मानवाधिकार समूह ने छत्तीसगढ़ में 'राज्य द्वारा हिंसा में वृद्धि' की निंदा की, हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की

Written by sabrang india | Published on: November 13, 2024
CPJC ने कहा कि 8 नवंबर को सुरक्षा बलों ने गुंडीरागुडा गांव में एक अभियान के दौरान अर्जुन सोढ़ी, मुइया हेमला और गणेश कट्टम सहित आठ प्रमुख MBM कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया।


प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार: काउंटरव्यू

छत्तीसगढ़ में कैंपेन फॉर पीस एंड जस्टिस (CPJC) नामक समूह ने एक बयान में "छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में राज्य द्वारा हिंसा, मनमानी गिरफ्तारी और मूलवासी बचाओ मंच (MBM) के सदस्यों और स्थानीय ग्रामीणों की एक्स्ट्रा जूडिशियल किलिंग मामले में हाल में हुई वृद्धि" की निंदा की है। 7 और 8 नवंबर की नागरिकों के अपहरण और हत्या की घटनाओं के बाद CPJC ने इन घटनाओं को सैन्य मौजूदगी वाले इलाके में घोर मानवाधिकार हनन के बारे में बताया।

काउंटरव्यू की रिपोर्ट के अनुसार, CPJC ने कहा कि 8 नवंबर को सुरक्षा बलों ने गुंडीरागुडा गांव में एक अभियान के दौरान अर्जुन सोढ़ी, मुइया हेमला और गणेश कट्टम सहित आठ प्रमुख MBM कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। यह कार्रवाई नौ गांवों तक फैल गई जहां कथित तौर पर 44 व्यक्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया जिससे उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो गईं।

इन गिरफ्तारियों के अलावा कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा अचानक की गई गोलीबारी में दो युवकों हिडमा पोडियाम (करीब 16 वर्ष), और जोगा कुंजम (करीब 20 वर्ष) की मौत की खबर मिली है। स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अंधाधुंध गोलीबारी हुई है, जबकि पुलिस ने इस घटना को अपने नक्सल विरोधी अभियान का हिस्सा बताया है। वहीं CPJC ने इसकी निंदा की है। इसने कहा कि मृतकों की पहचान और उद्देश्यों को लेकर सवाल कायम हैं। इस घटना को लेकर परिवार और समुदाय के सदस्य सदमे में हैं।

CPJC ने सरकार के आंकड़ों पर सवाल उठाए। इसमें दावा किया गया है कि सिर्फ 2024 में 192 “नक्सली” मारे गए और 782 गिरफ्तारियां हुईं, साथ ही 783 कथित आत्मसमर्पण भी हुए। समूह ने चेतावनी दी कि माओवादी कैडरों के आधिकारिक अनुमानों के साथ विसंगतियों की ओर इशारा करते हुए ये संख्याएं अवैध हिरासत और जबरन भर्ती के मामलों को छिपा सकती हैं।

नियाद नेल्लनार परियोजना जैसी पहलों का हवाला देते हुए संगठन ने बस्तर के सैन्यीकरण को आदिवासी समुदायों के लिए हानिकारक बताया। ये परियोजना बुनियादी सेवाओं को सुरक्षा शिविरों की स्थापना से जोड़ती है। समूह का कहना है कि इस नीति ने "घेराबंदी की स्थिति" पैदा कर दी है, जिसमें क्षेत्र में 300 से अधिक शिविर स्थानीय अधिकारों और जिंदगी में रूकावट पैदा कर रहे हैं।

सीपीजेसी ने कहा कि एमबीएम और अन्य जमीनी स्तर के संगठन लंबे समय से भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण शोषण और सैन्यीकरण के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। संगठनों ने जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) की तैनाती की भी आलोचना की, जिसमें आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली और स्थानीय युवा शामिल हैं। इन संगठनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2011 के सलवा जुडूम फैसले का उल्लंघन बताया, जिसमें आतंकवाद विरोधी प्रयासों में आदिवासी युवाओं की भर्ती पर प्रतिबंध लगाया गया है।

इसके जवाब में सीपीजेसी ने मांगों की एक सूची जारी की:

1. हिरासत में लिए गए एमबीएम सदस्यों और ग्रामीणों की तत्काल रिहाई, साथ ही शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के उत्पीड़न को समाप्त करना।

2. हिडमा पोडियम और जोगा कुंजम की मौत सहित कथित फर्जी मुठभेड़ों की पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ स्वतंत्र जांच।

3. सैन्यीकृत तरीके को समाप्त करना, सुरक्षा शिविरों और नियाद नेल्लनार जैसी योजनाओं को रोकने का आह्वान करना, जो विकास की आड़ में समुदाय की बुनियादी अधिकारों तक पहुंच को प्रतिबंधित करती हैं।

4. सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करना, राज्य से 2011 के फैसले के अनुरूप अर्धसैनिक भूमिकाओं में आदिवासी युवाओं का इस्तेमाल बंद करने का आग्रह करना।

सीपीजेसी ने सरकार से अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने और सैन्यीकरण की तुलना में संवाद को प्राथमिकता देने का आग्रह किया तथा क्षेत्र में मानवाधिकार उल्लंघनों की निगरानी और दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया जारी रखने का संकल्प लिया।

बाकी ख़बरें