स्लोवाकिया में पत्रकार की हत्या पर सरकार गिर गई

Written by Ravish Kumar | Published on: April 9, 2018
स्लोवाकिया में पत्रकार Ján Kuciak और उनकी मंगेतर Martina Kušnírová की हत्या के बाद वहां की जनता सड़कों पर आ गई। पनामा पेपर्स खुलासे से जुड़े कुसियाक ऑनलाइन वेबसाइटट Aktuality.sk के लिए काम करते थे। कुसियाक इन दिनों एक ऐसी स्टोरी पर काम कर रहे थे जिसमें सत्तारूढ़ गठबंधन की महत्वपूर्ण पार्टी के सदस्य टैक्स के फ्राड में शामिल थे। उनके साथ अधिकारियों का गिरोह भी इस खेल में शामिल था। स्लोवाक जनता को यह सब सामान्य लगता रहा है। उन्हें पता है कि सरकार में ऐसे तत्व होते ही हैं मगर एक पत्रकार की हत्या ने उन्हें झकझोर दिया।

स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री को लगा कि लोगों का गुस्सा स्वाभाविक नहीं हैं। जनाब हत्यारे को पकड़वाने वालों को दस लाख डॉलर का इनाम घोषित कर दिया। यही नहीं नगद गड्डी लेकर प्रेस के सामने हाज़िर हो गए। इससे जनता और भड़क गई। इस बीच कुसियाक जिस वेबसाइट के लिए काम कर रहे थे, उसने उनकी कच्ची पक्की रिपोर्ट छाप दी। उनकी सरकार के मंत्री और पुलिस विभाग के मुखिया कुसियाक की रिपोर्ट से जुड़े किसी सवाल का जवाब नहीं दे सके। जनता इस बात को पचा नहीं पा रही थी कि रिपोर्टिंग करने के कारण किसी रिपोर्टर की हत्या की जा सकती है। उन्हें लगा कि अपराधियों को खुली छूट मिलती जा रही है।

गृहमंत्री कलिनॉक के इस्तीफे की मांग उठने लगी। सरकार अपने अहंकार में डूबी रही। न जवाब दे पा रही थी, न अपराधी पकड़ पा रही थी और न ही इस्तीफा हो रहा था। बस वहां की जनता एक सभ्य स्लोवाकिया का बैनकर लेकर सड़कों पर आ गई। 9 मार्च को 48 शहरों में नागरिकों का समूह उमड़ पड़ा। निष्पक्ष जांच की मांग और गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर। ब्रातिस्लावा में तो साठ हज़ार लोगों के सड़क पर आने से ही सरकार हिल गई। 12 मार्च को गृहमंत्री कलिनॉक को इस्तीफा देना पड़ा। 15 मार्च को प्रधानमंत्री फिको और उनके मंत्रिमंडल को भी इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद भी जनता शांत नहीं हुई। दो दिन बाद फिर से सड़कों पर आ गई कि जल्दी चुनाव कराए जाएं।

यह कहानी भारत में हर जगह सुनाई जानी चाहिए। जहां पत्रकारों की हत्या से लेकर सवाल करने पर इस्तीफे के दबाव की घटना से जनता सामान्य होती जा रही है। सहज होती जा रही है। स्लोवाक जनता ने इसे मंज़ूर नहीं किया और अपने प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल को सड़क पर ला दिया, ख़ुद सड़क पर उतर कर। हमारे यहां गौरी लंकेश की हत्या पर कुछ ऐसे लोग गालियां दे रहे थे जिन्हें प्रधानमंत्री फोलो करते थे। लोकतंत्र की आत्मा भूगोल और आबादी के आकार में नहीं रहती है। कभी कभी वह मामूली से लगने वाले मुल्कों के लोगों के बीच प्रकट हो जाती है ताकि विशालकाय से लगने वाले मुल्कों को आईना दिखा सके।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह आर्टिकल उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.

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