पिछले दो तीन दिनों में हमारे प्रदेश में कुछ ऐसी घटनाए घटी हैं जो हमारे देश के धर्म निरपेक्ष चरित्र को कमजोर करने वाली हैं और जो लगभग चुनाव की आचार सहिता का उल्लंघन तो करती ही हैं, साथ ही केारोना के भीषण प्रकोप को देखते हुए खतरनाक भी हैं।
समाचार पत्रों में छपी एक खबर के अनुसार बंगरसिया स्थित केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैम्प परिसर में 238वीं वाहिनी का पांचवा स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मंदिर में पूजा-पाठ किया गया व प्रसाद का वितरण भी किया गया।
पुलिस बल में सभी धर्मो को मानने वाले होते हैं। इसके बावजूद एक ही धर्म की पद्धति से कार्यक्रम करना हमारे देश के सेक्युलर चरित्र के विरूद्ध है। समाचार में यह भी बताया गया कि इस अवसर पर सुंदर कांड का पाठ भी किया गया, बेहतर होता कि सुंदर कांड के स्थान पर संविधान का पाठ किया जाता। परन्तु दुःख की बात यह है कि उच्चाधिकारी इस तरह की गतिविधियों में स्वयं शामिल होते हैं। कोरोना काल में प्रसाद वितरण करना आग से खेलने जैसा है।
एक अन्य खबर के अनुसार दमोह में हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस राम के नाम का उपयोग करने वाली है। यदि इस बात में तनिक भी सत्यता है तो यह चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन है। कम से कम कांग्रेस से तो ऐसी अपेक्षा है कि वह ऐसी कोई भी गतिविधि न करे जो धर्म निरपेक्षता के आदर्शों के विपरीत हो।
एक अन्य खबर के अनुसार, मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने शासन से यह निवेदन किया है कि दुआओं के लिए मस्जिदों के दरवाजे खुले रखे जाएं। इस मुद्दे को लेकर उलेमाओं का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्य सचिव से मिला। यह भी दावा किया गया है कि धार्मिक स्थलों में प्रदेश पर लगी पाबंदी से नाराजगी फैल रही है। जहां तक मुझे ज्ञात है इस्लाम में किसी भी स्थान पर प्रार्थना की जा सकती है, नमाज अदा की जा सकती है। यदि ऐसा है तो उलेमाओं को इस बात पर जोर नहीं देना चाहिए कि कोराना के चलते धार्मिक स्थलों के दरवाजे बंद रखने का जो निर्णय लिया गया है उसे वापिस लिया जाए।
राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल.एस.हरदेनिया ने मांग की है कि ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाये जिनसे देश के सेक्युलर चरित्र की नींव कमजोर होती है।
समाचार पत्रों में छपी एक खबर के अनुसार बंगरसिया स्थित केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैम्प परिसर में 238वीं वाहिनी का पांचवा स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मंदिर में पूजा-पाठ किया गया व प्रसाद का वितरण भी किया गया।
पुलिस बल में सभी धर्मो को मानने वाले होते हैं। इसके बावजूद एक ही धर्म की पद्धति से कार्यक्रम करना हमारे देश के सेक्युलर चरित्र के विरूद्ध है। समाचार में यह भी बताया गया कि इस अवसर पर सुंदर कांड का पाठ भी किया गया, बेहतर होता कि सुंदर कांड के स्थान पर संविधान का पाठ किया जाता। परन्तु दुःख की बात यह है कि उच्चाधिकारी इस तरह की गतिविधियों में स्वयं शामिल होते हैं। कोरोना काल में प्रसाद वितरण करना आग से खेलने जैसा है।
एक अन्य खबर के अनुसार दमोह में हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस राम के नाम का उपयोग करने वाली है। यदि इस बात में तनिक भी सत्यता है तो यह चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन है। कम से कम कांग्रेस से तो ऐसी अपेक्षा है कि वह ऐसी कोई भी गतिविधि न करे जो धर्म निरपेक्षता के आदर्शों के विपरीत हो।
एक अन्य खबर के अनुसार, मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने शासन से यह निवेदन किया है कि दुआओं के लिए मस्जिदों के दरवाजे खुले रखे जाएं। इस मुद्दे को लेकर उलेमाओं का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्य सचिव से मिला। यह भी दावा किया गया है कि धार्मिक स्थलों में प्रदेश पर लगी पाबंदी से नाराजगी फैल रही है। जहां तक मुझे ज्ञात है इस्लाम में किसी भी स्थान पर प्रार्थना की जा सकती है, नमाज अदा की जा सकती है। यदि ऐसा है तो उलेमाओं को इस बात पर जोर नहीं देना चाहिए कि कोराना के चलते धार्मिक स्थलों के दरवाजे बंद रखने का जो निर्णय लिया गया है उसे वापिस लिया जाए।
राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल.एस.हरदेनिया ने मांग की है कि ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाये जिनसे देश के सेक्युलर चरित्र की नींव कमजोर होती है।