नई दिल्ली। किसान आंदोलन के बीच अमेरिका के सांसदों ने भारत को सलाह दी है कि वह लोकतंत्र के मानकों को बनाए रखे। केंद्र सरकार इंटरनेट बंद किए बगैर आंदोलनकारियों को शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने दे।
यूएस डेमोक्रेटिक कांग्रेसी नेता और कांग्रेशनल इंडिया कॉकस में उपाध्यक्ष ब्रैड शेरमैन ने कहा, “मैंने भारत सरकार से अपील की है कि वह लोकतंत्र के मानकों को बरकरार रखे और प्रदर्शनकारियों को शांति के साथ प्रदर्शन करने दिया जाए। उन्हें और पत्रकारों को इंटरनेट की सुविधा मिले। भारत के सभी दोस्त उम्मीद करते हैं कि सभी पक्ष (आंदोलन के) जल्द ही किसी सहमति पर पहुंचेंगे।”
अमेरिका में भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने ट्वीट किया, “हाउस कॉकस ऑन इंडिया और इंडियंस अमेरिकंस फॉर दि 117 कांग्रेस नेतृत्व के साथ विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई। भारत-यूएस के बीच रिश्तों को मजबूत करने के मकसद से काम करने के लिए हम आगे बढ़ेंगे।”
बता दें कि, किसान प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट कटौती के मसले पर चार फरवरी को अमेरिकी प्रशासन ने टिप्पणी की थी। कहा था, सूचना की निर्लिप्त पहुंच (इंटरनेट शामिल) अभिव्यक्ति की आजादी का मूल अधिकार है और संपन्न लोकतंत्र की बानगी है। बता दें कि अमेरिकी सांसदों की यह टिप्पणी 2019 के आखिर के महीनों में कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन के बाद पहली बार आई है।
यूएस डेमोक्रेटिक कांग्रेसी नेता और कांग्रेशनल इंडिया कॉकस में उपाध्यक्ष ब्रैड शेरमैन ने कहा, “मैंने भारत सरकार से अपील की है कि वह लोकतंत्र के मानकों को बरकरार रखे और प्रदर्शनकारियों को शांति के साथ प्रदर्शन करने दिया जाए। उन्हें और पत्रकारों को इंटरनेट की सुविधा मिले। भारत के सभी दोस्त उम्मीद करते हैं कि सभी पक्ष (आंदोलन के) जल्द ही किसी सहमति पर पहुंचेंगे।”
अमेरिका में भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने ट्वीट किया, “हाउस कॉकस ऑन इंडिया और इंडियंस अमेरिकंस फॉर दि 117 कांग्रेस नेतृत्व के साथ विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई। भारत-यूएस के बीच रिश्तों को मजबूत करने के मकसद से काम करने के लिए हम आगे बढ़ेंगे।”
बता दें कि, किसान प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट कटौती के मसले पर चार फरवरी को अमेरिकी प्रशासन ने टिप्पणी की थी। कहा था, सूचना की निर्लिप्त पहुंच (इंटरनेट शामिल) अभिव्यक्ति की आजादी का मूल अधिकार है और संपन्न लोकतंत्र की बानगी है। बता दें कि अमेरिकी सांसदों की यह टिप्पणी 2019 के आखिर के महीनों में कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन के बाद पहली बार आई है।