"हमारे गैर-लाभकारी दर्जे को रद्द करने वाले आदेश ने हमारे काम करने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित किया है और देश में स्वतंत्र सार्वजनिक-उद्देश्य वाली पत्रकारिता के लिए स्थितियों को खराब किया है।"
Photo Credit : weerapatkiatdumrong
आयकर (आईटी) विभाग ने डिजिटल मीडिया आउटलेट द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (टीआरसी) का गैर-लाभकारी दर्जा रद्द कर दिया है।
द वायर के अनुसार, विभाग का दावा है कि टीआरसी की पत्रकारिता सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा नहीं करती है, जबकि संगठन के काम से कई अहम खबरें सामने आई हैं। इनमें केंद्र सरकार का सैनिक स्कूलों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को सौंपने, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगियों को चुनावी बॉन्ड योजना से हुए फायदे को लेकर खबरें शामिल हैं।
द रिपोर्ट्स कलेक्टिव ने 28 जनवरी को जारी एक बयान में कहा, "हमने अपने सीमित संसाधनों से एक अनौपचारिक समूह के रूप में शुरुआत की थी। जुलाई 2021 से हम नागरिकों द्वारा वित्तपोषित एक औपचारिक पंजीकृत गैर-लाभकारी ट्रस्ट के रूप में अस्तित्व में हैं। लेकिन अब टैक्स विभाग के अधिकारियों ने हमारा गैर-लाभकारी दर्जा रद्द कर दिया है, उनका दावा है कि पत्रकारिता किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूरा नहीं करती है और इसलिए इसे भारत में गैर-लाभकारी काम के तौर पर नहीं किया जा सकता है।"
द रिपोर्टेस कलेक्टिव ने खोजी पत्रकारिता करने के अपने अधिकार की रक्षा के लिए कानूनी उपाय तलाशने की बात कही है।
संस्था ने कहा, "रिपोर्टर्स कलेक्टिव में हम मानते हैं कि पत्रकारिता, जब सही तरीके से की जाती है, तो हमारे लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक सार्वजनिक सेवा है। सही तरीके से की गई पत्रकारिता एक सार्वजनिक भलाई है। खोजी पत्रकारिता जो शक्तिशाली लोगों को जवाबदेह बनाती है, अनिवार्य रूप से नागरिकों, विशेष रूप से गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा करती है।"
कलेक्टिव ने आगे कहा, "हमारे गैर-लाभकारी दर्जे को रद्द करने वाले आदेश ने हमारे काम करने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित किया है और देश में स्वतंत्र सार्वजनिक-उद्देश्य वाली पत्रकारिता के लिए स्थितियों को खराब किया है। हम पत्रकारिता के विचार को सार्वजनिक भलाई के रूप में और खोजी पत्रकारिता, शोध और प्रशिक्षण को बाधाओं, भय या धमकियों से मुक्त करने के हमारे अधिकार की रक्षा के लिए कानूनी उपायों की मांग कर रहे हैं। हम द कलेक्टिव के अपने सभी सहकर्मियों के साथ खड़े हैं, जिन्होंने पत्रकारिता करने के लिए असाधारण साहस, कौशल और दृढ़ता दिखाई है, जिस पर हम सभी को गर्व है।”
द न्यूज मिनट के अनुसार, कम से कम दो अन्य मीडिया आउटलेट्स को भी इसी तरह के नोटिस भेजे गए हैं, जो एक चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत काम करते हैं और उन्हें कर छूट प्राप्त है, जिसमें बेंगलुरु स्थित कन्नड़ वेबसाइट द फाइल भी शामिल है, जिसे दिसंबर 2024 में नोटिस मिला था। द फाइल के संस्थापक और संपादक जी. महंतेश विभाग के इस दावे का विवाद करते हैं कि उनकी वेबसाइट एक कमर्शियल वेंचर है, उन्होंने कहा कि वे एक विज्ञापन-मुक्त स्थान हैं।
2022 में, आयकर विभाग ने द इंडिपेंडेंट और पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन की बैलेंस शीट की जांच की जिससे मीडिया में सरकारी हस्तक्षेप के बारे में चिंताएं पैदा हुईं।
ज्ञात हो कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी 2024 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 159वां स्थान दिया गया है।
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आयकर (आईटी) विभाग ने डिजिटल मीडिया आउटलेट द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (टीआरसी) का गैर-लाभकारी दर्जा रद्द कर दिया है।
द वायर के अनुसार, विभाग का दावा है कि टीआरसी की पत्रकारिता सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा नहीं करती है, जबकि संगठन के काम से कई अहम खबरें सामने आई हैं। इनमें केंद्र सरकार का सैनिक स्कूलों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को सौंपने, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगियों को चुनावी बॉन्ड योजना से हुए फायदे को लेकर खबरें शामिल हैं।
द रिपोर्ट्स कलेक्टिव ने 28 जनवरी को जारी एक बयान में कहा, "हमने अपने सीमित संसाधनों से एक अनौपचारिक समूह के रूप में शुरुआत की थी। जुलाई 2021 से हम नागरिकों द्वारा वित्तपोषित एक औपचारिक पंजीकृत गैर-लाभकारी ट्रस्ट के रूप में अस्तित्व में हैं। लेकिन अब टैक्स विभाग के अधिकारियों ने हमारा गैर-लाभकारी दर्जा रद्द कर दिया है, उनका दावा है कि पत्रकारिता किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूरा नहीं करती है और इसलिए इसे भारत में गैर-लाभकारी काम के तौर पर नहीं किया जा सकता है।"
द रिपोर्टेस कलेक्टिव ने खोजी पत्रकारिता करने के अपने अधिकार की रक्षा के लिए कानूनी उपाय तलाशने की बात कही है।
संस्था ने कहा, "रिपोर्टर्स कलेक्टिव में हम मानते हैं कि पत्रकारिता, जब सही तरीके से की जाती है, तो हमारे लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक सार्वजनिक सेवा है। सही तरीके से की गई पत्रकारिता एक सार्वजनिक भलाई है। खोजी पत्रकारिता जो शक्तिशाली लोगों को जवाबदेह बनाती है, अनिवार्य रूप से नागरिकों, विशेष रूप से गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा करती है।"
कलेक्टिव ने आगे कहा, "हमारे गैर-लाभकारी दर्जे को रद्द करने वाले आदेश ने हमारे काम करने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित किया है और देश में स्वतंत्र सार्वजनिक-उद्देश्य वाली पत्रकारिता के लिए स्थितियों को खराब किया है। हम पत्रकारिता के विचार को सार्वजनिक भलाई के रूप में और खोजी पत्रकारिता, शोध और प्रशिक्षण को बाधाओं, भय या धमकियों से मुक्त करने के हमारे अधिकार की रक्षा के लिए कानूनी उपायों की मांग कर रहे हैं। हम द कलेक्टिव के अपने सभी सहकर्मियों के साथ खड़े हैं, जिन्होंने पत्रकारिता करने के लिए असाधारण साहस, कौशल और दृढ़ता दिखाई है, जिस पर हम सभी को गर्व है।”
द न्यूज मिनट के अनुसार, कम से कम दो अन्य मीडिया आउटलेट्स को भी इसी तरह के नोटिस भेजे गए हैं, जो एक चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत काम करते हैं और उन्हें कर छूट प्राप्त है, जिसमें बेंगलुरु स्थित कन्नड़ वेबसाइट द फाइल भी शामिल है, जिसे दिसंबर 2024 में नोटिस मिला था। द फाइल के संस्थापक और संपादक जी. महंतेश विभाग के इस दावे का विवाद करते हैं कि उनकी वेबसाइट एक कमर्शियल वेंचर है, उन्होंने कहा कि वे एक विज्ञापन-मुक्त स्थान हैं।
2022 में, आयकर विभाग ने द इंडिपेंडेंट और पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन की बैलेंस शीट की जांच की जिससे मीडिया में सरकारी हस्तक्षेप के बारे में चिंताएं पैदा हुईं।
ज्ञात हो कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी 2024 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 159वां स्थान दिया गया है।