग्रेस को भी शायद भरोसा था कि गठबंधन ही बीजेपी को यूपी में रोक सकता है ऐसे में कांग्रेस द्वारा कमजोर प्रत्याशी उतारे गए। लेकिन गठबंधन की तिकड़ी अपना वोट बीजेपी के पास जाने से क्यों नहीं रोक पाई यह बड़ा सवाल है। सपा और रालोद क्षेत्रीय पार्टियां हैं लेकिन बीएसपी तो नेशनल पार्टी है। गठबंधन की तीनों ही पार्टियों के प्रमुखों की सक्रियता जमीन पर कम ही नजर आती है। तीनों नेताओं ने रैलियां कीं तो वे भी एसी लगे मंच पर। जबकि बीजेपी के किसी भी पंडाल में एसी नजर नहीं आया। यह सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुआ और जनता की दूरी बढ़ती गई लेकिन ये नेता जनता की नब्ज पहचानने में नाकामयाब रहे। अखिलेश यादव, मायावती और चौधरी अजीत सिंह का जमीन से कोई जुड़ाव नजर नहीं आया यह भी जनता से दूरी का कारण हो सकता है। 

बीजेपी के मुकाबले काडर तैयार नहीं कर पाए गठबंधन के नेता?
भारतीय जनता पार्टी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बताती है। बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने चुनाव बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ की गई प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि उनकी पार्टी का कार्यकर्ता जमीन पर काम करता है। इस बार उन्होंने 11 लाख कार्यकर्ताओं का जमीनी स्तर पर काम करने का दावा किया था। इसके साथ ही बजरंग दल, आरएसएस, विहिप जैसे संगठन भी बीजेपी के लिए लगातार काम करते हैं। ऐसे में गठबंधन की पार्टियां अपना काडर खड़ा करने में नाकामयाब रहीं जिसका नतीजा उन्हें हार के रूप में मिला है। 
 
 

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