पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में अपने पति को खोने के कुछ ही दिनों बाद, एक नवविवाहिता ने नफरत के बजाय न्याय की मांग करते हुए सांप्रदायिक गुस्से के खिलाफ एकता और करुणा की अपील की है।

भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल के 27वें जन्मदिन पर, उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल ने अपने गहरे दुख के बावजूद नफरत के बजाय शांति और क्रोध के बजाय करुणा की अपील की। पहलगाम में हनीमून के दौरान एक आतंकवादी हमले में अपने पति की बेरहमी से गोली मारकर हत्या किए जाने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने देश से भावुक अपील की — प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि एकजुटता और घावों के मरहम के लिए।
गुरुग्राम की पीएचडी स्कॉलर हिमांशी ने अपने पति की दर्दनाक मौत के कुछ दिन बाद मीडिया से बात की। गहरे आघात के बावजूद उन्होंने जिस सधे और शांत स्वर में बात की, वह काबिले-तारीफ़ था। कांपती आवाज में उन्होंने कहा, “मैं बस चाहती हूं कि देश उनके लिए दुआ करे। जहां भी हों, वो ठीक हों, खुश हों।” आमतौर पर ऐसे हमले समाज में नफरत और बंटवारे को जन्म देते हैं, लेकिन हिमांशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हमें शांति चाहिए—सिर्फ शांति। और हां, हमें इंसाफ चाहिए।”


ये भावुक शब्द हिमांशी ने हरियाणा के करनाल में आयोजित एक रक्तदान शिविर के दौरान कहे — यह आयोजन शहीद लेफ्टिनेंट नरवाल के जन्मदिन पर उनके सम्मान में किया गया था। करनाल स्थित नेशनल इंटीग्रेटेड फोरम ऑफ आर्टिस्ट्स एंड एक्टिविस्ट्स (NIFAA) द्वारा आयोजित इस शिविर में, जब लोग ज़िंदगियां बचाने के लिए रक्तदान कर रहे थे, तो हर कोई उस गहरे प्रतीक को महसूस कर रहा था — एक ओर आतंकवादी निर्दोषों का खून बहा रहे हैं, वहीं आम नागरिक ज़िंदगियां बचाने के लिए अपना खून दे रहे हैं।
श्रद्धांजलि सभा के दौरान लेफ्टिनेंट नरवाल की मां और हिमांशी अपने आंसू नहीं रोक सकीं। परिवार, दोस्त, नौसेना के अधिकारी और बड़ी संख्या में शोक-संतप्त लोग वहां उपस्थित थे। करनाल के बीजेपी विधायक जगमोहन आनंद भी इस अवसर पर पहुंचे और देश के इस वीर सपूत को श्रद्धांजलि दी, जिसकी ज़िंदगी दुर्भाग्यवश बहुत ही कम उम्र में छिन गई। अपने भाषणों में कई लोगों ने लेफ्टिनेंट नरवाल को एक जज्बे से भरे और समर्पित अफसर के तौर पर याद किया, जिनकी यादें उन सभी के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी, जिनकी उन्होंने सेवा की थी।
हमले से ठीक छह दिन पहले विनय और हिमांशी ने शादी की थी, जिसे दो करीबी परिवारों का मिलन बताया गया था। उन्होंने स्विट्जरलैंड में हनीमून की योजना बनाई थी, लेकिन वीजा में देरी के कारण उन्हें पहलगाम जाना पड़ा — एक ऐसा फैसला, जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी। हमले के बाद वायरल एक वीडियो में हिमांशी घटना-स्थल पर बुरी तरह विचलित नज़र आती हैं। वह बताती हैं कि कैसे एक व्यक्ति उनके पास आया, उनके पति से पूछा कि क्या वे मुस्लिम हैं और "नहीं" कहने पर उन्हें गोली मार दी। उन्होंने रोते हुए कहा, "मैं भेल पुरी खा रही थी... और उसने मुझे गोली मार दी।"
लेफ्टिनेंट नरवाल के सहकर्मियों ने उन्हें एक हंसमुख, साहसी और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित अधिकारी के रूप में याद किया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनकी बहन सृष्टि ने बुधवार को करनाल में हज़ारों लोगों की मौजूदगी में "भारत का वीर अमर रहे" और "पाकिस्तान मुर्दाबाद" के नारों के साथ उनकी चिता को अग्नि दी। नौसेना के जवानों ने बंदूकों की सलामी दी और राष्ट्र ने अपने सबसे बहादुर सपूतों में से एक को अंतिम विदाई दी। रिपोर्ट के मुताबिक, अंतिम संस्कार के दौरान हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से बात करते हुए सृष्टि ने अपनी पीड़ा व्यक्त की, “वे कुछ समय तक जीवित थे, लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया। मैं चाहती हूं कि वे [आतंकवादी] मर जाएं।”
इतने गहरे दुख और सदमे के बीच भी जो बात सबसे अलग नज़र आई, वह थी हिमांशी की नफरत से इंकार करने वाली सोच। वे चाहतीं तो बदले की भाषा बोल सकती थीं — जैसा कि अक्सर आतंकवादी घटनाओं के बाद देखने को मिलता है। लेकिन उन्होंने उस राह को चुना, जिसके लिए उनके पति ने जिया और प्राण दिए — शांति, न्याय और एकता की राह। हिमांशी की अपील सिर्फ कानूनी न्याय के लिए नहीं थी, बल्कि उस नैतिक दृढ़ता के लिए भी थी जो किसी राष्ट्र को हिंसा के सामने झुकने से रोकती है। उनका संदेश साफ था — हमें टूटना नहीं है, हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना है।
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, NIFAA के चेयरपर्सन प्रतिपाल सिंह पन्नू ने उस दिन की भावना को बेहतरीन ढंग से व्यक्त किया: "एक युवा अफसर, जिसका पूरा जीवन अभी सामने था, आतंकवाद की भेंट चढ़ गया। सिपाही हमारे बचाव के लिए खून बहाते हैं, लेकिन आज हम अपनी जान देकर ज़िंदगियां बचा रहे हैं। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है।"
कोई भी कृत्य इस पीड़ा को कम नहीं कर सकता। कोई भी श्रद्धांजलि उस भविष्य की भरपाई नहीं कर सकती, जो एक नवविवाहित जोड़े से छिन गया — जो साथ मिलकर जीवन के सपने देख रहे थे। लेकिन दिल टूटने के बीच शांति के लिए खड़े होने का विकल्प चुनकर, हिमांशी नरवाल ने पूरे देश को याद दिलाया कि सच्चा साहस वास्तव में कैसा होता है।
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गुरुग्राम की पीएचडी स्कॉलर हिमांशी ने अपने पति की दर्दनाक मौत के कुछ दिन बाद मीडिया से बात की। गहरे आघात के बावजूद उन्होंने जिस सधे और शांत स्वर में बात की, वह काबिले-तारीफ़ था। कांपती आवाज में उन्होंने कहा, “मैं बस चाहती हूं कि देश उनके लिए दुआ करे। जहां भी हों, वो ठीक हों, खुश हों।” आमतौर पर ऐसे हमले समाज में नफरत और बंटवारे को जन्म देते हैं, लेकिन हिमांशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हमें शांति चाहिए—सिर्फ शांति। और हां, हमें इंसाफ चाहिए।”


ये भावुक शब्द हिमांशी ने हरियाणा के करनाल में आयोजित एक रक्तदान शिविर के दौरान कहे — यह आयोजन शहीद लेफ्टिनेंट नरवाल के जन्मदिन पर उनके सम्मान में किया गया था। करनाल स्थित नेशनल इंटीग्रेटेड फोरम ऑफ आर्टिस्ट्स एंड एक्टिविस्ट्स (NIFAA) द्वारा आयोजित इस शिविर में, जब लोग ज़िंदगियां बचाने के लिए रक्तदान कर रहे थे, तो हर कोई उस गहरे प्रतीक को महसूस कर रहा था — एक ओर आतंकवादी निर्दोषों का खून बहा रहे हैं, वहीं आम नागरिक ज़िंदगियां बचाने के लिए अपना खून दे रहे हैं।
श्रद्धांजलि सभा के दौरान लेफ्टिनेंट नरवाल की मां और हिमांशी अपने आंसू नहीं रोक सकीं। परिवार, दोस्त, नौसेना के अधिकारी और बड़ी संख्या में शोक-संतप्त लोग वहां उपस्थित थे। करनाल के बीजेपी विधायक जगमोहन आनंद भी इस अवसर पर पहुंचे और देश के इस वीर सपूत को श्रद्धांजलि दी, जिसकी ज़िंदगी दुर्भाग्यवश बहुत ही कम उम्र में छिन गई। अपने भाषणों में कई लोगों ने लेफ्टिनेंट नरवाल को एक जज्बे से भरे और समर्पित अफसर के तौर पर याद किया, जिनकी यादें उन सभी के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी, जिनकी उन्होंने सेवा की थी।
हमले से ठीक छह दिन पहले विनय और हिमांशी ने शादी की थी, जिसे दो करीबी परिवारों का मिलन बताया गया था। उन्होंने स्विट्जरलैंड में हनीमून की योजना बनाई थी, लेकिन वीजा में देरी के कारण उन्हें पहलगाम जाना पड़ा — एक ऐसा फैसला, जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी। हमले के बाद वायरल एक वीडियो में हिमांशी घटना-स्थल पर बुरी तरह विचलित नज़र आती हैं। वह बताती हैं कि कैसे एक व्यक्ति उनके पास आया, उनके पति से पूछा कि क्या वे मुस्लिम हैं और "नहीं" कहने पर उन्हें गोली मार दी। उन्होंने रोते हुए कहा, "मैं भेल पुरी खा रही थी... और उसने मुझे गोली मार दी।"
लेफ्टिनेंट नरवाल के सहकर्मियों ने उन्हें एक हंसमुख, साहसी और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित अधिकारी के रूप में याद किया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनकी बहन सृष्टि ने बुधवार को करनाल में हज़ारों लोगों की मौजूदगी में "भारत का वीर अमर रहे" और "पाकिस्तान मुर्दाबाद" के नारों के साथ उनकी चिता को अग्नि दी। नौसेना के जवानों ने बंदूकों की सलामी दी और राष्ट्र ने अपने सबसे बहादुर सपूतों में से एक को अंतिम विदाई दी। रिपोर्ट के मुताबिक, अंतिम संस्कार के दौरान हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से बात करते हुए सृष्टि ने अपनी पीड़ा व्यक्त की, “वे कुछ समय तक जीवित थे, लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया। मैं चाहती हूं कि वे [आतंकवादी] मर जाएं।”
इतने गहरे दुख और सदमे के बीच भी जो बात सबसे अलग नज़र आई, वह थी हिमांशी की नफरत से इंकार करने वाली सोच। वे चाहतीं तो बदले की भाषा बोल सकती थीं — जैसा कि अक्सर आतंकवादी घटनाओं के बाद देखने को मिलता है। लेकिन उन्होंने उस राह को चुना, जिसके लिए उनके पति ने जिया और प्राण दिए — शांति, न्याय और एकता की राह। हिमांशी की अपील सिर्फ कानूनी न्याय के लिए नहीं थी, बल्कि उस नैतिक दृढ़ता के लिए भी थी जो किसी राष्ट्र को हिंसा के सामने झुकने से रोकती है। उनका संदेश साफ था — हमें टूटना नहीं है, हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना है।
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, NIFAA के चेयरपर्सन प्रतिपाल सिंह पन्नू ने उस दिन की भावना को बेहतरीन ढंग से व्यक्त किया: "एक युवा अफसर, जिसका पूरा जीवन अभी सामने था, आतंकवाद की भेंट चढ़ गया। सिपाही हमारे बचाव के लिए खून बहाते हैं, लेकिन आज हम अपनी जान देकर ज़िंदगियां बचा रहे हैं। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है।"
कोई भी कृत्य इस पीड़ा को कम नहीं कर सकता। कोई भी श्रद्धांजलि उस भविष्य की भरपाई नहीं कर सकती, जो एक नवविवाहित जोड़े से छिन गया — जो साथ मिलकर जीवन के सपने देख रहे थे। लेकिन दिल टूटने के बीच शांति के लिए खड़े होने का विकल्प चुनकर, हिमांशी नरवाल ने पूरे देश को याद दिलाया कि सच्चा साहस वास्तव में कैसा होता है।
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