कन्नड़ भाषा की लेखक बानू मुश्ताक की कहानियों के संग्रह 'हार्ट लैंप' को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार सम्मानित किया गया है। 12 कहानियों के इस संग्रह का कन्नड़ भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद दीपा भास्ति ने किया है।

फोटो साभार : डेक्कन क्रोनिकल (सोशल मीडिया एक्स)
कन्नड़ भाषा की लेखिका बानू मुश्ताक की कहानियों के संग्रह ‘हार्ट लैंप’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस संग्रह में कुल 12 कहानियां शामिल हैं, जिनका कन्नड़ से अंग्रेज़ी में अनुवाद दीपा भास्ति ने किया है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बानू मुश्ताक एक लेखिका होने के साथ-साथ महिला अधिकारों की पैरोकार और वकील भी हैं। अपने लेखन के माध्यम से वे सामान्य महिलाओं, विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के कठिन संघर्षों और जमीनी हकीकतों को उजागर करती हैं।
बुकर पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, बानू मुश्ताक ने कहा है, "इन महिलाओं का दर्द, पीड़ा और असहाय जीवन मेरे भीतर गहरा भावनात्मक असर पैदा करता है। मैं किसी बड़े शोध में नहीं पड़ती-मेरा दिल ही मेरा अध्ययन क्षेत्र है।"
यह पुस्तक कन्नड़ से अनूदित होकर अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली किताब है। साथ ही, यह पहला कहानी संग्रह भी है जिसे यह प्रतिष्ठित सम्मान हासिल हुआ है।
कर्नाटक साहित्य अकादमी और दान चिंतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार जीत चुकीं बानू मुश्ताक के काम का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ था। दीपा भास्ति ने ‘हार्ट लैंप’ के जरिए यह जिम्मेदारी उठाई।
दीपा भास्ति कर्नाटक के कोडगु जिले की रहने वाली है। वह लेखिका और साहित्यिक अनुवादक हैं। उनके प्रकाशित अनुवादों में कोटा शिवराम कारंथ का एक उपन्यास और कोडगिना गौरी अम्मा की लघुकथाओं का संग्रह शामिल हैं।
भास्ति ने बुकर वेबसाइट को बताया, "बानू की कहानियों के साथ मैंने पहले उनके द्वारा प्रकाशित सभी उपन्यासों को पढ़ा, फिर उनमें से 'हार्ट लैंप' में शामिल होने वाली कहानियों का चयन किया। मुझे यह स्वतंत्रता मिली कि मैं उन कहानियों पर काम कर सकूं, जिनपर मुझे काम करना था।"
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार-2025 के निर्णायकों में एंटन हुर, बेथ ऑर्टन, केलिब फेमी, मैक्स पोर्टर और सना गोयल शामिल थे।
उनके अनुसार, "ये कहानियां सत्ता से सच बोलती हैं और समकालीन समाज में जाति, वर्ग और धर्म की गहरी दरारों को उजागर करती हैं। भ्रष्टाचार, दमन, अन्याय और हिंसा के रूप में भीतर छिपी सड़न को सामने लाती हैं। फिर भी, 'हार्ट लैंप' की आत्मा ठोस कहानी कहने की परंपरा, अविस्मरणीय किरदार, जीवंत संवाद, सतह के नीचे उभरता तनाव और हर मोड़ पर एक नया चौंकाव के माध्यम से हमें पढ़ने के सच्चे आनंद की ओर ले जाती है।"
उन्होंने कहा, "ये कहानियां सच को सत्ता के सामने लाती हैं और आज के समाज में फैली जाति, वर्ग और धर्म की दीवारों को उजागर करती हैं, भ्रष्टाचार, अत्याचार, नाइंसाफी, हिंसा के रूप में अंदर छिपी सड़न को सामने लाती हैं।। फिर भी, हार्ट लैंप का असली मजा ये है कि ये हमें पढ़ने के पुराने और असली सुखों की याद दिलाती है, शानदार कहानी, यादगार किरदार, जीवंत बातचीत, अंदर दबे हुए तनाव, और हर मोड़ पर एक नए आश्चर्य से रूबरू कराती है।"
बुकर पुरस्कार उन उपन्यासों को दिया जाता है जो मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए हों, जबकि इंटरनेशनल बुकर प्राइज उन फिक्शन कृतियों को सम्मानित करता है जो किसी अन्य भाषा से अंग्रेजी में अनूदित की गई हों।
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली यह पुस्तक भारतीय भाषा की दूसरी किताब है। इसके पहले गीतांजलि श्री की पुस्तक 'रेत समाधि' को यह पुरस्कार प्राप्त हो चुका है, जिसका ‘टूम्ब ऑफ सैंड‘ के नाम से अंग्रेजी अनुवाद डेज़ी रॉकवेल ने किया था।

फोटो साभार : डेक्कन क्रोनिकल (सोशल मीडिया एक्स)
कन्नड़ भाषा की लेखिका बानू मुश्ताक की कहानियों के संग्रह ‘हार्ट लैंप’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस संग्रह में कुल 12 कहानियां शामिल हैं, जिनका कन्नड़ से अंग्रेज़ी में अनुवाद दीपा भास्ति ने किया है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बानू मुश्ताक एक लेखिका होने के साथ-साथ महिला अधिकारों की पैरोकार और वकील भी हैं। अपने लेखन के माध्यम से वे सामान्य महिलाओं, विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के कठिन संघर्षों और जमीनी हकीकतों को उजागर करती हैं।
बुकर पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, बानू मुश्ताक ने कहा है, "इन महिलाओं का दर्द, पीड़ा और असहाय जीवन मेरे भीतर गहरा भावनात्मक असर पैदा करता है। मैं किसी बड़े शोध में नहीं पड़ती-मेरा दिल ही मेरा अध्ययन क्षेत्र है।"
यह पुस्तक कन्नड़ से अनूदित होकर अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली किताब है। साथ ही, यह पहला कहानी संग्रह भी है जिसे यह प्रतिष्ठित सम्मान हासिल हुआ है।
कर्नाटक साहित्य अकादमी और दान चिंतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार जीत चुकीं बानू मुश्ताक के काम का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ था। दीपा भास्ति ने ‘हार्ट लैंप’ के जरिए यह जिम्मेदारी उठाई।
दीपा भास्ति कर्नाटक के कोडगु जिले की रहने वाली है। वह लेखिका और साहित्यिक अनुवादक हैं। उनके प्रकाशित अनुवादों में कोटा शिवराम कारंथ का एक उपन्यास और कोडगिना गौरी अम्मा की लघुकथाओं का संग्रह शामिल हैं।
भास्ति ने बुकर वेबसाइट को बताया, "बानू की कहानियों के साथ मैंने पहले उनके द्वारा प्रकाशित सभी उपन्यासों को पढ़ा, फिर उनमें से 'हार्ट लैंप' में शामिल होने वाली कहानियों का चयन किया। मुझे यह स्वतंत्रता मिली कि मैं उन कहानियों पर काम कर सकूं, जिनपर मुझे काम करना था।"
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार-2025 के निर्णायकों में एंटन हुर, बेथ ऑर्टन, केलिब फेमी, मैक्स पोर्टर और सना गोयल शामिल थे।
उनके अनुसार, "ये कहानियां सत्ता से सच बोलती हैं और समकालीन समाज में जाति, वर्ग और धर्म की गहरी दरारों को उजागर करती हैं। भ्रष्टाचार, दमन, अन्याय और हिंसा के रूप में भीतर छिपी सड़न को सामने लाती हैं। फिर भी, 'हार्ट लैंप' की आत्मा ठोस कहानी कहने की परंपरा, अविस्मरणीय किरदार, जीवंत संवाद, सतह के नीचे उभरता तनाव और हर मोड़ पर एक नया चौंकाव के माध्यम से हमें पढ़ने के सच्चे आनंद की ओर ले जाती है।"
उन्होंने कहा, "ये कहानियां सच को सत्ता के सामने लाती हैं और आज के समाज में फैली जाति, वर्ग और धर्म की दीवारों को उजागर करती हैं, भ्रष्टाचार, अत्याचार, नाइंसाफी, हिंसा के रूप में अंदर छिपी सड़न को सामने लाती हैं।। फिर भी, हार्ट लैंप का असली मजा ये है कि ये हमें पढ़ने के पुराने और असली सुखों की याद दिलाती है, शानदार कहानी, यादगार किरदार, जीवंत बातचीत, अंदर दबे हुए तनाव, और हर मोड़ पर एक नए आश्चर्य से रूबरू कराती है।"
बुकर पुरस्कार उन उपन्यासों को दिया जाता है जो मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए हों, जबकि इंटरनेशनल बुकर प्राइज उन फिक्शन कृतियों को सम्मानित करता है जो किसी अन्य भाषा से अंग्रेजी में अनूदित की गई हों।
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली यह पुस्तक भारतीय भाषा की दूसरी किताब है। इसके पहले गीतांजलि श्री की पुस्तक 'रेत समाधि' को यह पुरस्कार प्राप्त हो चुका है, जिसका ‘टूम्ब ऑफ सैंड‘ के नाम से अंग्रेजी अनुवाद डेज़ी रॉकवेल ने किया था।