#पशु बाजार को पूंजीघरानो के हवाले करना चाहती है मोदी सरकार

Written by अजीत सिंह यादव | Published on: June 4, 2017

 #पश्चिमी देशों की तरह फैक्ट्री फार्मिंग के जरिये पशु बाजार व पशुपालन पर कारपोरेट घरानो का कब्जा कराने की है योजना



Representational Image of the Alactia Slaughter House

मोदी सरकार ने बूचड़खानो के लिए पशु बाजारों में पशओ  की खरीद -फरोख्त पर प्रतिबंध लगा दिया है .पर्यावरण मंत्रालय ने विगत 23मई 2017 को पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम के तहत सख्त 'पशु क्रूरता निरोधक (पशु बाजार नियमन)नियम 2017'को अधिसूचित किया है .

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि 'नये नियम बहुत स्पष्ट हैं और इसका उद्देश्य पशु बाजारों  तथा मवेशिओ की बिक्री का नियमन है .उन्होने स्पष्ट किया कि ये प्रावधान केवल पशु बाजारों तथा संपत्ति के रूप में जब्त पशुओं  पर लागू होNगे .उन्होंने कहा कि ये नियम अन्य क्षेत्रों को कवर नहीं करते हैं.'

जिस क्षेत्र को यह नियम कवर नहीं करते वह क्षेत्र है फार्म .

नये नियमों में कहा गया है कि पशु वध के लिए पशु सीधे फार्म से लिए जायें .

जाहिर है मंत्री जी सही फरमा रहे हैं मोदी सरकार के नए नियम बूचड़खानो के लिए पशुओ की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लगाते जैसा कि प्रचार किया जा रहा है ,केवल पशु बाजारों से वध के लिए पशुओ की खरीद -बिक्री को प्रतिबंधित करते हैं . नये नियमो  में बूचड़खानो के लिए पशुओं की खरीद सीधे फार्म से करने की छूट दी गई है.ऐसे फार्म फिलहाल भारत में नहीं पाये जाते हैं .यह अमेरिका व पश्चिमी देशो का वह प्रयोग है जिसे फैक्ट्री फार्मिंग कहा जाता है .यह एक तरीके के एनीमल फार्म होते हैं,इनमें बडे पैमाने पर पशुओ को एक साथ पाला  जाता है.जरूरी बाडे आदि इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया जाता है ,चारे आदि का प्रबंध किया जाता है .इनके जरिये दुग्ध उत्पादन व मांस उधोग के लिए पशुओ की सप्लाई दोनों ही किए जाते हैं .फैक्ट्री फार्मिंग के लिए बडी पूंजी की जरूरत होती है.

जाहिर है सरकार पशु उत्पादन व पशु बाजार को बडे पूँजी घरानो के हवाले करना चाहती है .इसके परिणामो पर हम आगे चर्चा करेंगे .

दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि यह नियम पशु मंडियों  को जिस तरह परिभाषित करता है ,ਦੀ जैसे उनके मापदंड बनाए गए हैं ,उसके अनुसार बहुत सी मंडियों में पशुओ  का लेनदेन नहीं हो सकेगा.नए नोटिफिकेशन के अनुसार पशु बाजारों के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होगी.हर जिले में पशु बाजार मानिटरिंग समिति बनेगी जिसके पास पशु बाजारों को तीन महीने के भीतर पंजीकरण कराना होगा .
.परम्परागत तौर पर जो खुल खेत में ही पशुओ का मेला लगता है ,खरीद -बिक्री होती है वह अब नहीं हो सकेगा .गांव -देहात में लगने वाले पशु मेले बंद हो जायेंगे. फिलहाल मांस उद्योग इन्हीं पशु बाजारों से  90 फीसदी पशुओं की आपूर्ति करता है . पशु मंडियों  के लिए जरूरी शर्तें इतनी ज्यादा हैं कि उनके लिए नया ढांचा तैयार करना होगा जिसमें भारी पूंजी की जरूरत होगी.

जाहिरा तौर  पर सरकार ने जो  नियम बनाये हैं उनसे पशु बाजार व पशु पालन का क्षेत्र बडी पूंजी के कब्जे में चला जायेगा .पशु बाजार व पशु पालन के क्षेत्र में लगे छोटे व्यापारियों, किसानो ,छोटी पूंजी आदि का सफाया हो जायेगा .

स्पष्ट है कि मिश्रित-भू उपयोग अथवा पशुपालन की देसी प्रणालियों को छोड़कर बड़े पैमाने पर उद्योग की तरह पशुपालन करने से ग्रामीण आजीविकाएं नष्ट होंगी. घुमंतू पशुपालक, छोटे उत्पादक और स्वतंत्र किसान बडी पूंजी के फैक्ट्री फार्म से कीमतो में  प्रतियोगिता नहीं कर सकते ,वे बाजार से बाहर हो जायेंगे. पश्चिमी देशों का अनुभव बताता है कि  औद्योगिक पशुपालन प्रणाली अपने कम भत्तों तथा खराब स्वास्थ्य व सुरक्षा मानकों के साथ रोजगार का बेहतर विकल्प भी नहीं उपलब्ध कराती हैं.

इसके अलावा औद्योगिक पशुपालन व उत्पादन का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है. मांस व डेरी उत्पादों की अत्याधिक ऊंची खपत पोषण-संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा करती है – जैसे मोटापा और दिल व धमनियों की बीमारियां. और फिर सीमित स्थानों पर ढेर सारे पशुओं को रखने से छूत की अनेक बीमारियों का खतरा रहता है. बर्ड फ्लू जैसी कुछ बीमारियां इनसानों को भी अपना शिकार बना लेती हैं. इस खतरे को कम करने के लिए जो उपाय अपनाए जाते हैं, जैसे कि पशु आहार में रोगाणुओं को खत्म करने तथा पशुओं की वृद्धि के लिए एंटिबायोटिक की कम मात्रा मिलाई जाती है. इससे रोगाणुओं में इन एंटिबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए नया संकट पैदा हो जाता है.

फैक्ट्री फार्मिंग न केवल इंसानो व पर्यावरण के लिए हानीकारक सिद्ध हुई है बल्कि इससे स्वयं पशुओं को भी भयानक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. पश्चिमी देशों में इसका विरोध बढ़ता जा रहा है .एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले बर्लिंन में हर साल 15 से 30 हजार लोग हर साल फैक्ट्री फार्मिंग के विरोध में प्रदर्शन करते हैं .

जिस माड़ल को पश्चिमी देशों की जनता नकार रही है मोदी सरकार उसी माडल को भारत पर थोपना चाहती है वह भी पशु वध रोकने व पशु कल्याण के नाम पर  .स्पष्ट है कि इस कवायद से पशु कल्याण व पशु बध रोकने का कोई लेना देना नहीं है .असली मकसद है बडे पूंजी घरानों का कल्याण .बडे कारपोरेट घराने अब पशु बाजार व पशु पालन के क्षेत्र पर कब्जा कर मुनाफा कमाना चाहते हैं .मोदी सरकार नये नियम बनाकर उनका रास्ता साफ कर रही है .


(अजीत सिंह यादव : राष्ट्रीय सह संयोजक जय किसान आंदोलन)
 

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