बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) की स्वायत्त परिषद के चुनावों में भाजपा को बड़ा झटका लगा है, जहां पार्टी महज पांच सीटों पर सिमट गई। वहीं, विपक्षी बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने 29 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। असम में 2026 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में यह परिणाम मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के लिए एक अहम राजनीतिक झटका माना जा रहा है।

साभार : एनडीटीवी
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को राजनीतिक झटका देते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) की स्वायत्त परिषद के चुनावों में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन किया है।
मैराथन चुनावी रैलियों के माध्यम से प्रचार अभियान की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने, सत्ता-विरोधी लहर से दूरी बनाए रखने की रणनीति के तहत, यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) के साथ भाजपा के सत्तारूढ़ गठबंधन को जारी रखे बिना ही बीटीआर चुनावों में पार्टी को मैदान में उतारा।
द वायर के अनुसार, चुनाव से पहले पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री सरमा ने कहा था कि क्षेत्र के दो प्रमुख स्थानीय दलों में से जो भी विजेता होगा, भाजपा उसके साथ गठबंधन करेगी। उनकी इस टिप्पणी को 22 सितंबर को हुए बीटीआर चुनावों में संभावित खंडित जनादेश के संकेत के रूप में देखा गया।
हालांकि, 40 सीटों वाले बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) की परिषद के लिए हुए चुनावों की मतगणना से स्पष्ट हुआ कि विपक्षी बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने 29 सीटों पर जीत हासिल कर निर्णायक बढ़त बनाई। दूसरी ओर, भाजपा की पूर्व सहयोगी यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) महज़ सात सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा खुद केवल पांच सीटें ही जीत पाई।
परिषद चुनावों के लिए मतदान मतपत्रों के जरिए हुआ था और मतगणना 26 सितंबर को शुरू की गई थी।
पिछले चुनावों में यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) ने 12 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा को इनमें से 9 सीटों पर सफलता मिली थी। उस समय बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसने अपने दम पर 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
भूटान की सीमा से सटे पश्चिमी असम के पांच जिलों को मिलाकर बनी बोडो प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) के लिए वर्ष 2020 में हुए चुनाव उस समय किए गए थे, जब केंद्र की मोदी सरकार ने एक नया शांति समझौता घोषित किया था। यह समझौता तत्कालीन ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) के नेता प्रमोद बोरो, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के नेता रंजन दैमारी और यूनाइटेड बोडो पीपल्स ऑर्गनाइजेशन के प्रतिनिधियों के साथ किया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि बोडो शांति समझौते का "82% हिस्सा" पूरा किया जा चुका है। हालांकि, समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के पांच साल बाद भी इसके कई प्रमुख वादे अब तक अधूरे हैं।
चुनावों के दौरान द वायर को दिए एक साक्षात्कार में बीपीएफ प्रमुख हाग्रामा मोहिलियारी ने कहा था कि 2020 का शांति समझौता इस क्षेत्र के लिए ‘कोई वास्तविक लाभ’ नहीं ला सकता है, जो छठी अनुसूची के अंतर्गत आता है और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी पार्टी चुनाव जीतेगी.
हग्रामा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकारों से कहा था कि वह शर्मा सरकार को बीटीआर क्षेत्र में बेदखली अभियान नहीं चलाने देंगे और इसके बजाय भूमिहीनों को ज़मीन देने पर ज़ोर देंगे ताकि किसी भी परिवार को बेघर न होना पड़े। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपना वादा दोहराया।
उल्लेखनीय है कि असम में 2026 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें सरमा सरकार सत्ता में वापसी की कोशिश करेगी। परिसीमन के बाद बीटीआर क्षेत्र में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं, हालांकि इस पूर्वोत्तर राज्य में विधानसभा सीटों की कुल संख्या 126 ही बनी हुई है।
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साभार : एनडीटीवी
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को राजनीतिक झटका देते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) की स्वायत्त परिषद के चुनावों में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन किया है।
मैराथन चुनावी रैलियों के माध्यम से प्रचार अभियान की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने, सत्ता-विरोधी लहर से दूरी बनाए रखने की रणनीति के तहत, यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) के साथ भाजपा के सत्तारूढ़ गठबंधन को जारी रखे बिना ही बीटीआर चुनावों में पार्टी को मैदान में उतारा।
द वायर के अनुसार, चुनाव से पहले पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री सरमा ने कहा था कि क्षेत्र के दो प्रमुख स्थानीय दलों में से जो भी विजेता होगा, भाजपा उसके साथ गठबंधन करेगी। उनकी इस टिप्पणी को 22 सितंबर को हुए बीटीआर चुनावों में संभावित खंडित जनादेश के संकेत के रूप में देखा गया।
हालांकि, 40 सीटों वाले बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) की परिषद के लिए हुए चुनावों की मतगणना से स्पष्ट हुआ कि विपक्षी बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने 29 सीटों पर जीत हासिल कर निर्णायक बढ़त बनाई। दूसरी ओर, भाजपा की पूर्व सहयोगी यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) महज़ सात सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा खुद केवल पांच सीटें ही जीत पाई।
परिषद चुनावों के लिए मतदान मतपत्रों के जरिए हुआ था और मतगणना 26 सितंबर को शुरू की गई थी।
पिछले चुनावों में यूनाइटेड पीपल्स पार्टी-लिबरल (यूपीपीएल) ने 12 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा को इनमें से 9 सीटों पर सफलता मिली थी। उस समय बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसने अपने दम पर 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
भूटान की सीमा से सटे पश्चिमी असम के पांच जिलों को मिलाकर बनी बोडो प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) के लिए वर्ष 2020 में हुए चुनाव उस समय किए गए थे, जब केंद्र की मोदी सरकार ने एक नया शांति समझौता घोषित किया था। यह समझौता तत्कालीन ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) के नेता प्रमोद बोरो, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के नेता रंजन दैमारी और यूनाइटेड बोडो पीपल्स ऑर्गनाइजेशन के प्रतिनिधियों के साथ किया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि बोडो शांति समझौते का "82% हिस्सा" पूरा किया जा चुका है। हालांकि, समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के पांच साल बाद भी इसके कई प्रमुख वादे अब तक अधूरे हैं।
चुनावों के दौरान द वायर को दिए एक साक्षात्कार में बीपीएफ प्रमुख हाग्रामा मोहिलियारी ने कहा था कि 2020 का शांति समझौता इस क्षेत्र के लिए ‘कोई वास्तविक लाभ’ नहीं ला सकता है, जो छठी अनुसूची के अंतर्गत आता है और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी पार्टी चुनाव जीतेगी.
हग्रामा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकारों से कहा था कि वह शर्मा सरकार को बीटीआर क्षेत्र में बेदखली अभियान नहीं चलाने देंगे और इसके बजाय भूमिहीनों को ज़मीन देने पर ज़ोर देंगे ताकि किसी भी परिवार को बेघर न होना पड़े। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपना वादा दोहराया।
उल्लेखनीय है कि असम में 2026 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें सरमा सरकार सत्ता में वापसी की कोशिश करेगी। परिसीमन के बाद बीटीआर क्षेत्र में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं, हालांकि इस पूर्वोत्तर राज्य में विधानसभा सीटों की कुल संख्या 126 ही बनी हुई है।
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