सीरिया में इंसानियत के कत्ल पर विश्व समुदाय मौन क्यों?

Written by जियाउर्रहमान | Published on: February 27, 2018
मासूमों की लाशों का ढेर, खून से लथपथ मासूम, अपनी बहन को बचाता मासूम, मिटटी में लिपटी मासूमो की लाशें, चीखते-चिल्लाते मासूमो की तस्वीरे, कफ़न में लिपटे मासूमों की तस्वीरें, बदहवास होकर देखते मासूम की तस्वीर, जी हाँ सोशल मीडिया पर तैर रही इन तस्वीरों ने मन को व्याकुल कर दिया है. ऐसे समय में जब पूरे विश्व में प्रत्येक धर्म के बड़े बड़े विद्वान, संत, महात्मा, पोप, फ़कीर, मौलाना अपने अपने धर्मो को श्रेष्ठ बताने में तुले हुए हैं, खुद के धर्म को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगाये हैं, मानवता को लेकर बड़े बड़े व्याख्यान दे रहे हैं इन तस्वीरों ने ह्रदय को झझकोर दिया है. 


पूरे विश्व में मानवता और शांति के लिए कार्य करने वाले संगठन एकाएक मौन हैं. विश्व में शांति के लिए बनाई गयी सबसे बड़ी संस्था यूएन चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं है, आखिर क्यों?

क्या सीरिया में मारे जा रहे मासूम इंसान नहीं है, क्या सीरिया में मारे जा रहे लोग इस संसार के नहीं है या फिर सीरिया में मारे जा रहे लोगो को ईश्वर/खुदा/वाहेगुरु/गॉड ने जन्म दिया है? शायद सभी का जवाब रहे कि वहां के लोग मानव ही हैं, उन्हें भी इश्वर ने जन्म दिया है. तो फिर उनके साथ हो रहे अन्याय पर विश्व समुदाय मौन क्यों है ? वहां से आ रही ह्रदयविदारक तस्वीरों ने सीरिया को नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की मानवता को चुनौती दी है ? 

उस विश्व समुदाय को जिसकी उत्पत्ति शायद मानवता को फ़ैलाने, ईश्वर के बताये मार्ग पर चलने और उसके सन्देश को फ़ैलाने के लिए हुई है, तो फिर विश्व समुदाय की मानवता आखिर कहा है ? कौन है वो जो इस दौर के इंसान को इतना पत्थरदिल बना चुका है कि उसका दिल चीखती-चिल्लाती तस्वीरों से भी नहीं पिघलता है ? आपके पास जवाब न हो तो मैं बताये देता हूँ. जिसने मानव को पत्थर दिल बना दिया है वो है– धर्म.

वही धर्मं जिसके लिए ईश्वर ने पैगम्बर भेजे, दूत भेजे, अवतार दिए लेकिन वह सब अब बीते दौर की बात सी लगती है. सीरिया में भले ही लड़ाई राष्ट्रों के वर्चस्व की हो लेकिन इस लड़ाई में हर पल मारे जा रहे बेगुनाह बच्चे, नागरिक सम्पूर्व मानवता के लिए खतरे की घंटी है. आज सीरिया है, कल कोई और देश होगा, परसों और हो सकता है कि उसके बाद हम. सीरिया में मारे जा रहे बेगुनाह मुसलमान है इसलिए शायद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मौन हैं ! 

लेकिन हमें यह सोचना होगा कि क्या मुस्लिमों के नरसंहार पर कोई भी धर्म और उसके अनुयायी इसलिए नहीं बोलेंगे कि वह अन्य धर्म का है. आज जब मुस्लिमो का नरसंहार किया जा रहा है, वही ताकते कल किसी और धर्म का भी तो नरसंहार करेंगी. धर्म कोई भी हो उसका उद्देश्य मानवता था लेकिन धर्मो के अनुयाइयों ने उसे रक्तरंजित कर दिया है. धर्मो की कट्टरता जितनी तेजी से विश्व में फ़ैल रही है यह सम्पूर्ण विश्व की मानवता के लिए चुनौती है. 

सीरिया इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर विश्वभर में चर्चाओं में हैं, अभी भी वक्त है कि हम जिन तस्वीरों को देख नहीं सकते उन्हें बनने से बचाएं, इंसानियत की आवाज़ बुलंद करें, इन्सान की आवाज बुलंद करें. धर्मो की बेडियाँ तोड़कर, देशों की दीवारें तोड़कर मानव के लिए मानव की आवाज बुलंद करें.

– लेखक व्यवस्था दर्पण के संपादक हैं.

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