पांच सालों में एक तिहाई घट गई भूमि जोत, किसानों की आय बढ़ी लेकिन खर्च और कर्ज भी बढ़ा : नाबार्ड सर्वे

Written by Navnish Kumar | Published on: October 11, 2024
नाबार्ड के एक सर्वे के मुताबिक देश में किसानों के पास 2016-17 में जहां औसत खेती के लिए भूमि जोत 1.08 हेक्टेयर थी वहीं, 2021-22 में ये घटकर 0.74 हेक्टेयर ही रह गई है।


साभार : सोशल मीडिया एक्स (डाउन टू अर्थ)

"पांच सालों में भूमि जोत एक तिहाई घट गई है लेकिन किसानों की आय बढ़ी है तो उसके साथ खर्च और कर्ज भी बढ़ा है। नाबार्ड के एक सर्वे के मुताबिक देश में किसानों के पास 2016-17 में जहां औसत खेती के लिए भूमि जोत 1.08 हेक्टेयर थी वहीं, 2021-22 में ये घटकर 0.74 हेक्टेयर ही रह गई है। जबकि, औसत मासिक घरेलू आय में 57.6% तथा मासिक खर्च में 69.4% का इजाफा हुआ है। यानी लोग ज्यादा कमा रहे हैं, तो वे ज्यादा खर्च भी कर रहे हैं।इसी से उन पर कर्ज बढ़ रहा है।"

नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के ताजा सर्वे अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (एनएएफआईएस) 2021-22 आंकड़ों में यह बात सामने आई है। एक लाख परिवारों के इस सर्वे के आंकड़ों के आधार पर ग्रामीण भारत में प्रमुख आर्थिक रुझानों का पता चलता है। सर्वे के अनुसार, औसत मासिक आय में 57.6% की वृद्धि हुई, तो घरेलू खर्च और कर्ज भी बढ़ा है। हालांकि वित्तीय साक्षरता और बचत में सुधार हुआ है, लेकिन औसत भूमि जोत 1.08 हेक्टेयर से घटकर 0.74 हेक्टेयर रह गई है, जिससे स्थिरता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। 

यह सर्वेक्षण कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ग्रामीण क्षेत्र में प्रमुख आर्थिक और वित्तीय संकेतकों पर प्रकाश डालता है। मूल रूप से कृषि वर्ष 2016-17 में आयोजित, पहले NAFIS सर्वेक्षण ने ग्रामीण वित्तीय परिदृश्य में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रकट की। तब से, अर्थव्यवस्था ने कई चुनौतियों का सामना किया है, जिसके कारण सरकार को कृषि विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से कई तरह के नीतिगत उपायों को लागू करना पड़ा है। नवीनतम परिणाम पिछले 5 वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में हुई प्रगति पर तुलनात्मक परिपेक्ष्य प्रदान करते हैं।

सर्वेक्षण के मुताबिक, एक ओर जहां किसानों की मासिक घरेलू आय बढ़ रही है, वहीं उन पर व्यय और कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। बढ़ी हुई कमाई के साथ किसान परिवार गैर खाद्य खर्चों की तरफ बढ़ रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंताजनक यह है कि उनके पास खेती के लिए मौजूद भूमि जोत भी सिकुड़ती जा रही है। सर्वे के अनुसार, देश में किसानों के पास 2016-17 में जहां औसत खेती के लिए भूमि जोत 1.08 हेक्टेयर थी वहीं, यह 2021-22 में घटकर 0.74 हेक्टेयर ही रह गई है। यानी करीब एक तिहाई (31 फीसदी) की कमी आई है।

ताजा सर्वेक्षण में किसानों के लिए एक उत्साहजनक खबर भी मौजूद है। इस सर्वे को लेकर डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में किसानों की औसत मासिक घरेलू आय जहां 8,059 रुपए थी, वहीं अब 2021-22 में यह 57.6 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 12,698 रुपए तक हो गई है। हालांकि ग्रामीण आय की 9.5 फीसदी कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) की वृद्धि सुखद है लेकिन औसत मासिक व्यय में वृद्धि भी दर्ज की गई है। जबकि सर्वेक्षण के मुताबिक 2016-17 में ग्रामीण परिवार जहां महीने में 6,646 औसतन खर्च कर रहे थे वहीं यह अब बढ़कर 11,262 रुपए हो गया है। यानी 2016-17 के बाद मासिक खर्च में 69.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका साधारण अर्थ है कि लोग ज्यादा कमा रहे हैं, लेकिन साथ ही वे ज्यादा खर्च भी कर रहे हैं। इस खर्च में भोजन के खर्च का हिस्सा 51 से घटकर 47 फीसदी हो गया है, जो यह बताता है कि ग्रामीण परिवार गैर-खाद्य खर्चों की ओर बढ़ रहे हैं। इससे खर्च करने की प्रवृत्ति और खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल उठता है।

लेकिन एक और चिंताजनक पहलू यह है कि आय और कर्च के इस गणित के अलावा किसान परिवारों पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण लेने वाले परिवारों की संख्या 47.4 प्रतिशत से बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई है, जो वित्तीय दबाव का संकेत है। इसका अर्थ हुआ कि 2016-17 में यदि हर 100 घरों में से लगभग 47 ( 47.4%) पर किसी न किसी तरह का कर्ज था, यानी उन पर पैसे बकाया थे तो 2021-22 तक यह संख्या बढ़कर हर 100 घरों में से 52 ( 52.0 फीसदी) हो गई।

सर्वेक्षण बताता है कि इन पांच वर्षों में बकाया कर्ज वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है जो बताता है कि ज्यादा से ज्यादा परिवार अपने खर्चों को पूरा करने या जरूरतें पूरी करने के लिए ऋण पर निर्भर हैं। यह वृद्धि परिवारों पर वित्तीय दबाव और उधार पैसे की ज्यादा जरूरत का संकेत देती है। हालांकि, सर्वेक्षण में ग्रामीण परिवारों के बीच संस्थागत उधार में 60.5 फीसदी से 75.5 फीसदी तक की वृद्धि का आंकड़ा एक सकारात्मक विकास की तरफ इशारा कर रहा है, जो यह बताता है कि किसान औपचारिक वित्तीय चैनलों तक पहुंच रहे हैं।

किसान क्रेडिट कार्ड(केसीसी) योजना का काफी विस्तार हुआ है। केसीसी की कवरेज 10.5 फीसदी से बढ़कर 44.1 फीसदी हो गई है। यह किसानों के बीच वित्तीय समावेशन में सुधार की दिशा में प्रयासों को उजागर करता है। किसान परिवारों की पेंशन तक पहुंच में भी सुधार हुआ है। सर्वेक्षण के मुताबिक 23.5 प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक सदस्य पेंशन प्राप्त कर रहा है, जो पहले 18.9 प्रतिशत था। इसके अलावा बीमा कवरेज में भी सुधार देखा गया है। 80.3 प्रतिशत परिवारों के पास अब कम से कम एक बीमाधारक है, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा सिर्फ 25.5 प्रतिशत था।

वित्तीय साक्षरता और वित्तीय व्यवहार में भी सुधार हुआ है। 51.3 प्रतिशत परिवारों ने बेहतर वित्तीय जानकारी की सूचना दी, जबकि पहले यह आंकड़ा 33.9 प्रतिशत था। साथ ही, 72.8 प्रतिशत परिवारों ने पैसे का बेहतर प्रबंधन और समय पर बिलों का भुगतान किया, जो पहले 56.4 प्रतिशत था। इस वृद्धि से पता चलता है कि कुछ परिवार आर्थिक दबावों के लिए बेहतर तरीके से अनुकूलन कर रहे हैं। हालांकि, यह कह पाना मुश्किल होगा कि ग्रामीण परिवारों का यह व्यवहार उनकी आर्थिक स्थिति को अच्छा करने के लिए है या फिर वे लगातार प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं और अपने वित्तीय व्यवहार से उसका सामना कर रहे हैं।

वहीं, सर्वेक्षण में एक अच्छी खबर यह है कि ग्रामीण परिवारों के बीच वित्तीय बचत में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो 9,104 रुपये से बढ़कर 13,209 रुपये हो गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि करीब 66 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने 2021-22 में बचत की, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 50.6 प्रतिशत था।

इन सकारात्मक रुझानों के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि जोत का औसत आकार 1.08 हेक्टेयर से घटकर 0.74 हेक्टेयर रह गया। यह गिरावट कृषि स्थिरता और ग्रामीण परिवारों की दीर्घकालिक आर्थिक व्यवहार्यता के बारे में चिंताएं पैदा करती है। कुल मिलाकर, एनएएफआईएस 21-22 के परिणाम 16-17 के बाद ग्रामीण वित्तीय समावेशन और आर्थिक विकास में की गई महत्वपूर्ण प्रगति को रेखांकित करते हैं, जो उभरती चुनौतियों के बीच ग्रामीण परिवारों की लचीलापन और अनुकूलन क्षमता को दर्शाते हैं।

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