सीरियाई संकट: फिलहाल आप अपनी बारी आने तक मुर्गे की तरह खामोशी से दाना चुगते रहिए

Written by Mohd Zahid | Published on: February 26, 2018
पिछले मात्र 2-3 दिन में ही सीरिया के घौतवाड़ में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार और उसके सहयोगी रूस और अमेरिका द्वारा मिलकर 1463 बच्चों सहित कम से कम 13,000 नागरिकों को मारा जा चुका है. सीरिया में अबतक लगभग 3 लाख लोगों को बशर अल असद सरकार द्वारा मारा जा चुका है.


किसी देश की सरकार का अपने ही नागरिकों की बड़े पैमाने पर हत्या का यह एक और उदाहरण है. मज़ेदार बात यह है कि इतने बड़े नरसंहार के बावजूद पूरी दुनिया, संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार जैसी संस्थाएं और यहाँ तक कि इस्लामिक राष्ट्र भी चुप हैं.

दरअसल, अमेरिका के नेतृत्व में पश्चीमी देशों ने एशिया और विशेषकर मिडिल ईस्ट को बर्बाद करने के लिए जो साजिश रची उसकी चपेट में एक-एक करके सब आ रहे हैं.

ईराक और सद्दाम हुसैन को लेकर तब के तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की माँगी गयी माफी इस अमेरिकी साजिश को सिद्ध करती है.

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने दुनिया के अन्य तमाम देशों को बर्बाद करने के लिए एक ऐसे अचूक अस्त्र का निर्माण किया है जिससे कोई बचने नहीं वाला.

वह अस्त्र है “आतंकवाद” और इस आतंकवाद के दो तीन खौफनाक चेहरे, ओसामा बिन लादेन और फिर “बगदादी”.

अपने प्रचार तंत्र से चाहे जिसे इन आतंकवादी संगठनों का समर्थक बता दो, खुद कहीं बम ब्लास्ट या हमला करा दो और उसे इन छद्म आतंकी संगठनों का कारनामा बताकर किसी इस्लामिक देश के मासूम नागरिकों पर बम गिराओ, कभी खुद पर तो कभी किसी पर हमला करा कर ऐसे छद्म आतंकी संगठनों की उपस्थिति को विश्वसनीय बनाओ और फिर किसी मुस्लिम देश के किसी क्षेत्र में इन छद्म संगठनों और आतंकवादियों की मौजूदगी के नाम पर निरिह जनता को बम गिरा कर छलनी-छलनी कर दो.

भारत में इस छद्म आतंकवाद के नाम पर ऐसे ही मुसलमानों को भी प्रताड़ित किया जाता रहा है. अमेरिका द्वारा आतंकवाद पैदा ही मुस्लिम देशों और मुसलमानों को बर्बाद करने के लिए किया गया है.

आतंकवाद और कुछ नहीं बल्कि अमेरिका का पैदा किया गया एक ऐसा भस्मासुर है जो धीरे-धीरे सबको खा जाएगा, जहाँ अमेरिकी हित खतरे में आया वहाँ आतंकवाद पैदा हो जाएगा और वह देश आतंकवाद का समर्थक.

पाकिस्तान उदाहरण है. जबतक वह अमेरिका के साथ था तब तक वह उसका लाडला था, जैसे ही वह अमेरिकी खेल समझकर चीन की तरफ हुआ तब से वह आतंकवाद की आड़ में अमेरिकी आक्रमण के केन्द्र में है.

अमेरिका के नेतृत्व में तेल के लिए यह खेल पिछले कई दशकों से चल रहा है और एक एक करके सब इसकी जद में आएंगे.

ईराक, अफगानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान, यमन, लीबिया के बाद अगला नंबर और अन्य देशों का आएगा जो अमेरिका के इशारे पर नहीं चलेंगे, जो आज तमाशबीन हैं वह ठीक वैसे ही कल जद में आएंगे.

जैसे “मुर्गे के बाड़े से जब कसाई एक मुर्गे को हलाल करने के लिए पकड़ता है तो वह मुर्गा तो चीखता चिल्लाता छटपटाता है परन्तु शेष सभी मुर्गे खामोशी से दाना चुग रहे होते हैं” फिर उनका नंबर भी आता है.

कभी सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी, ओसामा बिन लादेन जैसे अमेरिका के खासम खास थे वैसे ही आज सीरियाई राष्ट्रपति बशर-अल-असद अमेरिका के खासमकास हैं, कल इनका नंबर भी आएगा, तमाशा देख रहे इरान समेत सऊदी और सभी अरब देशों का आएगा.

फिलहाल आप अपनी बारी आने तक  मुर्गे की तरह खामोशी से दाना चुगते रहिए.

(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं. इन पर सबरंग की सहमति होना अनिवार्य नही है.)
 
 

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