सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को मई 2023 में शुरू हुई जातीय हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त व लूटी गई तथा अतिक्रमण की गई संपत्तियों का ब्यौरा देने का निर्देश दिया।
प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया
सुप्रीम कोर्ट ने गत सोमवार को मणिपुर सरकार को मई 2023 में शुरू हुई जातीय हिंसा के दौरान जलाई गई, क्षतिग्रस्त की गई, लूटी गई व अतिक्रमण की गई संपत्तियों का ब्यौरा देने का निर्देश दिया।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने इन संपत्तियों पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करते हुए पाए गए लोगों के खिलाफ की गई आपराधिक कार्रवाई और उन्हें कब्जा शुल्क या मध्यवर्ती लाभ (किसी संपत्ति पर अवैध कब्जे वाले व्यक्ति द्वारा उसके वास्तविक मालिक को दिया जाने वाला धन) का भुगतान कराने के लिए सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में भी जानकारी मांगी है।
सीजेआई खन्ना ने मणिपुर की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘हम उन संपत्तियों का पूरा विवरण चाहते हैं जिन्हें जला दिया गया है, लूट लिया गया है और जिन पर अतिक्रमण किया गया है… आप हमें यह एक सीलबंद लिफाफे में दे सकते हैं।’
मेहता ने कहा कि राज्य की पहली प्राथमिकता हिंसा को रोकना और फिर हथियार व गोला-बारूद वापस हासिल करना है। मेहता ने कहा, ‘हम विवरण दाखिल करेंगे।’
राज्य में पुनर्वास की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जस्टिस गीता मित्तल समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा मखीजा ने कहा कि रुकावटों के कारण पुनर्वास प्रभावित हो रहा है।
मेहता ने आगे कहा कि राज्य में ऐसी परिस्थितियां हैं जिनसे बिना आक्रामकता के निपटा जाना चाहिए।
एक वकील ने नॉर्थ ईस्ट स्टेट में हिंसा से विस्थापितों द्वारा दायर एक एप्लिकेशन का हवाला दिया। एक वकील ने दलील दी कि राज्य में हिंसा खत्म नहीं हुई है और स्थिति बदतर से बदतर होती जा रही है। वकील ने कहा, ‘राज्य और भारत संघ पर लोगों का भरोसा दांव पर है।’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हमें इसकी जानकारी है।’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसी शिकायतें जस्टिस मित्तल समिति के समक्ष रखी जा सकती हैं।
मामले में पेश हुए एक वकील ने कहा कि अदालत को राज्य से बरामद हथियारों की कुल मात्रा का ब्यौरा पूछना चाहिए। मेहता ने कहा कि राज्य जानकारी देने के लिए तैयार है, लेकिन उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह आदेश में इस तथ्य को दर्ज न करे।’
सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि जलाई गई, क्षतिग्रस्त की गई, लूटी गई या अवैध रूप से कब्जे वाली संपत्तियों का विवरण अदालत को सीलबंद लिफाफे में दिया जाएगा, क्योंकि इसे सार्वजनिक करने से हिंसा भड़क सकती है। उन्होंने कहा, ‘हम लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी का विवरण भी देंगे।’
इससे पहले मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि मणिपुर से लगभग 18000 आंतरिक रूप से विस्थापित लोग हैं जो 3 मई 2023 को शुरू हुई हिंसा से भागकर अन्य राज्यों में रह रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि अदालत अन्य लोगों द्वारा दायर पूरक आवेदनों पर कोई आदेश पारित नहीं करने जा रही है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों को कार्रवाई करनी है, हमें नहीं।
मेहता ने अदालत को बताया कि सरकारें जमीनी स्थिति से वाकिफ हैं और सुधारात्मक कदम उठा रही हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘हमें सलाह दी जाती है कि हम आक्रामक कार्रवाई न करें, क्योंकि इससे राज्य में शांति बहाल करने की प्राथमिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।’
पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से कहा कि वह मणिपुर सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर यह सुनिश्चित करे कि विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए अनुशंसित उपायों को जल्द से जल्द लागू किया जाए।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में निर्धारित की है।
ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 8 मई को डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दाखिल की गई याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी। तब से अब तक 27 सुनवाई हुई है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया
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द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने इन संपत्तियों पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करते हुए पाए गए लोगों के खिलाफ की गई आपराधिक कार्रवाई और उन्हें कब्जा शुल्क या मध्यवर्ती लाभ (किसी संपत्ति पर अवैध कब्जे वाले व्यक्ति द्वारा उसके वास्तविक मालिक को दिया जाने वाला धन) का भुगतान कराने के लिए सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में भी जानकारी मांगी है।
सीजेआई खन्ना ने मणिपुर की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘हम उन संपत्तियों का पूरा विवरण चाहते हैं जिन्हें जला दिया गया है, लूट लिया गया है और जिन पर अतिक्रमण किया गया है… आप हमें यह एक सीलबंद लिफाफे में दे सकते हैं।’
मेहता ने कहा कि राज्य की पहली प्राथमिकता हिंसा को रोकना और फिर हथियार व गोला-बारूद वापस हासिल करना है। मेहता ने कहा, ‘हम विवरण दाखिल करेंगे।’
राज्य में पुनर्वास की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जस्टिस गीता मित्तल समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा मखीजा ने कहा कि रुकावटों के कारण पुनर्वास प्रभावित हो रहा है।
मेहता ने आगे कहा कि राज्य में ऐसी परिस्थितियां हैं जिनसे बिना आक्रामकता के निपटा जाना चाहिए।
एक वकील ने नॉर्थ ईस्ट स्टेट में हिंसा से विस्थापितों द्वारा दायर एक एप्लिकेशन का हवाला दिया। एक वकील ने दलील दी कि राज्य में हिंसा खत्म नहीं हुई है और स्थिति बदतर से बदतर होती जा रही है। वकील ने कहा, ‘राज्य और भारत संघ पर लोगों का भरोसा दांव पर है।’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हमें इसकी जानकारी है।’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसी शिकायतें जस्टिस मित्तल समिति के समक्ष रखी जा सकती हैं।
मामले में पेश हुए एक वकील ने कहा कि अदालत को राज्य से बरामद हथियारों की कुल मात्रा का ब्यौरा पूछना चाहिए। मेहता ने कहा कि राज्य जानकारी देने के लिए तैयार है, लेकिन उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह आदेश में इस तथ्य को दर्ज न करे।’
सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि जलाई गई, क्षतिग्रस्त की गई, लूटी गई या अवैध रूप से कब्जे वाली संपत्तियों का विवरण अदालत को सीलबंद लिफाफे में दिया जाएगा, क्योंकि इसे सार्वजनिक करने से हिंसा भड़क सकती है। उन्होंने कहा, ‘हम लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी का विवरण भी देंगे।’
इससे पहले मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि मणिपुर से लगभग 18000 आंतरिक रूप से विस्थापित लोग हैं जो 3 मई 2023 को शुरू हुई हिंसा से भागकर अन्य राज्यों में रह रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि अदालत अन्य लोगों द्वारा दायर पूरक आवेदनों पर कोई आदेश पारित नहीं करने जा रही है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों को कार्रवाई करनी है, हमें नहीं।
मेहता ने अदालत को बताया कि सरकारें जमीनी स्थिति से वाकिफ हैं और सुधारात्मक कदम उठा रही हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘हमें सलाह दी जाती है कि हम आक्रामक कार्रवाई न करें, क्योंकि इससे राज्य में शांति बहाल करने की प्राथमिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।’
पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से कहा कि वह मणिपुर सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर यह सुनिश्चित करे कि विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए अनुशंसित उपायों को जल्द से जल्द लागू किया जाए।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में निर्धारित की है।
ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 8 मई को डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दाखिल की गई याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी। तब से अब तक 27 सुनवाई हुई है।
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