तमिलनाडु: NEET एग्जाम में फेल होने पर तीन छात्राओं ने की आत्महत्या

Written by sabrang india | Published on: June 8, 2019
नई दिल्ली। महंगी शिक्षा, हाई कंप्टीशन और बेरोजगारी ने युवाओं को प्रेशर कुकर बनाकर रख दिया है। फेल होने के दवाब में आए दिन आत्महत्या कर रहे छात्र इसका उदाहरण हैं। ताजा मामला राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) का रिजल्ट आने के बाद सामने आया है। नीट परीक्षा में असफल होने के कारण तमिलनाडु में तीन छात्राओं ने आत्महत्या कर ली।  

इस परीक्षा का परिणाम बुधवार को घोषित किया गया था। इस घटना के बाद से तमिलनाडु में विपक्षी दलों की दो साल पुरानी मांग को एक बार फिर बल मिला है कि राज्य को इस परीक्षा से अलग हो जाना चाहिए। आत्महत्या करने वाली एम। मोनिशा लगातार दूसरे साल इस परीक्षा को पास करने में विफल रही।

जिले के एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘वह बीते साल अपने पिछले प्रयास में सफल नहीं हो सकी थी और इस साल संपन्न नीट परीक्षा में उसे बहुत कम अंक आए।’ इस छात्रा ने इरोड जिले के तिरुचेनगोड के एक प्रतिष्ठित विद्यालय से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की थी। मछुआरा समुदाय से संबंध रखने वाली इस लड़की की मां की हाल ही में मौत हो गई थी।

अधिकारी ने बताया, ‘वह अपने पिता के करीब थीं और उन्हें लग रहा था कि परिणाम के बारे में उन्हें बताया जाएगा।’ इससे पहले पांच जून को तिरुपुर की एस। रिधुश्री और पुदुकोट्टई की रहने वाली एन। वैशिया ने नीट परीक्षा में असफल रहने के बाद आत्महत्या कर ली थी।

2017 में अरियालुर जिले की अनीता ने नीट पास नहीं करने के बाद खुदकुशी कर लिया था, जिसके बाद परीक्षा विरोध हुआ था। पिछले साल नीट में असफल रहने की वजह से विल्लुपुरम जिले के एस। प्रतिभा और तिरुचिरापल्ली की के। सुभाश्री ने भी आत्महत्या कर ली थी।

अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम (एएमएमके) के महासचिव टीटीवी दिनाकरण ने छात्रा की मौत के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए आरोप लगाया कि नीट अन्याय परक है। इस परीक्षा की वजह से ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्र अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

परिणाम आने के एक दिन बाद द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन ने कहा कि उनकी पार्टी के सांसद संसद में इस मुद्दे को उठाएंगे और राज्य को इस परीक्षा से छूट देने की मांग करेंगे। माकपा नेता के। बालाकृष्णन ने भी उनकी मांग का समर्थन किया। एमडीएमके नेता वाइको ने कहा कि पीड़ित या तो गरीब मजदूरों के बच्चे होते हैं या फिर मध्यम वर्ग के। ये बच्चे नीट परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंगों की फीस में लाखों रुपये खर्च करने में असमर्थ हैं।

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