एनबीडीएसए ने संवेदनशील चर्चाओं में निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने में विफल रहने के लिए प्रसारकों और उनके एंकरों को चेतावनी जारी की जिसमें धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाले पक्षपाती हिस्सों को हटाने की मांग की गई।
समाचार प्रसारण और डिजिटल मानक प्राधिकरण यानी एनबीडीएसए ने 27 जनवरी, 2025 को सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा दायर शिकायतों पर दो अहम आदेश जारी किए, जिसमें टाइम्स नाउ नवभारत और जी न्यूज द्वारा सांप्रदायिक और भड़काऊ रिपोर्टिंग की निंदा की गई। दोनों प्रसारकों को सभी प्लेटफार्मों से विवादास्पद बहस के हिस्सों को हटाने का निर्देश दिया गया था, क्योंकि उनके एंकर पत्रकारिता के मानकों को कायम रखने में विफल रहे। उन्होंने सांप्रदायिक बयानबाजी और ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। एनबीडीएसए ने टाइम्स नाउ नवभारत को अक्टूबर 2023 में इजरायल-हमास संघर्ष के पक्षपातपूर्ण तरीके से पेश करने के लिए और जी न्यूज़ को मार्च 2024 में बदायूं के दोहरे हत्याकांड को सांप्रदायिक बनाने के लिए फटकार लगाई।
दोनों मामलों में एनबीडीएसए ने एंकरों के पक्षपातपूर्ण बर्ताव को उजागर किया, उन पर धार्मिक पूर्वाग्रह की ओर बहस को मोड़ने, सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने और पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ बयानों को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। प्राधिकरण ने पाया कि इन प्रसारणों ने आचार संहिता और एंकरों के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, उनके कंटेंट के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें हटाना आवश्यक माना। ये आदेश न केवल ध्रुवीकरण करने वाले बयानों को बनाए रखने में उनकी भूमिका के लिए एंकरों को जवाबदेह ठहराते हैं, बल्कि नैतिक और जिम्मेदार पत्रकारिता की अहम आवश्यकता पर भी जोर देते हैं।
सीजेपी नफरत फैलाने वाले बयान को खोजने और उन्हें लोगों के सामने लाने के लिए समर्पित है, ताकि इन जहरीले विचारों को प्रचारित करने वाले कट्टरपंथियों को बेनकाब किया जा सके और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जा सके। नफरत फैलाने वाले भाषण के खिलाफ हमारे अभियान के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया सदस्य बनें। हमारी पहलों का समर्थन करने के लिए, कृपया अभी दान करें!
इसरायल-हमास संघर्ष को बहस के दौरान सांप्रदायिक रंग देने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत को शिकायत पर आदेश
शिकायत की पृष्ठभूमि
23 अक्टूबर को सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने 16 अक्टूबर, 2023 को प्रसारित चर्चा के दो हिस्सों के बारे में टाइम्स नाउ नवभारत को लेकर शिकायत दर्ज की। “मोदी के खिलाफ… क्यों खड़े ‘हमास’ के साथ?” और “राष्ट्रवाद: हिंदुस्तान में ‘हमास थिंक टैंक’ कौन बना रहा है?” शीर्षक वाली चर्चाओं में इजरायल-हमास संघर्ष को संबोधित किया गया, लेकिन इस मुद्दे को सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण के तरीके से पेश किया गया। इन चर्चाओं में भारतीय मुसलमानों, विपक्षी नेताओं और फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले वामपंथी छात्र संगठनों को उनके “धार्मिक संबंध” के कारण हमास के हमदर्द के रूप में चित्रित किया गया। सीजेपी ने इस बात को उजागर किया कि कैसे इस तरह के प्रसारण ने मुसलमानों को कलंकित किया और फिलिस्तीनी मुद्दे को जीवन, स्वतंत्रता और कब्जे से मुक्ति के बजाय सांप्रदायिक मुद्दे के रूप में चित्रित किया।
शिकायत में कहा गया है कि एंकर राकेश पांडे और नैना यादव ने पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया, पक्षपातपूर्ण और ऐसे सवाल पूछे जो मुस्लिम समुदाय और उसके नेताओं को नकारात्मक रूप में पेश करते हैं। पांडे के शो में कहा गया कि भारतीय मुसलमान साझा धार्मिक संबंधों के कारण आतंकवाद का समर्थन कर सकते हैं, जबकि यादव की बहस में सवाल उठाया गया कि क्या विपक्षी नेता भारत में हमास के लिए समर्थन भड़का रहे हैं। सीजेपी ने तर्क दिया कि इस बयानबाजी ने तटस्थता और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के लिए एनबीडीएसए के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, जिससे भारत में ध्रुवीकरण का माहौल बना और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा। प्रसारक की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर शिकायत को 10 नवंबर, 2023 को एनबीडीएसए के पास भेज दिया गया।
शिकायतकर्ताओं द्वारा दी गई याचिकाएं
1. सांप्रदायिक पक्षपात: वाद-विवाद में फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों को हमास के साथ जोड़ा गया, जबकि इस तरह का कोई सबूत नहीं है।
2. आरोप लगाने वाला लहजा: एंकरों ने ध्रुवीकरण करने वाले सवाल पूछे, जैसे कि “क्या साझा धार्मिक संबंध के कारण आतंकवाद को समर्थन मिलेगा?” और विपक्षी नेताओं पर भारत में “हमास थिंक टैंक” बनाने का आरोप लगाया।
3. असमान व्यवहार: विपक्षी दलों और मुस्लिम पृष्ठभूमि के पैनलिस्टों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया गया, जबकि सत्तारूढ़ दल के प्रतिनिधियों को सांप्रदायिक बयानबाजी करने का मंच दिया गया।
4. गलत जानकारी का प्रचार: फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले विरोध प्रदर्शनों और बयानों की क्लिप का इस्तेमाल संदेह पैदा करने के लिए किया गया, जिसमें द्विराष्ट्र समाधान का समर्थन करने वाले भारत के आधिकारिक रुख की अनदेखी की गई।
शिकायतकर्ताओं ने निष्पक्ष चर्चा करने में एंकरों के जिम्मेदारी पर जोर देने के लिए नीलेश नवलखा बनाम भारत संघ का हवाला दिया।
प्रसारणकर्ता द्वारा दिए गए जवाब
1. भारत के रुख का समर्थन: प्रसारणकर्ता ने तर्क दिया कि चर्चाएं इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की स्थिति के अनुरूप हैं, जो हमास की निंदा करते हुए शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है।
2. दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं: प्रसारणकर्ता ने दावा किया कि चर्चाओं में केवल राजनीतिक नेताओं के बयानों पर सवाल उठाए गए थे, जिन्हें भारत के रुख का विरोध करने वाला माना जाता है।
3. आक्रामक लहजे को उचित ठहराया गया: इसने संवेदनशील विषयों के लिए लहजे को आवश्यक बताया और जोर देकर कहा कि कुछ दर्शकों को होने वाली झुंझलाहट प्रसारण मानदंडों का उल्लंघन नहीं करती है।
4. निष्पक्ष रिपोर्टिंग: प्रसारणकर्ता के अनुसार, इन चर्चाओं ने दर्शकों को सटीक जानकारी दी और कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के पीछे के उद्देश्यों को उजागर करने का प्रयास किया।
एनबीडीएसए का निर्णय
फुटेज, तर्कों और प्रस्तुतियों की समीक्षा करने के बाद एनबीडीएसए ने पाया कि हमास की आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आती है, लेकिन विवादित प्रसारण इस दायरे से बाहर चले गए और आचार संहिता और प्रसारण मानकों का उल्लंघन किया।
आदेश में मुख्य निष्कर्ष:
1. सांप्रदायिक रंग: एनबीडीएसए ने पाया कि इन चर्चाओं ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को सांप्रदायिक रंग दिया। फिलिस्तीन के समर्थन में राजनेताओं द्वारा दिए गए बयानों को हमास के समर्थन के साथ जोड़ दिया गया। चर्चाओं में पक्षपातपूर्ण और उत्तेजक प्रश्न भी शामिल थे, जैसे, "क्या साझा धार्मिक संबंध के कारण आतंकवाद को समर्थन मिलेगा?" और "भारत में हमास थिंक टैंक का निर्माण कौन कर रहा है?" इन सवालों ने एक विशिष्ट समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा करने में योगदान दिया।
2. एंकर दिशानिर्देशों का उल्लंघन: एंकर निष्पक्षता सुनिश्चित करने में विफल रहे। उन्होंने श्री शुभम त्यागी जैसे पैनलिस्टों को सांप्रदायिक बयानबाजी करने की इजाजत दी और फिलिस्तीन पर कांग्रेस पार्टी के रुख की तुलना आतंकवादी संस्थाओं के समर्थन से करने जैसे बयानों पर अंकुश नहीं लगाया गया।
3. एक समुदाय को निशाना बनाना: आदेश में कहा गया कि "प्रसारक ने एक विशेष समुदाय को निशाना बना करके सारी हदों को पार कर लिया," जैसा कि चर्चा के दौरान सवालों के पूछने और सांप्रदायिक बयानबाजी से स्पष्ट है।
4. संतुलित कवरेज करने में विफलता: हालांकि प्रसारक ने दावा किया कि वह संघर्ष को लेकर भारत के रुख को पेश कर रहा था, एनबीडीएसए ने पाया कि एंकरों ने हमास की निंदा के साथ-साथ फिलिस्तीन के लिए भारत के समर्थन को उजागर नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप एकतरफा रिपोर्टिंग हुई।
एनबीडीएसए द्वारा की गई कार्रवाई:
एनबीडीएसए ने निष्कर्ष निकाला कि प्रसारक द्वारा चर्चा को निष्पक्ष रूप से नियंत्रित करने में विफलता और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के सांप्रदायिक चित्रण ने प्रसारण के मानकों का उल्लंघन किया। यह निर्णय संवेदनशील चर्चाओं में जिम्मेदार पत्रकारिता सुनिश्चित करने के महत्व को उजागर करता है जो जनमत को आकार दे सकती हैं।
1. चेतावनी जारी की गई: एनबीडीएसए ने प्रसारक को तटस्थता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन करने के लिए एक औपचारिक चेतावनी जारी की।
2. कंटेंट को हटाना: प्रसारक को सात दिनों के भीतर अपनी वेबसाइट, यूट्यूब और किसी भी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से उक्त प्रसारण के वीडियो को हटाने का निर्देश दिया गया, जिसमें एनबीडीएसए को लिखित रूप में अनुपालन की पुष्टि की गई।
3. भविष्य के प्रसारणों के लिए सलाह: एनबीडीएसए ने प्रसारक को भविष्य के प्रसारणों में, विशेष रूप से संवेदनशील विषयों पर, 'वाद-विवाद सहित कार्यक्रम आयोजित करने वाले एंकरों के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों' का सख्ती से पालन करने की सलाह दी।
4. आदेश जारी करना: एनबीडीएसए ने शिकायतकर्ताओं, प्रसारक और मीडिया को आदेश जारी करने और इसे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करने का निर्देश दिया।
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है।
बदायूं दोहरे हत्याकांड को बहस के दौरान सांप्रदायिक रंग देने के लिए जी न्यूज़ को दी गई शिकायत पर आदेश
शिकायत की पृष्ठभूमि
27 मार्च, 2024 को, सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने 20 मार्च, 2024 को जी न्यूज़ पर प्रसारित एक लाइव डिबेट खंड के बारे में जी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एक डिटेल शिकायत दर्ज कराई। कार्यक्रम, जिसका शीर्षक था "बदायूं मुठभेड़ पर बहस लाइव: मुठभेड़ पर क्यों उठा रहे सवाल? जावेद | साजिद | ब्रेकिंग न्यूज़," बदायूं दोहरे हत्याकांड पर केंद्रित था, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति पर दो हिंदू बच्चों की हत्या करने का आरोप लगाया गया था। इस हिस्से को 11 घंटे से ज्यादा समय तक लूप में बार-बार प्रसारित किया गया, जिससे इसका प्रभाव बढ़ा और सांप्रदायिक बयानों को बढ़ावा देने के जानबूझकर किए गए प्रयास के बारे में चिंताएं पैदा हुईं। पैनल चर्चा 35 मिनट से ज्यादा समय तक चली, जिसके दौरान एंकर और पैनलिस्टों को एक समस्याग्रस्त रुख अपनाते हुए देखा गया, जिसने एक आपराधिक मामले में सांप्रदायिक लहजा जोड़ दिया।
सीजेपी की शिकायत में एंकर द्वारा इस्तेमाल की गई अपमानजनक और सांप्रदायिक भाषा को उजागर किया गया, जैसे कि अपराध को "तालिबानी शैली की हत्या" के रूप में पेश करना, जिसने अनावश्यक रूप से घटना को आरोपी की धार्मिक पहचान से जोड़ दिया। इसने कहा कि शो को एकतरफा सांप्रदायिक दृष्टिकोण का प्रचार करने के लिए तैयार किया गया था, जो पूरे मुस्लिम समुदाय को निशान बनाता था। मुस्लिम पैनलिस्टों को आरोप वाले सवालों और ध्रुवीकृत माहौल का सामना करना पड़ा, जबकि हिंदू पैनलिस्ट के साथ फेवरेबल बर्ताव किया गया। सीजेपी ने इस तरह के पक्षपातपूर्ण कंटेट को बार-बार प्रसारित करने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में भी चिंता जताई और प्रसारक से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के साथ ही इसे सभी प्लेटफार्मों से हटाने की मांग की। प्रसारक से कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर, शिकायत को 17 अप्रैल, 2024 को एनबीडीएसए में भेज दिया गया।
शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए तर्क
1. घटना का सांप्रदायिकरण: शिकायतकर्ता ने कहा कि बहस पीड़ितों और आरोपियों के धर्म पर केंद्रित थी, जबकि पुलिस और परिवार ने पुष्टि की थी कि कोई धार्मिक मकसद नहीं था।
2. "तालिबानी शैली की हत्या" का इस्तेमाल: हत्या को बार-बार "तालिबानी शैली" के रूप में पेश किया गया, क्योंकि आरोपी मुस्लिम था और उसने चाकू का इस्तेमाल किया था।
3. पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ टिप्पणी: पैनलिस्टों द्वारा सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ बयान दिए गए, जिसमें मदरसों के बारे में आरोप और दावा किया गया कि मुसलमान गैर-मुसलमानों को "काफिर" मानते हैं।
4. मुस्लिम पैनलिस्टों के खिलाफ भेदभाव: मुस्लिम पैनलिस्टों को बीच में रोका गया, उन पर आरोपी के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगाया गया और माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया, जबकि हिंदू पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ बयानों पर कोई रोक नहीं लगाई गई।
5. न्यायिक हत्याओं से ध्यान भटकाना: एंकर ने न्यायेतर हत्याओं पर चर्चा से ध्यान भटकाया और मुस्लिम पैनलिस्टों पर आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगाया।
6. मुस्लिम विरोधी बयानबाजी: बहस के दौरान "हिंदुओं को मुस्लिम नाइयों से बचना चाहिए" जैसे बयान दिए गए, जिसमें एंकर ने ऐसी टिप्पणियों को उचित ठहराया।
7. दिशानिर्देशों का उल्लंघन: इस प्रसारण ने घटना को सांप्रदायिक रंग देकर और धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा देकर NBDSA दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया।
प्रसारणकर्ता की प्रतिक्रियाएं
1. चर्चा का उद्देश्य: प्रसारणकर्ता ने तर्क दिया कि इस चर्चा का उद्देश्य दोहरे हत्याकांड पर राजनेताओं की चुप्पी को उजागर करना था।
2. एंकर की तटस्थता: एंकर ने चर्चा की शुरुआत में कहा कि सांप्रदायिक राजनीति को चर्चा का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
3. पैनलिस्टों को नियंत्रित करने का प्रयास: प्रसारणकर्ता ने दावा किया कि एंकर ने पैनलिस्टों को मुख्य विषय से भटकने से रोकने का प्रयास किया।
4. प्रतिनिधित्व का संतुलन: संतुलित चर्चा सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक नेताओं को बुलाया गया था।
5. “तालिबानी शैली की हत्या” का इस्तेमाल: इस शब्द का इस्तेमाल अपराध की क्रूरता को दर्शाने के लिए किया गया था, न कि धर्म का संदर्भ देने के लिए।
6. अस्वीकरण: प्रसारण के दौरान प्रसारित एक अस्वीकरण ने स्पष्ट किया कि पैनलिस्टों द्वारा व्यक्त किए गए विचार निजी थे और चैनल द्वारा समर्थित नहीं थे।
एनबीडीएसए का निर्णय
फुटेज, दलीलों और प्रस्तुतियों की समीक्षा करने के बाद, एनबीडीएसए ने कहा कि हालांकि प्रसारक को ऐसी घटनाओं पर राजनेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाने का पूरा अधिकार है, जो समाज में सद्भाव को बिगाड़ने की प्रवृत्ति रखती हैं, विवादित प्रसारण ने इस अधिकार क्षेत्र की सीमा को पार किया और आचार संहिता और प्रसारण मानकों का उल्लंघन किया। आदेश में कहा गया कि एंकर ने केवल इस कारण से कि संदिग्ध व्यक्ति एक विशेष समुदाय से था, इसे 'तालिबानी शैली' हत्या के रूप में बताना उचित नहीं था।
आदेश में मुख्य निष्कर्ष:
1. प्रसारण का अधिकार: प्रसारक को घटना पर चर्चा करने और राजनेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाने का अधिकार था, लेकिन इस पहलू पर चर्चा को सीमित करने में विफल रहा।
2. घटना का सांप्रदायिकरण: केवल आरोपी के धर्म के आधार पर हत्या को "तालिबानी शैली" के रूप में बताना घटना को एक अनुचित सांप्रदायिक रंग दे रहा था।
3. दिशानिर्देशों का उल्लंघन: प्रसारण ने आचार संहिता और प्रसारण मानकों, कार्यक्रम आयोजित करने वाले एंकरों के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों और अपराध की रिपोर्टिंग में सांप्रदायिक रंग को रोकने के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया।
4. पैनलिस्टों को मैनेज करने में विफलता: एंकर ने भड़काऊ बयानबाजी को बढ़ावा दिया, कुछ पैनलिस्टों को बिना जांचे अपमानजनक बयान देने की अनुमति दी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में विफल रहा।
5. अस्वीकरण अपर्याप्त माना गया: NBDSA ने माना कि अस्वीकरण प्रसारकों को तटस्थता सुनिश्चित करने और दिशानिर्देशों का पालन करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करते हैं।
NBDSA द्वारा निर्देश:
चेतावनी जारी की गई: प्रसारण दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए प्रसारक को चेतावनी जारी की गई।
सामग्री को हटाना: प्रसारक को सभी प्लेटफार्मों से प्रसारण हटाने और सात दिनों के भीतर अनुपालन की पुष्टि करने का निर्देश दिया गया।
आदेश जारी करना: आदेश को NBDA सदस्यों, संपादकों और कानूनी प्रमुखों के साथ साझा किया जाना था, NBDSA वेबसाइट पर होस्ट किया जाना था, वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया जाना था और मीडिया को जारी किया जाना था।
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है।
समाचार प्रसारण और डिजिटल मानक प्राधिकरण यानी एनबीडीएसए ने 27 जनवरी, 2025 को सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा दायर शिकायतों पर दो अहम आदेश जारी किए, जिसमें टाइम्स नाउ नवभारत और जी न्यूज द्वारा सांप्रदायिक और भड़काऊ रिपोर्टिंग की निंदा की गई। दोनों प्रसारकों को सभी प्लेटफार्मों से विवादास्पद बहस के हिस्सों को हटाने का निर्देश दिया गया था, क्योंकि उनके एंकर पत्रकारिता के मानकों को कायम रखने में विफल रहे। उन्होंने सांप्रदायिक बयानबाजी और ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। एनबीडीएसए ने टाइम्स नाउ नवभारत को अक्टूबर 2023 में इजरायल-हमास संघर्ष के पक्षपातपूर्ण तरीके से पेश करने के लिए और जी न्यूज़ को मार्च 2024 में बदायूं के दोहरे हत्याकांड को सांप्रदायिक बनाने के लिए फटकार लगाई।
दोनों मामलों में एनबीडीएसए ने एंकरों के पक्षपातपूर्ण बर्ताव को उजागर किया, उन पर धार्मिक पूर्वाग्रह की ओर बहस को मोड़ने, सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने और पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ बयानों को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। प्राधिकरण ने पाया कि इन प्रसारणों ने आचार संहिता और एंकरों के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, उनके कंटेंट के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें हटाना आवश्यक माना। ये आदेश न केवल ध्रुवीकरण करने वाले बयानों को बनाए रखने में उनकी भूमिका के लिए एंकरों को जवाबदेह ठहराते हैं, बल्कि नैतिक और जिम्मेदार पत्रकारिता की अहम आवश्यकता पर भी जोर देते हैं।
सीजेपी नफरत फैलाने वाले बयान को खोजने और उन्हें लोगों के सामने लाने के लिए समर्पित है, ताकि इन जहरीले विचारों को प्रचारित करने वाले कट्टरपंथियों को बेनकाब किया जा सके और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जा सके। नफरत फैलाने वाले भाषण के खिलाफ हमारे अभियान के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया सदस्य बनें। हमारी पहलों का समर्थन करने के लिए, कृपया अभी दान करें!
इसरायल-हमास संघर्ष को बहस के दौरान सांप्रदायिक रंग देने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत को शिकायत पर आदेश
शिकायत की पृष्ठभूमि
23 अक्टूबर को सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने 16 अक्टूबर, 2023 को प्रसारित चर्चा के दो हिस्सों के बारे में टाइम्स नाउ नवभारत को लेकर शिकायत दर्ज की। “मोदी के खिलाफ… क्यों खड़े ‘हमास’ के साथ?” और “राष्ट्रवाद: हिंदुस्तान में ‘हमास थिंक टैंक’ कौन बना रहा है?” शीर्षक वाली चर्चाओं में इजरायल-हमास संघर्ष को संबोधित किया गया, लेकिन इस मुद्दे को सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण के तरीके से पेश किया गया। इन चर्चाओं में भारतीय मुसलमानों, विपक्षी नेताओं और फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले वामपंथी छात्र संगठनों को उनके “धार्मिक संबंध” के कारण हमास के हमदर्द के रूप में चित्रित किया गया। सीजेपी ने इस बात को उजागर किया कि कैसे इस तरह के प्रसारण ने मुसलमानों को कलंकित किया और फिलिस्तीनी मुद्दे को जीवन, स्वतंत्रता और कब्जे से मुक्ति के बजाय सांप्रदायिक मुद्दे के रूप में चित्रित किया।
शिकायत में कहा गया है कि एंकर राकेश पांडे और नैना यादव ने पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया, पक्षपातपूर्ण और ऐसे सवाल पूछे जो मुस्लिम समुदाय और उसके नेताओं को नकारात्मक रूप में पेश करते हैं। पांडे के शो में कहा गया कि भारतीय मुसलमान साझा धार्मिक संबंधों के कारण आतंकवाद का समर्थन कर सकते हैं, जबकि यादव की बहस में सवाल उठाया गया कि क्या विपक्षी नेता भारत में हमास के लिए समर्थन भड़का रहे हैं। सीजेपी ने तर्क दिया कि इस बयानबाजी ने तटस्थता और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के लिए एनबीडीएसए के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, जिससे भारत में ध्रुवीकरण का माहौल बना और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा। प्रसारक की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर शिकायत को 10 नवंबर, 2023 को एनबीडीएसए के पास भेज दिया गया।
शिकायतकर्ताओं द्वारा दी गई याचिकाएं
1. सांप्रदायिक पक्षपात: वाद-विवाद में फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों को हमास के साथ जोड़ा गया, जबकि इस तरह का कोई सबूत नहीं है।
2. आरोप लगाने वाला लहजा: एंकरों ने ध्रुवीकरण करने वाले सवाल पूछे, जैसे कि “क्या साझा धार्मिक संबंध के कारण आतंकवाद को समर्थन मिलेगा?” और विपक्षी नेताओं पर भारत में “हमास थिंक टैंक” बनाने का आरोप लगाया।
3. असमान व्यवहार: विपक्षी दलों और मुस्लिम पृष्ठभूमि के पैनलिस्टों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया गया, जबकि सत्तारूढ़ दल के प्रतिनिधियों को सांप्रदायिक बयानबाजी करने का मंच दिया गया।
4. गलत जानकारी का प्रचार: फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले विरोध प्रदर्शनों और बयानों की क्लिप का इस्तेमाल संदेह पैदा करने के लिए किया गया, जिसमें द्विराष्ट्र समाधान का समर्थन करने वाले भारत के आधिकारिक रुख की अनदेखी की गई।
शिकायतकर्ताओं ने निष्पक्ष चर्चा करने में एंकरों के जिम्मेदारी पर जोर देने के लिए नीलेश नवलखा बनाम भारत संघ का हवाला दिया।
प्रसारणकर्ता द्वारा दिए गए जवाब
1. भारत के रुख का समर्थन: प्रसारणकर्ता ने तर्क दिया कि चर्चाएं इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की स्थिति के अनुरूप हैं, जो हमास की निंदा करते हुए शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है।
2. दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं: प्रसारणकर्ता ने दावा किया कि चर्चाओं में केवल राजनीतिक नेताओं के बयानों पर सवाल उठाए गए थे, जिन्हें भारत के रुख का विरोध करने वाला माना जाता है।
3. आक्रामक लहजे को उचित ठहराया गया: इसने संवेदनशील विषयों के लिए लहजे को आवश्यक बताया और जोर देकर कहा कि कुछ दर्शकों को होने वाली झुंझलाहट प्रसारण मानदंडों का उल्लंघन नहीं करती है।
4. निष्पक्ष रिपोर्टिंग: प्रसारणकर्ता के अनुसार, इन चर्चाओं ने दर्शकों को सटीक जानकारी दी और कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के पीछे के उद्देश्यों को उजागर करने का प्रयास किया।
एनबीडीएसए का निर्णय
फुटेज, तर्कों और प्रस्तुतियों की समीक्षा करने के बाद एनबीडीएसए ने पाया कि हमास की आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आती है, लेकिन विवादित प्रसारण इस दायरे से बाहर चले गए और आचार संहिता और प्रसारण मानकों का उल्लंघन किया।
आदेश में मुख्य निष्कर्ष:
1. सांप्रदायिक रंग: एनबीडीएसए ने पाया कि इन चर्चाओं ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को सांप्रदायिक रंग दिया। फिलिस्तीन के समर्थन में राजनेताओं द्वारा दिए गए बयानों को हमास के समर्थन के साथ जोड़ दिया गया। चर्चाओं में पक्षपातपूर्ण और उत्तेजक प्रश्न भी शामिल थे, जैसे, "क्या साझा धार्मिक संबंध के कारण आतंकवाद को समर्थन मिलेगा?" और "भारत में हमास थिंक टैंक का निर्माण कौन कर रहा है?" इन सवालों ने एक विशिष्ट समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा करने में योगदान दिया।
2. एंकर दिशानिर्देशों का उल्लंघन: एंकर निष्पक्षता सुनिश्चित करने में विफल रहे। उन्होंने श्री शुभम त्यागी जैसे पैनलिस्टों को सांप्रदायिक बयानबाजी करने की इजाजत दी और फिलिस्तीन पर कांग्रेस पार्टी के रुख की तुलना आतंकवादी संस्थाओं के समर्थन से करने जैसे बयानों पर अंकुश नहीं लगाया गया।
3. एक समुदाय को निशाना बनाना: आदेश में कहा गया कि "प्रसारक ने एक विशेष समुदाय को निशाना बना करके सारी हदों को पार कर लिया," जैसा कि चर्चा के दौरान सवालों के पूछने और सांप्रदायिक बयानबाजी से स्पष्ट है।
4. संतुलित कवरेज करने में विफलता: हालांकि प्रसारक ने दावा किया कि वह संघर्ष को लेकर भारत के रुख को पेश कर रहा था, एनबीडीएसए ने पाया कि एंकरों ने हमास की निंदा के साथ-साथ फिलिस्तीन के लिए भारत के समर्थन को उजागर नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप एकतरफा रिपोर्टिंग हुई।
एनबीडीएसए द्वारा की गई कार्रवाई:
एनबीडीएसए ने निष्कर्ष निकाला कि प्रसारक द्वारा चर्चा को निष्पक्ष रूप से नियंत्रित करने में विफलता और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के सांप्रदायिक चित्रण ने प्रसारण के मानकों का उल्लंघन किया। यह निर्णय संवेदनशील चर्चाओं में जिम्मेदार पत्रकारिता सुनिश्चित करने के महत्व को उजागर करता है जो जनमत को आकार दे सकती हैं।
1. चेतावनी जारी की गई: एनबीडीएसए ने प्रसारक को तटस्थता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन करने के लिए एक औपचारिक चेतावनी जारी की।
2. कंटेंट को हटाना: प्रसारक को सात दिनों के भीतर अपनी वेबसाइट, यूट्यूब और किसी भी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से उक्त प्रसारण के वीडियो को हटाने का निर्देश दिया गया, जिसमें एनबीडीएसए को लिखित रूप में अनुपालन की पुष्टि की गई।
3. भविष्य के प्रसारणों के लिए सलाह: एनबीडीएसए ने प्रसारक को भविष्य के प्रसारणों में, विशेष रूप से संवेदनशील विषयों पर, 'वाद-विवाद सहित कार्यक्रम आयोजित करने वाले एंकरों के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों' का सख्ती से पालन करने की सलाह दी।
4. आदेश जारी करना: एनबीडीएसए ने शिकायतकर्ताओं, प्रसारक और मीडिया को आदेश जारी करने और इसे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करने का निर्देश दिया।
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है।
बदायूं दोहरे हत्याकांड को बहस के दौरान सांप्रदायिक रंग देने के लिए जी न्यूज़ को दी गई शिकायत पर आदेश
शिकायत की पृष्ठभूमि
27 मार्च, 2024 को, सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने 20 मार्च, 2024 को जी न्यूज़ पर प्रसारित एक लाइव डिबेट खंड के बारे में जी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एक डिटेल शिकायत दर्ज कराई। कार्यक्रम, जिसका शीर्षक था "बदायूं मुठभेड़ पर बहस लाइव: मुठभेड़ पर क्यों उठा रहे सवाल? जावेद | साजिद | ब्रेकिंग न्यूज़," बदायूं दोहरे हत्याकांड पर केंद्रित था, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति पर दो हिंदू बच्चों की हत्या करने का आरोप लगाया गया था। इस हिस्से को 11 घंटे से ज्यादा समय तक लूप में बार-बार प्रसारित किया गया, जिससे इसका प्रभाव बढ़ा और सांप्रदायिक बयानों को बढ़ावा देने के जानबूझकर किए गए प्रयास के बारे में चिंताएं पैदा हुईं। पैनल चर्चा 35 मिनट से ज्यादा समय तक चली, जिसके दौरान एंकर और पैनलिस्टों को एक समस्याग्रस्त रुख अपनाते हुए देखा गया, जिसने एक आपराधिक मामले में सांप्रदायिक लहजा जोड़ दिया।
सीजेपी की शिकायत में एंकर द्वारा इस्तेमाल की गई अपमानजनक और सांप्रदायिक भाषा को उजागर किया गया, जैसे कि अपराध को "तालिबानी शैली की हत्या" के रूप में पेश करना, जिसने अनावश्यक रूप से घटना को आरोपी की धार्मिक पहचान से जोड़ दिया। इसने कहा कि शो को एकतरफा सांप्रदायिक दृष्टिकोण का प्रचार करने के लिए तैयार किया गया था, जो पूरे मुस्लिम समुदाय को निशान बनाता था। मुस्लिम पैनलिस्टों को आरोप वाले सवालों और ध्रुवीकृत माहौल का सामना करना पड़ा, जबकि हिंदू पैनलिस्ट के साथ फेवरेबल बर्ताव किया गया। सीजेपी ने इस तरह के पक्षपातपूर्ण कंटेट को बार-बार प्रसारित करने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में भी चिंता जताई और प्रसारक से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के साथ ही इसे सभी प्लेटफार्मों से हटाने की मांग की। प्रसारक से कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर, शिकायत को 17 अप्रैल, 2024 को एनबीडीएसए में भेज दिया गया।
शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए तर्क
1. घटना का सांप्रदायिकरण: शिकायतकर्ता ने कहा कि बहस पीड़ितों और आरोपियों के धर्म पर केंद्रित थी, जबकि पुलिस और परिवार ने पुष्टि की थी कि कोई धार्मिक मकसद नहीं था।
2. "तालिबानी शैली की हत्या" का इस्तेमाल: हत्या को बार-बार "तालिबानी शैली" के रूप में पेश किया गया, क्योंकि आरोपी मुस्लिम था और उसने चाकू का इस्तेमाल किया था।
3. पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ टिप्पणी: पैनलिस्टों द्वारा सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ बयान दिए गए, जिसमें मदरसों के बारे में आरोप और दावा किया गया कि मुसलमान गैर-मुसलमानों को "काफिर" मानते हैं।
4. मुस्लिम पैनलिस्टों के खिलाफ भेदभाव: मुस्लिम पैनलिस्टों को बीच में रोका गया, उन पर आरोपी के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगाया गया और माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया, जबकि हिंदू पैनलिस्टों द्वारा भड़काऊ बयानों पर कोई रोक नहीं लगाई गई।
5. न्यायिक हत्याओं से ध्यान भटकाना: एंकर ने न्यायेतर हत्याओं पर चर्चा से ध्यान भटकाया और मुस्लिम पैनलिस्टों पर आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगाया।
6. मुस्लिम विरोधी बयानबाजी: बहस के दौरान "हिंदुओं को मुस्लिम नाइयों से बचना चाहिए" जैसे बयान दिए गए, जिसमें एंकर ने ऐसी टिप्पणियों को उचित ठहराया।
7. दिशानिर्देशों का उल्लंघन: इस प्रसारण ने घटना को सांप्रदायिक रंग देकर और धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा देकर NBDSA दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया।
प्रसारणकर्ता की प्रतिक्रियाएं
1. चर्चा का उद्देश्य: प्रसारणकर्ता ने तर्क दिया कि इस चर्चा का उद्देश्य दोहरे हत्याकांड पर राजनेताओं की चुप्पी को उजागर करना था।
2. एंकर की तटस्थता: एंकर ने चर्चा की शुरुआत में कहा कि सांप्रदायिक राजनीति को चर्चा का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
3. पैनलिस्टों को नियंत्रित करने का प्रयास: प्रसारणकर्ता ने दावा किया कि एंकर ने पैनलिस्टों को मुख्य विषय से भटकने से रोकने का प्रयास किया।
4. प्रतिनिधित्व का संतुलन: संतुलित चर्चा सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक नेताओं को बुलाया गया था।
5. “तालिबानी शैली की हत्या” का इस्तेमाल: इस शब्द का इस्तेमाल अपराध की क्रूरता को दर्शाने के लिए किया गया था, न कि धर्म का संदर्भ देने के लिए।
6. अस्वीकरण: प्रसारण के दौरान प्रसारित एक अस्वीकरण ने स्पष्ट किया कि पैनलिस्टों द्वारा व्यक्त किए गए विचार निजी थे और चैनल द्वारा समर्थित नहीं थे।
एनबीडीएसए का निर्णय
फुटेज, दलीलों और प्रस्तुतियों की समीक्षा करने के बाद, एनबीडीएसए ने कहा कि हालांकि प्रसारक को ऐसी घटनाओं पर राजनेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाने का पूरा अधिकार है, जो समाज में सद्भाव को बिगाड़ने की प्रवृत्ति रखती हैं, विवादित प्रसारण ने इस अधिकार क्षेत्र की सीमा को पार किया और आचार संहिता और प्रसारण मानकों का उल्लंघन किया। आदेश में कहा गया कि एंकर ने केवल इस कारण से कि संदिग्ध व्यक्ति एक विशेष समुदाय से था, इसे 'तालिबानी शैली' हत्या के रूप में बताना उचित नहीं था।
आदेश में मुख्य निष्कर्ष:
1. प्रसारण का अधिकार: प्रसारक को घटना पर चर्चा करने और राजनेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाने का अधिकार था, लेकिन इस पहलू पर चर्चा को सीमित करने में विफल रहा।
2. घटना का सांप्रदायिकरण: केवल आरोपी के धर्म के आधार पर हत्या को "तालिबानी शैली" के रूप में बताना घटना को एक अनुचित सांप्रदायिक रंग दे रहा था।
3. दिशानिर्देशों का उल्लंघन: प्रसारण ने आचार संहिता और प्रसारण मानकों, कार्यक्रम आयोजित करने वाले एंकरों के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों और अपराध की रिपोर्टिंग में सांप्रदायिक रंग को रोकने के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया।
4. पैनलिस्टों को मैनेज करने में विफलता: एंकर ने भड़काऊ बयानबाजी को बढ़ावा दिया, कुछ पैनलिस्टों को बिना जांचे अपमानजनक बयान देने की अनुमति दी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में विफल रहा।
5. अस्वीकरण अपर्याप्त माना गया: NBDSA ने माना कि अस्वीकरण प्रसारकों को तटस्थता सुनिश्चित करने और दिशानिर्देशों का पालन करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करते हैं।
NBDSA द्वारा निर्देश:
चेतावनी जारी की गई: प्रसारण दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए प्रसारक को चेतावनी जारी की गई।
सामग्री को हटाना: प्रसारक को सभी प्लेटफार्मों से प्रसारण हटाने और सात दिनों के भीतर अनुपालन की पुष्टि करने का निर्देश दिया गया।
आदेश जारी करना: आदेश को NBDA सदस्यों, संपादकों और कानूनी प्रमुखों के साथ साझा किया जाना था, NBDSA वेबसाइट पर होस्ट किया जाना था, वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया जाना था और मीडिया को जारी किया जाना था।
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है।