मदार ने पुलिस को बताया कि रात करीब 10:30 बजे जब वह मंदिर गया तो मुदगौड़ा रेड्डी नाम के एक ग्रामीण ने उसे रोका। यह विवाद जल्द ही बढ़ गया। गांव के लोग इकट्ठा हो गए और उस पर हमला करना शुरू कर दिया। हमले के दौरान मदार को एक खंभे से बांध दिया गया।
फोटो साभार : सोशल मीडिया 'एक्स'
कर्नाटक के बागलकोट जिले में एक गांव के मंदिर में प्रवेश करने को लेकर 28 वर्षीय दलित व्यक्ति अर्जुन मदार को बेरहमी से पीटा गया। यह घटना 10 सितंबर को बादामी तालुका के उगलवाट गांव में हुई। हमले के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। 21 लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मदार ने पुलिस को बताया कि रात करीब 10:30 बजे जब वह मंदिर गया तो मुदगौड़ा रेड्डी नाम के एक ग्रामीण ने उसे रोका। यह विवाद जल्द ही बढ़ गया। गांव के लोग इकट्ठा हो गए और उस पर हमला करना शुरू कर दिया। हमले के दौरान मदार को एक खंभे से बांध दिया गया। कुछ दिनों बाद, 14 सितंबर को पूरे गांव में बहिष्कार करने की घोषणा की गई जिसमें चेतावनी दी गई कि मदार से बातचीत करने पर जुर्माना या सजा हो सकती है। द ऑब्जर्वर पोस्ट ने इस घटना को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया है।
मदार ने कहा, "जब मैं पूजा करने के लिए मंदिर के अंदर गया तो मुझे ऊंची जातियों के लोगों ने रोक दिया, जिन्होंने न केवल मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, बल्कि जातिवादी टिप्पणी भी की।"
उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, "इसके बाद मुझे पास के बिजली के खंभे से बांध दिया गया और लोगों के एक ग्रुप ने मुझे पीटा। 14 सितंबर को सभी दलितों को 'उच्च जातियों' के इलाकों में जाने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा भी की गई थी।"
हमले के बारे में सुनने के बाद, बागलकोट के पुलिस अधीक्षक वाई अमरनाथ रेड्डी ने गांव का दौरा किया। डिप्टी कमिश्नर जानकी केएम ने भी रविवार को दौरा किया। साथ ही दलित और उच्च जाति दोनों समुदायों के साथ बैठकें कीं और उनसे शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की।
बागलकोट के एसपी ने कहा, "अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और बीएनएस की अन्य धाराओं के तहत लगभग 18 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है। हमने जांच शुरू कर दी है और गलत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी।"
ज्ञात हो कि यह कोई पहला मामला नहीं जब दलितों के साथ दुर्व्यवहार किया गया हो या उनका बहिष्कार किया गया हो। कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के यादगीर जिले में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया जहां एक दलित नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर दलित परिवार का बहिष्कार कर दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के परिवार द्वारा बाल यौन अपराध निवारण अधिनियम यानी POCSO के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद उच्च जाति के लोग बेहद नाराज हो गए।
जिले के हुनासागी तालुक के पास एक गांव में ऊंची जाति के युवक ने कथित तौर पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया। 15 वर्षीय पीड़िता गर्भवती हो गई। परिवार को इस घटना के बारे में तब जानकारी हुई जब लड़की गर्भावस्था के पांचवें महीने में थी। इसके बाद परिवार ने 12 अगस्त को नारायणपुरा पुलिस स्टेशन में पुलिस शिकायत दर्ज कराई।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार ऊंची जाति के नेताओं ने सूचना भेजकर दलित परिवार से समझौता करने को कहा था। लेकिन दलित परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया और आरोपियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करने पर जोर दिया।
पीड़ित परिवार द्वारा प्रस्ताव अस्वीकार करने के बाद उच्च जाति के स्थानीय नेताओं ने गांव के दुकानदारों को दलितों का बहिष्कार करने को कहा था। दुकानदार ने दलित समुदाय को सामान देना बंद कर दिया था। यहां तक कि उनके बच्चों को कलम, नोटबुक और पेंसिल जैसी बुनियादी स्टेशनरी की चीज़ें बेचने से मना कर रहे थे।
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दलित को मंदिर में प्रवेश से कथित तौर पर रोकने और हमले के मामले में बीजेपी और शिवसेना नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज
फोटो साभार : सोशल मीडिया 'एक्स'
कर्नाटक के बागलकोट जिले में एक गांव के मंदिर में प्रवेश करने को लेकर 28 वर्षीय दलित व्यक्ति अर्जुन मदार को बेरहमी से पीटा गया। यह घटना 10 सितंबर को बादामी तालुका के उगलवाट गांव में हुई। हमले के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। 21 लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मदार ने पुलिस को बताया कि रात करीब 10:30 बजे जब वह मंदिर गया तो मुदगौड़ा रेड्डी नाम के एक ग्रामीण ने उसे रोका। यह विवाद जल्द ही बढ़ गया। गांव के लोग इकट्ठा हो गए और उस पर हमला करना शुरू कर दिया। हमले के दौरान मदार को एक खंभे से बांध दिया गया। कुछ दिनों बाद, 14 सितंबर को पूरे गांव में बहिष्कार करने की घोषणा की गई जिसमें चेतावनी दी गई कि मदार से बातचीत करने पर जुर्माना या सजा हो सकती है। द ऑब्जर्वर पोस्ट ने इस घटना को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया है।
मदार ने कहा, "जब मैं पूजा करने के लिए मंदिर के अंदर गया तो मुझे ऊंची जातियों के लोगों ने रोक दिया, जिन्होंने न केवल मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, बल्कि जातिवादी टिप्पणी भी की।"
उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, "इसके बाद मुझे पास के बिजली के खंभे से बांध दिया गया और लोगों के एक ग्रुप ने मुझे पीटा। 14 सितंबर को सभी दलितों को 'उच्च जातियों' के इलाकों में जाने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा भी की गई थी।"
हमले के बारे में सुनने के बाद, बागलकोट के पुलिस अधीक्षक वाई अमरनाथ रेड्डी ने गांव का दौरा किया। डिप्टी कमिश्नर जानकी केएम ने भी रविवार को दौरा किया। साथ ही दलित और उच्च जाति दोनों समुदायों के साथ बैठकें कीं और उनसे शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की।
बागलकोट के एसपी ने कहा, "अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और बीएनएस की अन्य धाराओं के तहत लगभग 18 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है। हमने जांच शुरू कर दी है और गलत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी।"
ज्ञात हो कि यह कोई पहला मामला नहीं जब दलितों के साथ दुर्व्यवहार किया गया हो या उनका बहिष्कार किया गया हो। कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के यादगीर जिले में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया जहां एक दलित नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर दलित परिवार का बहिष्कार कर दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के परिवार द्वारा बाल यौन अपराध निवारण अधिनियम यानी POCSO के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद उच्च जाति के लोग बेहद नाराज हो गए।
जिले के हुनासागी तालुक के पास एक गांव में ऊंची जाति के युवक ने कथित तौर पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया। 15 वर्षीय पीड़िता गर्भवती हो गई। परिवार को इस घटना के बारे में तब जानकारी हुई जब लड़की गर्भावस्था के पांचवें महीने में थी। इसके बाद परिवार ने 12 अगस्त को नारायणपुरा पुलिस स्टेशन में पुलिस शिकायत दर्ज कराई।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार ऊंची जाति के नेताओं ने सूचना भेजकर दलित परिवार से समझौता करने को कहा था। लेकिन दलित परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया और आरोपियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करने पर जोर दिया।
पीड़ित परिवार द्वारा प्रस्ताव अस्वीकार करने के बाद उच्च जाति के स्थानीय नेताओं ने गांव के दुकानदारों को दलितों का बहिष्कार करने को कहा था। दुकानदार ने दलित समुदाय को सामान देना बंद कर दिया था। यहां तक कि उनके बच्चों को कलम, नोटबुक और पेंसिल जैसी बुनियादी स्टेशनरी की चीज़ें बेचने से मना कर रहे थे।
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