BJP में अंदरखाने सब ठीक नहीं, बंगाल से UP, कर्नाटक से दिल्ली तक अनिर्णय व असंतोष की स्थिति

Written by Navnish Kumar | Published on: February 5, 2021
मजबूत नेतृत्व और निर्णय लेने वाली ताकतवर पार्टी होने का होने का दावा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी (अमीर भी!) भाजपा में अंदरखाने सब ठीक नहीं चल रहा है। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश तक, कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक में पार्टी में अनिर्णय की स्थिति देखी जा रहा है। जिसके पीछे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में अंदरखाने पनप रहा असंतोष (अविश्वास) का भाव है।



पश्चिम बंगाल और असम के भाजपा नेताओं ने तो पार्टी आलाकमान से खुली नाराजगी जताई है। दूसरी पार्टियों के विधायकों, पूर्व विधायकों और नेताओं को भाजपा में शामिल करने और उन्हें टिकट देने का वादा किए जाने से पार्टी के स्थानीय नेता नाराज हैं। उनके विरोध की वजह से पार्टी आलकमान को साफ करना पड़ा है कि अब बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से थोक में नेता नहीं लिए जाएंगे। पार्टी नेताओं का कहना है कि इस तरह तो बंगाल भाजपा, तृणमूल की बी-टीम बन जाएगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने माना है कि पार्टी की प्रदेश ईकाई की कोर कमेटी की बैठक में कई बातों के साथ इस बात पर भी चर्चा हुई है कि बाहर से आने वाले नेताओं की वजह से संतुलन बिगड़ रहा है। दिलीप घोष और दूसरे कई नेता इस बात से भी नाराज बताए जा रहे हैं कि प्रदेश में पूरी पार्टी एक तरह से शुभेंदु अधिकारी ने हाईजैक कर ली है। वे तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में गए हैं और उन्होंने प्रदेश में अपनी सीधी लड़ाई ममता बनर्जी से बनाई है।

उधर, असम में भी भाजपा के प्रदेश नेताओं ने दूसरी पार्टियों के नेताओं का आना पूरी तरह से रूकवा दिया है। कांग्रेस के दो विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद प्रदेश भाजपा के नेताओं ने नाराजगी जताई थी, जिसके बाद दूसरे नेताओं का भाजपा में शामिल होना रूका है। अब कहा जा रहा है कि बंगाल में भी इक्का-दुक्का बाहरी नेता ही भाजपा में शामिल होगा, वह भी तभी जब उनका स्पष्ट राजनीतिक फायदा पार्टी को दिख रहा होगा।

दूसरी ओर, ताकतवर नेतृत्व के दावे के उलट पार्टी नेतृत्व में अनिर्णय की स्थिति भी साफ साफ दिखने लगी है। भाजपा में भी फैसले करने में वैसी ही देरी होने लगी है, जैसे कांग्रेस में 2014 के बाद से हो रही है। मिसाल के तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपनी टीम बनाने में लगे समय को ही लिया जा सकता है। उनको छह महीने से ज्यादा लग गए थे अपनी टीम बनाने में।

कई मामले हैं जिसमें लग रहा हैं कि भाजपा नेतृत्व फैसला ही नहीं कर पा रहा है या उसके फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कैबिनेट का विस्तार होना है लेकिन कई महीनों से इसकी सिर्फ चर्चा हो रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कहा जा रहा है कि मंत्रियों के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। और तो और, दिल्ली से भेजे गए प्रधानमंत्री मोदी के करीबी अधिकारी रहे अरविंद शर्मा को भी अभी कोई जिम्मेवारी नहीं मिल सकी है। 

यही नहीं, किसान आंदोलन के बरक्स देंखे तो चीनी मिलों में पेराई सत्र को शुरू हुए तीन माह से ज्यादा हो गए हैं लेकिन, उप्र की योगी आदित्यनाथ सरकार गन्ना मूल्य तक घोषित नहीं कर पा रही है। यही नहीं, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में हो रही देरी पर तो हाइकोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा हैं। हाईकोर्ट ने अपनी ओर से कार्यक्रम जारी करते हुए, सरकार को पंचायत चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं। 

ऐसे ही बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा है और न विधान परिषद के सदस्यों की संख्या तय हो पा रही है। राज्य में सरकार बने तीन महीने होने जा रहे हैं और सिर्फ 14 मंत्रियों से सरकार चल रही है, जबकि बिहार में तीन दर्जन मंत्री बनाए जा सकते हैं। उधर, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो दस दिन के भीतर तीन-तीन बार मंत्रियों के विभाग बदलने पड़े। भाजपा नेतृत्व वहां के घटनाक्रम को कंट्रोल नहीं कर पा रहा है। बताया जा रहा है कि पार्टी संगठन और मुख्यमंत्री  में खींचतान वजह बनी है।

यही नहीं, पार्टी में कुछ मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की खबर काफी समय से चर्चाओं में बनी है। लेकिन कुछ हो  नहीं पा रहा है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को बदलने की चर्चा कई महीनों से चल रही है। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा भी काफी समय से है। बताया जा रहा है कि पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षणों में यह बात आ रही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के चेहरे पर अगले चुनाव में पार्टी को मुश्किल हो सकती है। लेकिन उस बारे में भी फैसला नहीं हो पा रहा है।

रही सही कसर, अब किसान आंदोलन ने पूरी कर दी है। अनिर्णय की इस स्थिति में किसान आंदोलन को सही तरीके से हैंडल न कर पाने का दबाव, पार्टी को बहुत भारी पड़ सकता है। खासकर उत्तर भारत के हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पार्टी की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

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