जज लोया की मौत की रिपोर्टिंग के लिए मीडिया का बड़ा हिस्सा शांत रहा। मौत की परिस्थिति पर ही सवाल उठे हैं और मांग जांच की हुई है, इसके बाद भी इस सामान्य मांग पर सबने किनारा कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है और फ़ैसला सुरक्षित है। इस बीच कैरवान पत्रिका की रिपोर्ट सिहरन पैदा करती है कि किस तरह से पोस्टमार्टम के दस्तावेज़ बदल देने के संकेत मिलते हैं।
आज मुंबई से एक मित्र ने कुछ तस्वीरें साझा की तो लगा कि आपसे साझा करता हूं।
विनोद सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने जज लोया की मौत के सवाल को अपने टी शर्ट पर चिपका लिया है। उनके कुछ साथियों ने इस तरह से पहले भी मुंबई में प्रदर्शन किया है। हाईकोर्ट में प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने पकड़ भी लिया। आज विनोद चंद और उनके साथियों ने मुंबई के लोकल में ये टी शर्ट पहनकर यात्रा की है। अंधेरी, दादर, चर्चगेट जैसे स्टेशन पर खड़े होकर लोगों का ध्यान खींचा है।
पुलिस भगाती रही और ये दूसरे स्टेशन की तरफ भाग कर अपना प्रदर्शन करते रहे। जज लोया को किसने मारा। मुझसे रोज़ दस सवाल किए जाते हैं कि आपने इस पर नहीं बोला, उस पर नहीं लिखा मगर कोई इसे लेकर सवाल नहीं करता, जज लोया को लेकर कोई बोल क्यों नहीं रहा है।
सवाल पूछने वाला यह नहीं कहता कि वह भी जज लोया की मौत से जुड़े सवालों को पूछना चाहता है। जब मीडिया नहीं होगा तो आदमी को ही मीडिया बन जाना होगा। ये लोग एक अख़बार की तरह आपके सामने खड़े हो गए हैं।
चलती ट्रेन में लाइव चैनल बन गए हैं। जब सत्ता मीडिया को ख़रीद लेगी तब ऐसे ही लोग ख़बर बनकर आपके सामने आ जाएंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी से जुड़े हैं। ये लेख मूलत: उनके आधिकारिक फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है।)
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है और फ़ैसला सुरक्षित है। इस बीच कैरवान पत्रिका की रिपोर्ट सिहरन पैदा करती है कि किस तरह से पोस्टमार्टम के दस्तावेज़ बदल देने के संकेत मिलते हैं।
आज मुंबई से एक मित्र ने कुछ तस्वीरें साझा की तो लगा कि आपसे साझा करता हूं।
विनोद सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने जज लोया की मौत के सवाल को अपने टी शर्ट पर चिपका लिया है। उनके कुछ साथियों ने इस तरह से पहले भी मुंबई में प्रदर्शन किया है। हाईकोर्ट में प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने पकड़ भी लिया। आज विनोद चंद और उनके साथियों ने मुंबई के लोकल में ये टी शर्ट पहनकर यात्रा की है। अंधेरी, दादर, चर्चगेट जैसे स्टेशन पर खड़े होकर लोगों का ध्यान खींचा है।
पुलिस भगाती रही और ये दूसरे स्टेशन की तरफ भाग कर अपना प्रदर्शन करते रहे। जज लोया को किसने मारा। मुझसे रोज़ दस सवाल किए जाते हैं कि आपने इस पर नहीं बोला, उस पर नहीं लिखा मगर कोई इसे लेकर सवाल नहीं करता, जज लोया को लेकर कोई बोल क्यों नहीं रहा है।
सवाल पूछने वाला यह नहीं कहता कि वह भी जज लोया की मौत से जुड़े सवालों को पूछना चाहता है। जब मीडिया नहीं होगा तो आदमी को ही मीडिया बन जाना होगा। ये लोग एक अख़बार की तरह आपके सामने खड़े हो गए हैं।
चलती ट्रेन में लाइव चैनल बन गए हैं। जब सत्ता मीडिया को ख़रीद लेगी तब ऐसे ही लोग ख़बर बनकर आपके सामने आ जाएंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी से जुड़े हैं। ये लेख मूलत: उनके आधिकारिक फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है।)