हमीरपुर के फूड वेंडर याकूब ने आग लगने के बाद बच्चों को बचाने में अपनी बहादुरी दिखाई। याकूब ने खिड़की तोड़ दी और जितने बच्चों को बचा सकते थे उन्हों बचाने की कोशिश की। दुख की बात यह है कि वह अपने जुड़वां बच्चों को नहीं बचा सके क्योंकि आग बेकाबू थी।
20 वर्षीय पिता याकूब मंसूरी ने शुक्रवार रात को झांसी के लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में लगी आग में कई नवजात शिशुओं को बचाया। इस दुखद घटना में 10 नवजात शिशुओं की जान चली गई। मृतक बच्चों में याकूब की जुड़वां बेटियां भी शामिल थीं।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्टके अनुसार, हमीरपुर के फूड वेंडर याकूब ने आग लगने के बाद बच्चों को बचाने में अपनी बहादुरी दिखाई। याकूब ने खिड़की तोड़ दी और जितने बच्चों को बचा सकते थे उन्हों बचाने की कोशिश की। दुख की बात यह है कि वह अपने जुड़वां बच्चों को नहीं बचा सके क्योंकि आग बेकाबू थी।
माता-पिता के चीख-पुकार और मदद के लिए रोने के दिल दहला देने वाले वीडियो इंटरनेट पर सामने वायरल हुए। इस घटना में अपने पहले बच्चे को खोने वाली मां संजना कुमारी ने अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का आरोप लगाया और कहा, "मेरे बच्चे की जलकर मौत मेरी आंखों के सामने हो गई और मैं बेबस होकर देखती रही। अस्पताल की लापरवाही ने मेरे सपनों को तोड़ दिया। मुझे अपने बच्चे को गोद में लेने का मौका भी नहीं मिला।"
रिपोर्ट के अनुसार, आग रात करीब 11 बजे शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। बचाव दल 54 शिशुओं को बचाने और निकालने में सफल रहे। दुर्भाग्य से एक शिशु की मौत रविवार को हो गई। घटना की रात दस बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी। बचाए गए अन्य नवजात शिशुओं को कोई चोट नहीं आई और उन्हें दूसरे वार्ड और नर्सिंग होम में भेज दिया गया।
शुरुआती जांच में सामने आया है कि आग बुझाने वाले सिलिंडर एक्सपायर हो चुके थे। ये सिलिंडर आग पर काबू पाने में नाकाम साबित हुए।
झांसी मेडिकल कॉलेज में आग से बचाव के लिए लगे फायर इंस्टीग्यूशर गवाही दे रहे हैं कि कोई दो साल पहले तो कोई एक साल पहले अपनी उम्र पूरी कर चुका था। जिसकी वजह से ये सिलिंडर आग बुझाने में नाकाम साबित हुआ। एक सिलिंडर पर 2019 की फिलिंग डेट है, एक्सपायरी डेट 2020 की है। यानि फायर सिलिंडर को एक्सपायर हुए कई साल हो चुके थे। यह सिलिंडिर खाली दिखावे के लिए यहां रखे हुए थे।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में लगी आग में अब तक 11 नवजात बच्चों की मौत हो गई। यह “दुर्घटनावश” हुई थी और इस घटना में कोई आपराधिक साजिश या लापरवाही नहीं है। यह बात आग की जांच कर रही दो सदस्यीय समिति ने कही।
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार झांसी के कमिश्नर विपुल दुबे और डीआईजी रेंज कलानिधि नैथानी की समिति ने पाया कि आग स्विचबोर्ड में शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। आग पर काबू नहीं पाया जा सका क्योंकि बाल चिकित्सा वार्ड में स्प्रिंकलर नहीं लगाए गए थे।
घटना के समय एनआईसीयू वार्ड में छह नर्सें और अन्य कर्मचारी तथा दो डॉक्टर मौजूद थे। आग बुझाने की कोशिश में एक नर्स के पैर जल गए। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, जब पैरामेडिकल स्टाफ और दो अन्य लोग अग्निशामक यंत्र लेकर अंदर गए तो स्विचबोर्ड से आग तेजी से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की ओर फैल गई।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने शनिवार को झांसी के सरकारी अस्पताल में लगी आग की जांच के लिए चार सदस्यीय पैनल का गठन किया था।
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के सदस्यों वाली चार सदस्यीय समिति को सात दिनों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है।
20 वर्षीय पिता याकूब मंसूरी ने शुक्रवार रात को झांसी के लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में लगी आग में कई नवजात शिशुओं को बचाया। इस दुखद घटना में 10 नवजात शिशुओं की जान चली गई। मृतक बच्चों में याकूब की जुड़वां बेटियां भी शामिल थीं।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्टके अनुसार, हमीरपुर के फूड वेंडर याकूब ने आग लगने के बाद बच्चों को बचाने में अपनी बहादुरी दिखाई। याकूब ने खिड़की तोड़ दी और जितने बच्चों को बचा सकते थे उन्हों बचाने की कोशिश की। दुख की बात यह है कि वह अपने जुड़वां बच्चों को नहीं बचा सके क्योंकि आग बेकाबू थी।
माता-पिता के चीख-पुकार और मदद के लिए रोने के दिल दहला देने वाले वीडियो इंटरनेट पर सामने वायरल हुए। इस घटना में अपने पहले बच्चे को खोने वाली मां संजना कुमारी ने अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का आरोप लगाया और कहा, "मेरे बच्चे की जलकर मौत मेरी आंखों के सामने हो गई और मैं बेबस होकर देखती रही। अस्पताल की लापरवाही ने मेरे सपनों को तोड़ दिया। मुझे अपने बच्चे को गोद में लेने का मौका भी नहीं मिला।"
रिपोर्ट के अनुसार, आग रात करीब 11 बजे शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। बचाव दल 54 शिशुओं को बचाने और निकालने में सफल रहे। दुर्भाग्य से एक शिशु की मौत रविवार को हो गई। घटना की रात दस बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी। बचाए गए अन्य नवजात शिशुओं को कोई चोट नहीं आई और उन्हें दूसरे वार्ड और नर्सिंग होम में भेज दिया गया।
शुरुआती जांच में सामने आया है कि आग बुझाने वाले सिलिंडर एक्सपायर हो चुके थे। ये सिलिंडर आग पर काबू पाने में नाकाम साबित हुए।
झांसी मेडिकल कॉलेज में आग से बचाव के लिए लगे फायर इंस्टीग्यूशर गवाही दे रहे हैं कि कोई दो साल पहले तो कोई एक साल पहले अपनी उम्र पूरी कर चुका था। जिसकी वजह से ये सिलिंडर आग बुझाने में नाकाम साबित हुआ। एक सिलिंडर पर 2019 की फिलिंग डेट है, एक्सपायरी डेट 2020 की है। यानि फायर सिलिंडर को एक्सपायर हुए कई साल हो चुके थे। यह सिलिंडिर खाली दिखावे के लिए यहां रखे हुए थे।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में लगी आग में अब तक 11 नवजात बच्चों की मौत हो गई। यह “दुर्घटनावश” हुई थी और इस घटना में कोई आपराधिक साजिश या लापरवाही नहीं है। यह बात आग की जांच कर रही दो सदस्यीय समिति ने कही।
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार झांसी के कमिश्नर विपुल दुबे और डीआईजी रेंज कलानिधि नैथानी की समिति ने पाया कि आग स्विचबोर्ड में शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। आग पर काबू नहीं पाया जा सका क्योंकि बाल चिकित्सा वार्ड में स्प्रिंकलर नहीं लगाए गए थे।
घटना के समय एनआईसीयू वार्ड में छह नर्सें और अन्य कर्मचारी तथा दो डॉक्टर मौजूद थे। आग बुझाने की कोशिश में एक नर्स के पैर जल गए। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, जब पैरामेडिकल स्टाफ और दो अन्य लोग अग्निशामक यंत्र लेकर अंदर गए तो स्विचबोर्ड से आग तेजी से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की ओर फैल गई।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने शनिवार को झांसी के सरकारी अस्पताल में लगी आग की जांच के लिए चार सदस्यीय पैनल का गठन किया था।
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के सदस्यों वाली चार सदस्यीय समिति को सात दिनों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है।