दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री (77-79 & 87-89) और दो बार भारत के उपप्रधानमंत्री (वीपी सिंह और चंद्रशेखर के कार्यकाल में, 89-91) रहे देश के बड़े किसान नेता ताऊ देवीलाल जी (25 सितंबर 1915 - 6 अप्रैल 2001) की आज 17वीं पुण्यतिथि है।
आपकी तुनकमिजाजी के बावजूद बिहार आपका सदा ऋणी रहेगा कि आपने 90 के दशक में बिहार को एक ऐसा मुख्यमंत्री दिया जिन्होंने वंचितों को उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए पांच विश्वविद्यालय खोला।
आप शरद जी को बहुत मानते थे और पहली बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री (कपड़ा मंत्री) बनवाया और लालू प्रसाद के विधायक दल का नेता निर्वाचित हो जाने के बावजूद वीपी सिंह द्वारा अजित सिंह को भेजकर बखेड़ा खड़ा करने और तत्कालीन राज्यपाल युनुस सलीम द्वारा नये मुख्यमंत्री का शपथग्रहण न कराकर फ्लाइट से दिल्ली चले जाने पर आपने गवर्नर को डांटते हुए फौरन दिल्ली से बिहार जाने को कहा। इसके पूर्व जब तक लालू प्रसाद राज्यपाल का पीछा करते हुए एयरपोर्ट पहुंचे थे, तब तक तो वो उड़ चुके थे। और, लालू जी ने जब आपको फोन धराया, "ताऊ आपके राजपाट में इ क्या हो रहा है? जनादेश का अपमान करवा रहे हैं, इ मंडवा के राजा वीपी सिंह हमको सीएम का ओथ नै लेने दे रहा", तो आप तुरंत गरमा गए, "हमारे सामने खेलने वाला इ चौधरी जी का बेटा नेता बन रहा है बिहार जाके। रुको अभी शरद-मुलायम को ठोक बजाके इसको सीधा करते हैं"।
89 की लोक मोर्चा सरकार में ताऊ देवीलाल कृषि मंत्री थे, तो शरद जी ने नीतीश कुमार को कृषि राज्य मंत्री बनवाया था। उनका इतना स्नेह था शरद यादव पर कि कोई बात टालते नहीं थे। नीतीश जी को संभवतः 85 के विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार के लिए एक गाड़ी भी दी ताऊ ने।
हालांकि, मंडल कमीशन लागू करने के तौरतरीके के सवाल पर ताऊ से शरद-पासवान-लालू सबकी मतभिन्नता सतह पर आ गई। मेहम कांड के चलते चोटाला सरकार की भद्द पिटी। वीपी सिंह ने ताऊ को मंत्रिमंडल से ड्रॉप किया। जो भी हुआ, अप्रिय था। पर, मंडल कमीशन को लागू होना था, हुआ। सरकार चली गई, पर ताऊ को इग्नोर कर पाना चंद्रशेखर के लिए भी मुमकिन नहीं था। वो उनकी सरकार में भी डेपुटी प्राइम मिनिस्टर बनाये गए। दो बार उप प्रधानमंत्री बनने वाले ताऊ देश के इकलौते शख़्स हैं।
यह भी दिलचस्प वाक़या ही है कि 89 में देवीलाल जी संसदीय दल के नेता चुन लिए गए थे, मीडिया ने बाक़ायदा चला भी दिया कि वे भारत के 7वें प्रधानमंत्री होने जा रहे हैं, पर उन्होंने माला वीपी सिंह को पहना दिया। सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ और बिना कई नेताओं को पहले से बताए हुए हुआ कि लोगों को थोड़ी देर कुछ समझ नहीं आया। इससे चंद्रशेखर बिल्कुल भौंचक्का रह गए व ठगा महसूस कर रहे थे। वे तमतमाते हुए हॉल से बाहर निकल गए।
आपकी तुनकमिजाजी के बावजूद बिहार आपका सदा ऋणी रहेगा कि आपने 90 के दशक में बिहार को एक ऐसा मुख्यमंत्री दिया जिन्होंने वंचितों को उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए पांच विश्वविद्यालय खोला।
आप शरद जी को बहुत मानते थे और पहली बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री (कपड़ा मंत्री) बनवाया और लालू प्रसाद के विधायक दल का नेता निर्वाचित हो जाने के बावजूद वीपी सिंह द्वारा अजित सिंह को भेजकर बखेड़ा खड़ा करने और तत्कालीन राज्यपाल युनुस सलीम द्वारा नये मुख्यमंत्री का शपथग्रहण न कराकर फ्लाइट से दिल्ली चले जाने पर आपने गवर्नर को डांटते हुए फौरन दिल्ली से बिहार जाने को कहा। इसके पूर्व जब तक लालू प्रसाद राज्यपाल का पीछा करते हुए एयरपोर्ट पहुंचे थे, तब तक तो वो उड़ चुके थे। और, लालू जी ने जब आपको फोन धराया, "ताऊ आपके राजपाट में इ क्या हो रहा है? जनादेश का अपमान करवा रहे हैं, इ मंडवा के राजा वीपी सिंह हमको सीएम का ओथ नै लेने दे रहा", तो आप तुरंत गरमा गए, "हमारे सामने खेलने वाला इ चौधरी जी का बेटा नेता बन रहा है बिहार जाके। रुको अभी शरद-मुलायम को ठोक बजाके इसको सीधा करते हैं"।
89 की लोक मोर्चा सरकार में ताऊ देवीलाल कृषि मंत्री थे, तो शरद जी ने नीतीश कुमार को कृषि राज्य मंत्री बनवाया था। उनका इतना स्नेह था शरद यादव पर कि कोई बात टालते नहीं थे। नीतीश जी को संभवतः 85 के विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार के लिए एक गाड़ी भी दी ताऊ ने।
हालांकि, मंडल कमीशन लागू करने के तौरतरीके के सवाल पर ताऊ से शरद-पासवान-लालू सबकी मतभिन्नता सतह पर आ गई। मेहम कांड के चलते चोटाला सरकार की भद्द पिटी। वीपी सिंह ने ताऊ को मंत्रिमंडल से ड्रॉप किया। जो भी हुआ, अप्रिय था। पर, मंडल कमीशन को लागू होना था, हुआ। सरकार चली गई, पर ताऊ को इग्नोर कर पाना चंद्रशेखर के लिए भी मुमकिन नहीं था। वो उनकी सरकार में भी डेपुटी प्राइम मिनिस्टर बनाये गए। दो बार उप प्रधानमंत्री बनने वाले ताऊ देश के इकलौते शख़्स हैं।
यह भी दिलचस्प वाक़या ही है कि 89 में देवीलाल जी संसदीय दल के नेता चुन लिए गए थे, मीडिया ने बाक़ायदा चला भी दिया कि वे भारत के 7वें प्रधानमंत्री होने जा रहे हैं, पर उन्होंने माला वीपी सिंह को पहना दिया। सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ और बिना कई नेताओं को पहले से बताए हुए हुआ कि लोगों को थोड़ी देर कुछ समझ नहीं आया। इससे चंद्रशेखर बिल्कुल भौंचक्का रह गए व ठगा महसूस कर रहे थे। वे तमतमाते हुए हॉल से बाहर निकल गए।