2002 गुजरात दंगाः रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह बोले - सफेद झूठ थी SIT रिपोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: October 18, 2018
भारतीय सेना के रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जमीरउद्दीन शाह अपने संस्मरणों पर लिखी किताब 'द सरकारी मुसलमान' को लेकर चर्चाओं में बने हुए हैं.  साल 2002 में हुए गुजरात दंगों को लेकर उन्होने इस किताब में तत्काली राज्य की मोदी सरकार की आलोचना की है.  शाह ने कहा था कि वह सरकारी मुसलमान नहीं हैं और बनना भी नहीं चाहते. 



जमीरउद्दीन शाह ने कहा कि किसी पार्टी का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए उनके पास कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है और उन्होंने जैसा सच देखा ठीक वैसे ही उसे किताब में बयां कर दिया है. रिटायर्ड अफसर ने कहा, 'आप जितने लोगों को मारते या तबाह करते हैं स्थिति उतनी ही खराब होती जाती है. अगर किसी को मारा जाता है या उनके घर जलाए जाते हैं तो इसे भुलाने में तीन पीढ़ियां लग जाती हैं.'

पाकिस्तान की ओर से भारतीय जवान का सिर काटे जाने पर शाह ने कहा, ‘1971 की जंग के बाद किसी भी पाकिस्तानी सैनिक के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया गया था. किसी सैनिक का सिर कांटना दूसरे सैनिक के लिए शर्म की बात है. ’पाकिस्तान की ओर से भारतीय जवान का सिर काटे जाने पर शाह ने कहा, ‘1971 की जंग के बाद किसी भी पाकिस्तानी सैनिक के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया गया था. किसी सैनिक का सिर कांटना दूसरे सैनिक के लिए शर्म की बात है.’

शाह की किताब 13 अक्टूबर शनिवार को उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की मौजूदगी में दिल्ली के भारत अंतरराष्ट्रीय केंद्र में रिलीज की गई. जब शाह से मौजूदा केंद्र सरकार के बारे में प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. 

शाह से सवाल किया गया कि एयरफील्ड कुछ भी नहीं कर रहे थे लेकिन इंतजार कर रहे थे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी की रिपोर्ट के बारे में आपका क्या कहना है. तो जवाब में उन्होने कहा, एसआईटी ने कभी मुझसे परामर्श नहीं किया. मुझे नहीं पता कि उन्हें सारी जानकारी कहां से मिली हैं. उनकी रिपोर्ट स्पष्ट रुप से झूठी थी. 

गल्फ न्यूज को दिए इंटरव्यू में शाह से जब पूछा गया कि क्या आप सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ का समर्थन करते हैं जो कह रही हैं कि एसआईटी रिपोर्ट एक शर्म थी? तो जवाब में उन्होने कहा, मैने उनसे कई बार मुलाकात की है और महसूस किया कि वह एक बहुत बहादुर महिला हैं. वह दंगों को किसी तरह रोकने की कोशिश कर रही थीं. उन्होने बहुसंख्यक समुदाय से अपनी बहादुरी दिखायी और मानवता के लिए सहानुभूति व्यक्त की.

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