सुप्रीम कोर्ट ने पूछा: "आरोपी या दोषी ठहराए जाने के कारण किसी का घर कैसे गिराया जा सकता है?"
उदयपुर में एक आरोपी के घर को तोड़े जाने की तस्वीर
विभिन्न मामलों में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ बुलडोज़र कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि दोषी पाए जाने पर भी किसी का घर नहीं गिराया जा सकता है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि देशभर में घरों और इमारतों को गिराए जाने से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस गवई ने मुस्लिम विद्वानों के संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "आरोपी होने के कारण किसी का घर कैसे गिराया जा सकता है? दोषी पाए जाने पर भी घर को नहीं गिराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बार को बताने के बाद भी हमें किसी रुख में बदलाव नहीं दिखता।"
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि 2022 के दंगों के तुरंत बाद दिल्ली में कई घरों को गिरा दिया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसमें रहने वालों ने हिंसा भड़काई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने उदयपुर के एक मामले का हवाला दिया, जिसमें एक व्यक्ति का घर इसलिए गिरा दिया गया क्योंकि किराएदार के बेटे पर घटना को अंजाम देने का आरोप था।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि "किसी को भी खामियों का फायदा नहीं उठाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि "अगर किसी पिता का बेटा उसकी बात नहीं मानता, तो भी उस आधार पर घर गिराना उचित नहीं है।"
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कानून का उल्लंघन होने पर घरों को गिराया जाता है। उन्होंने कहा, "हम तभी कार्रवाई करते हैं जब नगरपालिका कानून का उल्लंघन होता है।"
इस पर पीठ ने जवाब दिया, "हालांकि शिकायतों को देखते हुए, हमें लगता है कि उल्लंघन हो रहा है।" न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "हालांकि यह कानून की स्थिति है, लेकिन इसका उल्लंघन अधिक किया जा रहा है।" साथ ही उन्होंने कहा कि यदि निर्माण अनधिकृत है तो भी इसे "कानून के अनुसार" किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने राज्यभर में अनधिकृत इमारतों को गिराने के लिए दिशानिर्देश लागू करने की आवश्यकता पर भी विचार किया। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "सुझाव आने दीजिए। हम अखिल भारतीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी करेंगे।"
पीठ ने कहा, "अचल संपत्तियों को केवल प्रक्रिया के आधार पर ही ध्वस्त किया जा सकता है... हलफनामा भी दाखिल किया गया है... हम अखिल भारतीय स्तर पर दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं, ताकि उठाए गए मुद्दों के संबंध में चिंताओं का ध्यान रखा जा सके।"
सर्वोच्च न्यायालय 17 सितंबर को इस मामले की सुनवाई करेगा। शीर्ष न्यायालय आपराधिक गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों से कथित रूप से जुड़ी संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल करने की चलन से संबंधित कई मामलों पर विचार कर रहा है। इसे अक्सर "बुलडोज़र न्याय" कहा जाता है, जो विवाद का विषय रहा है।
बता दें कि पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब किसी अपराध में शामिल होने का सिर्फ आरोप सामने आने पर देशभर में बुलडोज़र से घरों को गिरा दिया गया।
इस साल फरवरी में दिल्ली के खजूरी खास इलाके में रैट माइनर वकील हसन के घर पर बुलडोजर चलाकर घर गिरा दिया गया। ये वही रैट माइनर्स हैं जिन्होंने उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में पिछले साल फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वकील हसन ने कहा कि जब वह घर पर नहीं थे, तब डीडीए ने उनका घर गिरा दिया।
डीडीए का कहना था कि यह अभियान अधिग्रहित जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ चलाया गया था। पुलिस ने भी बताया कि कई अन्य अवैध निर्माणों को भी गिराया गया। वकील हसन ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि उनके पड़ोसी घरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने कहा कि उनके बच्चे घर पर थे और उन्होंने मदद की गुहार लगाई, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं की गई।
इसी साल जून में मध्य प्रदेश में बीजेपी नेता मोनू कल्याणे की हत्या के आरोपियों के घर पर रिमूवल की कार्रवाई करते हुए नगर निगम ने उनके मकान तोड़ दिए। 22 जून को आधी रात को बैनर लगाने के दौरान मोनू कल्याणे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने आरोपियों को भोपाल के आईएसबीटी के बाहर से गिरफ्तार कर लिया था।
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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि देशभर में घरों और इमारतों को गिराए जाने से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस गवई ने मुस्लिम विद्वानों के संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "आरोपी होने के कारण किसी का घर कैसे गिराया जा सकता है? दोषी पाए जाने पर भी घर को नहीं गिराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बार को बताने के बाद भी हमें किसी रुख में बदलाव नहीं दिखता।"
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि 2022 के दंगों के तुरंत बाद दिल्ली में कई घरों को गिरा दिया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसमें रहने वालों ने हिंसा भड़काई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने उदयपुर के एक मामले का हवाला दिया, जिसमें एक व्यक्ति का घर इसलिए गिरा दिया गया क्योंकि किराएदार के बेटे पर घटना को अंजाम देने का आरोप था।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि "किसी को भी खामियों का फायदा नहीं उठाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि "अगर किसी पिता का बेटा उसकी बात नहीं मानता, तो भी उस आधार पर घर गिराना उचित नहीं है।"
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कानून का उल्लंघन होने पर घरों को गिराया जाता है। उन्होंने कहा, "हम तभी कार्रवाई करते हैं जब नगरपालिका कानून का उल्लंघन होता है।"
इस पर पीठ ने जवाब दिया, "हालांकि शिकायतों को देखते हुए, हमें लगता है कि उल्लंघन हो रहा है।" न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "हालांकि यह कानून की स्थिति है, लेकिन इसका उल्लंघन अधिक किया जा रहा है।" साथ ही उन्होंने कहा कि यदि निर्माण अनधिकृत है तो भी इसे "कानून के अनुसार" किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने राज्यभर में अनधिकृत इमारतों को गिराने के लिए दिशानिर्देश लागू करने की आवश्यकता पर भी विचार किया। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "सुझाव आने दीजिए। हम अखिल भारतीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी करेंगे।"
पीठ ने कहा, "अचल संपत्तियों को केवल प्रक्रिया के आधार पर ही ध्वस्त किया जा सकता है... हलफनामा भी दाखिल किया गया है... हम अखिल भारतीय स्तर पर दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं, ताकि उठाए गए मुद्दों के संबंध में चिंताओं का ध्यान रखा जा सके।"
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बता दें कि पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब किसी अपराध में शामिल होने का सिर्फ आरोप सामने आने पर देशभर में बुलडोज़र से घरों को गिरा दिया गया।
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