अब अनिवार्य नहीं आरोग्य सेतु एप, उठे थे जासूसी के सवाल

Written by Sabrangindia Staff | Published on: May 20, 2020
देश में कोरोना वायरस रोकने के लिए लॉकाडाउन का चौथा दौर शुरु हो चुका है और सभी राज्यों ने इसके लिए दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। इस बार के लॉकडाउन में नया यह है कि सभी राज्यों ने अपनी सुविधानुसार नियम बनाए हैं, इससे पहले तक सभी नियम-कायदे केंद्र सरकार ही तय कर रही थी।



इस बार लॉकडाउन के लिए जो दिशा निर्देश केंद्र और राज्यों की तरफ से जारी हुए हैं, उनमें एक बात नई और कॉमन है, और वह है आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल।

लॉकडाउन के पहले तीन चरणों में इस ऐप का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया था, खासतौर से दफ्तर जाने वाले सभी कर्मचारियों के लिए, इनमें सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों के कर्मचारी शामिल थे। इतना ही व्यवस्था यह की गई थी कि अगर किसी कर्मचारी ने इस ऐप को डाउनलोड नहीं किया है तो दफ्तर के प्रमुख या फैक्टरी मालिक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

लेकिन इस बार इस ऐप को डाउनलोड करने की सलाह दी गई है और इसे अनिवार्य नहीं किया गया है। कहा गया है कि जहां तक संभव हो यानी बेस्ट एफर्ट बेसिस पर स ऐप का इस्तेमाल किया जाए और स्थानीय प्रशासन लोगों को इस ऐप को इस्तेमाल करने के लिए जागरुक करें। साथ ही किसी कर्मचारी द्वारा ऐप का इस्तेमाल न करने पर फैक्टरी मालिक या दफ्तर प्रमुख के खिलाफ होने वाली कार्रवाई को भी खत्म कर दिया गया है।

सवाल है कि आखिर इस ऐप में ऐसा क्या है जिसे लेकर सरकार ने बात दिल पे ले रखी थी, और क्यों समाज का एक बड़ा तबका इस ऐप का विरोध कर रहा था। दरअसल

ऐसा माना जाता है कि सिंगापुर और दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस का प्रसार रोकने में जो कामयाबी पाई, उसमें ऐप आधारित निगरानी प्रणाली का अहम हाथ था। लेकिन इसके बावजूद भारत के आरोग्य सेतु को लेकर निजता से जुड़ी आशंकाएं सामने आईं। कारण, भारत में अभी डाटा की सुरक्षा संबंधी कोई कानून नहीं है।

क्या है आरोग्य सेतु ऐप
यह ऐप जीपीएस लोकेशन और ब्लूटूथ का इस्तेमाल करता है। जैसे ही कोई कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति आसपास पहुंचता है तो यह ऐप इस्तेमालकर्ता को आगाह कर देता है।। कई देश ऐसे ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं। वायरस को रोक पाने में सिंगापुर और दक्षिण कोरिया की सफलता का काफी श्रेय ऐसे ऐप को दिया जा रहा है. सिंगापुर में सरकार ने तो दक्षिण कोरिया में निजी क्षेत्र ने ऐप तैयार किया है।

कैसे करता है यह ऐप काम
जब कोई ऐप पर रजिस्टर होता है तो उसके नाम, उम्र, लिंग, व्यवसाय और पिछले 30 दिन में उसने किन-किन देशों की यात्रा की, इसकी जानकारी भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे सर्वर पर चली जाती है। इसके बाद उस व्यक्ति की एक डिजिटल आईडी बन जाती है। जैसे ही आरोग्य सेतु इस्तेमाल करने वाले कोई दो व्यक्ति 10 मीटर से कम दूरी में आते हैं, इनके फोन अपने आप डिजिटल आईडी का आदान-प्रदान करते हैं और इसकी जानकारी सर्वर पर पहुंच जाती है। कोई व्यक्ति कहां गया, इसकी जानकारी हर 15 मिनट पर रिकॉर्ड होती जाती है। हर बार जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस के लक्षणों के आधार पर अपनी जांच करता है तो उसे स्थिति के अनुसार येलो, ऑरेंज या ग्रीन मार्किंग मिलती है।

आखिर सरकार क्यों जोर रही थी इस ऐप के लिए
जब तक इस ऐप से आधी आबादी नहीं जुड़ जाती, यह लक्षित उद्देश्य को पाने में कारगर नहीं हो सकता, इसलिए सरकार इसे अपनाने के लिए आक्रामक प्रचार कर रही है और उसने सरकारी और निजी कार्यालय आने वाले कर्मचारियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया था।

निजता का सवाल
इस तरह के ऐप को इस्तेमाल करने वाले कई देशों में इसकी निजता नीति में साफ लिखा है कि इसका डाटा किसी और उद्देश्य में प्रयुक्त नहीं होगा और एक बार जरूरत पूरी होने के बाद सर्वर से इसका पूरा डाटा हटा दिया जाएगा। लेकिन, भारत में ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। आरोग्य सेतु ऐप कहता है कि रजिस्ट्रेशन के समय इकट्ठा की गई सारी जानकारी तब तक रखी जाएगी जब तक अकाउंट रहेगा और उसके बाद भी सारी जानकारी तब तक रखी जा सकती है जब तक किसी भी कानून के अंतर्गत इसे रखने की आवश्यकता होगी।

तो क्या सर्विलांस का जरिया है आरोग्य सेतु ऐप?
फ्रांस के एथिकल हैकर हैं इलियट एंडरसन। उन्होंने आरोग्य सेतु को सर्विलांस टूल क्या कहा, सोशल मीडिया पर जैसे उनके खिलाफ भारतीयों ने जंग ही छेड़ दी। एंडरसन ने बड़े धैर्य से लोगों की तमाम शंकाओं पर अपनी राय रखी। इस ऐप का दावा है कि हम 21वीं सदी में हैं। हमारे पास तकनीक है और लोगों के फोन को ट्रैक करने से हम कोरोना वायरस को निश्चित ही हरा देंगे। सवाल है कि अपनी आबादी पर निगरानी के लिए चीन जितना कुछकर रहा है, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। फिर भी चीन वायरस के प्रसार को रोक पाने में नाकाम रहा।

सवाल यह भी है कि क्या बिना ऐसे ऐप के कोरोना को हराना असंभव है? नहीं, ऐसा नहीं है। यह पहली वैश्विक महामारी नहीं और बिना किसी ऐप के संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वालों की तलाश दशकों से की जाती रही है। कुछ ने कहा कि भारत में तमाम लोगों को बिजली-खाना तक हासिल नहीं है ऐसे में हमारे लिए निजता कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इसका जवाब है कि लोगों की बुनियादी जरूरतों को जरूर पूरा करना चाहिए, लेकिन उनकी निजता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। कुछ का तर्क था कि हमारी सरकार ने कहा है कि यह एक अस्थाई व्यवस्था है, वे मेरे डेटा को मिटा देंगे और इसके बाद मैं भी अपना ऐप हटा दूंगा। इसके जवाब में एंडर्सन ने कहा कि आप सपना देख रहे हैं। मैं शर्त लगा सकता हूं कि इस तरह का सर्विलांस सिस्टम बना रहने वाला है।

कुछ ने कहा कि मैं फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा आदि पर अपनी जानकारी दे रहा हूं, तो अगर सरकार को भी दे दूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा। इस पर एंडर्सन का कहना था कि निजता के मामले में आपकी आदत बुरी हो चुकी है, इसका यह मतलब नहीं कि आप ऐसा करना जारी रखें। तर्क यह भी आया कि मैं अपनी सरकार पर भरोसा करता हूं, मैं तो जरूर इसका इस्तेमाल करूंगा। इसका जवाब है कि आपकी मर्जी है, जो चाहे करें। तर्क दिया गया कि यह तो सरकारी ऐप है इसे हैक नहीं किया जा सकता, इस पर एंडर्सन ने कहाकि दुनिया में कोई भी ऐप ऐसा नहीं है जिसे हैक न किया जा सके।

पूछा गया कि क्या इस ऐप से चिंतित होने की जरूरत है। इसके जवाब में एंडर्सन ने कहा कि अगर सरकार इस ऐप के लिए आपको मजबूर करे या जबरदस्ती करें, तो निश्चित रूप से चिंतित होना चाहिए।

सरकार का दावा
सरकार ने साफ किया है कि आरोग्य ऐप से प्राप्त जानकारी का केवल स्वास्थ्य के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाएगा और 180 दिन के बाद इसे डिलीट कर दिया जाएगा।

किसके-किसके पास होगी आपकी जानकारी
स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों का स्वास्थ्य विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्र और राज्य सरकारों के अन्य मंत्रालय, अगर आवश्यक हुआ तो स्वास्थ्य संबंधी नीति तैयार करने अथवा इन पर अमल करने वाले केंद्र, राज्य अथवा स्थानीय प्रशासन, अनुसंधान का काम कर रहे भारतीय विश्वविद्यालय अथवा भारत में पंजीकृत संस्थान

डाटा सुरक्षा का सवाल
भारत में अभी निजी डाटा की सुरक्षा संबंधी कोई कानून नहीं है। इस ऐप के जरिये प्राप्त जानकारी को विभिन्न सरकारी विभागों के अलावा अनुसंधान उद्देश्य के लिए विश्वविद्यालयों वगैरह के साथ साझा करने का भी प्रावधान है। जब कोई जानकारी कई जगहों पर साझा की जाती है तो स्वाभाविक रूप से इसके दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है, खास तौर पर जब ऐसी किसी हरकत के लिए दंडात्मक प्रावधान न हो। इसलिए बेशक सरकार हरसंभव कोशिश कर रही हो कि इस ऐप के जरिये प्राप्त जानकारी का दुरुपयोग न हो, लेकिन फिर भी संशय तो है ही।

 

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