प्रयागराज. शादी-विवाह का बंधन आज की युवा पीढ़ी को बंधन ही लगता है। आए दिन तलाक के मामले सामने आते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में हुई शादी को तोड़ने के मामले पर अहम फैसला दिया है। तलाक के एक मुकदमा को रद्द करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि शादी के एक साल पूरे होने से पहले तलाक लेना मुमकिन नहीं है।
यह निर्णय प्रयागराज के अर्पित गर्ग एवं आयुषी जयसवाल के मुकदमे को निरस्त करते हुए जस्टिस एसके गुप्ता और पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनाया है। न्यायालय ने कहा कि शादी के एक साल के भीतर आपसी सहमति से तलाक का मुकदमा दाखिल नहीं किया जा सकता। विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत शादी के एक साल के बाद ही आपसी सहमति से तलाक हो सकता है।
आपको बता दें कि जुलाई 2018 को अर्पित एवं आयुषी की शादी हुई थी परंतु वह अक्टूबर 2018 से ही अलग रहा रहे हैं। बाद में दिसम्बर 2018 को परिवार न्यायालय में तलाक का मुकदमा दाखिल किया था। हालांकि परिवार न्यायालय ने भी उनकी एक साल की अवधि से पूर्व मुकदमा दाखिल करने पर मुकदमा रद्द कर दिया था। जिसे चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई थी।
अर्पित व आयुषी का कहना है कि वह एक साथ नहीं रह सकते। वह दोनों अलग रहना चाहते हैं और आपसी सहमति से तलाक लेना चाह रहे हैं। एक साल की वैधानिक अड़चन को दूर किया जाए।
फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट वैधानिक व्यवस्था को क्रॉस नहीं कर सकती। तलाक के लिए एक साल की अवधि का बीतना बाध्यकारी है।
यह निर्णय प्रयागराज के अर्पित गर्ग एवं आयुषी जयसवाल के मुकदमे को निरस्त करते हुए जस्टिस एसके गुप्ता और पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनाया है। न्यायालय ने कहा कि शादी के एक साल के भीतर आपसी सहमति से तलाक का मुकदमा दाखिल नहीं किया जा सकता। विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत शादी के एक साल के बाद ही आपसी सहमति से तलाक हो सकता है।
आपको बता दें कि जुलाई 2018 को अर्पित एवं आयुषी की शादी हुई थी परंतु वह अक्टूबर 2018 से ही अलग रहा रहे हैं। बाद में दिसम्बर 2018 को परिवार न्यायालय में तलाक का मुकदमा दाखिल किया था। हालांकि परिवार न्यायालय ने भी उनकी एक साल की अवधि से पूर्व मुकदमा दाखिल करने पर मुकदमा रद्द कर दिया था। जिसे चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई थी।
अर्पित व आयुषी का कहना है कि वह एक साथ नहीं रह सकते। वह दोनों अलग रहना चाहते हैं और आपसी सहमति से तलाक लेना चाह रहे हैं। एक साल की वैधानिक अड़चन को दूर किया जाए।
फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट वैधानिक व्यवस्था को क्रॉस नहीं कर सकती। तलाक के लिए एक साल की अवधि का बीतना बाध्यकारी है।